प्रस्तुत लेख में अल्पप्राण, महाप्राण विषय पर अध्ययन करेंगे तथा संधि के संदर्भ में इनका प्रयोग किस प्रकार किया जाता है उसे भी जानेंगे यह लेख आप की परीक्षाओं के लिए कारगर है।
अल्पप्राण और महाप्राण के उदाहरण
हिंदी भाषा अन्य भाषाओं से विशेष है, इसकी अपनी कुछ विशेषताएं हैं जिसके कारण इसकी अलग पहचान है। हिंदी भाषा में तद्भव, तत्सम जैसे शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है। जिनका संबंध संस्कृत भाषा से होता है।
इनके संबंध में कुछ विशेष नियम लागू होते हैं जिन्हें हम महाप्राणीकरण या अल्पप्राणीकरण आदि के नाम से जानते हैं –
1 महाप्राणीकरण – शब्द के अंत में यदि अल्पप्राण ध्वनि के आगे ध्वनि ‘ह’ हो तो अल्पप्राण ध्वनि महाप्राण ध्वनि हो जाती है जैसे –
- तब + ही = तभी
- जब + ही = जभी
- कब + ही = कभी
- सब + ही = सभी
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2 अल्पप्राणीकरण – कभी-कभी पहले शब्द के अंत में आने वाले महाप्राण ध्वनि अल्पप्राणीकरण हो जाता है जैसे –
- ताख़ + पर = ताक पर
- दूध वाला = दूद वाला
3 लोप – विशेष परिस्थितियों में शब्दों के संधि से उनके बीच एक का लोप हो जाता है जैसे –
- यहां + ही = यहीं
- वहां + ही = वहीं
- कहां + ही = कहीं
- यह + ही = यही
- वह + ही = वही
- इस + ही = इसी
- उस + ही = उसी
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4 दो स्वरों के पास पास आने से ‘य’ वर्ण आ जाता है तथा दीर्घ स्वर का ह्रस्वीकरण हो जाता है जैसे –
- मुनि + ओं = मुनियों
- कवि + ओं = कवियों
- नदी + ओं = नदियों
- नारी + ओं = नारियों
- दवाई + ओं = दवाइयों
- लड़की + ओं = लड़कियों
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निष्कर्ष –
उपरोक्त अध्ययन में हमने संधि के अंतर्गत महाप्राण, अल्पप्राण, लोप तथा दो स्वरों के मिलने से या वर्ण की किस प्रकार आवृत्ति होने से नए शब्द निर्माण होते हैं का विस्तृत रूप से अध्ययन किया है। आशा है आपने इन बारीकियों को समझने का प्रयत्न किया होगा।
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