हुसैन की कहानी अपनी जुबानी – hussain ki kahani apni jubani

मकबूल फिदा हुसैन जो एक लेखक तथा चित्रकार थे इस लेख में उनका संक्षिप्त जीवन परिचय, हुसैन की कहानी अपनी जुबानी पाठ का सार, महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर पढ़ने को मिलेगा जो विद्याथी के हित को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।

हुसैन बचपन से ही क्रियात्मक बुद्धि के थे , उन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए स्वयं से प्रयास किया। उनके प्रयास में उनके शिक्षक तथा परिवार ने सहयोग किया और उनको जीवन संवारने के लिए पंख मिल गए।

एक बालक के भीतर छुपी हुई प्रतिभा फिर उभर कर बाहर आई और दुनिया में प्रसिद्धि प्राप्त हुई।

 

हुसैन की कहानी अपनी जुबानी

मकबूल फिदा हुसैन जाने-माने चित्रकार तथा लेखक थे , उन्होंने आरंभिक जीवन को अपने इस कहानी के माध्यम से प्रस्तुत किया है। उन्होंने बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई करते हुए किस प्रकार अपने जन्मजात कलाकार को उभारा।

एक छोटा सा उदाहरण प्रकट किया गया है –

उनका पारिवारिक जीवन इस क्षेत्र से भी न था , इनके परिवार में सभी व्यवसाई थे।

कोई भी चित्रकला के क्षेत्र से संबंध नहीं रखता था।

वैसे भी इस्लाम में चित्र , संगीत सुनना आदि को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया जाता है।

इसलिए इनके प्रतिभा को उभर कर सामने आने में काफी समय लगा।

हुसैन को अपने दादा से बेहद लगाव था , उनकी मृत्यु के बाद वह उसे कमरे में रहा करता था। जिसमें उसके दादा रहते थे इसके बाद उसकी अवस्था को देखते हुए घर वालों ने बोर्डिंग स्कूल में दाखिला कराया। वहां शिक्षक के द्वारा मकबूल हुसैन के भीतर छुपे कलाकार को पहचाना गया और उसे एक नई दिशा प्रदान की गई।

हुसैन जी का कला के क्षेत्र में बेहद प्रमुख स्थान है, उन्हें चित्रकला का स्तंभ माना जाता है।

उन्होंने फिल्म जगत के लिए अनेकों प्रकार के विज्ञापन , होर्डिंग आदि बनाए जो उन्हें और प्रसिद्ध बनाता है। उन्होंने ऑयल पेंटिंग का भी सलीके से प्रयोग किया है। उनकी यह कला फिल्म जगत में काफी विवादों में भी रहा है किंतु उन्हें कोई भी विवाद डिगा नहीं पाया।

हुसैन जी को 1966 में पद्म श्री और सन 1973 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है।

कौन सी विधा है

आत्मकथा

प्रेरणा

यदि विद्यार्थी जीवन में प्रतिभा विकास का सही अवसर और दिशा मिल जाए जो विद्यार्थी का जीवन धन्य हो जाता है। अतः अभिभावक और शिक्षक दोनों को अपने बच्चों की शैक्षणिक योग्यता से भीतर प्रतिभा को पहचान कर उसके विकास में सहयोग देकर उसके उज्जवल भविष्य का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।

हुसैन की कहानी अपनी जुबानी पाठ का सार

हुसैन की कहानी अपनी जुबानी का पहला अंश बड़ौदा का बोर्डिंग स्कूल उनके विद्यार्थी जीवन से जुड़ा है जहां उनकी रचनात्मक प्रतिभा के अंकुर फूटे उनकी प्रतिभा सामने आई।

दूसरा अंश रानीपुर बाजार है जहां हुसैन से अपने पारिवारिक व्यवसाय को स्वीकार करने की अपेक्षा की जा रही थी। किंतु वहां भी हुसैन के अंदर का कलाकार उनसे चित्रकारी कराता रहा। अंततः हुसैन के पिताजी ने अपने बेटे के हुनर को पहचाना और उनकी रोशन खयाली ने हुसैन को एक महान चित्रकार बना दिया।

दादा जी की मृत्यु के बाद हुसैन दादा के कमरे में ही बंद रहता और उनके बिस्तर में ही सोता। हुसैन के इस तरह गुमसुम रहने के कारण उसके अब्बा ने उसे बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल भेज दिया।

बोर्डिंग में मकबूल के छः अच्छे दोस्त बने

  • मोहम्मद इब्राहिम गौहर अली ,
  • अरशद ,
  • हामिद कंबर हुसैन ,
  • अब्बास जी अहमद ,
  • अब्बास अली फ़िदा ,
  • अत्तार आदि।

सभी में दो साल तक दोस्ती रही। फिर सभी भिन्न-भिन्न दिशाओं में चले गए।

दो साल की नजदीकी तमाम उम्र कभी दिल की दूरी में बदल नहीं पाई।

विद्यालय में मकबूल ने ड्राइंग मास्टर द्वारा ब्लैक बोर्ड पर बनाई चिड़िया को अपने स्लेट पर हूबहू बनाकर तथा दो अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर गांधी जी का पोर्ट्रेट ब्लैक बोर्ड पर बनाकर अपनी जन्मजात कला का परिचय दिया।

रानीपुर बाजार में चाचा मुराद अली की दुकान पर बैठकर उनका सारा ध्यान ड्राइंग और पेंटिंग पर रहता था। वह दुकान पर बैठे-बैठे , आने-जाने वालों के चित्र बनाता रहता। जिनमें से घुंघट ताने मेहतरानी , गेहूं की बोरी उठाएं मजदूर की पेंचवाली पगड़ी का स्केच , बुर्का पहने औरत और बकरी के बच्चे का स्केच आदि प्रमुख थे। एक बार ‘सिंघगढ़’ फिल्म का पोस्टर देखकर मकबूल को ऑयल पेंटिंग बनाने का विचार आया। उसने अपनी किताबें बेंचकर ऑयल पेंटिंग कलर खरीदा तथा अपनी पहली पेंटिंग बनाई।

पेंटिंग देखकर पिता ने पुत्र को गले लगा लिया।

एक बार इंदौर के सर्राफा बाजार में लैंडस्केप बनाते समय वीरेंद्र साहब से मुलाकात हुई।  फिर दोनों लैंडस्केप पेंट करने लगे , मकबूल ने एक दिन बेंद्रे को अपने पिता से मिलवाया। बेंद्रे ने मकबूल के काम पर उनसे बात की। मकबूल के पिता ने मुंबई से ‘विनसर न्यूटन’ ऑयल ट्यूब और कैनवस मंगवाए उन्होंने बेटे के लिए सारी पुरानी मान्यताओं को नजरअंदाज कर अपने बेटे को जिंदगी में रंग भरने की इजाजत दे दी। यह हुसैन के जीवन की ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएं थी , जिनकी हुसैन को एक प्रसिद्ध चित्रकार बनाने में विशेष भूमिका निभाती रही।

हुसैन की कहानी अपनी जुबानी प्रश्न-उत्तर

१ प्रश्न – लेखक ने अपने पांच मित्र के जो शब्द चित्र प्रस्तुत किए , उनसे उनके अलग-अलग व्यक्तित्व की झलक मिलती है , फिर भी वह घनिष्ठ मित्र हैं कैसे ?

उत्तर –

लेखक ने अपने बोर्डिंग स्कूल के पांच मित्रों का जिक्र किया है।

उनके व्यक्तित्व शारीरिक , कद-काठी आदि को शब्दों के माध्यम से बताया है।

जिसमें उसके सभी पांचों दोस्त अलग-अलग क्षेत्र में रुचि रखते थे।

किसी को गाना सुनना पसंद था , किसी को व्यायाम , तो किसी को बातें करने का शौक था। कोई भोजन का शौकीन था ,  इस प्रकार लेखक ने अपने पांचों मित्रों का परिचय पाठ में दिया है। अपने पांचों मित्रों से हुसैन साहब बिल्कुल भिन्न थे। उन्हें केवल चित्रकला से प्रेम था , वह घंटों बैठे चित्रकला करते और अपने भीतर के कलाकार को बाहर निकालने का प्रयत्न किया करते थे।

२ प्रश्न – आप कैसे कह सकते हैं कि लेखक का अपने दादा से विशेष लगाव रहा ?

उत्तर –

लेखक को अपने दादा से विशेष लगाव था , जैसा कि आम बच्चों को रहता है।

वह अपने दादा के पास पूरा दिन बैठकर उनसे बातें करके गुजारा करते थे। दादा की मृत्यु के बाद उसे अपना जीवन सूना लगने लगा था वह अब दादाजी के कमरे में दिन भर रहता ना किसी से बोलचाल करता और ना खाने के विषय में सोचता वह भूखा प्यासा दादा की स्मृतियों में खोया रहता घर परिवार के लोग उसके इस व्यवहार से काफी चिंतित थे क्योंकि उसका दिनभर कमरे में बैठा रहना और उनकी यादों में खोया रहना उसके शरीर पर विपरीत प्रभाव डाल रहा था।

लेखक के इस व्यवहार से स्पष्ट होता है कि वह अपने दादा से विशेष लगाव रखते थे।

३ प्रश्न – लेखक जन्मजात कलाकार है , इस आत्मकथा में सबसे पहले कहां उद्घाटित होता है ?

उत्तर –

लेखक वैसे तो जन्मजात कलाकार था। वह अपने घर तथा चाचा की दुकान पर बैठकर चित्रकारी किया करता था , लेकिन जन्मजात कलाकार की पहचान बोर्डिंग स्कूल में होती है। मास्टर जी द्वारा ब्लैक बोर्ड पर बनाए गए चिड़िया को लेखक ने अपने स्लेट पर हू-बहू उतार दिया।

ऐसा अन्य विद्यार्थियों के लिए कठिन था , अन्य विद्यार्थी उस ड्राइंग को ठीक प्रकार से नहीं बना पाए।

इससे लेखक के जन्मजात कलाकार होने का रहस्य उद्घाटित होता है।

४ प्रश्न – दुकान पर बैठे-बैठे भी मकबूल के भीतर का कलाकार उसके किन क्रियाकलापों से अभिव्यक्त होता है।

उत्तर –

दुकान पर बैठे-बैठे मकबूल बिजनेस में अधिक ध्यान नहीं लगाता था।

वह हमेशा चित्रकारी किया करता था , यह उसके मनोरंजन का एक साधन भी था। दुकान तथा बाजार में आए हुए लोगों की चित्र बनाया करता था। जैसे – कोई सिर पर थैला लेकर घूम रहा है तो उसका चित्र कोई बकरी का बच्चा घूम रहा है तो उसका चित्र।

इस प्रकार उसने

  • घुंघट वाली मेहतरानी ,
  • पेच वाली पगड़ी ,
  • पठान की दाढ़ी और
  • बकरी के बच्चे आदि का स्केच बनाया जो पाठ में मुख्य रूप से बताया गया है।

यही उसने स्केच और खूबसूरत बनाने के लिए अपने पढ़ाई की पुस्तकों को भी बेच दिया था।

५ प्रश्न – प्रचार-प्रसार के पुराने तरीकों और वर्तमान तरीकों में क्या फर्क आया है ? पाठ के आधार पर बताओ।

उत्तर –

पुराने समय में तकनीक इतनी विकसित नहीं थी कि उसकी चित्रकारी कथा प्रिंट आदि किया जा सके। आज के समय में सभी कार्य प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से संभव हो जाता है। पूर्व समय में सभी पोस्टर और विज्ञापनों को घंटों बैठकर तैयार किया जाता था। इस कार्य में बेहद ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। सामानों की उपलब्धता न होने के कारण यह कार्य कितने दिनों में संभव हो यह अंदाजा लगाना भी मुश्किल होता था।

पूर्व समय में प्रचार-प्रसार के लिए घोड़े-तांगे का प्रयोग किया जाता था।

टांगों पर बैठकर सिनेमा तथा मनोरंजन आदि का विज्ञापन किया जाता था।

वर्तमान समय में सब कार्य सरलता से हो जाता है , किसी भी प्रकार के विज्ञापन के लिए रेडियो , टेलिविजन , होर्डिंग आदि का प्रयोग किया जाता है।  ऐसे में पूर्व समय में जहां कम लोगों तक अधिक परिश्रम करके पहुंचा जाता था।

आज कम परिश्रम में अधिक लोगों तक पहुंचा जा सकता है।

आज के विज्ञापन पूर्व समय के विज्ञापनों से ज्यादा आकर्षक और रुचिकर होते हैं।

सारा काम लगभग कंप्यूटर से हो जाता है ऑयल पेंटिंग तथा कलर पेंटिंग आदि का विशेष प्रयोग नहीं किया जाता। फ्लेक्स बोर्ड पर इस्तेहार निकालकर बड़े-बड़े विज्ञापन सड़क किनारे तथा सिनेमाघरों पर लगाया जाता है। छोटे-छोटे कागजों पर प्रिंट करके गली मोहल्ले आदि में चिपकाया जाता है जिससे दर्शक अधिक आकर्षित होते हैं।

६ प्रश्न – कला के प्रति लोगों का नजरिया पहले कैसा था , उसमें अब क्या बदलाव आया है ?

उत्तर –

पूर्व में प्रचार-प्रसार का समय नहीं था , ना ही तकनीक इतनी विकसित थी कि लोग उसे जुड़ सकें। इसलिए पूर्व समय के लोग सीमित संसाधनों से परिचय थे। जिसके कारण वह सीमित सोच तक सिमटे हुए थे। उन्हें कला के प्रति ज्यादा जानकारी नहीं थी। आज कला का विकास चारों ओर हो चुका है , किसी भी क्षेत्र में कला की पूजा की जाती है।

यह एक रोजगार का साधन भी है , चाहे वह किसी भी क्षेत्र की कला हो।

संगीत , चित्रकारी , खेल आदि जितने भी प्रकार के क्षेत्र है उसमे उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले को पूरी दुनिया जानती और सम्मान करती है। लोग उससे मिलने के लिए लालायित रहते हैं। जबकि पूर्व समय में ऐसा नहीं था , क्योंकि गांव कस्बों तक इसके विषय में कोई नहीं जानता था।

७ प्रश्न – हुसैन की कहानी पाठ में मकबूल के पिता के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी बातें उभर कर सामने आई है ?

उत्तर –

मकबूल के पिता का चरित्र इस पाठ में पुत्र का साथ देने वाले पिता के रूप में आया है।

वर्तमान समय में समाज के भीतर ऐसे ही पिता की आवश्यकता है जो अपने पुत्र का हर संभव मदद करें तथा उसके प्रतिभा के विकास में अपना सहयोग करे।

मकबूल के पिता की कुछ विशेषता निम्नलिखित है –

  • वात्सल्य पूर्ण व्यवहार 

मकबूल के पिता अपने पुत्र से बेहद प्यार करते थे।

जब दादा की मृत्यु के बाद वह अपने दादा के कमरे में घंटों बैठा रहता था तब वह चिंता करते थे तथा उसके ठीक होने और पुनः साधारण जीवन जीने के लिए कामना करते थे।

इस व्यवहार और चिंता से निकालने के लिए उसका दाखिला बोर्डिंग स्कूल में करवाया ।

  • पुत्र की सराहना

पुत्र के चित्रकला में रुचि लेने के विषय में जानते हुए वह अपने पुत्र की सराहना करते हैं और उसके बनाए हुए चित्रों को देखकर शाबाशी भी देते।

  • प्रतिभा को पहचानना

बोर्डिंग स्कूल में जब उसकी प्रतिभा की पहचान हुई।

शिक्षक द्वारा मकबूल को जब प्रशंसा प्राप्त हुए तो उसके पिता ने अपने पुत्र की प्रतिभा को पहचाना और चित्रकला के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए अपना सहयोग दिया।

  • पुत्र के सपनो को साकार करने में साथ देने वाले

मकबूल बड़ा चित्रकार बनना चाहता था , इसके लिए उसे अपने परिवार का साथ चाहिए था। इस सपने को साकार करने में उसके पिता ने अपना साथ दिया। महंगे महंगे ऑयल पेंटिंग आदि का सामान अपने क्षमता से अधिक मकबूल को उपलब्ध कराया तथा उसके सपनों को साकार करने के लिए अपनी रजामंदी भी दिखाया ।

उपरोक्त बिंदुओं पर ध्यान देने से स्पष्ट होता है कि मकबूल के पिता उसके साथ थे।

उसके सपनों को साकार करने में उन्होंने सराहनीय कदम उठाया।

पुत्र के भीतर के कलाकार को पहचाना और उसे बड़ा कलाकार बनने में सहयोग किया। आज के दौर में पिता अपने पुत्र की प्रतिभा को पहचानते हुए उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें तो निश्चित रूप से कोई भी बालक प्रसिद्धि के शिखर तक पहुंच सकता है।

८ प्रश्न – बेंद्रे साहब कौन थे ? उन्होंने पेंटिंग के क्षेत्र में क्या किया ?

उत्तर –

बेंद्रे साहब चित्रकला जगत के प्रसिद्ध हस्ती थे।

उनकी ख्याति दूर-दूर तक थी , उन्हें लैंडस्केप पेंटिंग तथा ऑयल पेंटिंग बनाने में महारत हासिल थी।

इसके लिए उन्होंने कई सारे राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किए थे।

उनकी खासियत थी कि वह तत्काल किसी भी प्रकार की ऑयल पेंटिंग बना सकते थे।

९ प्रश्न – हुसैन के मन में किस फिल्म के पोस्टर को देखकर ऑयल पेंटिंग बनाने का विचार आया ?

उत्तर-

हुसैन के मन में सिंहगढ़ फिल्म का रंगीन पोस्टर देखकर वॉल पेंटिंग बनाने का विचार आया।

उसके बाद उन्होंने अपनी किताब बेचकर भी वॉल पेंटिंग की सामग्री खरीदी और ऑयल पेंटिंग बनाई इस पर उन्हें परिवार का विशेषकर पिता का भरोसा मिला।

१० प्रश्न – बड़ौदा शहर व वहां के मदरसे की टिप्पणी कीजिए।

११ प्रश्न – 1933 में बेंद्रे द्वारा कैनवास पर बनाई गई पेंटिंग का नाम क्या था ?  इस पेंटिंग को किसने सम्मानित किया ?

उत्तर –

1933 में बेंद्रे ने कैनवास पर एक बड़ी पेंटिंग बनाई थी जिसका नाम ‘वैगबंड’ था।

इस पेंटिंग पर बेंद्रे जी को मुंबई आर्ट सोसाइटी ने चांदी का मेडल दिया था।

१२ प्रश्न – विद्यालयों में महापुरुषों की जयंती क्यों मनाई जाती है ?

उत्तर – विद्यालय में महापुरुषों की जयंती मनाने के पीछे उनके जीवन का संघर्ष विद्यार्थियों के समक्ष रखना होता है। किस प्रकार वह महान व्यक्ति बन पाए उनके आचरण और व्यवहार को विद्यार्थी अपने जीवन में अपनाएं। इस उद्देश्य के साथ महापुरुषों की जयंती मनाई जाती है। कहीं ना कहीं यह संदेश विद्यार्थियों के बीच देने का प्रयत्न होता है कि वह अपने जीवन समाज के लिए जीते थे ,  जिसके लिए वह आज मर कर भी जिंदा है जिन्हें लोग आज श्रद्धा के साथ सम्मान कर रहे हैं।

 

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हुसैन की कहानी अपनी जुबानी पाठ का निष्कर्ष –

हुसैन की कहानी अपनी जुबानी पाठ में व्यक्ति के भीतर नहीं तो जन्मजात कलाकार के विषय में विस्तार पूर्वक चर्चा की गई है। लेखक ने अपने जीवन में किए गए संघर्षों को बताया है।  आरंभिक जीवन में किस प्रकार उनकी प्रतिभा की पहचान की गई और उस प्रतिभा को निखारने के लिए शिक्षक तथा परिवार ने सहायता की थी। इसी प्रकार समाज में सभी विद्यार्थियों को उसके शिक्षक तथा परिवार का साथ मिल जाए तो विद्यार्थी निश्चित तौर पर किसी भी मंजिल को आसानी से प्राप्त कर सकता है।

अपने जीवन के उद्देश्यों को पहचान सकता है।

लेखक के भीतर चित्रकार छुपा था , जिसकी पहचान विद्यालय में की गई।

विद्यालय के प्रेरणा से बालक ने चित्रकारी में हाथ आजमाया पिता का साथ मिलते ही वह सभी सपने पूरे हो गए जो बालक के भीतर छिपे थे। अगर परिवार साथ नहीं देता तथा विद्यालय में उसके कला का परिचय नहीं हो पाता तो शायद आज वह बालक अपने पिता के व्यवसाय में उलझा रहता।

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