मानवीकरण अलंकार की परिभाषा, उदाहरण, पहचान

इस लेख के माध्यम से आप मानवीकरण अलंकार की परिभाषा, उदाहरण, पहचान, कविता,आदि का विस्तृत रूप से इस लेख में अध्ययन कर सकते हैं।

इस अलंकार के अंतर्गत मुख्य रूप से प्रकृति के साथ मनुष्य के क्रियाकलापों को स्थापित/आरोपित किया जाता है। इस अलंकार का प्रयोग मुख्य रूप से स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व अधिक मात्रा में हुआ करता था।

अलंकार को सरल बनाने के लिए हमने कठिनाई स्तर की पहचान करते हुए उदाहरण की संख्या पर विशेष बल दिया है। जिसे पढ़कर आप अपने परीक्षा की तैयारी कर सकते हैं।

अलंकार काव्य की शोभा को बढ़ाते हैं , विशेषकर मानवीकरण अलंकार काव्य की सुंदरता को और अधिक बढ़ाने का कार्य करते हैं।

इसकी खूबसूरती तब और बढ़ जाती है ,जब मानवीय क्रियाकलाप को प्रकृति के साथ जोड़ा जाता है। ऐसा अन्य अलंकारों में देखने को नहीं मिलता।

मानवीकरण अलंकार की परिभाषा

जहां जड़ प्रकृति में मानवीय क्रियाओं तथा भावनाओं का आरोप हो वहां मानवीकरण अलंकार होता है।

जैसे –

मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के। । 

मेघ अर्थात बादलों का बन-ठन कर संवर कर आना मानवीय क्रियाकलाप को प्रदर्शित करता है। क्योंकि मेघ प्रकृति का एक अंग है ,सजना संवरना व्यक्ति का गुण है। अतः मानवीय गुणों को प्रकृति के साथ जोड़ा गया है, जिसके कारण यहां मानवीकरण अलंकार सिद्ध होता है।

मानवीकरण अलंकार के उदाहरण

उदहारण व्याख्या 
नदी-तट से लौटती गंगा नहा कर

सुवासित भीगी हवाएं सदा पावन। ।

गंगा नदी को औरत की भांति ,उसे नहा कर लौटते चित्रित किया गया है। जिससे भीगी पावन हवाएं चलती हुई प्रतीत हो रही है।
गुलाब खिल कर बोला-मैं आग का गोला नहीं प्रीत की कविता हूं। गुलाब का फूल को बोलता हुआ चित्रित किया गया है। जो अपने रंग के कारण आग का गोला प्रतीत हो रहा है। उसे प्रेम का प्रतीक स्वयं स्वीकार किया गया है।
वृक्षों की टहनियां बादल से बातें करती है। वृक्ष की टहनियों को बादल से बातें करते हुए दर्शाया गया है जबकि बातें करना मानवीय स्वभाव की ओर संकेत करता है।
अनुराग भरे तारों ने आंखें खोली।

संध्या सुंदरी परी-सी नीचे उतरी।

तारे तथा संध्या के समय को मानव के क्रियाकलाप से जोड़ा है। यहां तारों के आंख खोलने तथा संध्या को सुंदर परी मानकर नीचे उतरने की बात कही है।
बीती विभावरी जाग री

अंबर पनघट में डुबो रही

तारा घट उषा नागरी।

तारा को नारी की भांति माना है जो सुबह होते ही पनघट पर पानी भर रही है। प्रकृति के क्रियाकलाप को मानव के क्रियाकलाप से जोड़ा गया है।
धरती पसीजी है कहीं ? धरती का पसीजना मानवीय गुण की ओर संकेत करता है।

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मानवीकरण अलंकार के अन्य उदहारण

1 और सरसों की ना पूछो हो गई सबसे सयानी।

सरसों के पौधे को नवयुवती माना है जिस पर पीले फूल आने से ऐसे प्रतीत हो रहे हैं जैसे विवाह से पूर्व उसे हल्दी लगा दी गई हो।

2 बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की।

3 यह हरा ठीगना चना, बांधे मुरैठा शीश पर।

चने के पौधे को आदमी माना हे और उसके फली को मुरेठा/ टोपी मान कर मानव के समान दिखया गया है।

4

मैं तो मात्र मृत्तिका हूं कुंभ और कलश बनकर

जल लाती तुम्हारी अंतरंग प्रिया हो जाती हूं। ।

मृतिका अर्थात मिट्टी कह रही है कि मैं कलश या कुंभ बनकर कार्य करती हूं ,जिसमें मदिरा या जल आदि को भरकर अंतरंग अर्थात अकेलेपन की साथी या प्रिया बन जाती हूं।

5

छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाए,

मत झुको अनर्थ पर, भले ही व्योम फट जाए। ।

6 चल रे चल – मेरे पागल बादल। ।

बादल को पागल के समान माना है अर्थात मानव के साथ संबंध स्थापित करने का प्रयास किया है आतः यह मानवीकरण अलंकार सिद्ध होता है।

7

अब जागो जीवन के प्रभात

वसुधा पर ओस बने बिखरे ।

हिमकन आंसू जो क्षोभ भरे

उषा बटोरती अरुण गात।।

यहां कवि ने प्रकृति के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया है , ओस की भाँति अंग्रेज बिखरे हुए हैं जिन्हें हटाने दूर भगाने का संदेश दिया है। अरुण गात अर्थात लाल गाल के साथ मानवीकरण अलंकार का संबंध जोड़ा गया है।

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ध्यान दें

  • मानवीकरण अलंकार का प्रयोग छायावादी कवियों ने अधिक रूप से किया है।
  • इसके अंतर्गत मनुष्य के क्रियाकलाप को प्रकृति या अन्य माध्यमों के साथ जोड़ा जाता है।
  • जैसे हवाओं का गुनगुनाना, दौड़ना , प्रकृति का हंसना।
  • यह सभी मानव के क्रियाकलाप से जोड़ा गया है।
  • अर्थात यहां मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हुआ है।
  • यह अलंकार अधिक रूप से स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व प्रयोग में था क्योंकि छायावादी कवियों ने प्रकृति को माध्यम बनाकर देशवासियों को स्वाधीनता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया था।
  • उस समय अंग्रेजों का शासन भारत में था इसलिए कवि खुलकर अंग्रेजों के प्रति कुछ बोल नहीं सकते थे।

अतः मानवीकरण अलंकार का सहारा लेते हुए अपनी सारी बातें कविता तथा साहित्य के माध्यम से जनता के समक्ष प्रस्तुत किया।

मानवीकरण अलंकार की कविता

1

बीती विभावरी जाग री!

अम्बर पनघट में डुबो रही

तारा घट ऊषा नागरी।

खग कुल-कुल सा बोल रहा,

किसलय का अंचल डोल रहा,

लो यह लतिका भी भर लाई

मधु मुकुल नवल रस गागरी।

अधरों में राग अमंद पिये,

अलकों में मलयज बंद किये

तू अब तक सोई है आली

आँखों में भरे विहाग री।

2

देखा आया चंद्र गहना।

देखता हूँ दृश्‍य अब मैं

मेड़ पर इस खेत पर मैं बैठा अकेला।

एक बीते के बराबर

यह हरा ठिगना चना,

बाँधे मुरैठा शीश पर

छोटे गुलाबी फूल का,

सज कर खड़ा है।

पास ही मिल कर उगी है

बीच में अलसी हठीली

देह की पतली, कमर की है लचीली,

नीले फूले फूल को सिर पर चढ़ा कर

कह रही है, जो छूए यह,

दूँ हृदय का दान उसको।

और सरसों की न पूछो-

हो गई सबसे सयानी,

हाथ पीले कर लिए हैं

ब्‍याह-मंडप में पधारी

फाग गाता मास फागुन

आ गया है आज जैसे।

देखता हूँ मैं: स्‍वयंवर हो रहा है,

पकृति का अनुराग-अंचल हिल रहा है

इस विजन में,

दूर व्‍यापारिक नगर से

प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।

और पैरों के तले हैं एक पोखर,

उठ रही है इसमें लहरियाँ,

नील तल में जो उगी है घास भूरी

ले रही वह भी लहरियाँ।

एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा

आँख को है चकमकाता।

हैं कईं पत्‍थर किनारे

पी रहे चुपचाप पानी,

प्‍यास जाने कब बुझेगी!

चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में,

देखते ही मीन चंचल

ध्‍यान-निद्रा त्‍यागता है,

चट दबाकर चोंच में

नीचे गले के डालता है!

एक काले माथ वाली चतुर चिडि़या

श्‍वेत पंखों के झपाटे मार फौरन

टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर,

एक उजली चटुल मछली

चोंच पीली में दबा कर

दूर उड़ती है गगन में!

औ’ यही से-

भूमी ऊँची है जहाँ से-

रेल की पटरी गई है।

चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी

कम ऊँची-ऊँची पहाडि़याँ

दूर दिशाओं तक फैली हैं।

बाँझ भूमि पर

इधर-उधर रिंवा के पेड़

काँटेदार कुरूप खड़े हैं

सुन पड़ता है

मीठा-मीठा रस टपकता

सुग्‍गे का स्‍वर

टें टें टें टें;

सुन पड़ता है

वनस्‍थली का हृदय चीरता

उठता-गिरता,

सारस का स्‍वर

टिरटों टिरटों;

मन होता है-

उड़ जाऊँ मैं

पर फैलाए सारस के संग

जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है

हरे खेत में

सच्‍ची प्रेम-कहानी सुन लूँ

चुप्‍पे-चुप्‍पे।

निष्कर्ष

उपरोक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि मानवीकरण अलंकार का सीधा संबंध मानवीय क्रियाकलापों से होता है ,जिसे प्रकृति के साथ जोड़कर प्रस्तुत किया जाता है। विशेष रूप से इसका प्रयोग छायावादी कवियों ने किया था।

आशा है यह अलंकार आपको समझ आज्ञा हो ,आपके ज्ञान की वृद्धि हो सकी हो।

संबंधित विषय से प्रश्न पूछने के लिए आप हमें कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं।

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