मलिक मोहम्मद जायसी का स्थान भक्ति कालीन निर्गुण संत कवि परंपरा में है। इनके काव्य में श्रृंगार रस की भरमार है, जिसका उदाहरण बारहमासा को पढ़कर लगता है।
इस लेख में आप मलिक मोहम्मद जायसी के संक्षिप्त जीवन परिचय, सप्रसंग व्याख्या, काव्य सौंदर्य तथा महत्वपूर्ण प्रश्नों का अभ्यास कर सकेंगे, जो प्रतियोगी परीक्षा के अनुरूप तैयार किया गया है।
मलिक मुहम्मद जायसी – बारहमासा
मलिक मोहम्मद जायसी हिंदी के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इनके काव्य में श्रृंगार रस के दोनों पक्ष संयोग तथा वियोग का बड़ा ही तार्किक रूप से प्रयोग किया गया है। इन्होंने निर्गुण भक्ति को अधिक महत्व दिया है। मलिक मोहम्मद जायसी की ख्याति नागमती वियोग खंड से उद्धृत बारहमासा से अधिक हुई है।
इसमें नायिका के दशा का वर्णन ऋतू व समय चक्र के आधार पर किया है।
मलिक मुहम्मद जायसी का संक्षिप्त जीवन परिचय
जन्म – 1492 में उत्तर प्रदेश के जायस ग्राम में हुआ। जायस में रहने के कारण जायसी कहलाए। हिंदी साहित्य में मलिक मोहम्मद जायसी के नाम से प्रसिद्ध है। यह भक्ति काल के निर्गुण भक्ति धारा के सूफी शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं। यह शारीरिक दृष्टि से कुरुप थे इनका आधा शरीर टेढ़ा था।
रचनाएं –
12 ग्रंथ बताए जाते हैं, परंतु साक्ष्य के रूप में सात ही उपलब्ध हैं। प्रमुख रचनाएं –
- पद्मावत महाकाव्य
- अखरावट
- आखिरी कलाम
- चित्ररेखा
- कहरनामा
- मसलनामा
- कंनरावत।
साहित्यिक परिचय –
जायसी सूफी काव्य धारा के प्रमुख कवि हैं, प्रसिद्धि का आधार पद्मावत महाकाव्य है। यह एक आध्यात्मिक काव्य है इसमें अलौकिक कथा के माध्यम से लौकिक कथा का उल्लेख है समन्वय शैली में लिखी रचना है। यहां हिंदू और मुस्लिम काव्य शैली का समन्वय है। पद्मावत में रत्नसेन ‘आत्मा’ का पद्मावती ‘परमात्मा’ का हीरामन तोता ‘गुरु’ का नागमती ‘सांसारिक मोह माया’ का प्रतीक है।
भाषा शैली –
आम बोलचाल की लोक प्रचलित अवधी भाषा, फारसी की मसनवी शैली भाषा में अन्योक्ति समासोक्ति, उत्प्रेक्षा, उपमा, रूपक, अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग। करुण व श्रृंगार रस के दोनों पक्ष सहयोग व वियोग का प्रयोग है। गाम्भीर्य भाव है मृत्यु।
मृत्यु – 1542 में हुई।
मलिक मोहम्मद जायसी ‘ बारहमासा ‘ पाठ परिचय
जायसी द्वारा रचित महाकाव्य पद्मावत के नागमती वियोग खंड का एक भाग है। इसमें नागमती के विरह का वर्णन है। नागमती चित्तौड़ के राजा रतन सेन की पत्नी है। राजा सिंहल द्वीप की राजकुमारी पद्मावती की सुंदरता पर मुग्ध होकर उससे शादी करने के लिए नागमती को छोड़कर चला जाता है। राजा और पद्मावती के बारे में हीरामन तोते ने बताया है, यह तोता पद्मावती का तोता है। इस काव्य में कवि ने अलौकिक प्रेम कथा के माध्यम से लौकिक प्रेम को अभिव्यक्ति दी है।
प्रेम द्वारा ईश्वर प्राप्ति पर बल दिया है , यहां रतन सेन आत्मा का प्रतीक है, जो गुरु हीरामन तोता ज्ञान द्वारा ईश्वर की प्राप्ति के लिए (पद्मावती) चल देता, दिखाई देता है। परंतु ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बहुत कठिन है, अतः मार्ग में सांसारिक मोह माया रास्ता रोकने का प्रयास करती है। इस काव्य पर हिंदी और फारसी की मसनवी शैली का प्रयोग दिखाई देता है।
सप्रसंग व्याख्या ( बारहमासा )
अगहन दिवस घटा ……………….. धुआं हम लाग। ।
प्रसंग –
कवि – मलिक मोहम्मद जायसी
कविता – पद्मावत बारहमासा
संदर्भ –
इसमें कवि ने नागमती के विरह का वर्णन किया है, जिसमें उसका पति पद्मावती से शादी करने के लिए छोड़ कर चला जाता है।
व्याख्या –
कवि नागमती के माध्यम से अगहन मास में उसके विरह का वर्णन करते हुए कहता है कि इस मास में दिन छोटा और रातें लंबी हो गई है, जिससे नागमती की विरह वेदना भी लंबी हो गई है। वह विरह में रात और दिन ऐसे जलती है जैसे दीपक में बाती जल रही है। सर्दी में उसके लिए विरह वेदना असहनीय है, घर-घर में सब सर्दी से बचने के लिए गर्म वस्त्रों की तैयारी कर रहे हैं। अर्थात सर्दी से बचने के लिए कपड़े सिलवा रहे हैं, परंतु नागमती को कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है।
वह श्रृंगार नहीं करती, क्योंकि उसे लगता है कि उसका रंग रूप सौंदर्य उसके पति के साथ चला गया है और उसका पति उसे एक बार छोड़कर ऐसा गया कि वापस नहीं आया। यदि वह वापस आ जाता तो उसकी खुशियां उसका रूप सौंदर्य भी वापस आ जाएगा। सर्दी भी उसकी विरह की अग्नि को शांत करने की बजाय उल्टा और बढ़ा रही है। वह विरह में ऐसे जल रही है जैसे लकड़ी धीरे-धीरे सुलगती है और उसका यह दुख उसका पति नहीं जानता क्योंकि वह उसका यौवन रूपी जीवन भस्म कर रहा है।
नागमती भवरे और कौवे के माध्यम से अपने पति को संदेश भेजती है, कि यदि तुम्हें रास्ते में मेरे पति मिल जाए तो उनसे यह कहना कि उनकी पत्नी बिरह में जल जल कर मर रही है। उसके शरीर से जो विरह की अग्नि निकल रही है उससे हम भी काले पड़ गए हैं।
काव्य सौंदर्य –
- नागमती की विरह वेदना का मार्मिक चित्रण है।
- ‘दूभर दुख’, ‘किमी काढ़ी, रूप-रंग , दुख-दग्ध में अनुप्रास अलंकार है।
- जरै बिरह ज्यों दीपक बाती – उत्प्रेक्षा अलंकार
- भाषा – अवधि
- छंद – दोहा, चौपाई
- शैली – उदाहरण और चित्रात्मक
- रस – वियोग श्रृंगार
- फारसी की मसनवी शैली का प्रयोग।
सप्रसंग व्याख्या
फागुन पवन झकौर ………………. कंत धरै पाँउ। ।
प्रसंग –
कवि – मलिक मोहम्मद जायसी
कविता – पद्मावत महाकाव्य से बारहमासा
संदर्भ –
इसमें कवि ने फागुन मास में नागमती की विरह वेदना का मार्मिक चित्रण किया है।
व्याख्या –
नागमती अपनी वेदना का वर्णन करते हुए कहती है कि फागुन मास में तेज और ठंडी हवाएं चल रही है, जिससे सर्दी चार गुना बढ़ गई है। वियोग के कारण बहुत कमजोर और पीली पड़ गई है, जिससे इस माह में चलने वाली तेज हवाएं भी यह सहन नहीं कर पा रही है। प्रकृति में पुराने पत्ते गिर गए, कपोले फूट रही है, नए पत्ते और फूल आ रहे हैं चारों और वनस्पति और लोगों में फिर से उल्लास भर गया है। तब इस माह में आनंद के साथ चाचर (फाग माह में केवल दंपति द्वारा किया जाने वाला नृत्य ) खेल रहे हैं, परंतु नागमती को यह सब दुख दे रहा है।
क्योंकि उसका पति उसके साथ नहीं है , अतः वह किसके साथ होली खेले।
वह कहती है कि यदि उसके प्रेम को उसका बिरहा में इस प्रकार जलना अच्छा लगता है , तो वह उसकी खुशी के लिए कोई शिकायत नहीं करेगी। ऐसे ही विरह में मर जाएगी, बस उसकी यही अंतिम इच्छा है कि उसका पति कहां है वह मरने से पहले एक बार उसके हृदय से लगना चाहती है। उसकी एक ही इच्छा बची है कि उसका शरीर बिरह की अग्नि में जलकर राख बन जाए और उसके शरीर रूपी राख को पवन उड़ा कर उस मार्ग में डाल दे, जहां उसके पति चरण रखें। इस प्रकार वह अपने पति को स्पर्श कर लेगी।
काव्य सौंदर्य –
- नागमती की विरह वेदना का मार्मिक चित्रण किया गया है
- भाषा – अवधि
- छंद – दोहा चौपाई
- रस – वियोग, श्रृंगार
- अलंकार – उपमा, रूपक, अनुप्रास
- प्रकृति प्रेम का सजीव चित्रण
- प्रेम की उत्सर्ग भावना, पूर्ण समर्पण भाव के साथ।
काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ( बारहमासा )
( 1 ) रक्त ढ़रा मांसू …………………….. आई समेटहु पंख। ।
भाव सौंदर्य –
कवि ने नागमती की विरह वेदना का मार्मिक चित्रण किया है, विरह में उसका सारा रक्त आंसू बनकर बह रहा है। सारा मांस गल कर गिर रहा है और हड्डियां सुख कर शंख के समान हो गई है। अर्थात वह मृत्यु को प्राप्त होने वाली है। वह सारस पक्षी के समान मरने से पहले बस एक बार अपने पति से मिलना चाहती है कि उसका पति सारस बन कर उसे संभाल ले।
शिल्प सौंदर्य –
कवि – जायसी
कविता – बारहमासा
भाषा – अवधि
शैली – मसनवी
रस – वियोग श्रृंगार
छंद – दोहा चौपाई , विभक्त
अलंकार – अतिशयोक्ति
छंद कविता – तुकांत
गुण – माधुर्य
शब्द चयन – तत्सम , तद्भव शब्दावली।
सार – अलौकिक के माध्यम से अलौकिक का वर्णन
( 2 ) नैन चुहवि ……………….. सर चिरु। ।
भाव सौंदर्य –
नागमती वियोग में तड़प रही है , वह अपने पति को दिन-रात याद करते हुए रोती रहती है। उसकी आंखों से आंसू ऐसे टपक रहे हैं जैसे माघ के महीने में होने वाली वर्षा जिसे माहुट बोला जाता है। यह वर्षा उसे शीतलता देने की बजाय उसके विरह को और बढ़ा रही है। अर्थात उसे अपने पति की और अधिक याद आने लगती है।
शिल्प सौंदर्य –
कवि – जायती
कविता – बारहमासा
भाषा – अवधि
शैली – मसनवी
रस – वियोग श्रृंगार करुण रस
छंद – दोहा चौपाई
अलंकार – उपमा , रूपक , अतिशयोक्ति
छंद कविता – तुकांत
गुण – प्रसाद माधुर्य
शब्द चयन – तत्सम , तद्भव शब्दावली
सार – लौकीक माध्यम से अलौकिकता का वर्णन।
प्रश्न – अगहन मास की विशेषता बताते हुए विरहणी (नागमती) की व्यथा का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर – अगहन के महीने में दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती है , मौसम ठंडा हो जाता है। नागमती को दिन भी रात के समान लगने लगता है क्योंकि सर्दी की रातें लंबी और दिन अकेले बिताना कठिन हो गया है। ठंड से वह कांपती रहती है और सर्दी के वस्त्र भी नहीं बनाती है क्योंकि उसका श्रृंगार देखने वाला प्रियतम तो उससे दूर चला गया है। शीत आग बन कर उसे जलाता है , उसे लगता है कि पति के वियोग में उसकायौवन और शरीर इसी प्रकार से यह रोशनी अग्नि में जलकर राख हो जाएगा।
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समापन
उपरोक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि जायसी की ‘बारहमासा’ प्रेम आधारित साहित्य है जिसमें अलौकिक प्रेम के माध्यम से लौकिक प्रेम को अभिव्यक्ति मिली है। इनकी भाषा शैली उर्दू, फारसी और दरबारी भाषा से प्रभावित है। कवि ने महीने के आधार पर नागमती के विरह वर्णन की अभिव्यक्ति की है।