प्रस्तुत लेख के माध्यम से आज हम वीर रस के सभी आयामों से परिचित हो सकेंगे। इस लेख के माध्यम से हम वीर रस की परिभाषा, भेद, उदाहरण, आलम्बन, उद्दीपन, विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव आदि को अनेकों ढंग से समझने का प्रयास करेंगे।
प्रस्तुत लेख के अध्ययन उपरांत आप वीर रस से भली-भांति परिचित हो सकेंगे। इसके सूक्ष्म बारीकियों को समझते हुए आप इसकी पहचान करने में समर्थ होंगे। साथ ही इस रस के विषय में आप निपुणता हासिल कर सकेंगे। इसी उद्देश्य के साथ यह लेख आरंभ करते हैं।
आशा है यह लेख आपके ज्ञान का विकास कर अपने उद्देश्यों में सफल हो सके।
वीर रस की पूरी जानकारी – परिभाषा, भेद, और उदाहरण
परिभाषा :- जिस प्रसंग अथवा काव्य में वीरता युक्त भाव प्रकट हो , जिसके माध्यम से उत्साह का प्रदर्शन किया गया हो वहां वीर रस होता है।
वीर रस शरीर में उत्साह का संचार करते हुए गर्व की अनुभूति कराने में सक्षम है। इस रस के माध्यम से युद्ध तथा रण पराक्रम तथा शौर्य का वर्णन अपेक्षित है।
इसके माध्यम से योद्धा अथवा पराक्रमी व्यक्ति का उत्साहवर्धन किया जाता है। उस व्यक्ति विशेष के विशेषताओं को बताते हुए स्तुति गायन किया जाता है।सहृदय के हृदय में स्थायी भाव, उत्साह रूप में विद्यमान होता है। वीर रस व्याकरण अध्ययन का विषय है। इस रस का प्रयोग साहित्य में उत्साहवर्धन के लिए किया जाता है।
वीर रस – आलम्बन, उद्दीपन, विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव
स्थायी भाव :- वीर रस का स्थायी भाव उत्साह है।
विभाव , अनुभाव तथा संचारी भाव के माध्यम से परिष्कृत होकर जब वह आस्वाद रूप में प्रकट होता है वहां वीर रस की प्रतीति होती है।
आलम्बन – शत्रु , धार्मिक ग्रंथ , पर्व , तीर्थ स्थान , दयनीय व्यक्ति , स्वाभिमान की रक्षा के लिए प्रस्तुत व्यक्ति , अन्याय , अत्याचार का सामना करने वाला व्यक्ति , साहस , उत्साह।
उद्दीपन – शत्रु का पराक्रम अन्नदाता ओं का दान धार्मिक कार्य दुखियों की सुरक्षा आदि
संचारी भाव – गर्व , उत्सुकता , मोह , हर्ष आदि।
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वीर रस के चार भेद माने गए हैं
१ युद्धवीर
२ धर्मवीर
३ दानवीर
४ दयावीर
इन चारों भेद के अलावा व्यक्ति में कर्मवीर के गुण होने आवश्यक है। बिना कर्म से वीर हुए व्यक्ति इन सभी क्षेत्रों में वीर नहीं हो सकता।
1. युद्धवीर –
युद्धवीर वह होता है जो रणभूमि में अपनी वीरता सिद्ध करता है।
यह दृश्य तथा झांकी किसी विशाल झांकी से कम नहीं होता। किस प्रकार वीर तथा वीरांगनाओं ने युद्ध भूमि में अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हुए नर मुंडो की माला धारण की। इतना ही नहीं इन्होंने अपने साहस से वह सब कर दिखाया जो सामान्य वीरों के बस की बात नहीं थी।युद्धवीर समय और चुनौती से पीछे नहीं हटते , यही कारण है कि युद्ध भूमि में वीरों ने पीछे हटने के बजाए मृत्यु स्वीकार की।
2. धर्मवीर –
धर्मवीर वह व्यक्ति होता है जो , धर्म के निर्वाह के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम ने पिता के धर्म को निभाने के लिए 14 वर्ष का वनवास स्वीकार किया। महात्मा विदुर ने धर्म की रक्षा के लिए अपनी बुद्धि को सदैव पैना रखा।
धर्म की रक्षा के लिए ही देवताओं ने पृथ्वी पर कितने अवतार धारण किए।
3. दानवीर –
दानवीर वह होता है जो दुखी , लाचार और विवश व्यक्ति की सहायता के लिए समय तथा परिस्थिति नहीं देखता। दानवीर स्वयं कष्ट सहकर भी दीन – दुखियों की सहायता में संलग्न रहता है। दानवीर कर्ण ने अपनी मृत्यु को जानते हुए भी इंद्र को अपना कवच दान में दे दिया। भारतवर्ष से अनेक दान वीरों से भरा हुआ है , जिन्होंने धर्म के निर्वाह के लिए किसी धन – संपदा का लालच नहीं किया।
4 दयावीर –
पुराणों में लिखा गया है दया धर्म का मूल है।
जिस व्यक्ति के पास दया है , वही धर्म का निर्वाह कर सकता है।
राम ने अपने जीवन काल में कितने ही कष्ट दूसरों के कारण झेले , किंतु उन्होंने दया धर्म का निर्वाह सदैव किया। माता कैकई , मंथरा , आदि ऐसे पात्र हैं जिनके कारण राम ने जीवन के 14 वर्ष कठिनाई में व्यतीत किए।
किंतु उनकी दया वीरता ऐसी थी कि , उन्होंने तनिक भी क्रोध नहीं किया।
लौट कर आने पर उन्होंने सभी को उसी भाव से स्वीकार किया जिस भाव से बचपन में स्वीकारते थे। दयावीर व्यक्ति स्वयं कष्ट सहकर भी दुखी असहाय व्यक्तियों की सहायता में उपस्थित रहता है।
वीर रस के उदाहरण – Veer ras examples in Hindi
” उठो जवानों हम भारत के स्वाभिमान सरताज हैं
अभिमन्यु के रथ का पहिया , चक्रव्यूह की मार है। “
व्याख्या –
इस पंक्ति के माध्यम से जवानों के पुनः जागृत होने के लिए आह्वान किया गया है। अपने जवानों में उत्साह को चरम स्तर पर पहुंचाने की कोशिश की गई है। बताया जा रहा है कि अभिमन्यु के वीर संतानों उनके बलिदान पर गर्व करो। अभिमन्यु को मारना इतना सरल नहीं था ,उसकी मृत्यु तो चक्रव्यूह के कारण हुई , जो अपनों ने ही रची थी। हम भारत के स्वाभिमान सरताज हैं , अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए हमें उठना ही होगा।
Veer ras ki kavita – वीर रस की कविता व्याख्या सहित
” मैं सच कहता हूं सखे , सुकुमार मत जानो मुझे
यमराज से भी युद्ध को , प्रस्तुत सदा मानो मुझे
है औरों की बात क्या , गर्व मै करता नहीं
मामा और निज तात से भी , समर में डरता नहीं। । ”
व्याख्या –
प्रस्तुत पंक्ति अभिमन्यु के द्वारा अपनी पत्नी को कहा गया है।
उन्होंने अपने युद्ध वीरता का परिचय देते हुए निश्चिंत किया है कि , वह सुकुमार नहीं है और ना ही वह किसी से युद्ध में डरता है। स्वयं यमराज से भी लड़ जाने की क्षमता मुझ में है। गर्व और अहंकार के मद में , मैं नहीं कह रहा हूं।
मैं मामा और अपने सगे संबंधियों से भी युद्ध भूमि में कदाचित नहीं डरता।
अभिमन्यु , सुभद्रा और अर्जुन के पुत्र थे। जिनके माता-पिता के शौर्य का बखान पूरा देश गा रहा था। निसंदेह उसका पुत्र भी साहसी होगा। उसी साहस का परिचय अपनी पत्नी को अभिमन्यु करवाते हैं।
” रणबीच चौकड़ी भर-भर कर , चेतक बन गया निराला था ,
राणा प्रताप के घोड़े से , पड़ गया हवा का पाला था। “
व्याख्या –
महाराणा प्रताप के वीरता की कहानी जगजाहिर है। उन्होंने अपनी छोटी-सी सेना को लेकर किस प्रकार बड़ी-बड़ी सेना के नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया। महाराणा प्रताप जितने बड़े वीर थे उनका सवारी भी उतना वीर होना चाहिए। महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक उतना ही वीर था। उससे बड़ा वीर घोड़ा आज तक नहीं हुआ। वह हवा की गति से तेज दौड़ सकने में सक्षम था। राणा जब अपने चेतक पर सवार होकर रणभूमि में उतरते शत्रु दल थर-थर कांपने पर मजबूर होते।
चेतक जब राणा साहब को लेकर दौड़ता , हवा भी उसका पीछा नहीं कर पाती। राणा के सोच के अनुसार वह घोड़ा दौड़ सकता था। यही कारण है कि चेतक आज भी पूजनीय है , उसके स्मृति आज भी मौजूद है। जबकि आज तक किसी घोड़े की स्मृति या कब्र नहीं देखने को मिली होगी।
” कब तक द्वन्द सम्हाला जाए,
युद्ध कहाँ तक टाला जाए ।
वंशज है महाराणा का
चल फेंक जहाँ तक भाला जाए। । “
व्याख्या –
उपरोक्त पंक्ति के माध्यम से युद्धवीर का दर्शन होता है।
अपने भीतर द्वंद्व को सहलाना और उसे पालना आखिर कब तक होता रहेगा। हम वीर महाराणा प्रताप जैसे यशस्वी के पुत्र हैं। हम उन पूर्वजों के वंशज हैं जिन्होंने पूरी पृथ्वी पर अपने शौर्य की पताका लहराई थी। ऐसे वंशजों को थक-हार कर बैठ जाना शोभा नहीं देता , यह अपने पूर्वजों को कलंकित करने का उपाय मात्र है इसलिए।
युद्धवीर को अपना पराक्रम युद्धभूमि में दिखानी चाहिए और अपने प्रयत्न को उस क्षितिज तक ले जाना चाहिए जहां तक अपनी पहुंच हो।
तब तक हार नहीं माननी चाहिए जब तक आखिरी स्वास हो ।
” दया धर्म का मूल है , पाप मूल अभिमान। “
व्याख्या –
भीष्म ने देवताओं के गुरु बृहस्पति से शिक्षा ली थी।
उन्होंने दया को धर्म का मूल तथा अभिमान को पाप बताया था। भीष्म पितामह ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा दया करना धर्म का मूल उद्देश्य है। बिना दया के धर्म का पालन नहीं किया जा सकता। ठीक इसी प्रकार अभिमानी व्यक्ति अपने अभिमान में पाप कर बैठता है। अभिमान पाप का मूल है , जिस व्यक्ति में अभिमान की भावना आ जाती है वह पाप अनाचार के रास्ते पर निकल जाता है।
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वीर रस महत्वपूर्ण प्रश्न – Important questions on Veer ras
प्रश्न – वीर रस का स्थायी भाव क्या है ?
उत्तर – ‘उत्साह’ वीर रस का स्थाई भाव है।
प्रश्न – वीर रस के चार संचारी भाव लिखें।
उत्तर – हर्ष , दया , उत्सुकता , गर्व।
प्रश्न – वीर रस के कितने भेद हैं ?
उत्तर – वीर रस के चार भेद हैं – १ दया वीर २ दानवीर ३ धर्मवीर ४ युद्धवीर
प्रश्न – क्या ‘कर्मवीर’ वीर रस का भेद है ?
उत्तर – नहीं। कर्मवीर उस व्यक्ति को माना गया है जो कर्म करने में वीर है।
वही दयावीर , दानवीर , धर्मवीर , तथा युद्धवीर हो सकता है।
वीर रस निष्कर्ष :-
उपर्युक्त दिए गए प्रसंग , उदाहरण आदि को विस्तार से समझने के उपरांत यह स्पष्ट होता है कि वीर रस का स्थायी भाव उत्साह है। किंतु उत्साह बिना साहस और कर्म के नहीं उत्पन्न हो सकता , यह भी गौण रूप से स्थायी रूप में कार्य करते हैं। वीर रस के 4 भेद बताए गए हैं इसके क्षेत्र में किए गए उत्कृष्ट क्रियाकलाप को वीरता से जोड़कर देखा जाता है।
कोई वीर और साहसी व्यक्ति ही इस क्षेत्र में प्रांगण हो सकता है।
यह दुष्कर कार्य प्रत्येक व्यक्ति के लिए सरल कार्य नहीं हो सकता।
आशा है उपर्युक्त लेख के माध्यम से आपने अपने ज्ञान का विस्तार किया होगा। यह लेख आपके उद्देश्यों की पूर्ति करने में सक्षम रहा होगा।
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Hello sir
I think there are more types of veer Rai in Hindi grammar. If I am right then please add them and also add more examples like poems and all.
Thank you