प्रस्तुत लेख में वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा, पहचान, और उदाहरण आदि को विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे। यह लेख सभी प्रकार की परीक्षाओं के लिए कारगर है। इसका अध्ययन कर आप अपनी परीक्षा की तैयारी कर सकते हैं।
वक्रोक्ति अलंकार
अलंकार को काव्य का आभूषण माना गया है। इसके प्रयोग से काव्य में चमत्कार तथा रोचकता उत्पन्न होती है। अलंकार काव्य की शोभा को बढ़ाने का कार्य भी करते हैं।
जिस प्रकार महिलाएं आभूषण पहनती हैं ,उसी प्रकार काव्य का आभूषण अलंकार होता है।
वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा
जहां किसी उक्ति में,वक्ता के अभिप्रेम आशय से भिन्न अर्थ की कल्पना की जाए वहां वक्रोक्ति अलंकार होता है। (1) कभी किसी शब्द के श्लेष से कई अर्थ होने के कारण दूसरा अर्थ निकाला जाता है। और(2) कभी कहे हुए वाक्य का कष्ट की ध्वनि या अन्य किसी प्रकार से दूसरा अर्थ निकाला जाता है।
पहले प्रकार की उक्ति में श्लेष वक्रोक्ति होती है और दूसरे प्रकार की उक्ति में वाकुवक्रोक्ति।
वक्रोक्ति अलंकार का उदहारण vakrokti alankar ke udaharan
1 श्लेष वक्रोक्ति का उदहारण
(श्री कृष्ण राधा के यहां गए, उनसे उन्होंने द्वार खोलने को कहा )
राधा-को तुम हो ,इत आये कहाँ ?
श्रीकृष्ण-घनश्याम
(राधा ने श्लेष से घनश्याम का अर्थ ‘बादल’ लगाकर कहा) हो तो कितहूँ बरसो।
अर्थात बादल का यहां क्या काम ? यदि बादल हो तो जाकर कहीं और जल बरसाओ।
2 काकुवक्रोक्ति का उदाहरण –
(रावण ने अंगद से अपनी भुजाओं की शक्ति की डिंग मारी। इस पर अंगद बोला )
‘सो भुज बल राख्यो उर घाली। जीतेउ सहस्रबाहु,बली, बाली।
यहां (काकू वक्रोक्ति) से हारेउ अर्थात हारे थे – सहस्रबाहु,बली और बाली से है।
अन्य उदाहरण –
१ रुठहि करै तासौं को खेलें।
२ क्या कहूं आज जो नहीं कही। (सरोज स्मृति)
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निष्कर्ष –
उपरोक्त अध्ययन से हमने पाया कि वक्रोक्ति अलंकार में श्लेष अलंकार के माध्यम से संदेश उत्पन्न होता है जिसमें भ्रम की स्थिति रहती है।
यथाशीघ्र लेख का और विस्तार किया जाएगा।
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