सूरदास की झोपड़ी ( प्रेमचंद ) कक्षा 12, पाठ का सार, प्रश्न उत्तर

इस लेख में प्रेमचंद का संक्षिप्त जीवन परिचय  का अध्ययन करेंगे, साथ ही सूरदास की झोपड़ी पाठ का सार , महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर तथा व्याख्या के रूप में अभ्यास कर सकेंगे जो परीक्षा की दृष्टि से तैयार किया गया है।

प्रेमचंद को कथा सम्राट भी कहा जाता है, उनकी कहानियों में जो वास्तविकता और जीवन का मर्म देखने को मिलता है वह अन्यत्र कहानीकारों में नहीं। शायद यही कारण है कि उन्हें कलम का सिपाही भी कहा जाने लगा। सूरदास की झोपड़ी कहानी में भी प्रेमचंद जहां गांधीवादी विचारधारा का प्रदर्शन किया, वहीं एक अंधे भिखारी की विवशता को भी बखूबी दर्शाया है।

भिखारी के पास बड़ी मात्रा में धन हास्य का विषय होता है।

यही कारण है सूरदास की जमा पूंजी लूट जाने के बाद भी वह अपनी पूंजी के बारे में किसी को नहीं बताता क्योंकि उसकी बात पर कोई यकीन नहीं करेगा। अंत में वह संघर्ष के लिए प्रेरित होता है।

प्रेमचंद का स्पष्ट मानना था साहित्य कोई मनोरंजन का विषय नहीं है।

यह समाज को दिशा दिखाने, उनका मार्ग प्रशस्त करने का एक माध्यम है।  प्रेमचंद के साहित्य से इन बातों का स्पष्टीकरण देखने को मिल जाता है।

प्रेमचंद द्वारा रचित सूरदास की झोपड़ी ( कक्षा 12 )

सूरदास की झोपड़ी , प्रेमचंद की कालजई रचना है। यह कहानी प्रेमचंद के विचारों में गांधीवादी विचारधारा को प्रदर्शित करता है। वह स्वतंत्रता आंदोलन में स्वयं बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे थे, अपनी सरकारी नौकरी को भी उन्होंने त्याग कर गांधी जी के आह्वान पर सत्याग्रह आंदोलन में शामिल हुए थे।

जिससे उनके व्यक्तित्व में गांधीवादी विचारधारा देखने को मिलती है।

कहानी का पात्र सूरदास अपना समस्त धन तथा घर खो देने के पश्चात भी पुनः बनाने के लिए, अर्जित करने के लिए प्रेरित होता है। वह विद्रोह या हिंसा की बात नहीं करता। सूरदास का यह व्यवहार तथा विचार प्रेमचंद के गांधीवादी विचारधारा को प्रदर्शित करने में सक्षम है।

सूरदास की झोपड़ी कहानी व्यक्तिगत जीवन के लिए भी प्रेरणादायक है

  • किस प्रकार एक असहाय व्यक्ति भी अपने जीवन में उत्तम कार्य कर सकता है
  • तथा सब कुछ खो जाने के पश्चात भी वह स्वयं से हार नहीं मानता।
  • पुनः अर्जित करने का दृढ़ संकल्प रखता है।
  • वह जीवन को एक खेल की भांति लेता है जिसमें हार जीत लगा रहती है।
  • वह पुनः प्रयास करके सब कुछ हासिल करने पर विश्वास रखता है।
  • प्रतिहिंसा या द्वेष भाव को अपने भीतर नहीं पालता यही व्यक्ति के उत्तम जीवन का परिचय है।

सूरदास की झोपड़ी कहानी का सार

प्रेमचंद द्वारा लिखित उपन्यास ‘रंगभूमि’ का एक अंश है ‘सूरदास की झोपड़ी’ एक कहानी के रूप में प्रस्तुत की गई है। यह कहानी एक अंधे भिखारी सूरदास तथा उसके बेटे ‘मिठुआ’ को केंद्र में रखकर लिखी गई है।

सूरदास ने भिक्षा मांग-मांग कर कुछ पैसे जमा किए हैं , जिससे वह अपनी तीन अभिलाषा पूरी करना चाहता है

  1.  संचित धन से पितरों का पिंडदान करना
  2. अपने पुत्र मिठुआ का विवाह करना
  3. गांव के लिए एक कुआं बनवाना

उसी गांव के जगधर और भैरौ भी रहते हैं जो इस कथा के खलनायक और उप खलनायक के पात्रों रूप में जाने जाते हैं।

भैरौ की पत्नी सुभागी अपने पति की रोज-रोज की मार से बचने के लिए सूरदास की झोपड़ी में शरण ले लेती है। इसी ईर्ष्या भाव से भैरौ सूरदास को अपना दुश्मन समझ उससे किसी भी प्रकार बदला लेने की ठान लेता है।

जिससे भैरौ सूरदास से ईर्ष्या करने लगता है।

बदले की आग बुझाने के लिए एक रात भैरौ सूरदास की झोपड़ी में आग लगाने घुसता है।

वही उसे सूरदास की जमा पूंजी एक पोटली के रूप में मिलती है।

भैरों वह पोटली चुराकर झोपड़ी में आग लगा देता है।

आग बुझाने पूरा गांव इकट्ठा होता है , सभी आग बुझाने तथा अपराधी का नाम सोचने का कार्य करते हैं , किंतु सूरदास की मनः स्थिति उस समय निराशा पूर्ण होती है। वह आश्चर्यचकित दुखी तथा निराश था उसके मन में केवल एक ही बात थी कि वह किसी प्रकार झोपड़ी में जाकर अपनी पोटली निकाल लाए।

उसे अपनी सभी मनोकामनाएं पोटली के साथ जलती हुई नजर आ रही थी।

झोपड़ी के जल जाने पर सूरदास झोपड़ी में अपनी पोटली की तलाश में जाता है।

वहां पर चारों और उसकी राख थी , उसे महसूस होता है कि आग में केवल फुस ही नहीं उसकी तीनों अभिलाष आएं भी जल गई।

ढूंढने पर भी उसे पोटली नहीं मिलती।

जगधर , सूरदास की झोपड़ी जलाने के पीछे भैरों  को जिम्मेदार समझकर भैरौ के पास जाता है।

वहां उसे पता चलता है कि भैरौ की झोपड़ी जलाने से पहले सूरदास की पोटली भी चुरा ली थी।

जगधर के मन में पैसों को देखकर ईर्ष्या का भाव जगता है और भैरों को रातों-रात बिना मेहनत किए पैसे मिल गए तो उसे भी यह प्राप्त होना चाहिए। इसी बात की धमकी वह भैरौ को देता है कि यदि उसने आधे पैसे ना दिए तो वह सूरदास को इस राज के बारे में बता देगा। भैरौ पैसे देने से इंकार कर देता है।

ईर्ष्या की भावना में आकर जगधर , सूरदास को भैरों की चोरी के विषय में बताता है।

किंतु सूरदास अपनी इस आर्थिक हानि को जगधर से गुप्त रखता है क्योंकि वह एक गरीब के पास इतने पैसे होने उसके लिए लज्जा की बात थी। सुभागी जो जगधर और सूरदास की बातें सुन रही थी वह सूरदास से सहानुभूति रखती है तथा पोटली वापस लाने का संकल्प लेती है।

सूरदास अपनी दशा पर दुखी था किंतु उसने पुत्र को उसके मित्रों की यह बात सुनकर कि खेल में कोई रोता है। वह इस जीवन को एक खेल मानता है, उसकी मनोदशा बदल जाती है तथा वह एक खिलाड़ी की भांति उत्साह और आत्मविश्वास से भर जाता है।

जो अगला खेल, खेलने को तैयार होता है सूरदास की हार ना मानने की प्रवृत्ति उसमें विजय गर्व का तरंग भर देती है।

सूरदास की झोपड़ी कहानी का प्रश्न उत्तर

प्रश्न – भैरों ने सूरदास की झोपड़ी क्यों जलाई ?

उत्तर – भैरों ने सूरदास की झोपड़ी बदला लेने के लिए जलाई , वह कई कारणों से सूरदास से बदला लेना चाहता था।

सुभागी को शरण देने के कारण – भैरों अपनी पत्नी सुभागी को रोज नशे में पीटता था।

एक दिन भैरों की मार से बचने के लिए वह सूरदास की शरण में आ गई।

सूरदास ने उसे शरण देकर भैरव की मार से बचाया जिसमें भैरव की जग हसाई हुई।

भैरों के मन में सूरदास के प्रति ईर्ष्या भाव के कारण – सुभागी द्वारा बार-बार पति की मार से बचने हेतु सूरदास के घर में जाकर छुप जाना व सूरदास के बीच – बचाव करके सुभागी को भैरव से बचाना ही भैरव के मन में ईर्ष्या भाव जगा देता है।

वह सूरदास से बदला लेने का निश्चय कर बैठता है।

प्रश्न – ‘तो हम सौ लाख बार बनाएंगे’ इस कथन के संदर्भ में सूरदास के चरित्र की विवेचना कीजिए।

उत्तर –  सूरदास का इस वाक्य से एक सशक्त चरित्र उभर कर आता है , जिसमें कई विशेषताएं हैं।

हार ना मानने की प्रवृत्ति –

  • सूरदास की विषम तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हार नहीं मानता।
  • पुनः परिश्रम करके सब कुछ अर्जित करना चाहता है।
  • वह परिश्रम करने को तैयार रहता है।

कर्मशील / मेहनती –

  • सूरदास एक मेहनती व्यक्ति है , अंधा होने पर भी उसमें ईतने पैसे जमा किए तथा आगे भी मेहनत करने से नहीं कतराता।

प्रतिशोध की भावना से मुक्त –

  • सूरदास किसी से भी प्रतिशोध लेने की भावना नहीं रखता।
  • भैरों के विषय में पता चलने पर भी वह उसे नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता निर्णय लेने की क्षमता। सूरदास किसी भी परिस्थिति को केवल मौन रहकर उसे स्वयं पर हावी होने नहीं देता।
  • वह तुरंत सकारात्मक निर्णय लेकर जीवन में आगे बढ़ता है , झोपड़ी जलने पर उसने यही किया।

सहृदय एवं परोपकारी –

  • सूरदास कोमल हृदय का है , जिसने स्वयं पर संकट आने का अंदेशा होने पर भी सुभागी को शरण दी।
  • अंत में भी सुभागी के बेघर होने का जिम्मेदार वह स्वयं को मानता है।

आशावादी दृष्टिकोण –

  • मिठुआ के खेल की बात सुनकर सूरदास के मन में भविष्य के प्रति नवीन आशा जागृत होती है।
  • वह अतीत को भूल कर भविष्य को फिर से सुधारना चाहता है।

प्रश्न – ‘चूल्हा ठंडा किया होता तो , दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता ? सूरदास की झोपड़ी कहानी के आधार पर सूरदास की मनः स्थिति का वर्णन कीजिए।

उत्तर – भैरों के द्वारा सूरदास की झोपड़ी में ईर्ष्या के कारण आग लगा देने के उपरांत उसका पूरा घर जलकर स्वाहा हो गया था। सूरदास बेहद चिंता में था। उसे अपने झोपड़ी के जल जाने का इतना गम नहीं था। उसके मन में आशा थी कि उसके द्वारा जमा किया हुआ पैसा सुरक्षित होगा।

आग बुझाने के बाद सूरदास अपनी जली हुई झोपड़ी मैं जाता है

और जहां पोटली रखी होती है उन सभी जगहों की तलाशी लेता है।

किंतु पोटली होती तब तो मिलती।

आग लगाने से पूर्व भैरों ने वह पोटली चुरा ली थी , वह काफी निराशा में डूब गया।

उसके मन की स्थिति बेहद दयनीय तथा करुणामय हो गयी।

लोगों ने उससे पूछा क्यों – ‘ तुमने चूल्हा ठंडा नहीं किया था ?

अर्थात खाना बनाने के बाद चूल्हे की आग को ठीक से बुझाया नहीं था जिसके कारण झोपड़ी में आग लग गई। इस पर सूरदास जवाब देता है अगर चूल्हा ठंडा किया होता तो दुश्मनों का कलेजा कैसे शांत होता।

अर्थात दुश्मनों के दिल में जो आग लगी थी वह मेरे झोपड़ी के जल जाने से शांत हुई।

उन्होंने अपने दिल की आग को मेरी झोपड़ी में लगा दिया।

दुख और निराशा के सागर में सूरदास गोते खाने लगा तभी उसका बेटा मिठुआ खेलता हुआ आता है। अन्य बच्चे भी उसके साथ होते हैं , एक बच्चा खेल में हार जाने के कारण रोने लगता है। जिस पर बच्चे कहते हैं यह खेल में भी रोता है , इससे सूरदास को एक सहारा मिलता है और वह निराशा के भवसागर से निकलकर आशावादी और ऊर्जावान हो जाता है।

प्रश्न – ‘ यह पूस की रात ना थी , उसकी अभिलाषाओं की राख थी’  संदर्भ सहित विवेचना कीजिए।

उत्तर – सूरदास एक दृष्टिहीन व्यक्ति था जो भिक्षा मांग कर अपना घर चलाता था।

उसने भिक्षा मांगकर धन संचित किया था , जिससे उसकी काफी सारी अभिलाषाएं जुड़ी हुई थी। वह अपने पुत्र मिठुआ तथा समाज के लिए कुछ करना चाहता था और शाबाशी प्राप्त करना चाहता था। उन जमा पूंजी से मिठुआ का धूमधाम से ब्याह कराना चाहता था तथा गांव के लोगों को पानी की दिक्कत ना हो इसलिए गांव में एक कुआं भी खुदवाना चाहता था।

शायद इस कार्य से लोग सूरदास को आश्चर्य से देखते और धन्यवाद करते।

इस अभिलाषा के साथ हुआ पूंजी को संचित कर रहा था।

किंतु भैरों ने ईर्ष्या – द्वेष के कारण सूरदास की झोपड़ी में रखें धन की पोटली को निकालकर पूरी झोपड़ी को आग लगाकर स्वाहा कर दिया।

जिसमें सूरदास की समस्त अभिलाषाओं ने दम तोड़ दिया।

अर्थात घर में रखी हुई पूंजी जिनसे अभिलाषा से जुड़ी थी ,

वह अब सूरदास के पास नहीं थी।

जिससे उसकी अभिलाषा अब राख के रूप में परिवर्तित हो चुकी थी।

प्रश्न – जगधर के मन में किस तरह का ईर्ष्या भाव जगा और क्यों ?

उत्तर – जगधर भैरों को आग लगाने के लिए , सूरदास से बदला लेने के लिए उसकाता रहता था। जब भैरों ने सूरदास की झोपड़ी में आग लगा दिया तो जगधर सहज समझ गया कि यह काम भैरौं का है। जब झोपड़ी से बड़ी मात्रा में धन के गायब होने की बात सुभागी तथा सूरदास से पता चलता है तो जगधर के मन में एक आशा जागृत होती है। वह भैरौं का मन लेने के लिए उसके पास जाता है और बात – बात में झोपड़ी में आग लगाने तथा वहां से उसकी धन की पोटली को गायब करने की बात जान जाता है।

  • जगधर को यह बात ठीक नहीं लगती कि एक क्षण में भैरौं के पास इतना धन आ गया।
  • वह उसमें साझेदारी चाहता था मगर भैरौं उस धन में किसी प्रकार का बंटवारा नहीं चाहता था।
  • इसलिए उसने जगधर को मना कर दिया।
  • जगधर ने बात को सभी के सामने रखने की धमकी दी
  • किंतु भैरौं  नहीं माना और उसने सूरदास को बता दिया।

प्रश्न – सूरदास , जगधर से अपनी आर्थिक हानि को गुप्त रखना चाहता था ?

उत्तर – सूरदास , जगधर से ही नहीं बल्कि समस्त गांव के लोगों से अपने आर्थिक हानि को गुप्त रखना चाहता था क्योंकि एक अंधे भिखारी के पास धन का होना हास्य का विषय होता है। वह अपने को हास्य का पात्र नहीं बनाना चाहता था , इसलिए वह अपनी आर्थिक हानि को सभी से छुपाना चाहता था। इस बात को छिपाने के पीछे एक और विचार हो सकता है शायद सुभागी की लोक निंदा। पैसे का पता अगर गांव वासियों को चलता तो सुभागी के दामन में दाग लगने का भय सूरदास को था।

कहीं पैसे की लालच में सुभागी सूरदास के घर में तो नहीं जाती थी ,

इन सभी विचार विमर्श के बाद सूरदास ने आर्थिक हानि को गुप्त रखना ही उचित समझा।

प्रश्न – सूरदास उठ खड़ा हुआ और विजय गर्व की तरंग में राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा। सूरदास की झोपड़ी पाठ के इस कथन के संदर्भ में सूरदास की मनोदशा का वर्णन कीजिए।

उत्तर – सूरदास की झोपड़ी जल जाने तथा पूंजी के चोरी हो जाने पर सूरदास एक गहरी निराशा के सागर में डूब गया था। वह अपने जीवन को अब बौझिल समझने लगा था , उसके ढेर सारी अभिलाषा उन पूंजी के साथ जुड़ी हुई थी जो अब राख के रूप में परिवर्तित हो चुकी थी। फिर जब सूरदास ने बालकों को लड़ते और उन्हें कहते सुना कि खेल में कोई रोता है , तो सूरदास को जीवन जीने का एक सहारा मिल जाता है। वह भी जीवन को एक खेल की भांति समझने लगता है और स्वयं को खिलाड़ी , जिसमें बार-बार गिरने उठने और विजय प्राप्त करने की ललक होती है।

पुनः पूंजी जमा करने और सभी आशाओं को पूरा करने की उम्मीद लिए सूरदास उठ खड़ा होता है और विजय तथा गर्व की तरंगों के साथ दोनों हाथों से राख के ढेर को आसमान की ओर उछलता है। यह खेल बच्चों को अधिक लोकप्रिय लगा बच्चे भी इस खेल में शामिल हुए और सूरदास के सहयोगी बन गए।

प्रश्न – ‘तो हम सौ लाख बार बनाएंगे’ इस कथन के संदर्भ में सूरदास के चरित्र का विवेचन कीजिए।

उत्तर – प्रेमचंद ने सूरदास को एक कर्मशील , सहनशील तथा परिश्रमी व्यक्ति के रूप में चित्रित किया है। यह संभवत गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित था , जो सब कुछ खो जाने के बाद भी संघर्ष करने से पीछे नहीं हटता। सूरदास भी अपना सब कुछ खो देने के बाद भी पुनर्निर्माण की भावना रखता है और सब कुछ प्राप्त करने के लिए प्रेरित होता है।

इससे सूरदास की

  • कर्मशीलता ,
  • हार न मानने वाला ,
  • सहनशील तथा
  • बदले की भावना ना रखने वाला व्यक्ति के रूप में उभर कर सामने आया है।

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संदेश लेखन

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सूरदास की झोपड़ी पाठ का निष्कर्ष –

प्रेमचंद हिंदी साहित्य के प्रमुख स्तंभ हैं , उनकी अध्यक्षता में हिंदी साहित्य का सशक्त विकास हुआ। उन्होंने 1936 हिंदी साहित्य सम्मेलन में यह घोषणा की साहित्य कोई मनोरंजन का विषय नहीं है।  साहित्य समाज का दर्पण है , अतः साहित्य के माध्यम से समाज को दिशा दिखाने उसका उत्थान करने आदि की दिशा में कार्य किया जाना चाहिए।

सूरदास की झोपड़ी पाठ के आधार पर नायक सूरदास का व्यक्तित्व प्रेमचंद के व्यक्तित्व से जोड़कर देख सकते हैं , जो गांधीवादी विचारधारा तथा पुनः निर्माण की भावना आदि से ओतप्रोत है।

जिसमें त्याग , समर्पण आदि भाव है।

प्रेमचंद ने भी गांधी जी के आह्वान पर अपनी जमी – जमाई सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर स्वाधीनता आंदोलन में शामिल हुए थे। जिसके कारण उनके व्यक्तित्व में गांधीवादी विचारधारा का दर्शन होने लगता है। पाठ का नायक सूरदास जी इसी विचारधारा से संबंधित लगता है , जो बदला लेने मैं विश्वास नहीं करता। अपने कर्म से निर्माण करना जानता है।

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