Vidyapati Class 12 विद्यापति कक्षा 12 – विद्यापति की पदावली सप्रसंग व्याख्या

इस लेख में हम पढ़ेंगे, कक्षा 12 अंतरा भाग 2 का पाठ, विद्यापति की पदावली का सप्रसंग व्याख्या, काव्य सौंदर्य, परीक्षा में पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर पर चर्चा, एवं लेखक का परिचय।विद्यापति आदिकाल तथा रीतिकाल के बीच संधि समय के कवि थे। अतः इन्हें संधि काल का कवि भी कहा गया है। इनके साहित्य में कृष्ण तथा राधा का सौंदर्य वर्णन और भक्ति देखने को मिलती है। इनका संपूर्ण साहित्य श्रृंगार रस के संयोग पक्ष से ओतप्रोत है। कुछ कृतियां वियोग पक्ष को भी प्रदर्शित करती है।

इनकी रचनाओं को आज भी बिहार तथा पूर्वांचल के क्षेत्रों में प्रसिद्ध है तथा बड़े ही उत्साह पूर्वक ढंग से गाया जाता है। किसी भी वैवाहिक तथा मांगलिक कार्यक्रम में विद्यापति के गीतों को गाना आनंद का विषय होता है। अन्य कवियों की भांति विद्यापति के काव्य में नायक-नायिका भेद नहीं है इनका साहित्य प्रेम के वशीभूत है।

विद्यापति – कक्षा 12 अंतरा भाग 2

लेखक का परिचय

जन्म – जन्म को लेकर मतभेद है, अधिकांश विद्वानों ने 1380 माना है।

जीवन परिचय – विद्यापति को संधि काल का कवि माना जाता है। यह बिहार के मधुबनी जिले के बिप्सी गांव में जन्मे थे। इनका परिवार विद्या और ज्ञान के लिए प्रसिद्ध था। यह मिथिला नरेश शिव सिंह के दरबार में राजकीय कवि थे।

शिक्षा – यह बचपन से ही बहुत कुशाग्र बुद्धि के थे, यह साहित्य, संगीत, ज्योतिष, दर्शन, इतिहास, न्याय, भूगोल के विद्वान थे। इसके अलावा इन्हें कई समकालीन भाषा, उपभाषा का ज्ञान था।

साहित्यिक विशेषताएं –

  • इन्हें संस्कृत, अपभ्रंश, मैथिली भाषाओं का ज्ञान था।
  • यह आदि काल और भक्ति काल के संधि कवि हैं।
  • इन्होंने राधा-कृष्ण के प्रेम को आधार बनाकर अलौकिक प्रेम की अभिव्यक्ति दी है।
  • इनकी ‘कीर्तिलता’ और ‘कीर्तिपताका’ दरबारी संस्कृति और संस्कार परंपरा के रूप में देखने को मिलती है। पदावली के पद में भक्ति और श्रृंगार है और यह पद इनकी प्रसिद्धि का आधार है।
  • आज भी तीज-त्यौहार पर इनके यह पद गाए जाते हैं।

भाषा शैली – मैथिली, अपभ्रंश और संस्कृत भाषा का प्रयोग।

अनुप्रास, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा , अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग करते हैं।

मुहावरेदार भाषा का प्रयोग, मिथिला क्षेत्र के लोक व्यवहार और सांस्कृतिक अनुष्ठान के पदों का प्रयोग किया है।

मृत्यु – 1460

गीत गाने दो मुझे Class 12

भरत राम का प्रेम ( तुलसीदास )

मलिक मुहम्मद जायसी – बारहमासा

vidyapati jivan parichay, vidyapati jivani,
vidyapati jivan parichay

विद्यापति पाठ परिचय

इस पाठ में राधा की विरह वेदना का वर्णन है। कृष्ण, राधा को छोड़कर मथुरा जा बसे हैं और एक बार उनसे मिलने गोकुल नहीं आए। राधा उनके वियोग में व्याकुल है, उनसे अब कृष्ण के बिना रहा नहीं जाता। उनकी विरह व्यथा को अलग-अलग पद के द्वारा वर्णन किया गया है।

चंद्रधर शर्मा गुलेरी class 12

कच्चा चिट्ठा कक्षा 12

विद्यापति की पदावली – सप्रसंग व्याख्या

1 सखी हे कि पूछसि  ………………………. लाखे ना मिलल एक।

प्रसंग –

कवि – विद्यापति

कविता – विद्यापति की पदावली

संदर्भ –

इस पद में नायिका अपने प्रियतम को जन्म-जन्म से देखकर भी तृप्त न होने की बात अपनी सखी को बताते हुए नायक के प्रति अपने अनन्य प्रेम को व्यक्त करती है।

व्याख्या ( विद्यापति की पदावली ) –

नायिका और नायक एक-दूसरे से लंबे समय से प्रेम करते हैं। नायिका और नायक के इस प्रेम को उसकी सखी भी जानती है। अपनी इस उत्सुकता वस वह नायिका से इसका अनुभव पूछती है, तब नायिका अपने प्रेम का वर्णन करती हुई कहती है कि – है सखी मुझसे मेरे प्रेम के अनुभव के बारे में क्या पूछती है।अर्थात में इसके आनंद और स्वरूप का वर्णन नहीं कर सकती।

प्रेम तो क्षण-क्षण रूप बदलने वाला होता है, इसलिए यह अवर्णनीय है। मैं जन्म भर प्रिय का रूप निहारती रहूं किंतु मेरी आंखे तृप्त नहीं हुई। उनके मधुर वचनों को कानों से सुनती रहती हूं, किंतु कानों को संतुष्टि नहीं हुई। न जाने कितनी रातें मैंने अपने प्रियतम के साथ व्यतीत की है,  परंतु फिर भी यह नहीं समझ सकी की मिलन का आनंद क्या होता है। लाखों-लाखों युगों तक मैंने अपने प्रियतम को हृदय में रखा, किंतु फिर भी मेरी हृदय की जलन शांत नहीं हुई।  हे सखी, मेरी बात ही क्या कितने रसिक लोगों ने इसका उपयोग किया है, किंतु इसका पूर्ण अनुभव किसी को नहीं हुआ। विद्यापति जी कहते हैं कि प्राणों को शांति प्रदान करने वाला लाखों में एक भी नहीं मिला।

अर्थात प्रेम अनुभूति की जलन ज्यों की त्यों बनी रही।

विशेष – कवि ने प्रेम अनुभूति को व्यक्तिगत अनुभव बताया है, जो अलौकिक एवं स्वयं अनुभव करने योग्य है।

काव्य सौंदर्य –

  • नायिका की विरह वेदना का वर्णन है
  • श्रृंगार रस के संयोग पक्ष का वर्णन है
  • मैथिली भाषा है
  • माधुर्य गुण विद्यमान है
  • अनुप्रास , पुनरुक्ति प्रकाश , यमक , विरोधाभास , अतिशयोक्ति अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
  • छंद पद है

बनारस कविता व्याख्या सहित

यह दीप अकेला कविता

फणीश्वर नाथ रेणु – संवदिया

vidyapati class 12 vyakhya, class 12 vidyapati, sprsang vyakhya vidyapati
vidyapati class 12 vyakhya

2 कुसुमति कानन  ………….. लखीमादेइ रमान। ।

प्रसंग –

कवि – विद्यापति

कविता – विद्यापति की पदावली

संदर्भ –

इसमें नायिका की व्यवस्था का वर्णन है, वह विरह में दिन-प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है।

व्याख्या –

राधा की सखी कृष्ण के सामने राधा की विरह अवस्था का वर्णन करते हुए कहती है कि कमल के समान रूपवती राधा खिले हुए फूलों को देख कर अपनी आंखें बंद कर लेती है। अर्थात यह मिलन के प्रतीक है जो अब विरह में उसे दुख पहुंचा रहे हैं। हे माधव हमारी बात सुनो तुम्हारे प्रेम को याद करके वह बहुत दुर्बल कमजोर हो गई है। यदि वह धरती पर बैठ जाती है तो उससे उठा भी नहीं जाता, वह अपनी व्याकुल दृष्टि से चारों दिशाओं में देखती रहती है कि शायद तुम आ जाओ और निराश होने लग जाती है। तुम्हारे विरह में वह क्षण – क्षण इतनी दुर्बल होती जा रही है, जैसे चौदस का चांद।

विद्यापति राजा शिव सिंह के आश्रय कवि थे।

अतः वे उनकी प्रशंसा में कहते हैं कि राजा शिव सिंह विरह के प्रभाव को जानते हैं। अतः वह अपनी पत्नी लखीमा देवी के साथ रमण करते हैं।

काव्य सौंदर्य –

  • नायिका की विरह वेदना का सुंदर चित्रण है
  • भाषा – मैथिली
  • रस – वियोग श्रृंगार
  • धरनी धरि धनि’ में अनुप्रास अलंकार है
  • ‘गुनि गुनि’, ‘छन छन’ में वीप्सा अलंकार है
  • विरह का अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन है
  • गुण माधुर्य है
  • शैली – चित्रात्मक है
  • भाषा – सरल व सरस है

प्रेमघन की छाया स्मृति

विष्णु खरे

विद्यापति की पदावली – काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए

1 जनम अबधि हम  ……….. पथ परस गेल। ।

भाव सौंदर्य –

विद्यापति नायिका के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि सच्चे प्रेम में कभी भी तृप्ति नहीं मिलती। नायिका की सखी के पूछे जाने पर नायिका उसे बताती है कि वह जन्म जन्मांतर से अपने प्रेमी को निहारती चली आ रही है। परंतु अभी तक उसके नेत्रों को उसे देखने की इच्छा है, वह अपने प्रियतम के मीठे बोलो को सुनती आ रही है, फिर भी वह उसके लिए नवीन है।

अर्थात वह कहना चाहती है कि, सच्चे प्रेम में मिलन के बाद भी अतृप्ति बनी रहती है।

काव्य सौंदर्य –

  • कवि – विद्यापति
  • कविता – विद्यापति की पदावली
  • छंद कविता – तुकांत
  • गुण – माधुर्य
  • भाषा – मैथिली
  • रस – वियोग श्रृंगार
  • ‘ स्रवनहि सुनल स्रुति’  व  ‘पथ परस’ में अनुप्रास अलंकार है
  • शैली – चित्रात्मकत्मक, बिम्बात्मक
  • प्रेम के उदात रूप का वर्णन है।
  • भाषा में रसात्मकता है।

जयशंकर प्रसाद ( अंतरा भाग 2 )

रघुवीर सहाय बसन्त आया कविता

असगर वजाहत अन्तरा भाग 2

vidyapati class 12 kavya saundrya, class 12 vidyapati, cbse class 12 vidyapati ke pad vyakhay,
vidyapati class 12 kavya saundrya

विद्यापति की पदावली – महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

vidyapati class 12 question answer, parshan uttar class 12 vidyapati ke pad, vidyapati path ka prshan uttar
vidyapati class 12 question answer

सूरदास की झोपड़ी

दूसरा देवदास ममता कालिया

प्रश्न – कवि ‘नयन न तीरपित भेल’  के माध्यम से विरहिणी नायिका की किस मनोदशा का व्यक्त किया गया है?

उत्तर – कवि यहां बताना चाहता है कि सच्चे प्रेम में व्यक्ति कभी तृप्त नहीं होता है। नायिका भी जन्म – जन्मांतर से नायक के साथ है , फिर भी वह उससे एक क्षण के लिए कभी अलग नहीं होना चाहती है, और यही प्रेम का आदर्श रूप भी है। प्रेम हमेशा नवीन रहता है, उससे तृप्त होना संभव नहीं है यही नायिका की भी मनोदशा है।

प्रश्न – सेह पिरित अनुराग बरखानिअ बरवानिअ तिल-तिल नूतन होए। से कवि का क्या आशय है ?

उत्तर – कवि का आशय यही है कि प्रेम स्थिर नहीं है और यह अनुभव की चीज है वर्णन कि नहीं। प्रेम में प्रतिपल नवीनता आती रहती है अर्थात प्रेम प्रतिपल और मजबूत गहरा और नवीन होता रहता है।

अतः इसका वर्णन संभव नहीं है इसे तो केवल महसूस किया जा सकता है।

प्रश्न – प्रियतमा के दुख का क्या कारण है ?

उत्तर – प्रियतमा के दुख का मुख्य कारण यह है कि उसका प्रियतम उसके निकट नहीं है। यहां राधा और कृष्ण की का संदर्भ लिया गया है प्रियतमा अर्थात राधा प्रियतम कृष्ण। कृष्ण गोकुल को छोड़कर मथुरा चले गए थे जहां उसके वास्तविक माता-पिता थे। राधा गोकुल के निकट बरसाना गांव की रहने वाली थी दोनों गांव निकट होने के कारण वह सदैव मिला करते थे उनके परिवार आपस में त्यौहार उत्सव आदि बनाया करते थे।

राधा और कृष्ण अवतारी थे जो विष्णु और लक्ष्मी के रूप माने गए हैं दोनों में अनन्य प्रेम था मथुरा चले जाने के उपरांत दोनों का मिलन नहीं हो पा रहा था।

सावन का महीना आने पर प्रियतम के निकट ना होने पर यह खुशी का महीना भी दुख का प्रतीत हो रहा था।

प्रियतमा के दुख का यही मूल कारण है।

प्रश्न – नायिका के प्राण तृप्त ना हो पाने का कारण अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – वैसे तो राधा – कृष्ण का प्रेम संबंध जन्म जन्मांतर का है। किंतु अवतारी पुरुष होने के नाते वह पृथ्वी पर एक सामान्य पुरुष की भांति जीवन यापन कर रहे थे। प्रेम निश्चल और निस्वार्थ होता है वह अपनी और सदैव आकर्षित करता रहता है।

प्रेम के वशीभूत जो व्यक्ति हो जाता है वह प्रेम का वीरा सहन नहीं कर पाता।

नायिका के प्राण तृप्त ना होने का कारण यह है कि उसका नायक उसके समक्ष नहीं है। वैसे भी प्रेम में थोड़ी सी भी विरह सहन नहीं होती।  नायक कुछ समय के लिए दूर चला जाए तो यह बिरहाग्नि जलाकर भस्म करने को आतुर रहती है। नायिका सदैव अपने स्वामी को अपने नयन के निकट देखना चाहती है , उनके मीठे मीठे शब्दों को अपने कानों में स्पर्श करना चाहती है।

जिसके कारण उसकी अतृप्ति सदैव बनी रहती है।

प्रश्न – कोयल और भौरों के कलरव का नायिका पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

उत्तर – किसी भी परेशान और निराशा में डूबे हुए व्यक्ति को कोई खुशी की बात नहीं भाती। कोई मधुर संगीत कानों को प्रिय नहीं लगता। यही स्थिति नायिका के साथ है। उसका नायक उससे काफी दूर चला गया है, जिसके कारण अब उसकी भेंट नहीं हो पाती।

वह दिन – रात विरहाग्नि में जलती रहती है।

ऐसी स्थिति में कोयल और भंवरों के कलरव से उसका मन व्यथित हो जाता है और उस ध्वनि को वह नहीं सुनना चाहती क्योंकि यह ध्वनि उसे उसके प्रियतम की याद दिलाती है। वास्तविकता यह है कि उसका प्रियतम उसके निकट नहीं है और ना ही कोई मिलने की संभावना है।

इसलिए नायिका पर इस कलरव का विपरीत प्रभाव पड़ता है।

यह भी पढ़ें

फीचर लेखन की परिभाषा, भेद और उदाहरण

मीडिया लेखन का संपूर्ण ज्ञान

संदेश लेखन की परिभाषा और उदाहरण

संवाद लेखन विषय पर उदाहरण सहित जानकारी

पटकथा लेखन उदाहरण सहित

डायरी लेखन की संपूर्ण जानकारी

सृजनात्मक लेखन की परिभाषा और उदाहरण

रचनात्मक लेखन (मीडिया और आधुनिक समाज)

विज्ञापन लेखन की परिभाषा और उदाहरण

विशेष लेखन की परिभाषा और उदाहरण

कहानी लेखन की परिभाषा और उदाहरण

स्ववृत्त लेखन की परिभाषा और उदाहरण

नाटक लेखन की परिभाषा और उदाहरण 

विभिन्न माध्यम के लिए लेखन

प्रतिवेदन लेखन की परिभाषा और उदाहरण

कार्यालयी लेखन की पूरी जानकारी

विज्ञापन लेखन परिभाषा, उदाहरण सहित पूरी जानकारी

पत्रकारिता लेखन के विभिन्न प्रकार

पत्रकारिता के विविध आयाम का संपूर्ण ज्ञान

उल्टा पिरामिड शैली की संपूर्ण जानकारी उदाहरण सहित

अभिव्यक्ति और माध्यम ( class 11 and 12 )

कार्यसूची लेखन ( अभिव्यक्ति और माध्यम ) संपूर्ण जानकारी

जनसंचार माध्यम

कहानी के तत्व की पूरी जानकारी

नाटक के तत्व की पूरी जानकारी

उपन्यास के तत्व की संपूर्ण जानकारी उदाहरण सहित

मेरी राय

विद्यापति के गीतों का व्यापक प्रभाव पूर्वांचल क्षेत्र में और विशेषकर बिहार में देखने को मिलता है। किसी भी तीज-त्यौहार तथा शुभ मांगलिक अनुष्ठानों में विद्यापति के गीतों को गाया जाता है। इनके पद आज भी लोकगीत के रूप में गाए जाते हैं।

इन्होंने राधा-कृष्ण के प्रेम को अपना विषय बनाते हुए काव्य रचना की।

यह संधि काल के कवि माने गए हैं, क्योंकि भक्ति काल उस समय चरम स्थिति पर था तथा रीतिकाल का आगमन हो चुका था। अतः इस समय में  रचना करने के कारण इन्हें संधि काल का कवि माना गया है। विद्यापति दरबारी कवि थे, अतः इनके काव्य में श्रृंगार तथा वीर रस का होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। रीतिकाल में कवियों ने अपने राजा तथा आश्रय दाताओं को प्रसन्न करने के लिए उनके वीरता तथा भक्तवत्सल आदि रूप में चित्रित किया है। जबकि विद्यापति उन कवियों से भिन्न है इन्हें रीतिमुक्त कवि कहना उचित रहेगा। रीतिमुक्त कवि वह थे जो चली आ रही परिपाटी से मुक्त थे अर्थात रीतिकाल में जो कवियों की लेखन शैली थी , उससे भिन्न अपनी लेखन शैली को रखना।

विद्यापति के गीतों में लोक – संस्कृति तथा क्षेत्रीय बोली आदि की झलक मिलती है। जो पाठकों को लोक जीवन से जोड़ती है हुई प्रतीत होती है।  आज भी ग्रामीण परिवेश में जब गीत गायन के लिए मंडली बैठती है, तो विद्यापति के पद के बिना वह बैठक अधूरी रहती है।

Leave a Comment