कारक की परिभाषा, भेद, और उदहारण

प्रस्तुत लेख में कारक की परिभाषा, भेद, और उदहारण आदि का विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे। इसमें कठिनाई स्तर को ध्यान में रखते हुए सरल उदाहरणों का प्रयोग किया गया है।

यह लेख हिंदी की सभी परीक्षाओं के लिए कारगर है। अतः आप इसका अध्ययन कर अपनी परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर सकते हैं।

कारक की परिभाषा

परिभाषा:- संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से उसका संबंध वाक्य में क्रिया या अन्य संज्ञा,सर्वनाम शब्दों से जाना जाए उसे कारक कहते हैं।

कारक के आठ  प्रमुख भेद हैं –

  1. कर्ता
  2. कर्म
  3. करण
  4. संप्रदान
  5. अपादान
  6. सम्बन्ध
  7. अधिकरण
  8. संबोधन।

कारक किसे कहते हैं उदाहरण सहित

1. सीता रोटी खा रही है

2. राम ने श्याम को बुलाया

3. माता जी ने चाकू से फल काटा।

4. पिताजी मोहन के लिए साइकिल लाए।

5. मां ने कुएं से पानी भरा

6. उसका भाई छत पर बैठा है।

पहले वाक्य में खा रही है पद क्रिया है।

  • कौन खा रही है ? सीता
  • सीता क्या खा रही है ? रोटी

दूसरे वाक्य में बुलाया क्रिया है।

  • किसने बुलाया ? राम ने
  • किस को बुलाया ? श्याम को

तीसरे वाक्य में काटा क्रिया है।

  • माताजी ने क्या काटा ? फल
  • किससे कांटा ? चाकू से

चौथे वाक्य में लाए क्रिया है।

  • पिताजी क्या लाए ? साइकिल
  • किसके लिए लाए ? मोहन के लिए

पांचवें वाक्य में क्रिया है भरा

  • कहां से भरा ? कुए से

छठे वाक्य में बैठा क्रिया है

  • उसका भाई कहां बैठा है ? छत पर।

कारक के भेद और उनके चिन्ह

हिंदी व्याकरण के अनुसार कारक के आठ भेद माने गए हैं –

  1. कर्ता कारक (Nominative Case)
  2. कर्म कारक (Objective Case)
  3. करण कारक (Instrumental Case)
  4. संप्रदान कारक(Dative Case)
  5. अपादान कारक (Ablative Case)
  6. संबंध कारक(Possessive Case)
  7. अधिकरण कारक(Locative Case)
  8. संबोधन (Vocative Case)

1. कर्ता कारक (Nominative Case)

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से क्रिया (कार्य) के होने का बोध होता हो या जिस वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम पद के विषय में कहा जा रहा हो ,उसे कर्ता कारक कहते हैं। जैसे –

  • राधा पुस्तक पढ़ती है
  • सीता ने पुस्तक पढ़ी
  • रमेश गीत गाता है
  • सुरेश ने गीत गाया

पढ़ने की क्रिया राधा ने की , गाने की सुरेश ने

कहे जाने का बोध जैसे –

‘श्री राम दशरथ के पुत्र थे।’ इस वाक्य में श्री राम के बारे में कहा जा रहा है,अतः यह पद कर्ता कारक है।

कर्ता कारक के विषय में ध्यान रखने योग्य कुछ बातें –

(क) कर्ता कारक का प्रयोग विभक्ति रहित तथा विभक्ति के साथ दोनों रूपों में होता है। जैसे –

  • वह रोटी खाता है (विभक्ति रहित)
  • उसने रोटी खाई (विभक्ति के साथ)

(ख) निम्नलिखित दशा में कर्ता विभक्ति के बिना ही आता है।

  • भूत कालिक कृदंत को छोड़कर शेष सकर्मक क्रियाओं के साथ जैसे – लता पुस्तक लाई , छात्र विद्यालय गए।
  • कुछ अपवादों को छोड़कर प्रायः सभी अकर्मक क्रियाओं के साथ। जैसे – बच्चे हंसते हैं , वह रो रहा है।
  • वर्तमान भविष्य तथा विधि संबंधी प्रेरणार्थक क्रियाओं के साथ जैसे – माता पुत्री से कपड़े धूलवाती है , गीता सीता से पाठ पढ़वाएगी,  मां बच्चों को खाना खिलाएं।
  • विभक्ति रहित कर्ता की पहचान के लिए वाक्य में मुख्य क्रिया के साथ कौन लगाकर प्रश्न करने पर उसका उत्तर कर्ता होगा। जैसे –
वाक्य प्रश्न उत्तर
बच्चे खेल रहे हैं कौन खेल रहे हैं बच्चे
मोहन गा रहा है कौन गा रहा है मोहन
बहन भाई को खिला रही है कौन खिला रही है बहन
सीता पुस्तक पढ़ रही है कौन पढ़ रही है सीता

(ग) सकर्मक क्रिया के भूतकालिक कृदंत रूपों के कर्ता के साथ विभक्ति चिन्ह होता है। कुछ अकर्मक क्रियाओं के कर्ता के साथ भी विभक्ति चिन्ह लगते हैं। जैसे –

  • बच्चे ने फल खाया – सकर्मक क्रिया के साथ
  • रोगी ने खाँसा था,उसने छींक दिया – अकर्मक क्रिया के साथ

(घ) यद्यपि कर्ता की मूल विभक्ति ने है तथापि कर्ता के साथ को,से ,के द्वारा विभक्ति चिन्ह भी लगते हैं। जैसे –

  • मोहन को बाहर चले जाना चाहिए (को)
  • राम से पढ़ा नहीं जाता(से)
  • सीता के द्वारा कार्य पूरा हुआ(के द्वारा)

कर्म कारक (Objective Case)

क्रिया के व्यापार का फल जब कर्ता को छोड़कर किसी अन्य संज्ञा या सर्वनाम पद पर पड़ता है तो उसे कर्म कारक कहते हैं। जैसे

  • बच्चे पुस्तक पढ़ रहे हैं
  • मोहन रोटी खाता है
  • शिकारी ने बाघ को मारा
  • माता ने पुत्र को देखा

उपरोक्त वाक्य में , पढ़ने का फल पुस्तक पर , खाने का फल रोटी पर , मारने का फल बाघ पर तथा देखने का फल पुत्र पर पड़ रहा है। यह चारों पद कर्म कारक है।

प्रथम दो वाक्यों में कर्म के साथ कोई विभक्ति चिन्ह नहीं है। अंतिम दो वाक्यों में कर्म के साथ विभक्ति चिन्ह है। इस प्रकार कर्म कारक विभक्ति रहित और विभक्ति सहित दोनों ही रूपों में हो सकता है।

कर्म कारक के संबंध में ध्यान रखने योग्य बातें

(क) कर्म कारक भी कर्ता की भांति विभक्ति के साथ तथा विभक्ति के बिना दोनों ही रूपों में प्रयुक्त होता है।

(ख) कर्म कारक में विभक्ति का प्रयोग नीचे लिखी अवस्थाओं में होता है।

  • प्रेरणार्थक क्रिया का मुख्य कर्म विभक्ति रहित होता है। जैसे – भाई बहन से राखी बंधवाता है।
  • द्विकर्मक क्रिया में मुख्य कर्म विभक्ति रहित ही होता है। जैसे – पुजारी भक्तों को मिठाई खिलाता है।
  • दुकानदार ने ग्राहक को पत्र लिखा। इन वाक्यों में दो कर्म है। एक गौण कर्म तथा दूसरा मुख्य कर्म।  मुख्य कर्म प्रायः अप्राणी वाचक होता है तथा उसके साथ विभक्ति चिन्ह नहीं लगता।
  • अप्राणीवाचक कर्म के साथ प्रायः विभक्ति चिन्ह नहीं लगता। जैसे – बच्चा दूध पी रहा है।

(ग) कर्म के साथ विभक्ति का प्रयोग निम्न अवस्थाओं में किया जाता है

  • साधारणतया प्राणीवाचक कर्म के साथ को विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। जैसे अर्जुन ने भीष्म पितामह को मारा था।
  • द्विकर्मक क्रिया में गौण कर्म के साथ विभक्ति चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। जैसे – नर्स ने रोगी को कपड़ा उठाया।

(घ) यद्यपि कर्म का विभक्ति चिन्ह को है तथापि कुछ अन्य विभक्ति चिन्ह का प्रयोग भी कर्म के साथ किया जाता है। जैसे –

  • से – पिताजी रजनी से मिले थे। कर्म कारक में ‘से’ विभक्ति का प्रयोग बोलना,बताना,प्रेम करना,मिलना,प्रार्थना करना,घृणा करना,पूछना,मांगना आदि क्रियाओं के गौण कर्म के साथ किया जाता है।

(ड) वाक्य में क्रिया के साथ क्या,कहा (आधार- आधेय संबंध रहित स्थिति में) तथा किसको (देना क्रिया को छोड़कर) प्रश्न करने से जो उत्तर आता है वह कर्म कारक होता है।

3. करण कारक (Instrumental Case)

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से क्रिया के साधन का बोध होता है उसे करण कारक कहते हैं। जैसे –

  • श्रीराम ने स्वर्ण मृग को बाण से मारा।
  • उसने पेंसिल से चित्र बनाया।
  • पत्र ध्यान से पढ़ो।
  • पिछले वर्ष डेंगू बुखार से लोग मरे।
  • रावण स्वभाव से क्रूर था।

इन वाक्यों में मारने का साधन बाण,बनाने का साधन पेंसिल, पढ़ने का साधन ध्यान ,मरने का साधन डेंगू बुखार पद करण कारक है।

करण कारक के संबंध में ध्यान रखने योग्य बातें –

  • करण कारक की विभक्ति ‘से’ है तथा इसकी अभिव्यक्ति के लिए अधिकतर ‘से’ का ही प्रयोग किया जाता है।
  • कभी-कभी करण कारक भी बिना विभक्ति के आ जाता है। जैसे – यह मेरी कानों से सुनी बात है। तुम मुझे अपने हाथों सजा देना।
  • द्वारा तथा के द्वारा विभक्ति चिन्ह भी करण कारक में लगते हैं। जैसे – मोहन ने रमेश को तार द्वारा सूचना दे दी थी। शत्रुओं को चारों ओर से सैनिकों के द्वारा घेर लिया।
  • उत्तम पुरुष तथा मध्यम पुरुष के द्वारा की जगह मेरे द्वारा ,तेरे द्वारा तथा निजवाचक में अपने द्वारा का प्रयोग किया जाता है।
  • क्रिया के साथ किससे लगाकर प्रश्न करने पर जो संज्ञा या सर्वनाम पद उत्तर में आता है ,वह करण कारक है। जैसे – उसने चाकू से आम काटा। किससे काटा ? चाकू से

4. संप्रदान कारक (Dative Case)

संप्रदान शब्द किसी को देने या किसी के लिए कुछ करने का संकेत करता है। अतः संज्ञा,सर्वनाम का वह रूप जिसे कुछ दिया जाए या जिसके लिए कुछ किया जाए संप्रदान कारक कहलाता है। जैसे –

  • महाराज दशरथ ने गुरु विश्वामित्र को राम लक्ष्मण दिए
  • मैं स्वास्थ्य के लिए व्यायाम करता हूं
  • मनीष परीक्षा के लिए पढ़ रहा है।

इन वाक्यों में विश्वामित्र को कुछ देने का ,स्वास्थ्य के लिए व्यायाम करने का , परीक्षा के लिए पढ़ने का कार्य वाक्यों में कर्ताओं( महाराज दशरथ ,मैं , मनीष) द्वारा किया गया है। अतः ये विश्वामित्र,स्वास्थ्य,परीक्षा पद संप्रदान है।

संप्रदान के संबंध में ध्यान रखने वाली बातें –

  • संप्रदान की मुख्य विभक्ति ‘को’तथा ‘के लिए’ है।
  • इसमें ‘को’ तथा के लिए अतिरिक्त निम्न विभक्ति चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।

के वास्ते – मैंने अंकित के वास्ते कुछ नहीं लिया।

के निमित्त – यह सब तुम्हारे विवाह के निमित्त ही हो रहा है।

ए – यह मकान मुझे दे दो।

एं – मैंने रुपए उन्हें दे दिए थे।

  • उत्तम पुरुष तथा मध्यम पुरुष में के लिए के स्थान पर रे लिए तथा निजवाचक में ने लिए का प्रयोग होता है। जैसे – मेरे लिए,तुम्हारे लिए,अपने लिए आदि।
  • संप्रदान में मुख्य भाव दान या उपकार का होता है। अतः को विभक्ति संप्रदान की उसी अवस्था में मानी जाएगी जब वाक्य की क्रिया देना होगी अन्यथा को विभक्ति कर्म कारक की ही होगी। भिखारी को वस्त्र दो।  इस वाक्य में भिखारी को संप्रदान कारक है। किंतु भिखारी को जाने दो इस वाक्य में भिखारी को कर्म कारक है।

कर्म और संप्रदान कारक में अंतर

कर्म कारक का विभक्ति चिन्ह को है तथा कभी-कभी संप्रदान कारक के साथ भी को विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। परंतु दोनों में अंतर है। कर्म कारक का विभक्ति चिन्ह को क्रिया के फल का आधार होता है। जैसे – माता ने पुत्र को खिलाया।

इस वाक्य में पुत्र को क्रिया के फल खिलाया का आधार है। संप्रदान में को का अर्थ के लिए ही होता है, जहां किसी को कुछ देने का बोध हो वहां को का अर्थ के लिए ही होता है।

जैसे – भिखारी को अन्न दो।

इस वाक्य में भिखारी को का अर्थ भिखारी के लिए है।

अतः यहां संप्रदान कारक है।

5. अपादान कारक (Ablative Case)

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से अलग होने,दूर होने,डरने,सीखने, लगाने,तुलना करने आदि का ज्ञान होता है, उसे अपादान कारक कहते हैं।  जैसे –

पेड़ से फल गिरा अलग होना
सब झूठ से घृणा करते हैं घृणा
माताजी दूध से दही बनाती है उत्पत्ति
मोहिनी गिरिजा से सुंदर है तुलना
यमुना नदी हिमालय से निकलती है स्रोत
अस्पताल घर से 2 किलोमीटर दूर है दूरी
हमें किसी से ईर्ष्या द्वेष नहीं रखना चाहिए ईर्ष्या

करण कारक तथा अपादान कारक में अंतर

करण कारक तथा अपादान कारक दोनों की विभक्ति से है।  किंतु अर्थ की दृष्टि से दोनों में भेद है। करण कारक की से विभक्ति का अर्थ सहायता या द्वारा है। अर्थात जिसकी सहायता से क्रिया की जाए। करण कारक की से विभक्ति का अर्थ by या with है। जैसे – मैं कलम से लिखता हूं।

इस वाक्य में लिखने की क्रिया कलम से हो रही है आतः कलम से करण कारक है। परंतु अपादान की से विभक्ति पृथकता के भाव को प्रकट करती है। वहां से का अर्थ from होता है जैसे वह चेन्नई से आया है। इस वाक्य में चेन्नई से अलग होने का भाव प्रकट हो रहा है ,अतः यहां अपादान कारक है।

6. संबंध कारक (Possessive Case)

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से उसका दूसरे संज्ञा या सर्वनाम के साथ संबंध का ज्ञान हो,उसे संबंध कारक कहते हैं। जैसे –

  • लता की बहन बाजार गई है
  • मेरा भाई स्कूल से आ गया है
  • इस विद्यालय के सभी शिक्षक परिश्रमी है

उपर्युक्त वाक्यों में लता की,मेरा,विद्यालय के पद संबंध कारक है ,क्योंकि इसका संबंध क्रमः बहन,भाई,शिक्षक से है।

का,की,के,रा,री,रे,ना,नी,ने संबंध कारक के विभक्ति चिन्ह।

7. अधिकरण कारक(Locative Case)

शब्द के जिस रुप से क्रिया के आधार का बोध होता है,उसे अधिकरण कारक कहते हैं। जैसे –

  • मगरमच्छ पानी में रहता है
  • पक्षी पेड़ पर बैठा था
  • उसकी जेब में रुपए थे
  • वह छत पर खेल रहा है
  • शिक्षक कक्षा में थे

उपर्युक्त वाक्यों में पानी में,पेड़ पर,जेब में,छत पर,कक्षा में पद उन स्थानों को बता रहे हैं,जहां क्रिया का व्यापार हुआ है। अतः यह अधिकरण कारक है। अधिकरण कारक की विभक्तियाँ – में, पर, भीतर, आदि होता है।

8. संबोधन (Vocative Case)

संबोधन का अर्थ पुकारना है,शब्द के जिस रुप से किसी को पुकारना या संबोधन करने का ज्ञात होता है उसे संबोधन कारक कहते हैं। जैसे –

  • अरे भाई! कहां जा रहे हो हे ?
  • हे भगवान! मेरी रक्षा करना।
  • अरे राकेश! सुरेश को क्यों तंग कर रहे हो ?
  • ऐ बालकों! चुप रहो।

इन वाक्यों में अरे भाई , हे भगवान, अरे राकेश, ऐ बालको संबोधन के रूप में है। संबोधन कारक में दूसरे कारकों की भांति विभक्ति चिन्ह बाद में ना जुड़कर शब्द के पहले जुड़ते हैं।

विभक्तियों (परसर्गों) की प्रयोग व्यवस्था

कारकों के विवेचन में देखा गया है कि कुछ विभक्तियों का प्रयोग एक से अधिक कारकों के साथ हुआ है। यहां विभक्तियों के इसी प्रकार के प्रयोग की चर्चा की जाएगी।

ने – ने परसर्ग का प्रयोग भूतकाल की सकर्मक क्रिया के करता के साथ ही किया जाता है। उस अवस्था में क्रिया कर्ता के अनुसार ना होकर कर्म के अनुसार होती है।

उदाहरण के लिए

नानी ने कहानी सुनाई

‘ने’ विभक्ति का प्रयोग अकर्मक क्रिया तथा वर्तमान काल व भविष्य काल की क्रिया के साथ नहीं होता। जैसे –

  • राम गया (अकर्मक क्रिया)
  • दादी कहानी सुनाती है (वर्तमान काल)
  • दादी कहानी सुनाएगी (भविष्य काल)

को – को विभक्ति का प्रयोग कई कारकों के साथ होता है। जैसे – कर्ता,कर्म तथा संप्रदान। इस विभक्ति का प्रयोग निम्न तरह से होता है।

1. कर्ता कारक के साथ को विभक्ति का प्रयोग

(क) जब क्रिया कृदंत हो या कार्य की अनिवार्यता कर्तव्य या आवश्यकता प्रकट करनी हो –

  • माताजी को बाजार जाना है
  • मुझे पचास रुपय चाहिए
  • युवकों को देश की रक्षा करनी चाहिए

(ख) जब मिलना क्रिया का प्रयोग प्राप्ति के अर्थ में होता है ,जैसे मोहन को तुम्हारे पास होने की खबर मिल गई है।

(ग) होना,पसंद,अनुभव आदि से संबंधित क्रियाओं के कर्ता के साथ जैसे –

  • राजेश को बुखार है
  • पुत्र को अपनी माता से बहुत प्यार था
  • गिरीश को क्रोध आ गया
  • बहन को भाई के पास होने की खुशी हुई

2. कर्मकारक में को का प्रयोग

(१) प्राणीवाचक तथा गौण कर्म के साथ को विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।जैसे – रजनीश ने गायत्री को पत्र लिखा।

विशेष – शिकार करने के अर्थ में मारना क्रिया के साथ को  विभक्ति का प्रयोग नहीं होता। जैसे – शिकारी ने शेर मारा।

(२) अप्राणीवाचक कर्म के साथ प्रायः को का प्रयोग नहीं होता परंतु यदि कर्म की ओर विशेष रुप से ध्यान दिलाना आवश्यक हो तो अप्राणीवाचक कर्म के साथ भी को का प्रयोग किया जाता है। जैसे – मैंने इस कहानी को पहले भी सुना है।

3. संप्रदान में को का प्रयोग

देना क्रिया के योग में संप्रदान कारक में को विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। जैसे – उसने बहन को सोने की घड़ी दी।

4. अधिकरण कारक में को का प्रयोग

जहां वाक्य के समय या अवसर का बोध होता है वहां अधिकरण में भी को विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। जैसे – मनीष 2 मई को मुंबई जाएगा।

से – से विभक्ति का प्रयोग करण तथा अपादान दोनों कारकों में तो होता ही है अन्य कारकों में भी होता है।

1. कर्ता कारक में ‘से’ का प्रयोग

(१) भाववाच्य की क्रिया के कर्ता के साथ ‘से’ विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। जैसे – बच्चे से चला नहीं जाता , मुझसे पढ़ा नहीं जाता।

(२) कर्मवाच्य की क्रिया के कर्ता के साथ भी ‘से’ का प्रयोग होता है। जैसे – यह काम मोहन से नहीं हो सकता।

(३) प्रेरणार्थक क्रिया में प्रेरित कर्त्ता के साथ ‘से’ विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे – पिता ने पुत्र से पत्र लिखवाया।

2. कर्म कारक में ‘से’ का प्रयोग

(१) मिलना,बताना,पूछना,कहना आदि द्विकर्मक क्रियाओं के गौण कर्म के साथ से विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।  जैसे – मैं तुमसे एक बात पूछता हूं।  नरेश ने सोहन से कहा कि वह कल दिल्ली जाएगा।

(२) ईर्ष्या,प्रेम,स्नेह व लाभ आदि में भी कर्म के साथ ‘से’ का प्रयोग होता है। जैसे – रावण से राम का कोई बैर नहीं था। वह लता से ईर्ष्या रखती थी।

के लिए – के लिए उद्देश्य सूचक है। इसका प्रयोग संप्रदान कारक में तथा क्रियार्थक संख्याओं के साथ किया जाता है। जैसे – मैं तुम्हारे लिए कुछ फल लाया हूं। सोहन घूमने के लिए गया है।

का,की,के – (१) जब संबंधी शब्द एकवचन तथा पुल्लिंग का होता है तथा संबंध कारक अन्य पुरुष का होता है,तब ‘का’ विभक्ति आती है। जैसे – सोहन का भाई

(२) के – विभक्ति का प्रयोग अन्य पुरुष में पुल्लिंग बहुवचन संबंधी शब्द के पहले होता है। जैसे – सोहन के भाई ने।

(३) यदि संबंधी शब्द परसर्ग के साथ होता है, तो एकवचन में होते हुए भी पुल्लिंग शब्द कारक के संज्ञा पद के साथ के परसर्ग का प्रयोग होता है।

  • मैं विनय के स्कूटर पर बैठा था

(४ ) के परसर्ग का प्रयोग अव्यय के रूप में भी किया जाता है। जैसे – लता पिताजी के साथ गई है।

(५) की विभक्ति का प्रयोग अन्य पुरुष संबंध कारक के साथ एकवचन तथा बहुवचन दोनों में उस अवस्था में होता है जब संबंधी शब्द स्त्रीलिंग हो

उदाहरण के लिए

रमेश की पत्नी , गणेश की माताजी।

में तथा पर समय तथा स्थान के लिए।

(१) अधिकरण कारक में ‘में’ विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे – जेबों में,घर में,रात में आदि।

(२) ऊपर के अर्थ में तथा समय के अर्थ में पर विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे समय पर तीन बिस पर

(३) संप्रदान कारक में भी पर विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। जैसे – इतने थोड़े पैसों पर,बीस रुपए रोज पर, यहां पर का अर्थ के लिए ही है।

(४) में परसर्ग का प्रयोग कालवाचक क्रिया विशेषण में अवधि बताने के लिए भी होता है। जैसे – उसका घर पांच वर्ष में बना। अ

(५) धिकरण कारक में किसी वस्तु का आधार बताने के लिए पर विभक्ति प्रयुक्त की जाती है। जैसे – पक्षी पेड़ पर बैठे थे।

(६) कारण सूचक क्रियाविशेषण पदबंध में भी पर परसर्ग आता है। जैसे -चोरी करने पर पकड़े ही जाओगे।

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निष्कर्ष

कारक का अध्ययन करने पर स्पष्ट होता है कि इसके भीतर विभक्ति चिन्ह का विशेष महत्व है। जो संज्ञा,सर्वनाम,क्रिया आदि के बीच उपस्थित होकर उसकी विभक्ति स्थिति आदि को व्यक्त करता है।

आशा है उपरोक्त लेख आप स्पष्ट तौर पर समझ गए होंगे तथा आपके ज्ञान का लाभ भी हुआ होगा। संबंधित विषय से प्रश्न पूछने के लिए कमेंट बॉक्स में लिखें। हम आपके प्रश्नों के उत्तर यथाशीघ्र देंगे।

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