Vishnu Khare Class 12 kavita Ek kam or satya

विष्णु खरे की कविता 12वीं क्लास में पढ़ने को मिलती है जिसका नाम एक कम तथा सत्य है।  इस लेख में आप विष्णु खरे के जीवन परिचय को संक्षिप्त में पढ़ पाएंगे तथा कविता की व्याख्या , प्रश्न उत्तर और काव्य सौंदर्य का वार्षिक परीक्षा के लिए तैयारी कर सकेंगे।

विष्णु खरे की कविता अंतरा भाग-2

‘एक कम’ और ‘सत्य’ ( Vishnu Khare Class 12 )

विष्णु खरे मुख्य रूप से कवि थे , इनकी गिनती स्वतंत्रता के बाद के कवियों में होती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद विष्णु खरे ने जो समाज में महसूस किया , उसको लिखने का प्रयत्न किया है। आजादी से पूर्व लोगों के मन में अनेकों प्रकार की कल्पना थी। उन्हें स्वच्छंद वातावरण मिलेगा , भ्रष्टाचार मुक्त समाज मिलेगा , उनका मंगल हो सकेगा। किंतु आजादी के बाद यह मोह भंग हुआ।

भ्रष्टाचार और शासन व्यवस्था ने आजादी से पूर्व की स्थिति को यथास्थिति बनाए रखा। उनका निरंतर आजादी के बाद भी शोषण किया जा रहा था , इन सभी भ्रष्टाचार और गतिविधियों को देखकर कवि का मन ऐसी व्यवस्था से लड़ने का करता है।  किंतु वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता इस कविता में किसी प्रकार की दशा पढ़ने को मिलेगा।

जीवन परिचय ( Vishnu Khare Biography )

जन्म –

विष्णु खरे स्वातंत्र्योत्तर हिंदी साहित्य के मूर्धन्य रचनाकार हैं। इनका जन्म सन 1940 ईस्वी में छिंदवाड़ा मध्य प्रदेश में हुआ था। उन्होंने विभिन्न परिस्थितियों में अपनी शिक्षा को जारी रखा क्योंकि इनके नजदीक शिक्षा का उचित प्रबंध नहीं था।

शिक्षा –

कठिनाइयों का सामना करते हुए उन्होंने इंदौर से 1963 में अंग्रेजी साहित्य में MA किया।

कार्य –

  • अध्यापन कार्य – 1963 – 1975 तक मध्य प्रदेश तथा दिल्ली के महाविद्यालयों में अध्यापन से जुड़े।
  • लेखन कार्य – औपचारिक रूप से लेखन का आरंभ 1956 में हुआ। उन्होंने विदेशी कविताओं का हिंदी में तथा हिंदी अंग्रेजी अनुवाद अधिक किया।
  • संपादन कार्य 1962 – 63 दैनिक इंदौर समाचार के उपसंपादक रहे।
  • 1966-67  में लघु पत्रिका व्यास का संपादन किया।
  • 1976 – 84 तक साहित्य अकादमी में उप सचिव पद पर आसीन रहे।
  • 1985 से नवभारत टाइम्स में प्रभारी कार्यकारी संपादक के पद पर कार्य किया।
  • 1993 में जयपुर नवभारत टाइम्स के संपादक के रूप में कार्य किया
  • इसके बाद जवाहरलाल नेहरू स्मारक संग्रहालय तथा पुस्तकालय में 2 वर्ष वरिष्ठ नेता रहे।
  • तबसे वे स्वतंत्र लेखन एवं अनुवाद कार्य में रत हैं।

प्रकाशन कार्य –

खरे जी को विभिन्न भाषाओं का ज्ञान था इसलिए उन्होंने ट्रांसलेशन का कार्य बखूबी किया पहला प्रकाशन टी एस इलियट का अनुवाद मरू प्रदेश और अन्य कविताएं। एक समीक्षा पुस्तक आलोचना की पहली किताब 1983 में प्रकाशित हुई।

रचनाएं –

विष्णु खरे की पहचान कविता के साथ-साथ अनुवादक रूप में रही है। इनके प्रमुख ग्रंथ है –

  1. खुद अपनी आंख से
  2. सबकी आवाज के पर्दे में
  3. पिछला बाकी
  4. काल और अवधि के दरमियान।

साहित्यिक विशेषताएं –

उन्होंने समाज में बिखरी बुराइयों की ओर संकेत करते हुए उसे दूर करने का प्रयत्न किया जिसमें अकेला स्वयं कवि लाचार है।  विष्णु खरे के साहित्य में आधुनिक जीवन एवं उनसे जुड़ी समस्याएं देखने को मिलती है। वे अपने काव्य द्वारा अमानवीय परिस्थितियों के विरुद्ध खड़े होकर उसे नैतिक स्वर प्रदान करते हैं। उनके साहित्य से सामाजिक युगीन समस्या देखने को मिलती है। उनका काव्य स्वतंत्रता के पश्चात भारत का दर्पण है , जिसमें देश समाज के प्रगति दिखाई गई है।

भाषा शैली –

खरे जी का संपूर्ण साहित्य अध्ययन करने से स्पष्ट होता है कि साहित्य के अनुरूप उन्होंने भाषा का प्रयोग किया है क्योंकि वह अनेक भाषाओं के जानकार थे अतः उन्होंने भाषा के भाव को लिखने का प्रयत्न किया है। उनकी भाषा सीधी-सादी एवं गंभीर भावों को एक साथ समेटे हुए हैं। इनकी भाषा में मुहावरों का काव्यात्मक प्रयोग हुआ है।

पुरस्कार सम्मान

  • फिनलैंड का राष्ट्रीय सम्मान नाइट ऑफ द ऑर्डर ऑफ द हाइट रोज
  • रघुवीर सहाय सम्मान
  • शिखर सम्मान
  • हिंदी अकादमी दिल्ली का साहित्य सम्मान
  • मैथिलीशरण गुप्त सम्मान

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कविता ‘ एक कम ‘ पाठ का सार

इस कविता में विष्णु खरे ने स्वतंत्रता के बाद के माहौल पर प्रकाश डाला है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वह स्थिति नहीं रही जो स्वतंत्रता से पूर्व थी। लोगों के बीच देश भावना का लोप होता जा रहा था। स्वतंत्रता के बाद लोग इमानदारी राष्ट्रीय भावना से दूर हो गए और उनका स्थान भ्रष्टाचार और बेईमानी ने ले लिया।

विभिन्न तरीकों को अपनाकर लोग अमीर हो गए। इस अमीरी को प्राप्त करने के लिए उन्होंने भ्रष्टाचार का सहारा लिया।  जिन लोगों ने इन तरीकों को नहीं अपनाया वे अपनी रोजममर्ष की चीजों के लिए भी दूसरों के सामने हाथ फैलाने को मजबूर है।

एक कम कविता की सप्रसंग व्याख्या

तुम्हारे सामने बिल्कुल ………………………………..निश्चिंत रह सकते हो।

प्रसंग –

कवि – विष्णु खरे

कविता – एक कम

संदर्भ –

कवि इस बदलते हुए माहौल में ईमानदार व्यक्ति का साथ देने में अपने आप को असमर्थ पाता है। जिसके कारण वह उन लोगों के प्रति दया भाव रखता है जिन्होंने अपने ईमान को कुछ पैसों के लिए नहीं बेचा।

व्याख्या –

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि बेईमान और भ्रष्टाचारियों के बीच जी रहे ईमानदार व्यक्ति के प्रति सहानुभूति प्रकट करता है। वह कहता है कि मैंने तुम्हारे सामने अपने आत्मसम्मान को खो दिया दिया है। वह इमानदार व्यक्ति की मदद नहीं कर पा रहा है , इस बात के लिए उसे शर्म आनी चाहिए।  किंतु उसने उस शर्म को भी छोड़ दिया है। उसने सारी इच्छाएं और आकांक्षाओं को भी छोड़ दिया है।

अब वह किसी से मुलाकात भी नहीं करना चाहता , कवि ईमानदार व्यक्ति का विरोधी मुकाबला करने वाला या उनका हिस्सा बांटने वाला नहीं बनना चाहता। इसका अर्थ है कि उसके भीतर न तो धन कमाने की चाहत है और ना ही उन्नति के रास्ते पर जाना चाहता है।

कवि भिखारी अर्थात ईमानदार व्यक्ति की राह में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं करना चाहता। इसलिए ईमानदार व्यक्ति उस से निश्चिंत रह सकता है।

विशेष –

  • आजादी के बाद की स्थिति से मोहभंग हुआ है।
  • ईमानदार और भ्रष्टाचारियों के बीच के अंतर को दिखाया गया है।
  • खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है
  • व्यंजना शक्ति का प्रयोग हुआ है
  • नंगा निर्लज  में अनुप्रास अलंकार है।
  • शब्द चयन सटीक है
  • इस कविता में प्रतीकात्मकता का प्रयोग हुआ है
  • लाक्षणिक विशेषण का प्रयोग हुआ है
  • छंद मुक्त कविता है।

काव्य सौंदर्य

कि अब जब कोई  …………………………. बच्चा खड़ा है। 

भाव सौंदर्य –

इन पंक्तियों के माध्यम से कवि बता रहा है कि , जिन लोगों ने स्वतंत्रता के पश्चात झूठ , छल-कपट या बेईमानी का रास्ता अपना लिया वे अमीर बन गए।  जो ईमानदार थे , वह गरीब रह गए और इस माहौल में दूसरों के आगे हाथ फैलाने को विवश हो गए हैं। जब कोई चाय या पच्चीस पैसे के लिए हाथ फैलाता है , तो कवि यह जान लेता है कि वह कोई ईमानदार आदमी , औरत या बच्चा है। उसने बेईमानी का रास्ता नहीं अपनाया।

शिल्प सौंदर्य –

  • कवि –  विष्णु खरे
  • कविता का नाम –  एक कम
  • भाषा – खड़ी बोली
  • शैली –  भावनात्मक
  • रस  – शांत
  • अलंकार  – पचीस पैसे अनुप्रास अलंकार
  • मुहावरा  –  हाथ फैलाना
  • शब्द शक्ति –  व्यंजना
  • शब्द चयन  – लाक्षणिकता प्रधान
  • छंद कविता  –  अतुकांत
  • गुण  – माधुर्य।

महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न –  हाथ फैलाने वाले व्यक्ति को कवि ने ईमानदार क्यों कहा ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – हाथ फैलाने वाले को कवि ने ईमानदार इसलिए कहा है क्योंकि ईमानदार होने के कारण उसने भ्रष्टाचार और बेईमानी का सहारा नहीं लिया ,  जिसके कारण वह गरीब रह गया। यदि वह भ्रष्टाचारी होता तो , वह भी अमीर बन जाता और उसे किसी के आगे हाथ फैलाने और भीख मांगने की जरूरत नहीं पड़ती। यह सजा उसे इसलिए मिली क्योंकि वह ईमानदार था।

प्रश्न – कवि ने स्वयं को लाचार , कमजोर , धोखेबाज क्यों कहा ?

उत्तर – कभी ने स्वयं को कमजोर , लाचार , धोखेबाज इसलिए कहा क्योंकि वह चाह कर भी इन लोगों की सहायता नहीं कर पा रहा है। कवी ऐसे भ्रष्ट और कामचोरी के वातावरण में अपने को असमर्थ महसूस कर रहा है। वह ईमानदार लोगों की सहायता तो नहीं कर पा रहा है , लेकिन वह उनकी राह में बाधा भी नहीं बनना चाहता।

कविता ‘ सत्य ‘

सप्रसंग व्याख्या

कभी दिखता है ……………………वह नहीं ठिठके। 

प्रसंग –

कवि – विष्णु खरे

कविता – सत्य

संदर्भ –

इस कविता में कवि ने महाभारत के पौराणिक संदर्भों तथा पात्रों के द्वारा जीवन में सत्य की महत्ता को स्पष्ट किया है।

व्याख्या –

इन पंक्तियों में कवी स्पष्ट करता है कि , सत्य का साथ देने पर व्यक्ति की क्या दशा होती है। विदुर ने पांडवों के साथ हुए अन्याय का विरोध नहीं किया था , इसलिए जब युधिष्ठिर उनसे मिलने जाते हैं तो वे उनसे मुंह छिपाकर जंगल में भाग जाते हैं। इस प्रकार सत्य कभी तो स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है और कभी हमारी आंखों से दूर चला जाता है या छिप जाता है। सत्य को जानने वाला सत्य को पुकारता ही रह जाता है। जैसे कि युधिष्ठिर के बार-बार पुकारने पर विदुर नहीं रुके थे। युधिष्ठिर बार-बार उन्हें कह रहा था कि उनका सेवक कुंती का पुत्र युधिष्ठिर है , उसकी बात तो सुन लीजिए।

परंतु वे रुकना तो दूर क्षण भर के लिए ठिठके कर भी उसकी ओर नहीं देखते हैं। अर्थात यह सत्य जानना जाता है कि हम उसे वास्तव में जानना भी चाहते हैं या नहीं वह हमारी परीक्षा लेता है।

विशेष –

  • सत्य का पालन करने वाला व्यक्ति यदि और सत्य और अन्याय का विरोध नहीं करता तो अपना मुंह छुपाए फिरता है।
  • खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है
  • मुक्तक छंद है
  • भाषा अत्यंत सरल व सहज है
  • सत्य का मानवीकरण किया गया है
  • बार-बार में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है
  • संवाद शैली के कारण रोचकता बड़ी है
  • दुहाई देना मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।

काव्य सौंदर्य

हम कह नहीं ……………………. समाया या नहीं। 

भाव सौंदर्य –

इन पंक्तियों के माध्यम से कवि सत्य के बारे में बताना चाहता है , वह कहता है कि जब सत्य के भीतर से प्रकाश जैसा हमारे पास आता है तो हम कह नहीं सकते कि वह हमारे भीतर गया या नहीं। क्योंकि ना तो हमारे भीतर कुछ हलचल हुई ना कंपन हुआ और ना ही कोई विशेष प्रकार की ऊर्जा को महसूस किया। इसका अर्थ यह है कि सत्य का प्रकाश हमें , दिखाई नहीं देता। सत्य की पहचान आत्मा के द्वारा की जाती है। यह केवल अनुभव का विषय है।

शिल्प सौंदर्य –

  • कवि –   विष्णु खरे
  • कविता  –  सत्य
  • भाषा  –  खड़ी बोली
  • रस –  शांत
  • छंद  –  मुक्तक छंद
  • अलंकार –   ना तो हमने कोई दृष्टांत अलंकार
  • सत्य का मानवीकरण किया गया है
  • शब्द शक्ति –  व्यंजना
  • शब्द चयन – लाक्षणिकता प्रधान
  • छंद –  कविता और तुकांत
  • गुण – माधुर्य
  • शब्दावली –  संस्कृत निष्ठ तत्सम शब्दावली
  • सार – सत्य चाहे हमें दृष्टि से दिखाई ना दे परंतु सत्य का प्रकाश हमारी अंतरात्मा के द्वारा अनुभव किया जा सकता है।

महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न – सत्य की पहचान हम कैसे कर सकते हैं ? कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए

उत्तर – सत्य की पहचान केवल आत्मा के द्वारा की जा सकती है। सत्य के प्रति सदा ही संशय रहा है , क्योंकि सत्य दिखाई नहीं देता , बल्कि यह केवल महसूस किया जा सकता है। इसे पहचानने के लिए आत्मा को पवित्र और इमानदार होना आवश्यक है।  तभी हम अपनी आत्मा में इसे अनुभव कर सकते हैं।

प्रश्न – सत्य का दिखना और ओझल होना से कवि का क्या तात्पर्य है ?

उत्तर – सत्य का दिखना और ओझल होना से कवी का तात्पर्य है कि , कभी व्यक्ति को अभ्यास होता है कि सत्य उसके सामने है लेकिन अगले ही क्षण वो आंखों से ओझल हो जाता है। आज के समाज में सत्य का कोई निश्चित रूप , रंग , आकार व पहचान नहीं है। वह केवल महसूस किया जा सकता है।  वर्तमान समय में तीव्र गति से बदलते हुए मानवीय संबंधों में परिवर्तनों के कारण सत्य को पहचानना और पकड़ना कठिन हो जाता है। ऐसे में सत्य की कोई सास्वत पहचान नहीं बन पाई है जिससे उसे पहचान कर पकड़ा जा सके।

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