कबीर दास भक्ति काल के प्रमुख कवियों में से एक माने गए हैं। यह समाज सुधारक, कवि तथा व्यंग्यकार है। आज हम कबीर दास के साहित्य में योगदान स्वरूप उनके दोहे अर्थ तथा व्याख्या सहित लिख रहे हैं।यह लेख कबीरदास के दोहों का संकलन एक जगह प्रस्तुत करने के उद्देश्य से लिखा जा रहा है। प्रस्तुत लेख में आप कबीरदास के दोहे अर्थ तथा व्याख्या सहित अध्ययन करेंगे और अपने ज्ञान का भंडार करेंगे।
कबीर के दोहे – Kabir ke dohe
अंततोगत्वा आप कबीरदास जी के भाषा और उनके समाज सुधार व लोक कल्याणकारी भावना से परिचित हो पाएंगे उनके प्रत्येक दोहे जीवन के आदर्श मूल्यों की स्थापना के लिए लिखे गए हैं
गारी ही से उपजै, कलह कष्ट औ मीच।
हारि चले सो सन्त है, लागि मरै सो नीच।।
शब्दों के अर्थ – गारी- गाली/अपशब्द, उपजै- जन्म लेना, कलह- झगड़ा, हारि- हारना।
व्याख्या – कबीर जी कहते हैं अनेकों कष्ट का माध्यम बुराई का संगत करना है। अनायास ऐसे कष्ट तथा विपत्ति सामने आ जाती है जो गाली – गलौज और वैमनस्य भाव से जागृत होते हैं। लोगों को ऐसे समाज से बचना चाहिए जो गाली-गलौज करते हैं। संत तथा महान व्यक्ति वह होता है जो ऐसे समाज से दूरी बनाकर रखता है। संत व्यक्ति कभी ऐसी जगह नहीं जाता, जहां गाली-गलौज किया जाता हो। वह ऐसे समाज को स्वयं हार मानकर त्याग देता है।जो त्याग करने की क्षमता नहीं रखता, वही व्यक्ति इसमें दुख को पाता है।
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय।
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए।।
शब्दों के अर्थ – जग- दुनिया, बैरी- शत्रु, शीतल- ठंडा / शांत, आपा- नियंतरण, कोए- कोई।
व्याख्या – कबीरदास जी का मानना है, जिस व्यक्ति का स्वभाव शांत है, जो किसी का अहित नहीं चाहता, वह व्यक्ति सदैव पूजनीय होता है।समाज में उसका कोई बैरी नहीं होता। ऐसी ही आदत को अपने जीवन में डालना चाहिए, जिससे सामाजिक समरसता का भाव जागृत होता है।ऐसे सम्माननीय व्यक्ति से सभी लोग दया का भाव रखते हैं, जिससे सामाजिक सौहार्द्र और अधिक प्रबल होता है।
लकड़ी कहे लुहार की, तू मति जारे मोहि।
एक दिन ऐसा होयगा, मै जारौंगी तोही।।
शब्दों के अर्थ – लुहार- लौहार, मति- मत, जारे- जलाना, मोहि- मुझे, जारौंगी – जलाऊँगी, तोहि – तुझे।
व्याख्या – समय बड़ा बलवान है, समय से बढ़कर कुछ नहीं। इसी भाव को प्रकट करते हुए लकड़ी लोहार से कह रही है, तू मुझे आज जिस प्रकार जला रहा है, ऐसा मत कर।वरना समय कभी मेरा भी आएगा जब तेरे शरीर को मैं जलाकर भस्म कर दूंगी।
अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि, किसी भी जीव का चाहे-अनचाहे अहित नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से वह स्वयं अपना भविष्य खराब करता है।
कबीर कूता राम का, मुटिया मेरा नाऊ
गले राम की जेवड़ी, जित खींचे तित जाऊं।।
शब्दों के अर्थ – मुटिया- नाम मोती, नाऊ- नाम, जेवड़ी- रस्सी,फंदा, जित- जिधर, तित – उधर।
व्याख्या – कबीर दास स्वयं को राम की कुतिया मानते है। वह कभी राम की पत्नी बताता है क्योंकि कबीरदास निर्गुण निराकार के उपासक थे। वह दशरथ के पुत्र राम को नहीं, अपितु निराकार जिसकी कोई आकृति नहीं होती उनको राम मानते हैं।जो प्रत्येक कण-कण में वास करते हैं, उन्हें राम बताते हैं।
कबीरदास स्वयं को राम की कुतिया बताते हुए यह कहते हैं कि राम मेरे मालिक हैं और मैं उसकी कुत्तिया। मेरा नाम मोती है, मेरे गले में जो रस्सी अर्थात जो बंधन है, वह राम की है वह मेरे मालिक हैं। वह जिधर ले जाते हैं मैं उधर ही जाता हूं।आपको पता हो कि कबीर दास घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे। वह कभी भी एक जगह टिककर नहीं रहते थे। उनकी भाषा भी भिन्न थी क्योंकि वह जहां – जहां जाते वहां के भाषा वह ग्रहण कर लिया करते थे।उनके व्यवहार / साहित्य में वह भाषा देखने को मिलता था।
कुटिल बचन सबसे बुरा, जासे होत न हार।
साधू बचन जल रूप है, बरसे अमृत धार।।
शब्दों के अर्थ – कुटिल- कड़वे, बचन- वचन, जासे- इससे।
व्याख्या – कबीरदास कहते हैं कुटिल वचन बोलने से सदैव बचना चाहिए। कुटिल वचन बोलकर कोई व्यक्ति कभी हार-जीत नहीं सकता। व्यक्ति को साधु वचन अर्थात मीठे वचन बोलने चाहिए, जिससे अमृत की वर्षा होती है और समाज का विकास होता है।
कबीर के दोहे संकलन
कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति ना होए।
भक्ति करे कोई सूरमा, जाती वरण कुल खोय।।
शब्दों के अर्थ – कामी- वासना से प्रेरित मानव , सुरमा – अनेको में कोई एक विरला, वरन – वर्ण , कुल- वंश।
व्याख्या –कबीरदास मानते हैं कि, भक्ति करना सभी व्यक्ति के बस की बात नहीं है। विशेषकर जो सदैव मन में गंदे विचार रखता है और स्वभाव का क्रोधी हो तथा लालच करता है। इस प्रकार का व्यक्ति कभी भक्ति नहीं कर सकता। भक्ति करने के लिए कोई विरला व्यक्ति ही होता है, जो अपने जाति, कुल, धर्म आदि की चिंता नहीं करता।जिस प्रकार कबीर दास ने अपनी जाति की परवाह नहीं कि मीराबाई ने अपने लोक – लाज अथवा कुल की मर्यादा का मान नहीं रखा और भक्ति के मार्ग पर निकल गई। इस प्रकार का कोई विरला व्यक्ति ही भक्ति कर सकता है।
कबीरा गरब ना कीजिये, कभू ना हासिये कोय।
अजहू नाव समुद्र में, ना जाने का होए। ।
शब्दों के अर्थ – गरब – गर्व, कभू- कभी, हासिये- हँसिये, कोय- कोई, अजहू – अभी।
व्याख्या –कबीरदास कहते हैं कि, किसी व्यक्ति या किसी के कमियों पर हंसना नहीं चाहिए। क्योंकि समय बड़ा गतिमान है, यह पलटकर कब आपके ऊपर आ जाए यह कोई नहीं जानता। आज जिस प्रकार नाव ठीक प्रकार से दिख रही है, कभी यह विपत्ति में भी घिर जाती है और यहां तक कि डूब भी जाती है। इसलिए किसी पर हंसना और उसका उपहास करना नहीं चाहिए।
कबीर के दोहे
कबीरा लोहा एक है, गढ़ने में है फेर।
ताहि का बख्तर बने, ताहि की शमशेर। ।
शब्दों के अर्थ – गढ़ने – बनना / आकार देना, बख्तर- रक्षा ढाल, शमशेर- तलवार।
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कबीरदास कहना चाहते हैं कि लोहा एक ही प्रकार का होता है। वह उसके आकार देने वाले पर निर्भर करता है कि उस लोहे का किस प्रकार से प्रयोग करना है। चाहे तो उसकी तलवार बनाए या रक्षा करने वाले ढाल बनाएं बख्तर बनाएं। ठीक इसी प्रकार व्यक्ति का निर्माण करने वाले शिक्षकों पर भी निर्भर करता है कि वह अपने शिष्य को किस प्रकार से तैयार करें।
शिष्य एक कच्ची मिट्टी के समान होता है, जिस प्रकार काची मिट्टी का प्रयोग करते हुए कुम्हार उसे आकार देता है। शिक्षक भी अपने शिष्य को सही आकार देकर उसे सच्चा मानस बनाता है।
सुख सागर का शील है, कोई न पावे थाह।
शब्द बिना साधू नहीं, द्रव्य बिना नहीं शाह। ।
शब्दों के अर्थ – शील- स्वभाव, थाह- भेद, द्रव्य- पूंजी, शाह- राजा।
व्याख्या – सागर इतना विशालकाय होता है, किंतु इसमें कभी भी उग्रता देखने को नहीं मिलती। अगर सागर शांतना रहता तो पूरे विश्व में तबाही आ जाती। इसकी महानता यही है कि यह शांत रहता है। राजा बिना पूंजी के महान नहीं हो सकता। जिस राजा में शांति और सौहार्द ना हो वह राजा कभी राजा नहीं बन सकता।शांत स्वभाव के कारण ही समुद्र का कोई थाह नहीं ले सका है। साधु के शब्द ही उसे महान बनाते हैं, वह अपने स्वभाव और आचरण में कभी उग्रता का समावेश नहीं करता, यही कारण है कि साधु महान है।
राम पियारा छाड़ी के, करे आन का जाप।
बेस्या कर पूत ज्यू, कहै कौन सू बाप। ।
शब्दों के अर्थ – राम पियारा- राम के प्यारे, छड़ी- छोड़, आन- स्वाभिमान, पूत – बेटा।
व्याख्या –पंक्ति के माध्यम से स्पष्ट होता है मनुष्य का जीवन अनमोल है। जिस राम ने यह काया रची है, जिन्होंने यह जीवन दिया है। उनका अभिवादन करने के बजाए, स्वयं के अभिमान का प्रदर्शन करते फिरते हैं। यह लोग ठीक उसी प्रकार होते हैं, जिस प्रकार एक वेश्या के बेटे को उसके पिता का पता नहीं होता।
कबीर के दोहे संकलन
रात गवई सोय के, दिवस गवाया खाय।
हीरा जन्म अनमोल था, कौड़ी बदले जाय। ।
शब्दों के अर्थ – गवई – गंवाना, दिवस- दिन, अनमोल- जिसका मूल्य नहीं लगा सकते, कौड़ी- बेहद काम मूल्य।
व्याख्या –प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से बताया गया है कि, व्यक्ति का जीवन बहुमूल्य है। व्यक्ति का जीवन सौभाग्यशाली होता है और जो व्यक्ति इस बहुमूल्य जीवन को सो कर तथा ऐश – मौज में यूं ही गवा देता है, वह फिर जीवन भर पछताता है। उसे अपने जीवन के वास्तविक मूल्य का कभी पता ही नहीं चलता। उसे पता ही नहीं चलता कौड़ियों के भाव अपने जीवन को बर्बाद कर दिया।
न गुरु मिल्या ना शिष्य भय, लालच खेल्या दाव।
दुनु बहे धार में, चढ़ी पाथर की नाव। ।
शब्दों के अर्थ – भय- होना, दाव- दांव, धार- जल का प्रवाह, पाथर – पत्थर।
व्याख्या – गुरु और शिष्य की अपनी मर्यादा होती है, गुरु वही होता है जिसमें गुरु के लक्षण होते हैं। शिष्य उसे ही बनाया जा सकता है, जिसमें शिक्षा पाने की ललक हो। इन दोनों के अभाव में दोनों का उद्देश्य कभी पूर्ण नहीं होता। यह आत्महत्या करने के समान होता है, जिस प्रकार जानबूझकर पत्थर की नाव में चढ़ना।
प्रेम न बड़ी उपजी, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा प्रजा जोही रुचे, शीश दी ले जाय। ।
शब्दों के अर्थ – उपजी- उपज, हाट- बाज़ार, रुचे- पसंद आना, दी- देकर।
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कबीरदास प्रेम के महत्व को उजागर करते हुए कहते हैं – प्रेम एक ऐसी वस्तु है जिसकी पैदावार संभव नहीं है। अर्थात इसको उत्पन्न करना कठिन है और इसका व्यापार भी बाजार में नहीं किया जा सकता है। राजा – प्रजा या कोई भी व्यक्ति हो जिसे भी प्रेम पसंद आता है उसे अपने अहंकार , अभिमान आदि की बलि देते हुए ग्रहण करना पड़ता है। कबीर दास ने प्रेम के महत्व को सदैव स्वीकार किया है , बड़ी से बड़ी शिक्षा भी प्रेम के आगे सफल नहीं है। जब तक व्यक्ति के भीतर प्रेम नहीं उपजेगा तब तक वह व्यक्ति बेकार है।
कबीर के दोहे संकलन
यह घर है प्रेम का , खाला का घर नाहीं
सीस उतार भूई धरो , फिर पैठो घर माही। ।
शब्दों के अर्थ – खाला – मौसी , सीस -सिर -शीश , भुई – भूमि , पैठो – जाओ।
व्याख्या –
कबीर दास भक्ति को प्रेम का घर बताते हैं। जो भक्ति करना जान जाता है , वह प्रेम का पुजारी हो जाता है। वह कभी असत्य और क्रोध की राह पर नहीं चलता। भक्ति करने का मार्ग इतना सरल नहीं है। इस मार्ग पर चलने के लिए व्यक्ति को अपने सिर अर्थात अपना सर्वस्व न्योछावर करना होता है , उसके मस्तिष्क में मान अभिमान स्वाभिमान आदि जितने भी विचार होते हैं उन सभी का बलिदान करना होता है।
भक्ति के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ना होता है यह कोई साधारण कार्य नहीं है। यहां उन्होंने खाला / मौसी शब्द का प्रयोग किया है। जिसमें हमें समझना चाहिए मौसी के प्रेम और भक्ति के प्रेम में आसमान – जमीन का फर्क होता है।
बैद मुआ रोगी मुआ , मुआ सकल संसार।
एक कबीरा ना मुआ , जेहि के राम आधार। ।
शब्दों के अर्थ – बैद – वेद , मुआ – मर जाना (मृत्यु) , सकल – सभी , आधार – सहारा।
व्याख्या –
जिसको राम का सहारा मिल जाता है वह कभी बेसहारा नहीं होता। वेद नष्ट हो जाता है , रोगी की मृत्यु हो जाती है और समय आने पर यह संसार भी समाप्त हो जाता है। किंतु एक वह नहीं मिट, ता जिसने राम रूपी भक्ति का रसपान किया हो। भक्ति इस जगत में सदैव विद्यमान रहती है। चाहे कुछ भी हो जाए कितना ही अनिष्ट हो जाए किंतु भक्ति सदैव जीवित रहती है। जिसने राम का सहारा प्राप्त कर लिया हो , वह कभी कष्ट का भागी नहीं होता।
जो तोकू कांता बुवाई , ताहि बोय तू फूल।
तोकू फूल के फूल है , बाको है तिरशूल। ।
शब्दों के अर्थ – कांता – काँटा , बुवाई – बोना , ताहि – उसको , बाको – उसको।
व्याख्या –
जो व्यक्ति जैसा करता है वैसा ही उसको मिलता है। अगर कोई आपके प्रति ईर्ष्या का भाव रखता है , आपके प्रति दुश्मनी का भाव रखता है उसको दुश्मनी ही मिलती है। उसका इस भाव रखने से सर्वस्व नाश हो जाता है , किंतु वह फिर भी नहीं सुधरता। जहां आप मीठे वचन बोलते हैं मधुर आचरण करते हैं। दुश्मन भी आपसे खुश रहते हो , वहां आपका कुछ अमंगल नहीं हो सकता।
अर्थात स्पष्ट कहने का है कि जो अच्छा करता है , उसके साथ सदैव अच्छा होता है। जो बुरा कर्म करता है उसको बुरा ही परिणाम भुगतना पड़ता है।
कबीर सतगुर ना मिल्या , रही अधूरी सीख।
स्वांग जाति का पहरी कर , घरी घरी मांगे भीख। ।
शब्दों के अर्थ – सतगुरु – सच से परिचय करवाने वाला , स्वांग – कुत्ता , पहरी – पहरेदारी , घरी – घर।
व्याख्या –
कबीर दास इस पंक्ति में गुरु की महत्ता को स्वीकार करते हैं। उनका मानना है कि गुरु के बिना ज्ञान अधूरा है , इसलिए उन्होंने अपने पूरे जीवन काल में गुरु को विशेष महत्व दिया है। कबीर दास ने भी अपने भक्ति के लिए रामानंद को गुरु माना और उनके मार्गदर्शन में भक्ति का प्रचार प्रसार किया।
कबीरदास कहते हैं बिना गुरु के ज्ञान नहीं मिल सकता है। गुरु के बिना ज्ञान मिला हुआ अधूरा ही होता है और इस अधूरे ज्ञान का इतना ही महत्व होता है , जितना स्वांग अर्थात कुत्ते का। जिस प्रकार कुत्ता घर घर पहरेदारी करता है , उसे कुछ दाना – पानी मिल जाए ठीक इस प्रकार अधूरे ज्ञान वाला भी जगह-जगह भटकता फिरता है। उसे सच्चा भक्ति कहीं नहीं मिल पाता।
फल कारन सेवा करे , करे ना मन से काम।
कहे कबीर सेवक नहीं , चाहे चौगुना दाम। ।
शब्दों के अर्थ – कारन – कारण , सेवक – सेवा करने वाला , दाम – मूल्य।
व्याख्या –
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से बताया गया है कि जो व्यक्ति फल की इच्छा रखते हुए कोई कार्य करता है वह कभी भी सफल नहीं होता है। वह व्यक्ति अपने कार्य को कभी भी मन से नहीं कर सकता है। ऐसा व्यक्ति सच्चा सेवक नहीं बन सकता , जिसमें स्वार्थ की भावना हो। ऐसे व्यक्तियों को चाहे कितना ही मूल्य देकर अपने साथ रखो किंतु वह विश्वासपात्र बनने लायक नहीं है।
गुरु को सर रखिये , चलिए आज्ञा माहि।
कहै कबीर ता दास को , तीन लोक भय नाही। ।
शब्दों के अर्थ – सर – शीश , माहि – अनुसार।
व्याख्या –
इस पंक्ति में कबीर दास गुरु को मार्गदर्शक के रूप में मानते हैं। गुरु द्वारा दिया गया ज्ञान कभी गलत नहीं होता। वह कभी गलत राह नहीं दिखाते। तीनो लोक में गुरु के द्वारा दिए गए ज्ञान के माध्यम से व्यक्ति निर्भीक होकर चल सकता है। गुरु के महत्व को यहां स्पष्ट उजागर किया गया है।
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समापन
कबीर दास के दोहे का अध्ययन करने पर स्पष्ट होता है कि उनके समस्त दोहे सामाजिक सरोकार से जुड़े थे। उस समय की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए कबीर दास ने इन दोहे को लिखा था। कबीर दास समाज सुधारक थे यह हम सभी जानते हैं। यह दोहे समाज सुधार के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर लिखा गया था। आशा है उपरोक्त लिख आपको पसंद आया अपने सुझाव तथा विचार कमेंट बॉक्स में लिखें।
प्रातः काल पानी पिएं, घूंट-घूंट कर आप।
बस दो-तीन गिलास है, हर औषधि का बाप।।