अपना मालवा खाऊ उजाड़ू ( अंतराल भाग 2 ) Class 12

इस लेख में आप अपना मालवा पाठ का सार तथा महत्वपूर्ण प्रश्न पत्रों का अभ्यास करेंगे। यह लेख परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी है। विद्यार्थियों के हितों को ध्यान में रखकर यह लेख तैयार किया गया है , जो परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी है।

अपना मालवा खाऊ-उजाड़ू पाठ का सार – कक्षा 12

लेखक ने इस पाठ में मालवा प्रदेश को मौसम, ऋतु, नदियां वहां का जनजीवन तथा संस्कृति का अत्यंत सजीव वर्णन किया है। पूर्व समय में मालवा कितना खुशहाल था जहां पग पग पर पानी की उपलब्धता थी। आज उस मालवा प्रदेश में पानी विलुप्त होने की कगार पर है, जिससे लेखक के मन में पुरानी संस्कृति तथा नवीन खाऊ-उजाड़ू संस्कृति के का विपरीत प्रभाव पड़ा है, उसकी जिजीविषा को प्रकट करने का प्रयत्न किया है।

मालवा में जब अत्यधिक बारिश होती है तो जनजीवन पर इसका प्रभाव पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्र में आज भी बरसात ग्रामीणों के लिए मुसीबत ही पैदा करती है उनके यातायात के साधन ठप हो जाते हैं तथा लोगों को आने-जाने में कठिनाइयां होती है।

बारिश होने के कारण गेहूं और चने की फसल अच्छी होती है, किंतु सोयाबीन की फसल गल जाती है। अतिवृष्टि से नदियों में बाढ़ आ जाती है और पानी लोगों के घरों, दुकानों आदि में घुस जाता है। लेखक के अनुसार मालवा में पहले जैसा पानी अब नहीं गिरता क्योंकि उद्योग धंधों से निकलने वाली गैसों से पर्यावरण गर्म हो रहा है। मालवा में आधुनिक प्रगति की आड़ में निरंतर पर्यावरण का दोहन किया जा रहा है, जिससे वहां का प्राकृतिक संतुलन निरंतर बिगड़ता जा रहा है। वायु प्रदूषण फैल रहा है।

पर्यावरण असंतुलित हो गया है। वर्षा ऋतु पर भी इसका प्रभाव पड़ा और मालवा में औसतन वर्षा कम हो गई।

आज के इंजीनियर पश्चिमी शिक्षा को उच्च मानते हैं।

जबकि यह एक भ्रामक स्थिति है। पाश्चात्य प्रगति से पूर्व भारत की संस्कृति में जल प्रबंधन नगर नियोजन आदि के क्षेत्र में व्यापक विस्तार देखने को मिलता है, इसके साक्ष्य हड़प्पा सभ्यता से भी उपलब्ध हुए हैं।

उनका मानना है कि ज्ञान पश्चिम के रिनेसां (पुनर्जागरण) के बाद आया। पश्चिम का पुनर्जागरण को बीते हुए अधिक समय नहीं हुआ है। जबकि यहां हड़प्पा सभ्यता तथा मोहनजोदड़ो के उत्खनन से स्पष्ट होता है कि भारत की प्राचीन सभ्यता में जल प्रबंधन का विस्तृत योजना की गई थी।

आचार्य चाणक्य के दिशा निर्देशों से जन सामान्य की सुगमता और उचित प्रशासन का लाभ दिलाने के लिए अनेकों ऐसी योजना बनाई गई थी, जो पाश्चात्य संस्कृति या पुनर्जागरण के बाद उत्पन्न हुई विकासशील ढांचे को भी पीछे छोड़ती है।

किंतु भारतीय संस्कृति सभ्यता तथा इतिहास की अज्ञानता के कारण उन्हें यह नहीं पता कि जिस पानी के प्रबंध में वे स्वयं को माहिर मानते हैं उसे विक्रमादित्य भोज और मूंज ने रिनेसां के आने से पहले ही समझ लिया था।

पठार पर पानी रोकने के लिए इन्होंने तालाब-बावड़िया बनवाई और बरसात का पानी रोक कर धरती के गर्भ में पानी को जीवित रखा।

हमारे इंजीनियरों ने तालाबों और बावडियों को बेकार समझकर उन्हें कीचड़ से भर जाने दिया। नवरात्रि की पहली सुबह मालवा में घट स्थापना होती है। लोग गोबर से घर आंगन लिपते , मानाजी के ओटले को रंगोली से सजाने तथा सज-धजकर त्यौहार मनाने की तैयारी में हैं।

लेखक हैरान है कि इस समय भी बादल गरज रहे हैं तथा बरसने के लिए पूरे आसार हैं।

ओंकारेश्वर में नर्मदा पर बांध बन रहा था, जो सीमेंट कंक्रीट के विशाल राक्षस के समान प्रतीत होता है। नदी के वेग में बांध से रुकावट आ गई जिसके कारण नदी तिनफिन करती बह रही है। मानो बांध बनने से चीढ रही हो। बांध के निर्माण में लगी मशीनें और ट्रक गुर्राते हुए से प्रतीत होते हैं।

ज्योतिर्लिंग का तीर्थ धाम भी पहले जैसा नहीं लगता।

वर्तमान युग औद्योगिक विकास का युग है।

नदियां गंदे नाले में बदल रही है। लोगों द्वारा कूड़ा-करकट नदियों में बहाया जाता है। कल-कारखानों उद्योगों का रासायनिक पदार्थ नदियों में बहाया जाता है। हिंदू सभ्यता से जुड़ी पूजा सामग्रियों को जल में प्रवाहित किया जाता है।

इन सभी कारणों से नदियां सड़े नालों में तब्दील हो रही है।

शिप्रा , चंबल , नर्मदा , चोरल, इन सभी नदियों को विकास की सभ्यता ने गंदे पानी के नालों में बदल दिया है। हम जिसे विकास की औद्योगिक सभ्यता कहते हैं। वह वास्तव में उजाड़ की सभ्यता है। आधुनिक औद्योगिक विकास ने हमें प्रकृति से काट दिया है। हमारे नदी नाले सूख गए हैं , पर्यावरण प्रदूषित हो गया है। विकास की औद्योगिक सभ्यता , वास्तविकता में उजाड़ की अपसभ्यता है।

यह खाऊ-उजाड़ू सभ्यता यूरोप और अमेरिका की देन है।

वह अपनी इस पद्धति को बदलना नहीं चाहते।

वातावरण को गर्म करने वाली गैस सबसे ज्यादा यूरोप और अमेरिका से निकलती है , फिर भी वह अपनी इस जीवन पद्धति से समझौता नहीं करना चाहते। इन गैसों द्वारा तापमान के बढ़ने के कारण ही समुद्र का पानी गर्म हो रहा है। धरती के ध्रुवों पर जमी बर्फ पिघल रही है , मौसमों का चक्र बिगड़ रहा है।

लद्दाख में बर्फ की जगह पानी गिरा , बाड़मेर के गांव बाढ़ में डूब गए।

यही कारण है कि मालवा में अब डग-डग , रोटी पग-पग दीप नहीं मिलता है।

लेखक के अनुसार हम अमेरिका तथा यूरोप की नकल करते हुए ऐसी जीवन पद्धति संस्कृति सभ्यता अपना रहे हैं , जो पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है।

अपना मालवा प्रश्न उत्तर

१ प्रश्न – धरती का वातावरण गर्म क्यों हो रहा है ? इसके गर्म होने में यूरोप और अमेरिका की क्या भूमिका है ? अपने शब्दों में लिखें।

उत्तर –

  • वातावरण के गर्म होने का कारण

आज औद्योगिक विकास के चलते हम जो लोग उद्योग धंधों , कल-कारखाने लगा रहे हैं।

उनसे वातावरण को गर्म करने वाली गैसें निकलती है , यह गैसें वातावरण के तापमान को कई डिग्री से बढ़ा रही है।

  • यूरोप और अमेरिका की भूमिका

यह हानिकारक गैसें सबसे अधिक यूरोप और अमेरिका जैसे देशों से निकलती है।

इन देशों में लगे उद्योगों से वातावरण सर्वाधिक प्रदूषित हो रहा है।

  • वातावरण के गर्म होने से हानियां

इन गैसों द्वारा तापमान बढ़ने के कारण समुद्रों का पानी गर्म हो रहा है।

धरती के ध्रुवों पर जमी बर्फ पिघल रही है।

मौसमों का चक्र भी बिगड़ रहा है तथा पर्यावरण असंतुलित हो रहा है।

  • इसे रोकने के कई प्रयास –

इन हानियों से बचने के लिए हमें प्राकृतिक को विकास के साथ लेकर चलना होगा।

उद्योग धंधों में ऐसा विकल्प चुनना होगा जिससे हमारे पर्यावरण को भी हानि न पहुंचे।

जैसे बंजर धरती पर औद्योगिकरण करना या जंगलों को बेवजह ना काटना आदि।

२ प्रश्न – आज की सभ्यता इन नदियों को गंदे पानी के नाले कैसे बना रहे हैं ?

उत्तर – आज की सभ्यता के अनुसार हम नदियों को माता नहीं मानते बल्कि उसे उपयोग की वस्तु समझते हैं तथा कई रूपों में उसे दूषित कर रहे हैं –

  • कूड़ा-कचरा फेंक कर –

लोगों द्वारा अपने घर का कूड़ा कचरा इन नदियों में बहा दिया जाता है। जिसे पूर्णतः वहा  ले जाने में असमर्थ नदियां प्रदूषित हो जाती है।

  • पूजा सामग्री बहाकर –

हिंदू सभ्यता के अनुसार पूजा सामग्री को पवित्र नदियों में बहा दिया जाता है। जिसके कारण नदियां अपवित्र हो रही है।

  • कल कारखानों का रासायनिक पदार्थ –

उद्योगों कारखानों से निकला सारा रासायनिक पदार्थ नदियों में बहाया जाता है। जिससे नदियों का पानी जहरीला भी हो रहा है।

  • नदियों का निरंतर रखरखाव ना करना –

नदियों को अनावश्यक समझ कर इसके रखरखाव व सफाई पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता।

जिससे यह गंदे नालों के रूप में परिवर्तित हो जाती है।

३ प्रश्न – अपना मालवा पाठ में जब सब जगह बरसात की झड़ी लगी रहती है , तब मालवा का जनजीवन पर इसका क्या असर पड़ता है ?

उत्तर – मालवा में जब बरसात की झड़ी लगती है तब सामान्य जीवन प्रभावित होता है। ग्रामीण क्षेत्र में शहरी व्यवस्था नहीं होती है , सड़कें तथा नालियों के व्यवस्थित ना होने के कारण वहां के निवासी बरसात के मौसम में प्रभावित होते हैं।

  • फसल को फायदा तथा नुकसान –

बरसात का मौसम फसल के लिए बेहद उपयोगी साबित होता है। यह बरसात फसल को जीवन प्रदान करता है।  इस मौसम में पैदावार भी बढ़ती है। किंतु कई बार अधिक बरसात होने के कारण खेत में लगे हुए फसल बर्बाद हो जाते हैं , जिससे उनके मौसमी उपज पर प्रभाव पड़ता है।

  • आवागमन में परेशानी

प्राचीन समय से ही बरसात के चार महीने आवागमन के लिए उचित नहीं माने गए हैं। साधु-संत बरसात के मौसम में एक जगह रुक जाया करते थे।  चाहे वह गुरुकुल हो या किसी बस्ती में। वहां रहकर वह ज्ञान वार्ता किया करते थे। उस समय यातायात का उचित माध्यम नहीं था। सड़कें जलमग्न हो जाया करती थी , जिसमें आवागमन में बाधा उत्पन्न होती थी। मालवा में भी कुछ इसी प्रकार की समस्या होने के कारण यातायात प्रभावित हो जाया करता था।

४ प्रश्न – अब मालवा में वैसा पानी नहीं गिरा करता। उसके क्या कारण है ?

उत्तर – यहां लेखक बदल रहे पर्यावरण , तापवृद्धि आदि की ओर संकेत कर रहा है।

  • तापवृद्धि का कारण
  • आधुनिक उपकरणों का प्रयोग करना ,
  • जंगलों को नष्ट करना ,
  • नदी , तालाब आदि का रखरखाव ना करना
  • जल के स्रोतों को दूषित कर देना
  • आदि के कारण वातावरण में निरंतर परिवर्तन देखने को मिल रहा है।

इस अनदेखी का एक बड़ा परिवर्तन यह भी है कि बरसात पूर्व जैसा नहीं होता।

बरसात प्रकृति चक्र पर कार्य करती है।

नदी , तालाब आदि जल स्रोतों से वाष्पीकरण के माध्यम से बादल बनता है और पेड़-पौधे की सघनता वाले स्थानों पर बरसता है।

किंतु अब इन सब की अनदेखी के कारण बरसात भी प्रभावित हुआ है।

लोग विदेशी परंपरा का अंधानुकरण कर रहे हैं।

इस अंधानुकरण के कारण खाऊ उजाडू सभ्यता का विकास हो रहा है।

निरंतर ताप वृद्धि पृथ्वी पर जीव जंतुओं तथा मनुष्य को प्रभावित कर रहा है।

५ प्रश्न – हमारे आज के इंजीनियर ऐसा क्यों समझते हैं कि वह पानी का प्रबंधन जानते हैं , और पहले के जमाने के लोग कुछ नहीं जानते थे ?

उत्तर –

लेखक ने आज के इंजीनियर तथा पाठ्यक्रम की ओर संकेत करते हुए स्पष्ट किया है कि पहले की जो तकनीक हुआ करती थी वैसी आज नहीं है। आज के इंजीनियर को ऐसा लगता है जैसे पहले जल संरक्षण के लिए कुछ कार्य नहीं किया गया। आज के इंजीनियर के द्वारा जल संरक्षण की व्यवस्था ही उचित है , जबकि ऐसा नहीं है। पूर्व समय में भी जल संरक्षण के प्रति लोग सजग थे , बरसात आदि का पानी वह संरक्षण करने का माध्यम जानते थे।

इसीलिए वह जगह-जगह ताल – तलैया बना दिया करते थे ,

जिससे पानी संग्रहित होकर उनके पशुओं तथा खेतों के काम में आ जाया करता था।

बड़े-बड़े राजाओं ने जल संरक्षण के लिए बावलिया तथा कुआं – कुंड आदि का निर्माण कराया था। उन कुंड , बावलिया , कुंड आदि में विशाल मात्रा में जल का संरक्षण किया जा सकता था।यह वर्ष भर पानी को संरक्षित रखने में सक्षम था, जबकि वर्तमान समय के इंजीनियर इस प्रकार पानी का संरक्षण करने में असफल है।

६ प्रश्न –  अपना मालवा पाठ में विक्रमादित्य और भोज और मूंज रिनेसां के बहुत पहले हो गए। पानी के रखरखाव के लिए उन्होंने क्या प्रबंध किए ?

उत्तर-  पूर्व समय में बड़े-बड़े राजा रजवाड़ों ने जल के संरक्षण के लिए अपनी सहभागिता दिखाई।

उन्होंने अपने सामर्थ्य के अनुसार बड़े बड़े तालाब में तथा बावरिया बनाए जिससे उनकी प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट ना रहे। आज भी उनके द्वारा बनाई गई बावरिया देखने को मिलती है। इन बावरियों को देखकर इस वक्त होता है कि उस समय के राजाओं ने किस प्रकार जल संरक्षण के प्रति अपना दृष्टिकोण अपनाया था।

७ प्रश्न – मालवा में विक्रमादित्य और भोज और मुंजा रिनेसां के बहुत पहले हो गए पानी के रखरखाव के लिए उन्होंने क्या प्रबंध किए।

उत्तर – भारत में अनेक राजा तथा धर्मात्मा लोग हुए हैं जिन्होंने समाज कल्याण के लिए बहुत कार्य किया है। उसी प्रकार मालवा के राजा विक्रमादित्य ने अपनी प्रजा को अनेकों विपत्ति से बचाने का प्रयत्न किया था। जिनमें सुखा से बचने के लिए उन्होंने विभिन्न प्रकार के तालाब बावलियां तथा कुएं बनवाए थे। इस जल स्रोतों में बरसात का पानी एकत्रित हो जाया करता था।

सुखा तथा गर्मी की स्थिति में मालवा की प्रजा इन जल स्रोतों का प्रयोग किया करते थी। यह जल उनके पशु तथा खेती के कार्य में भी लिया जाता था। यह सभी कार्य तब हुए जब पश्चिमी सभ्यता में पुनर्जागरण का अस्तित्व भी नहीं था।

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अपना मालवा निष्कर्ष

उपरोक्त पाठ अपना मालवा का अध्ययन करने पर स्पष्ट होता है कि लेखक ने अपने गांव और प्रकृति के माध्यम से आज की व्यवस्था को उजागर किया है।आज का समाज जहां पश्चिमी देशो का अंधनुकरण कर रहा है , इस प्रक्रिया में वह स्वयं अस्थाई निवासी बन रहा है। निरंतर वन की कटाई जल के स्रोतों को नष्ट कर देना मानव सभ्यता के लिए संकट उत्पन्न करता जा रहा है। निरंतर तापमान वृद्धि के कारण पर्यावरण प्रभावित हो रहा है।

जिसके कारण गर्मी बढ़ती जा रही है , बरसात कम होता जा रहा है।

कई जीव जंतु विलुप्त हो चुके हैं या होने की कगार पर है।

यह सभी पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है।

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