प्रस्तुत लेख के माध्यम से आप रस की विस्तृत जानकारी हासिल कर पाएंगे। इस लेख में रस की परिभाषा उदाहरण भेद अथवा प्रकृति पर विशेष रूप से उल्लेख किया गया है।यह लेख विद्यालय, विश्वविद्यालय अथवा प्रतियोगी परीक्षाओं के अनुरूप तैयार किया गया है। यह सभी स्तर के विद्यार्थियों के लिए लाभकारी सिद्ध होगी। जिसमें रस का विस्तृत अथवा सटीक ब्यौरा दिया गया है। यह लेख रस के पूर्ण अवलोकन में सहायक सिद्ध होगी। इस लेख को आप अंत तक पढ़ें जिसके माध्यम से आप 11 रस की सटीक जानकारी उदाहरण सहित प्राप्त करेंगे।
रस क्या है – अर्थ और परिभाषा
रस का सामान्य अर्थ आनंद है। जब व्यक्ति को रस की प्राप्ति होती है तो वह आनंद की चरम सीमा पर होता है। अनेक साहित्यकारों का मानना है कि रस अलौकिक है। रस को ग्रहण करने के लिए साहित्यकारों ने पाठक अथवा श्रोता को सहृदय होना अनिवार्य माना है। रस या आनंद उसी व्यक्ति को प्राप्त हो सकता है जो, रस ग्रहण करने की इच्छा शक्ति रखता हो।सामान्य अर्थ में काव्य के पढ़ने अथवा सुनने से जो भाव व्यक्ति विशेष के मन में जागृत होते हैं, उसी भाव को रस माना गया है।रस की उत्पत्ति व्यक्ति विशेष के मन में होती है यह लौकिक या भौतिक नहीं है। रस की प्राप्ति उसे ही होती है जो हृदय की सत्वोद्रेक-दशा को प्राप्त कर लेता है।
आधुनिक साहित्य में रस को काव्य का प्राण तत्व माना गया है। साहित्य की रचना किसी भाव की अनुभूति कराने के लिए की जाती है। भाव को ग्रहण करना रस के माध्यम से ही संभव है।प्राचीन आचार्यों ने रस को अलौकिक मानते हुए इसे ब्रह्मानंद सहोदर माना है। अभिनव गुप्त ने भी नाट्यशास्त्र में विभिन्न उदाहरण प्रस्तुत करते हुए रस को अलौकिक माना है।
आधुनिक विद्वानों ने रस को अलौकिक मानने से इनकार किया है। इन आचार्यों का स्पष्ट मानना है कि भौतिक जगत में कितने ही ऐसे सुंदर दृश्य प्रत्यक्ष मौजूद हैं। जिन्हें देखकर आनंद अथवा रस की प्राप्ति होती है। इसलिए पूर्ण रूप से रस को अलौकिक बताना गलत है।
रस के भेद
रस की संख्या को लेकर दो पक्ष है एक पक्ष रस की संख्या 9 मानता है दूसरा पक्ष 11 –
रस | स्थायी भाव |
1 शृंगार रस | रति, प्रेम |
2 हास्य रस | हास |
3 करुण रस | शोक |
4 वीर रस | उत्साह |
5 रौद्र रस | क्रोध |
6 भयानक रस | भय |
7 वीभत्स रस | जुगुप्सा, घृणा |
8 अद्भुत रस | विस्मय, आश्चर्य |
9 शांत रस | शम, निर्वेद |
10 वात्सल्य रस | वात्सल्य प्रेम |
11 भक्ति रस | रति अनुराग |
विद्वानों में वात्सल्य रस और भक्ति रस को लेकर मतभेद है। जबकि इनके पक्षधर मजबूती से अपना पक्ष रखते हैं। वात्सल्य और भक्ति के द्वारा जो रस प्राप्त होता है वह अलौकिक है अर्थात उनके तथ्य मजबूती से रखे गए हैं अतः इन्हें स्वीकार्य योग्य माना गया है।
रस के अंग / रस के अवयव का विवेचन
भरतमुनि के अनुसार रस के सर्वमान्य चार अंग है –
१ स्थयी भाव
२ विभाव
३ अनुभाव
४ संचारी/व्यभिचारी
“तत्र विभावानुभावव्यभिचारी संयोगाद्र-निष्पत्ति” – (भरत मुनि)
उत्त्पत्तिवाद या उपचयवाद – (लोल्लट)
अनुकृतिवाद या अनुमितिवाद – (शंकुक)
भुक्तिवाद और साधारणीकरण / ब्रह्मानन्द सहोदर – (भटनायक)
अभिव्यक्तिवाद – (अभिनव गुप्त)
इसके माध्यम से व्यक्ति के हृदय में रस की अनुभूति होती है। इन सभी अंगो का विस्तार से उल्लेख निम्नलिखित है –
1 स्थायी भाव
स्थायी भाव को रस का आधार माना गया है, यह सहृदयों में संस्कार रूप से विद्यमान होता है। स्थायी भाव अपने अंदर सभी भावों को समा लेने की क्षमता रखता है, जिसके कारण रस की उत्पत्ति होती है। यही कारण है कि इसे प्रधान भाव भी स्वीकार किया गया है। स्थायी भाव की संख्या रस के अनुरूप 11 स्वीकार की गई है। यह भाव आदि से अंत तक किसी भी साहित्य अथवा काव्य में मौजूद रहते हैं। अंत में रस की परिणीति इन्ही भावों के माध्यम से होती है।
विद्वानों ने स्थायी भाव को आस्वाद(रसास्वाद) का अंकुर/ बीज माना है। इन्हीं स्थायी भावों के माध्यम से वृक्ष रूप में रस की निष्पत्ति होती है।
पाठक पूरे काव्य अथवा प्रसंग को पढता है , किंतु उनमें से उन भावों को ही ग्रहण करता है जो उसके हृदय को प्रसन्न/ आनंदित करते हैं। अतः काव्यानंद का आधार सौंदर्य अथवा उदात भाव है। यही कारण है कि आलंबन, उद्दीपन, अनुभाव, संचारी भाव, आदि स्थायी भाव के साथ उदात अथवा सुंदर रूप में प्रकट होते हैं।
2 विभाव
विभाव के दो भेद हैं – १ आलंबन, २ उद्दीपन। विभाव के माध्यम से ही स्थायी भाव जागृत होता है। भरतमुनि के अनुसार स्थायी भाव को प्रकट करना ही विभाव का मूल कार्य है।
१ आलंबन – वह मूल विषय जिसके माध्यम से स्थायी भाव जागृत होता है। जैसे – सीता स्वयंवर है, राम धनुष तोड़ रहे हैं और सीता वरमाला हाथों में लिए खड़ी है। इस प्रसंग में राम और सीता आलंबन होंगे। यह मूल विषय है जिसके माध्यम से स्थाई भाव जागृत होगा।
२ उद्दीपन – यह भाव आलंबन में सहायक होती है। यह वातावरण परिस्थिति आदि को प्रदर्शित करती है, जिसके माध्यम से स्थायी भाव जागृत होता है। जैसे – सीता के स्वयंवर में राम धनुष तोड़ रहे हैं, सीता हाथों में वरमाला लिए खड़ी है यह आलंबन होंगे। साथ ही उद्दीपन रूप में दरबारियों का आश्चर्यचकित रह जाना, लोगों द्वारा जयघोष करना, अपने लोगों के मुख पर मुस्कान यह सभी दृश्य उद्दीपन के रूप में कार्य करती है।वस्तुतः विभाव को भी स्थायी भाव के रूप में ही समझना चाहिए। क्योंकि यह पाठक के मन में स्थायी भाव को ही जागृत करते हैं।
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3 अनुभाव
अनुभाव दो शब्दों के मेल से बना है अनु+भाव। अनु का सामान्य अर्थ होता है पीछे, अर्थात वह भाव जो बाद में प्रकट हो।
“अनु पश्चात भाव उत्त्पति येषाम “
अनुभाव शरीर की चेष्टाओं से संबंधित है। भाव को ग्रहण करते समय शरीर में कई प्रकार की क्रियाएं उत्पन्न होती है। उसके अनुभव को ही अनुभाव माना गया है।किसी काव्य / साहित्य या अन्य विषयों के माध्यम से हृदय के उद्गार जो शरीर के माध्यम से प्रकाशित होते हैं , उत्पन्न होते हैं उन्हें ही अनुभाव माना जाता है।जैसे –
- हास्य दृश्य को देखकर मुख पर चमक उत्पन्न होती है हंसी उत्पन्न होती है।
- किसी दीन – दुखी को देखकर हृदय द्रवित होता है, और अश्रु बहने लगते हैं। यह सभी अवस्थाएं अनुभाव की अवस्थाएं हैं।
भरतमुनि के अनुसार आंगिक, वाचिक, सात्विक रूप में अनुभव उत्पन्न होते हैं।
१ आंगिक – इस क्रिया के माध्यम से शरीर में उत्पन्न हुई चेस्टाएं समाहित की जाती है। जैसे – किसी भयंकर दृश्य को देखकर डर जाना, सामने काल को देखकर भयभीत हो जाना, डर के मारे पसीने से तरबतर हो जाना, घबराकर बेशुद्ध हो जाना, अपनी रक्षा के लिए शारीरिक प्रयत्न करना। आदि अनेक प्रकार की क्रियाएं जो शरीर के माध्यम से संभव है वह सब आंगिक कहलाती हैं।
२ वाचिक – मुख भी शरीर का एक अभिन्न अंग है। मुख के द्वारा बोले गए शब्द भी कुछ विद्वान आंगिक के अंतर्गत मानते हैं। किंतु सूक्ष्म अध्ययन के बाद यह निर्णय लिया गया है कि, वाचिक शरीर की भांति ही अपने भाव बोलकर प्रकट करने की क्षमता रखता है। जो भाव शरीर के भाव-भंगिमाओं के द्वारा संभव नहीं है, वह वाचिक के माध्यम से संभव है। अतः वाचिक को आंगिक क्रियाओं से भिन्न मानना चाहिए।
३ सात्विक – सात्विक अनुभाव को भरतमुनि ने मानसिक अनुभव भी माना है। किसी काव्य/साहित्य या अन्य विषय के माध्यम से व्यक्ति विशेष में जो मानसिक भाव उत्पन्न होते हैं वह सात्विक अनुभाव कहलाते हैं। आधुनिक काव्य में अनुभावों की संख्या 8 स्वीकार की गई है – १ स्तंभ, २ स्वेद, ३ रोमांस, ४ अश्रु, ५ प्रलय, ६ कम्पन, ७ वेपथु, ८ वैवर्ण्य।
भरतमुनि ने 49 भावों को बताया है जिसमें – 8 स्थाई भाव, 33 संचारी भाव, तथा 8 सात्विक भाव है। कुछ विद्वानों ने आहार्य को भी अनुभाव माना है
४ आहार्य – आहार्य का सीधा संबंध वेशभूषा अथवा परिधान से है। प्राचीन नाटक में इसका विशेष योगदान था। किसी भी व्यक्ति को उसके वेशभूषा अथवा परिधान के आधार पर प्रदर्शित किया जाता था। वेशभूषा अथवा परिधान भी व्यक्ति के मन मस्तिष्क पर प्रभाव डालते हैं यह अनुभाव ही है।
4 संचारी भाव / व्यभिचारी भाव
संचारी चर धातु से बना है , जिसका अर्थ है चलना अर्थात वह भाव जो मन – मस्तिष्क में चलते रहे। संचारी भावों की संख्या 33 मानी गई है –
हर्ष, विषाद, गिलानी,चिंता,लज्जा, शंका, भय, मोह, गर्व, दीनता, चपलता, उत्सुकता, उग्रता, जड़ता, आवेद, निर्वेद, लज्जा, असूया, अमर्ष, धृति, मति, श्रम, निद्रा, स्मृति, मद, अवहिता, मरण, व्याधि, अपस्मार, वितर्क, बिबोध, आलस्य, स्वप्न।
उपर्युक्त 33 संचारी भाव प्राचीन आचार्यों ने बताया, किंतु आधुनिक आचार्यों ने उसमें अपनी और संतुष्टि दर्ज कराई है। आधुनिक विद्वानों का मानना है प्राचीन आचार्यों ने –
आशा – निराशा
उदासीनता – पश्चाताप
विश्वास – दया
संतोष – संतोष
क्षमा – विनय
श्रद्धा – उत्कंठा
निंदा – तृष्णा
आदि अनेक भावों पर विचार नहीं किया गया।
रस के प्रकार, अंग विवेचन
रस की संख्या विद्वानों ने सर्वसम्मति से 9 स्वीकार की है, किंतु कुछ विद्वान भक्ति रस और वात्सल्य रस को भी स्वीकार करते हैं। अतः साहित्य में 11 रस माना गया है। स्थायी भाव भी एक ग्यारह स्वीकार किया गया है।
1 श्रृंगार रस
मानव सौंदर्य तथा श्रृंगार का प्रेमी होता है। यही कारण है कि वह सभी वस्तुओं को सुसज्जित व अलंकृत देखना चाहता है। शृंगार रस का स्थायी भाव रति/दांपत्य प्रेम है। श्रृंगार रस को रसराज भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत पति पत्नी तथा प्रेमी प्रेमिका के प्रेम की अभिव्यंजना परिलक्षित होती है।
उद्दीपन विभाव – नायक – नायिका, प्रेमी – प्रेमिका की चेस्टाएं,
अनुभाव – अनुराग, रोमांच, आलिंगन, एक टक देखना आदि
संचारी भाव – हर्ष, मोह, गर्व, लज्जा, स्मृति, स्वप्न, निद्रा, अमर्ष आदि
शृंगार रस दो प्रकार के हैं – १ संयोग श्रृंगार तथा २ वियोग श्रृंगार
संयोग श्रृंगार –
संयोग श्रृंगार वहां होता है, जहां प्रेमी – प्रेमिका, नायक – नायिका का परस्पर मिलन होता है। उनके सुखद अनुभूतियों का संचार होता है। उनके द्वारा किए गए क्रियाकलापों अथवा उनके द्वारा स्थायी भाव तथा उद्दीपन आदि के सहयोग से रति नामक स्थायी भाव जागृत होता है वहां संयोग श्रृंगार की निष्पत्ति होती है।
उदित उदयगिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग
विकसे संत सरोज जन, हरसे लोचन भृंग। ।
व्याख्या – उपर्युक्त पंक्ति में सीता स्वयंवर के विषय में है। जब सभी योद्धा धनुष को उठाने और उसे भंग करने में विफल रहे। तब गुरु आज्ञा पाकर राम धनुष की ओर जैसे बढे वहां बैठे ऋषि – मुनि, ज्ञानी देखकर प्रफुल्लित हो रहे थे। उनके बाल रूप के अनूठे छवि को यहां व्यक्त किया गया है। जिस प्रकार सूर्य शिखरों से प्रकट होते हैं, वैसे ही रघुवर प्रकट हुए, जिसको देखकर संत समाज आनंदित हो रहे हैं। जिस प्रकार भंवरा फूल को देखकर आनंदित होता है।
वियोग श्रृंगार –
कहते हैं प्रेम की शुद्धता वियोग के क्षणों में ही पता चलता है। जिस प्रकार स्वर्ण अग्नि में तप कर ही शुद्ध होता है। ठीक इसी प्रकार प्रेम भी बिरहाग्नि में तप कर शुद्ध रूप में व्यक्त होता है। वियोग श्रृंगार वहां होता है जहां नायिका परस्पर मिलन के लिए व्याकुल रहते हैं। किंतु उनके मिलन का कोई संयोग लंबी अवधि तक नहीं बन पाता, वहां वियोग श्रृंगार चरम सीमा पर होती है।
ठहर अरी, इस हृदय में लगी विरह की आग
तालवृन्त से और भी धधक उठेगी जाग। ।
व्याख्या – उपर्युक्त पंक्ति मैथिलीशरण गुप्त के उर्मिला विरह वर्णन से लिया गया है। जिसमें उर्मिला अपने पति के वियोग में उनके आने की राह देख रही है। क्योंकि वह भी श्री राम के साथ 14 वर्ष का वनवास भोगने के लिए उनके साथ गए हुए हैं। यहां उर्मिला तपस्विनी की भांति एकांत में पड़ी भूखी – प्यासी अपने प्रिय स्वामी लक्ष्मण के आने की प्रतीक्षा कर रही है।
उनकी बिरहा अग्नि इतनी तीव्र है जिसको हवा ना देने की बात कर रही है। वह अपने भूख – प्यास सभी को त्याग चुकी है। लोगों के समझाने से भी वह नहीं समझती है और स्वयं को पंखा झेलने से भी रोकती है ताकि वह बिरहा अग्नि इससे और ना बढ़ जाए।
2 हास्य रस
हास्य रस का स्थायी भाव हास है। नाम से ही स्पष्ट होता है कि यह रस वहां से होता है, जहां व्यक्ति के अंतर्मन में हास स्थायी भाव रूप में जागृत हो। अभिनय करने वाले व्यक्ति के द्वारा कुछ ऐसे क्रियाकलाप या भाव – भंगिमाओ के द्वारा मनोरंजन किया जाता है, जिसके कारण दर्शक अथवा श्रोता के मन मस्तिष्क में अनायास ही हास्य भाव जागृत होता है। वह हंसे बिना नहीं रह सकता। हास्य रस का प्रमुख उद्देश्य दर्शक तथा श्रोताओं को हंसाना तथा मनोरंजन करना है।विद्वानों ने हास्य रस के दो भेद माने हैं -१ आत्मस्थ २ परस्य
आत्मस्थ – कुछ परिस्थितियां तथा संयोग ऐसा होता है, जब व्यक्ति किसी स्मृति को याद कर स्वयं से हंसने लगता है। यह स्मृतियां पूर्व किसी अभिनय या बालक द्वारा किए गए किसी ऐसे क्रियाकलाप या भाव भंगिमाओं को देखकर अनायास ही उत्पन्न होता है। इस प्रकार की अवस्था को आत्मस्थ हास्य रस के अंतर्गत माना जाता है।
परस्य – इस रस के अंतर्गत व्यक्ति तब हंसता है, जब सामने वाले व्यक्ति के क्रियाकलाप या उसके कुछ ऐसे हरकतों को देखता है।जिसके कारण हास्य उत्पन्न होता है, वह हंसने को मजबूर होता है।
आलम्बन – हास्य के आलंबनो की कोई सीमा नहीं होती, अर्थात हास्य कभी भी प्रकट हो सकता है। यह प्रायोजित अथवा अप्रायोजित भी होते हैं।
उद्दीपन – हास्य से पूर्ण परिस्थितियां तथा उसको उत्पन्न करने की क्रियाकलाप ही उद्दीपन का विषय बनती है।
अनुभाव – अनुभाव के अंतर्गत आंखों का मूंदना, मुंह बनाना, संकेत करना, आंखें खिल उठना, हंसना, हंसते-हंसते लोटपोट हो जाना, व्यंग्य कसना, ताली पीटना, हाथ मारना, नाक – कान – गला आदि का स्पंदन। रोमांस आदि सात्विक अनुभाव के अंतर्गत आते हैं।
संचारी भाव –संचारी भाव के अंतर्गत – घृणा, हास – परिहास, स्नेह, अर्थ, मति, स्मृति, विषमय, उत्साह, अमर्ष, गर्व, जड़ता, चपलता, शंका, हर्ष आदि सभी भाव संचारी भाव के अंतर्गत गिने गए हैं।
हास्य रस के उदाहरण
पत्नी खटिया पर पड़ी व्याकुल घर के लोग।
व्याकुलता के कारण, समझ ना पाए रोग।
समझ ना पाए रोग, तब एक वैद्य बुलाया।
इसको माता निकली है, उसने यह समझाया।
यह काका कविराय सुने, मेरे भाग्य विधाता।
हमने समझी थी पत्नी, यह तो निकली माता।
3 करुण रस
करुण रस का स्थायी भाव शोक है। शोक का भाव तब जागृत होता है, जब अपने स्वजन या प्रिय जन बिछड़ जाते हैं। या उनसे मिलने की आशा हमेशा हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है। ऐसी स्थिति में करुणा हृदय में विद्यमान होकर व्यक्ति के अस्तित्व को झकझोरती है।
करुण रस और वियोग रस में सूक्ष्म भेद है – करुण रस में जहां मिलन का अवसर समाप्त हो जाता है। वही वियोग रस में मिलन की आस सदैव जागृत रहती है।
उद्दीपन विभाव –
प्रिय जन का वियोग, बंधु, विवश, पराधव, दरिद्रता, प्रिय व्यक्ति की वस्तुएं, इस्ट जन – विप्रयोग, वध, बंधन, संकट पूर्ण परिस्थितियां।
संचारी भाव –
ग्लानि, मरण, निर्वेद, स्नेह, स्मृति, घृणा, उत्कर्ष, उत्सुकता, चिंता, उन्माद, चिंता, आशा – निराशा, मोह, आवेग आदि।
अनुभाव – छटपटाना, छाती पीटना, दुखी की सहायता करना, मूर्छा, रंग उड़ना, विलाप करना, चित्कार करना, आंसू बहाना, रोना आदि ।
करुण रस एकमात्र ऐसा रस है जो पाठकों में सर्वाधिक संबंध स्थापित करने की क्षमता रखता है।
1 “राम राम कही राम कही राम राम कही राम,
तनु परिहरि रघुवर बिरह राउ गयऊ सुरधाम।”
2 “गीत गाने दो मुझे
वेदना को रोकने को।
चोट खाकर राह चलते
होश के भी होश छूटे
हाथ जो पाथेय थे ठग –
ठाकुरों ने रात लूटे
कंठ रुकता जा रहा है आ रहा है काल देखो।”
3 ” आह ! वेदना मिली विदाई !
मैंने भ्रम – वश जीवन संचित
मधुकरियो की भीख लुटाई
छलछल थे संध्या के श्रमकण
आंसू – से गिरते थे प्रतिक्षण।
मेरी यात्रा पर लेती थी
नीरवता अनंत अंगड़ाई।”
4 वीर रस
वीर रस का स्थायी भाव उत्साह है। जो व्यक्ति के भीतर उत्साह संतुलित मात्रा में विद्यमान होता है तभी वह किसी भी क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा सकता है जो उसकी वीरता को प्रदर्शित करता है। वीर रस चार प्रकार के माने गए हैं –
- युद्धवीर
- धर्मवीर
- दानवीर
- दयावीर
इन चारों भेद के अलावा व्यक्ति में कर्मवीर के गुण होने आवश्यक है। बिना कर्म से वीर हुए व्यक्ति इन सभी क्षेत्रों में वीर नहीं हो सकता।
1. युद्धवीर – युद्ध वीरता रणभूमि में सिद्ध होती है, इस को सिद्ध करने के लिए व्यक्ति को बलवान होना आवश्यक है। जो वीर युद्ध भूमि में वीरता का परिचय दें वह युद्धवीर कहलाता है। महाराणा प्रताप ने युद्ध वीरता का परिचय देते हुए, अपनी कम सेना के साथ आक्रमणकारियों को नाको चने चबाने पर मजबूर किया था। हल्दीघाटी युद्ध की मिसाल आज भी पेश की जाती है।
अर्जुन और अभिमन्यु का उदाहरण भी युद्ध वीरता के लिए पेश किया जाता है। जिन्होंने अपने बाहुबल से अधर्मियों का नाश किया था।
2. धर्मवीर – धर्मवीर वह होता है जो धर्म की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहता है। चाहे धर्म की रक्षा करते हुए उसके प्राण ही क्यों ना निकल जाए, किंतु वह धर्म का मार्ग कभी नहीं छोड़ता। दीन-दुखियों की सेवा करना, धर्मवीर की पहली निशानी होती है।
3. दानवीर – दानवीर वह होता है जो दान देने से पूर्व यह नहीं सोचता की उसके लिए कुछ बचेगा या नहीं। वह सामने वाले की विवषता को देखता है। दीन – दुखियों की सेवा करना, उनका उत्थान करना दानवीर का कर्म है।
कई ऐसे दानवीर हुए जिनका उदाहरण आज भी मिसाल के तौर पर दिया जाता है। जिसमें सर्वप्रथम दानवीर कर्ण का नाम आदर के साथ लिया जाता है। कर्ण ने दानवीरता को प्रथम मानते हुए अपने प्राण की भी चिंता नहीं की।
4 दयावीर – पुराणों में लिखा गया है दया धर्म का मूल है। जिस व्यक्ति के पास दया है, वही धर्म का निर्वाह कर सकता है।
आलम्बन – शत्रु, धार्मिक ग्रंथ, पर्व, तीर्थ स्थान, दयनीय व्यक्ति, स्वाभिमान की रक्षा के लिए प्रस्तुत व्यक्ति, अन्याय, अत्याचार का सामना करने वाला व्यक्ति, साहस, उत्साह।
उद्दीपन – शत्रु का पराक्रम अन्नदाताओं का दान धार्मिक कार्य दुखियों की सुरक्षा आदि
संचारी भाव – गर्व, उत्सुकता, मोह, हर्ष आदि।
वीर रस के उदाहरण – Veer ras examples in Hindi
1 ” उठो जवानों हम भारत के स्वाभिमान सरताज हैं
अभिमन्यु के रथ का पहिया, चक्रव्यूह की मार है।”
2 ” मैं सच कहता हूं सखे , सुकुमार मत जानो मुझे
यमराज से भी युद्ध को, प्रस्तुत सदा मानो मुझे
है औरों की बात क्या, गर्व मै करता नहीं
मामा और निज तात से भी, समर में डरता नहीं। । ”
3″ रणबीच चौकड़ी भर-भर कर , चेतक बन गया निराला था ,
राणा प्रताप के घोड़े से , पड़ गया हवा का पाला था।”
4 ” कब तक द्वन्द सम्हाला जाए,
युद्ध कहाँ तक टाला जाए ।
वंशज है महाराणा का
चल फेंक जहाँ तक भाला जाए। ।”
5 ” दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।”
6 चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण
ता ऊपर सुलतान है, मत चुकें सुलतान। ।
7 दावा द्रुमदंड पर, चीता मृगझुंड पर
भूषण वितुण्ड पर जैसे मृगराज है।
5 रौद्र रस
रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है। जिन वाक्यों या क्रियाकलापों से व्यक्ति के भीतर क्रोध का भाव जागृत हो वहां क्रोध रस की सफलता सिद्ध होती है।
डॉ आनंद प्रकाश दीक्षित का कथन है –
” रौद्र रस में क्रोध सात्विक रूप में प्रकट नहीं होता। क्रोध अनुदारता का पक्षपाती है और अन्याय गुणों का सर्वथा ग्राहक। क्रोध में मनुष्य बावला हो जाता है, किंतु उत्साह में विवेक का त्याग नहीं करता।
प्रचलित तौर पर रौद्र रस के स्थायी भाव क्रोध को, वीर रस के समान मानना ठीक नहीं रहेगा। वीर रस में जहां शत्रुओं का मर्दन किया जाता है। वही रौद्र रस में व्यक्ति क्षणिक क्रोध के वशीभूत होता है। किंतु व्यक्ति के मन में तामसिक भाव जागृत नहीं होते।
क्रोध का भाव तभी जागृत होता है जब व्यक्ति अपने स्वाभिमान की रक्षा करना चाहता है। या उसके भावनाओं को ठेस पहुंचती है। यह क्रोध कभी-कभी प्रचंड रूप धारण कर लेती है और सर्वनाश करने को आतुर होती है। क्रोध में व्यक्ति कितनी ही बार सामने वाले की या स्वयं की जीवन लीला भी समाप्त कर लेता है।
आलंबन – क्रोधोत्तेजक अनुचित कर्म तथा अनुचित अन्यायपूर्ण कर्म करने वाले व्यक्ति।
स्थायी भाव – असत्य, अन्याय, दुष्टाचार, अनुचित, अपमान, अत्याचार, शत्रुता, अनिष्टकर सामाजिक कुरीतियां आदि ।
उद्दीपन – चेष्टाओं का अनिष्टकारी होना, दुष्ट व्यक्तियों के कटु वचन, अपमान करना, अनाचार, दुराचार आदि।
अनुभाव – आंखें तरेरना, आंख लाल होना, भवें तानना, दांत पीसना, पांव पटकना, गालियां देना, अस्त्र – शस्त्र चलाना, प्रचंड रूप धारण करना, आवेग भरे वचन बोलना, क्रोध सूचक वचन, संघारक प्रवृत्ति, ललकारना, प्रहार करना, धक्के मारना, मुट्ठी खींचना, कांपना, स्वेद, निस्वास, रोमांच, स्तंभ।
संचारी भाव – घृणा, ग्लानि, गर्व, उन्माद, श्रम, ईर्ष्या, साहस, उत्साह, आवेद, अमर्ष, उग्रता, मती, स्मृति, चपलता, आशा, उत्सुकता, हर्ष आदि।
रौद्र रस के उदाहरण – Raudra ras examples in Hindi
1 भारत का भूगोल तड़पता, तड़प रहा इतिहास है।
तिनका – तिनका तड़प रहा है, तड़प रही हर सांस है।
सिसक रही है सरहद सारी, मां के छाले कहते हैं।
ढूंढ रहा हूं किन गलियों में, अर्जुन के सूत रहते हैं। ।
2 रे नृप बालक काल बस बोलत तोहि न सांभर।
धनुहि सम त्रिपुरारि द्युत बिदित सकल संसारा।
3 श्रीकृष्ण के सुन वचन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे
सब शील अपना भूलकर, करतल युगल मलने लगे
संसार देखें अब हमारे, शत्रु रण में मृत पड़े
करते हुए यह घोषणा वे हो गए उठ खड़े। ।
4 विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीत
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होय न प्रीत। ।
6 भयानक रस
भयानक रस का स्थायी भाव भय है।भय किसी भयानक दृश्य, शत्रु या काल को देखकर उत्पन्न होता है। आचार्यों ने उन्हीं स्थायी भाव को भय माना है जो व्यक्ति के मन – मस्तिष्क में लंबे समय तक विद्यमान रहे, ऐसा नहीं कि यह भय क्षणिक हो।
आलंबन – पाप या पाप कर्म, सामाजिक तथा अन्य बुराइयां, हिंसक जीव जंतु,प्रबल अन्यायकारी व्यक्ति,भयंकर अनिष्टकारी वस्तु, देवी संकट, भूत – प्रेत आदि।
उद्दीपन – आश्रय की असहाय अवस्था, आलंबन की भयंकर चेस्टाएं, निर्जीव स्थान, अपशगुन, आदि।
अनुभाव – हाथ-पांव कांपना, नेत्र विकराल होना, भागना, स्वेद, उंगली काटना, जड़ता, स्तब्धता, रोमांच, घिघि बंध जाना, मूर्छा, चित्रकार, स्वेद, विवरण, सहायता के लिए इधर-उधर देखना, शरण ढूंढना, दैन्य प्रकाशन, रुदन आदि।
संचारी भाव – शंका, आवेद, अमर्ष, स्मृति, आशंका, स्मरण, घृणा, शोक, भ्रम, ग्लानि, चिंता, दैन्य, चपलता, किंकर्तव्यविमूढ़, निराशा, आशा आदि।
भयानक रस के उदाहरण – Bhayanak ras examples
1 तीन बेर खाती थी वो तीन बेर खाती है।
2 गज की घटा न गज घटनी श्नेह साजे
भूषण भनत आयो से शिवराज को।
3 उधर गरजती सिंधु लहरियां कुटिल काल के जालों सी
चली आ रही फैन उगलती फन फैलाए व्यालों सी।
4 एक और अजगरहि लखि, एक और मृराय
विकल बटोही बीच ही, परयों मूर्छा खाए।
5 पद पाताल सीस अजधामा, अपर लोक अंग अंग विश्रामा।
भृकुटि बिलास भयंकर काला, नयन दिवाकर कच धन माला।
7 वीभत्स रस
वीभत्स रस का स्थायी भाव जुगुप्सा या घृणा है। वीभत्स घृणा के भाव को प्रकट करने वाला रस है। किसी व्यक्ति, वस्तु या ऐसे पदार्थ को देखकर जब व्यक्ति के मस्तिष्क में घृणा जैसे भाव जागृत हो वहां वीभत्स रस होता है।
वीभत्स रस को लेकर भी आचार्यों में पर्याप्त मतभेद है। कई आचार्य इसे मानसिक बताते हैं तो, कुछ इसे तामसिक। आचार्य का एक पक्ष मन द्वारा उत्पन्न घृणा को ही इस रस के अंतर्गत मानते हैं, जबकि दूसरा पक्ष किसी ऐसे दृश्य जहां रक्तपात आदि से संबंधित हो उसे देखकर जो मन में घृणा का भाव उत्पन्न होता है, उसे वीभत्स रस की श्रेणी में रखते हैं।
आलंबन – दुर्गंध में मांस, रक्त, चर्बी आदि।
उद्दीपन – मांस आदि में कीड़े पड़ना, उन से दुर्गंध उठना आदि।
अनुभाव – थूकना, मुंह फेरना, आंखें मूंदना आदि।
संचारी भाव – आवेग, व्याधि, जड़ता, मरण आदि।
कितने ही कथाकार तथा साहित्यकार हुए हैं, जिसमें सामाजिक बुराई और अत्याचार, अनाचार दिखाए गए हैं जो दर्शकों के मन में घृणा का भाव जागृत करते हैं। इसे वीभत्स रस को भी घृणा भाव के अंतर्गत माना जाता है।
वीभत्स रस के उदाहरण – Vibhats ras examples
1 सिर पर बैठ्यो काग आँख दोउ खात निकारत।
खिंचत जीभहिं स्यार अतिहि आनंद उर धारत। ।
गीध जांधि को खोदि – खोदि कै मांस उपारत।
स्वान आंगुरिन काटि – काटि कै खात विदारत। ।
2 निकल गली से तब हत्यारा
आया उसने नाम पुकारा
हाथों तौल कर चाकू मारा
छूटा लोहू का फव्वारा
कहा नहीं था उसने आख़िर हत्या होगी। ।
8 अदभुत रस
अदभुत रस का स्थाई भाव विस्मय है। विस्मय का भाव जनसामान्य में तब जागृत होता है, जब उसे सामान्य से कुछ विशेष देखने को मिलता है। कुछ ऐसा दृश्य जिसको देखकर वह कल्पना नहीं कर सकता कि, क्या यह संभव भी हो सकता है। जबकि उसी क्रियाकलाप को अन्यत्र व्यक्ति बड़े ही रोचक ढंग से कर देते हैं, तब दर्शक आश्चर्यचकित रह जाते हैं।
नट जाति द्वारा किए गए खेल जैसे – रस्सियों पर चलना, डंडे का अद्भुत प्रयोग। इन सभी क्रियाकलापों को देखकर दर्शक के मन में विस्मय का भाव जागृत होता है, यह अद्भुत रस में परिणत होता है।
साहित्य में कुछ ऐसा प्रयोग जिसको पढ़कर, पाठक के मन में विस्मय का भाव जागृत हो। उसकी उत्सुकता बढे और वह साहित्य को पूरा पढ़ने के लिए लालहित रहे। इसका परिणाम जानने के लिए , वह अंत तक जिज्ञासा पूर्वक उस साहित्य का अध्ययन करे। यह भी अद्भुत रस का एक सर्वमान्य उदाहरण है।
आलंबन – विस्मयकारी घटनाएं, वस्तुओं, व्यक्तियों तथा उनके कार्य व्यापार।
उद्दीपन – उनके अन्यान्य अद्भुत व्यापार या घटनाएं, अद्भुत परिस्थितियां।
अनुभाव – आंखें बड़ी हो जाना, एक टक देखना, ताली बजाना, स्तंभित होना, चकित रह जाना, प्रसन्न होना, रोंगटे खड़े होना, आंसू निकलना, कंपन, स्वेद, साधुवाद वचन।
संचारी भाव – उत्सुकता, जिज्ञासा, आवेग, भ्रम , जड़ता, हर्ष, मती, स्मृति, गर्व, धृति, भय, आशंका, तर्क, चिंता आदि।
अद्भुत रस के उदाहरण – Adbhut ras examples
1 लक्ष्मी थी या दुर्गा वह, स्वयं वीरता की अवतार
देख मराठे पुलकित होते,उसकी तलवारों के वार।
2 पद पाताल सीस अजयधामा, अपर लोक अंग-अंग विश्राम
भृकुटि बिलास भयंकर काला, नयन दिवाकर कच धन माला। ।
3 आली मेरे मनस्ताप से पिघला वह इस वार
रहा कराल कठोर काल सा हुआ सदय सुकुमार। ।
9 शांत रस
शांत रस का स्थायी भाव निर्वेद / वैराग्य है। इसका साधारण सा अर्थ यह है कि, जब किसी वस्तु, प्राणी अथवा किसी प्रिय जन से मोहभंग होता है वहां शांत रस की निष्पत्ति मानी जाती है।
कितने ही आचार्यों का मानना है शम ही शांत रस है। शम से हमारा अभिप्राय शमन /त्याग से है। जब व्यक्ति अपने प्रिय या आनंद वर्धक सुख – सुविधाओं का शमन करता है, वहां शांत रस की जागृति होती है। वैराग्य भी तभी जागृत होता है जब सुख-सुविधाओं और आनंद वर्धक युक्तियों का त्याग किया जाता है।
आलंबन – संसार की असारता, मृत्यु, जरा, रोग, सांसारिक प्रपंच आदि का ज्ञान, श्मशान वैराग्य आदि।
उद्दीपन – सत्संग, धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन – श्रवण, तीर्थाटन, जीवन के अनुभव आदि।
अनुभाव – संयम, स्वार्थ का त्याग, सब कुछ बांट देना, सत्संग करना, गृह त्याग, शास्त्र अध्ययन, स्वाध्याय, आत्मचिंतन, रोमांच, कम्पन, अश्रु, सात्विक अनुभाव।
संचारी भाव – घृणा, हर्ष, ग्लानि, मति, स्मृति, धृति, संतोष, आशा, विश्वास, दैन्य आदि।
प्राचीन आचार्यों ने संसार से वैराग्य भाव का जागृत होना शांत रस माना है।
किंतु आधुनिक युग के विद्वानों ने सन्यासी द्वारा एकांत में की गई साधना को भी शांत रस की अनुभूति कराने वाला माना है। इन दोनों उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि शांत रस लौकिक होते हुए अलौकिक भी है।
शांत रस के उदाहरण – Shant ras examples in Hindi
१ मन रे तन कागद का पुतला
लागै बूंद बिनसि जाय छिन में,
गरब करै क्या इतना।
२ ओ क्षणभंगुर भव राम राम।
10 वात्सल्य रस
वात्सल्य रस का स्थायी भाव वत्सल है। वत्सल को दूसरे शब्दों में कहें तो यह प्रेम है। इस के अंतर्गत पुत्र प्रेम को सर्वोपरि माना गया है। माता-पिता द्वारा किए गए अपने प्रेम को वात्सल्य रस स्वीकार किया गया है।
प्राचीन आचार्यों ने वात्सल्य रस को स्वीकृति नहीं दी थी। उन्होंने स्पष्ट रूप से नौ रस को ही स्वीकार प्रदान किया था और उन्हें मान्यता दी थी। वात्सल्य रस को मान्यता दिलाने के लिए भक्ति कालीन कवियों ने पुरजोर प्रयत्न किया और आधुनिक कवियों ने वात्सल्य रस को स्वीकृति प्रदान की।
आचार्य विश्वनाथ ने वात्सल्य रस को स्वतंत्र रूप से रस की मान्यता दी।
आलंबन – संतान, पुत्र, बालक आदि।
उद्दीपन विभाव – भोली – भाली चेस्टाएं, तुतलाना, चंचलता, नटखटपन, सुंदरता, बाल क्रीड़ा आदि।
सात्विक अनुभाव – आलिंगन, चुंबन, स्पर्श, मुग्ध होकर देखना, मीठी – मीठी बातें करना, खिलाना पिलाना, लालन – पालन, पुलकित होना, गदगद होना, दुखी होना।
संचारी भाव – हर्ष, गर्व, मोह, अभिलाषा, आशा, चपलता, आवेद, उत्साह, हास, चिंता, शंका, विस्मय, स्मरण, उदासीनता आदि।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि यह श्रृंगार रस की भांति जिस प्रकार यह रस प्रतीत होता है। उसी प्रकार इस के दो भेद भी बताए गए हैं –
१ संयोग वात्सल्य तथा २ वियोग वात्सल्य
1 ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया। ।
2 मैया कबहु बढ़ेगी चोटी
कित्ति बार मोहे दूध पिवाती भई अजहुँ हे छोटी। ।
3 मैया मैं तो चंद्र खिलौना लेहों। ।
4 मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो
बाल ग्वाल सब पीछे परिके बरबस मुख लपटाओ। ।
11 भक्ति रस
भक्ति रस आधुनिक युग की देन है। भक्ति रस को संस्कृत आचार्यों ने मान्यता नहीं दी थी। भक्ति रस को स्वतंत्र रूप से स्थापित करने का श्रेय मधुसूदन सरस्वती, रूप गोस्वामी तथा जीव गोस्वामी को दिया गया है।
भक्ति रस का स्थायी भाव रति/अनुराग/भागवत विषय आदि है। इसके अनुसार ईश्वर की भक्ति को मान्यता प्राप्त है, साथ ही किसी पूज्य व्यक्ति को भी भक्ति रस का आलंबन मान सकते हैं।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि भक्ति रस के अंतर्गत जहां ईश्वर की भक्ति को महत्वपूर्ण बताया गया है, वहीं पित्र भक्ति और गुरु भक्ति को भी इसमें मान्यता दी गई है।
उद्दीपन विभाव – भगवान या पूज्य व्यक्ति के विचारों का श्रवण, सत्संग, स्मरण, महान कार्य, कृपा, दया आदि।
अनुभाव – सेवा, कीर्तन, अर्चन, वंदना, श्रवण, गुणगान, जय – जयकार, स्तुति, वचन, कृतज्ञता प्रकट करना, प्रार्थना करना, शरणागति आदि।
सात्विक अनुभाव – हर्ष, शोक, अश्रु, रोमांच, स्वेद, कंपन आदि।
संचारी भाव – हर्ष, आशा, गर्व, स्तुति, धृति, उत्सुकता, विस्मय, उत्साह, हास्य, लज्जा, निर्वेद, भय, आशंका, विश्वास, संतोष आदि।
1 हे गोविन्द हे गोपाल , हे दया निधान
2 राम तुम्हारे इसी धाम में
नाम-रूप-गुण-लीला-लाभ। ।
3 प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी
जाकी गंध अंग-अंग समाही। ।
४ जल में कुम्भ , कुम्भ में जल है , बाहर भीतर पानी
फूटा कुम्भ , जल जलही समाया , इहे तथ्य कथ्यो ज्ञायनी।
५ यह घर है प्रेम का खाला का घर नाहीं
सीस उतारी भुई धरो फिर पैठो घर माहि। ।
६ गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द
गुरु मेरा पारब्रह्म ,गुरु गोविन्द। ।
७ बाला में बैरागन होंगी ,
जिन मेरे श्याम रीझे सो ही भेष धरूंगी। ।
महत्वपूर्ण प्रश्न –
प्रश्न – रसराज किसे कहा गया है ?
उत्तर – श्रृंगार रस को रसराज कहा गया है।
प्रश्न – रस की उत्पत्ति का क्या आधार है ?
उत्तर – रस की उत्पत्ति विभाव , अनुभाव , संचारी भाव आदि के मिलने से होती है।
प्रश्न – संचारी भाव की संख्या कितनी है ?
उत्तर – संचारी भाव की संख्या 33 मानी गई है।
प्रश्न – सर्वग्राही रस किसे बताया गया है ?
उत्तर – करुण रस को।
प्रश्न – श्रृंगार रस तथा वात्सल्य रस में क्या भिन्नता है ?
उत्तर – शृंगार रस दांपत्य प्रेम पर आधारित है , वही वात्सल्य रस पुत्र प्रेम पर आधारित।
रस MCQ
1 – रस कितने प्रकार के हैं ?
(क) 5 | (ख) 9 |
(ग) 8 | (घ) 7 |
उत्तर – 9
2 – स्थाई भाव की संख्या कितनी है ?
(क) 13 | (ख) 8 |
(ग) 6 | (घ) 9 |
उत्तर – 9
3 – अति मलीन वृषभानुकुमारी।
अधोमुख रहती ऊरध नहिं चित्तवत्ति ज्यों गथ हारे थकित जुआरी
छूटे चिहुर बदन कुम्हिलाने ज्योँ नलिनी हिमकर की मारी। ।
इन पंक्तियों में कौन सा रस है ?
(क) संयोग रस | (ख) करुण रस |
(ग) हास्य रस | (घ) विप्रलंभ श्रृंगार |
उत्तर – विप्रलंभ श्रृंगार
4 – किस रस को रसराज कहा जाता है ?
(क) करुण रस | (ख) हास्य रस |
(ग) शृंगार रस | (घ) शांत रस |
उत्तर – शृंगार रस
5 माधुर्य गुण का किस रस में प्रयोग होता है ?
(क) शृंगार रस | (ख) वीर रस |
(ग) भयानक रस | (घ) करुण रस |
उत्तर – शृंगार रस
6 – श्रृंगार रस का स्थाई भाव क्या है ?
(क) भय | (ख) हास |
(ग) घृणा | (घ) रति |
उत्तर – रति, प्रेम
7 रसोत्पत्ति में आश्रय की चेष्टाएँ क्या कही जाती है ?
(क) आलंबन | (ख) विभाव |
(ग) उद्दीपन | (घ) अनुभाव |
उत्तर – अनुभाव
8 – सर्वश्रेष्ठ रस किसे माना जाता है ?
(क) वीर रस | (ख) शृंगार रस |
(ग) करुण रस | (घ) रौद्र रस |
उत्तर – शृंगार रस
9 – हिंदी साहित्य का नौवां रस किसे माना गया है ?
(क) करुण रस | (ख) वात्सल्य रस |
(ग) भक्ति रस | (घ) शांत रस |
उत्तर – शांत रस
10 – विस्मय स्थाई भाव किस रस में होता है ?
(क) अद्भुत | (ख) रूद्र |
(ग) शांत | (घ) करुण |
उत्तर – अद्भुत रस
11 – उस काल मारे क्रोध के, तन कांपने उसका लगा
मानो हवा जोर से सोता हुआ सागर जगा।
प्रस्तुत पंक्तियों में कौन सा रस है ?
(क) शांत रस | (ख) रौद्र रस |
(ग) करुण रस | (घ) शृंगार रस |
उत्तर – रौद्र रस।
12 – कवि बिहारी मुख्यतः किस रस के कवि हैं ?
(क) भयानक रस | (ख) करुण रस |
(ग) शृंगार रस | (घ) शांत रस |
उत्तर – शृंगार रस
13 शोभित कर नवनीत लिए,
घुटरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए।
इन पंक्तियों में कौन सा रस है ?
(क) भक्ति रस | (ख) वात्सल्य रस |
(ग) शृंगार रस | (घ) करुण रस |
उत्तर – वात्सल्य रस
14 – ‘वाक्यं रसात्मकं काव्यम’ किसका कथन है ?
(क) आचार्य रामचंद्र शुक्ल | (ख) भरतमुनि |
(ग) आचार्य विश्वनाथ | (घ) राजशेखर |
उत्तर – आचार्य विश्वनाथ
15 – वीर रस का स्थायी भाव क्या होता है ?
(क) घृणा | (ख) प्रेम |
(ग) उत्साह | (घ) क्रोध |
उत्तर – उत्साह
16 – शांत रस का स्थायी भाव क्या होता है ?
(क) जुगुप्सा | (ख) क्रोध |
(ग) भय | (घ) प्रेम |
उत्तर – निर्वेद
17 – मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई
इन पंक्तियों में कौन सा रस है ?
(क) करुण रस | (ख) शांत रस |
(ग) वीर रस | (घ) शृंगार रस |
उत्तर – शृंगार रस
18 – ऊधो मोहि ब्रज बिसरत नाहीं
हंससुता की सुंदर कगरी और द्रुमन की छाँहीं।
इन पंक्तियों में कौन सा रस है ?
(क) शृंगार रस | (ख) वात्सल्य रस |
(ग) भक्ति रस | (घ) करुण रस |
उत्तर – शृंगार रस
19 – प्रिय पति वह मेरा प्राण प्यारा कहां है ?
दुख जलनिधि डूबी का सहारा कहां है ?
इन पंक्तियों में कौन सा स्थाई भाव है ?
(क) क्रोध | (ख) उत्साह |
(ग) शोक | (घ) जुगुप्सा |
उत्तर – शोक
20 – ‘ट’ ‘ठ’ ‘ड’ ‘ढ़’ वर्णों का प्रयोग किस काव्य से संबंधित है ?
(क) ओज | (ख) प्रसाद |
(ग) माधुर्य | (घ) कोई नहीं |
उत्तर – ओज
21 – किलक अरे मैं नेहा निहारुँ
इन दातों पर मोती वारूँ
इन पंक्तियों में कौन सा रस होगा ?
(क) भक्ति रस | (ख) वात्सल्य रस |
(ग) शृंगार रस | (घ) शांत रस |
उत्तर – वात्सल्य रस
22 – कनक भूधाराकार सरीरा
समर भयंकर अतिबल बीरा। ।
कौन सा रस है ?
(क) वीर रस | (ख) अद्भुत रस |
(ग) शृंगार रस | (घ) वात्सल्य रस |
उत्तर – अद्भुत रस
23 – हे खग मृग हे मधुकर श्रेणी, तुम देखी सीता मृगनैनी ? में कौन सा रस है ?
(क) वियोग श्रृंगार | (ख) संयोग श्रृंगार |
(ग) करुण रस | (घ) शांत रस |
उत्तर – वियोग श्रृंगार
24 – मेरी भव बाधा हरौ राधा नगरी सोइ, जा तन की झाई परै स्याम हरित दुति होइ। पंक्ति में कौन सा रस है ?
(क) शृंगार रस | (ख) वात्सल्य रस |
(ग) शांत रस | (घ) भक्ति रस |
उत्तर – भक्ति रस
25 – संदेशों देवकी सौं कहियो, हौं तो धाय तिहारो सुत की माया करत ही रहियो। इस पंक्ति में कौन सा रस होगा ?
(क) वात्सल्य रस | (ख) भक्ति रस |
(ग) शांत रस | (घ) करुण रस |
उत्तर – वात्सल्य रस
26 – अनुराग किस रस का स्थायी भाव है ?
(क) शृंगार रस | (ख) वात्सल्य रस |
(ग) करुण रस | (घ) वीर रस |
उत्तर – वात्सल्य रस
27 – निसिदिन बरसत नयन हमारे, सदा रहत पावस रितु हम पर जब से स्याम सिधारे। पंक्ति में कौन सा रस होगा ?
(क) करुण रस | (ख) वीर रस |
(ग) रौद्र रस | (घ) वियोग श्रृंगार रस |
उत्तर – वियोग श्रृंगार रस
28 – वीभत्स रस का स्थायी भाव क्या होगा?
(क) जुगुप्सा | (ख) भय |
(ग) क्रोध | (घ) शांत |
उत्तर – जुगुप्सा
29 – संचारी भावों की संख्या कितनी मानी गई है ?
(क) 9 | (ख) 33 |
(ग) 11 | (घ) 13 |
उत्तर – 33
30 – वीरों का कैसा हो वसंत, में कौन सा रस होगा ?
(क) शृंगार रस | (ख) करुण रस |
(ग) शांत रस | (घ) वीर रस |
उत्तर – वीर रस
निष्कर्ष –
रस किसी भी साहित्य/काव्य का प्राण तत्व होता है। संपूर्ण काव्य रस पर आधारित होते हैं, इसका विस्तृत रूप से पूर्व आचार्यों ने व्याख्या किया है। जिसमें भरतमुनि सर्वप्रथम माने गए हैं। उन्होंने रस की विस्तृत रूप से व्याख्या कर उसके सिद्धांतों को लिखा है।
उपरोक्त परिभाषा और उदाहरण से हमने विस्तृत रूप से रस के विषय में जानकारी हासिल की।
संबंधित विषय से प्रश्न पूछने के लिए कमेंट बॉक्स में लिखें, हम आपके प्रश्नों के तत्काल उत्तर देने का प्रयत्न करेंगे।