अलंकार ( परिभाषा, भेद और उदाहरण ) – Alankar in Hindi

इस लेख में अलंकार की परिभाषा, अर्थ, भेद, परिभाषा और उदाहरण ( Figure of speech in Hindi ) आदि को छात्रों के अनुरूप लिखा जा रहा है।

अलंकार व्याकरण का एक अंग है, जिसका साहित्य में प्रयोग किया जाता है। शब्दों के चमत्कार और प्रयोग के माध्यम से पूरे वाक्य में सुंदरता आती है यह अलंकार का प्रमुख गुण है।

यह लेख छात्रों के अनुरूप तैयार किया जा रहा है। यह लेख किसी भी स्तर के विद्यार्थियों के लिए लाभदायक होगा। विद्यालय तथा कॉलेज और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए भी , यह लेख ध्यान में रखकर लिखा जा रहा है। आशा करते हैं आपको इसका लाभ अवश्य मिल सके।

अलंकार की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण ( Figure of speech )

अलंकार का शाब्दिक अर्थ आभूषण माना गया है। जिस प्रकार रूपवती स्त्रियां अपने सुंदरता को और बढ़ाने के लिए आभूषण अथवा सौंदर्य प्रसाधन का प्रयोग करती हैं ठीक उसी प्रकार वाक्यों में सुंदरता लाने के लिए अलंकार का प्रयोग किया जाता है।

इस के प्रयोग से शब्दों के चमत्कार से बढ़ जाती है और पाठक के मन पर अमिट छाप अथवा प्रभाव डालती है।

अलंकार के भेद 

अलंकार के मुख्य रूप से दो भेद माने जाते हैं जिनके प्रयोग से काव्य की सौंदर्यता और अधिक बढ़ती है यह दो भेद है – १ शब्दालंकार,  २ अर्थालंकार

1 – शब्दालंकार

जिस वाक्य कविता अथवा साहित्य में शब्दों के माध्यम से उस वाक्य की कविता की अथवा साहित्य की सुंदरता बढ़ती हो वहां शब्दालंकार होता है। सामान्य अर्थ में समझें तो शब्दों का प्रयोग सांस्कृतिक शैली में किया जाता है जैसे –

” मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारनि ” 

उपर्युक्त पंक्ति में आप देखेंगे शब्दों के चमत्कार से वाक्य की सुंदरता बढ़ रही है।

 

2 – अर्थालंकार

जिस वाक्य अथवा कविता में उसके अर्थ के कारण पूरे वाक्य अथवा कविता की सुंदरता बढ़ती हो वहां अर्थालंकार होता है। साधारण शब्द मैं समझे तो अर्थालंकार पूरे वाक्य को पढ़ने के बाद जो अर्थ समझ में आता है उसके प्रभाव को अर्थालंकार कहते हैं जैसे –

” हाय फूल-सी कोमल बच्ची। “

उपर्युक्त पंक्ति में पढ़ने से प्रतीत होता है कि फूल सी कोमल बच्ची की तुलना की गई है। बच्ची की कोमलता को फूल की कोमलता से तुलना किया गया है। अर्थात यहां अर्थालंकार होगा।

 

शब्दालंकार विस्तार में ( अनुप्रास, यमक, श्लेष )

Now we will learn about shabd alankar in detail.

1. अनुप्रास अलंकार

परिभाषा: जिस वाक्य में वर्णों की आवृत्ति बार-बार अथवा क्रम अनुसार होती है , वहां अनुप्रास अलंकार माना जाता है।

जैसे –

 ” चारुचंद्र की चंचल किरणें , खेल रही है जल थल में। “

यहां ‘च’ तथा ‘ल’ वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार हुई है अतः यहां अनुप्रास अलंकार है।

 ” तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए। “

प्रस्तुत वाक्य में ‘त’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास है।

 ” विमल वाणी ने वीणा ली , कमल कोमल कर में सप्रीत। “

इस पंक्ति में ‘व’ , ‘ण’,  ‘क’ , ‘ल’ वर्णों की आवृत्ति हुई है

 ” कुकै लगी कोयलें कदंबन पर बैठि फेरि । “

यहां ‘क’ वर्ण आवृत्ति हुई है जिसके कारण अनुप्रास होगा।

 

2. यमक अलंकार

परिभाषा: जिस वाक्य में एक ही शब्दों की बार-बार आवृत्ति होती है , तथा उसके अर्थों की भिन्नता होती है। ऐसे वाक्य यमक अलंकार कहलाते हैं।

जैसे

 ” कहै कवि बेनि बेनि व्याल की चुराई लीनी। “

उपर्युक्त पंक्ति में बेनी शब्द की आवृत्ति हुई है। जिसमें अर्थों की भिन्नता है।

(क) बेनी – कवि का नाम ,  (ख) बेनी – चोटी। अतः यहां यमक अलंकार होगा।

” कनक – कनक ते सौगुनी , मादकता अधिकाय।

या पाय बौराय जग ,वा खाए बौराय । “

उपर्युक्त पंक्ति में कनक शब्द की आवृत्ति दो बार हुई है , जिसमें दोनों बार अलग-अलग अर्थ निकलते हैं।

जैसे (क) कनक – सोना , (ख)  कनक – धतूरा  है। यहां यमक अलंकार होगा।

” काली घटा का घमंड घटा। “

उपर्युक्त पंक्ति में घटा शब्द की पुनरावृत्ति हुई है।

(क) घटा – बादल , (ख) घटा – कम होना। अतः यहां यमक अलंकार सिद्ध होता है।

 

3. श्लेष अलंकार

परिभषा:- जिस पंक्ति अथवा वाक्य में एक शब्द अनेक अर्थो की प्रतीति कराता है, वहां श्लेष अलंकार माना जाता है।

उदाहरण के लिए

१.

” जो रहीम गति दीप की , कुल कपूत की सोय। 

बारे उजीयारो करै , बढ़े अंधेरो होय। ।” 

उपर्युक्त पंक्ति में बारे शब्द के दो अर्थ निकलते हैं

(क) जलना और (ख) बचपन में। तथा बढे शब्द के भी दो अर्थ समझ आता है (क) बुझने पर और (ख) बड़ा होने पर। 

२.

” रहिमन पानी राखिए , बिन पानी सब सून।

पानी गए न ऊबरे , मोती मानुष चून। । “

उपयुक्त पंक्ति में पानी शब्द दो अलग अर्थ  की ओर संकेत कर रहा है। (क) चमक , सम्मान , तेज  और (ख) जल , नीर की और अतः यहां श्लेष अलंकार होगा।

३.

“पी तुम्हारा मुख बास तरंग ,

आज बौरे भौरे सहकार। ।”

उपयुक्त पंक्ति में बौरे शब्द का दो अर्थ प्रतीत होता है – (क) मस्त होना तथा (ख) आम के फूल की मंजरी।

४.

” मधुबन की छाती को देखो ,

सूखी कितनी इसकी कलियां। ।” 

उपर्युक्त पंक्ति में कलियां शब्द दो बार आया है जिसका दोनों बार अर्थ भिन्न प्रतीत होता है – (क) फूल के खिलने से पूर्व की दशा , तथा (ख) योगन से पहले की दशा।

 

अर्थालंकार ( उपमा ,रूपक , अतिशयोक्ति ,अन्योक्ति आदि)

1. उपमा अलंकार

परिभषा:- उपमा अलंकार का सामान्य अर्थ समानता से है। जिस वाक्य , शब्द से किसी वस्तु के रूप , धर्म , गुण , व्यवहार आदि की समानता के कारण किसी अन्य वस्तु से तुलना की जाए या समानता प्रतीत हो वहां उपमा अलंकार होता है।

जैसे –

१. “पीपर पात सरिस मन डोला “

प्रस्तुत वाक्य में मन की तुलना पीपल के पत्ते से की जा रही है। दोनों में समानता बताने वाला गुण , साधारण धर्म विद्यमान है। अतः यहां उपमा अलंकार सिद्ध होगा।

 

 २.”पागल सी प्रभु के साथ सभा चिल्लाई

सौ  बार धन्य वह एक लाल की माई। ।”

उपर्युक्त पंक्ति में सभा उपमेय तथा पागल उपमान से तुलना की गई है। अतः यहां उपमा प्रतीत होता है।

 

३.” नदियां जिसकी यशधारा-सी

बहती है अब भी निशि-वासर। ।”

उपयुक्त पंक्ति में नदियां उपमेय तथा यशधारा उपमान की समानता के कारण उपमा सिद्ध होता है।

 

४.”मखमल के झूल पड़े हाथी सा टीला। “

प्रस्तुत पंक्ति में टीला उपमेय तथा हाथी उपमान है , दोनों में तुलना की गई है। अतः यहां उपमा अलंकार सिद्ध होगा।

 

५. “अरविंद से शिशुवृंद कैसे सो रहे

शिशुवृंद उपमेय तथा अरविंद उपमान दोनों में तुलना की गई है। अतः उपमा है।

 

2 रूपक अलंकार

परिभषा:- जिस वाक्य पंक्ति में प्रयुक्त उपमा और उपमान में अभिनेता हो दोनों में समान रूप दिखाई दे वहां रूपक अलंकार होता है।

दूसरे शब्दों में समझें तो जहां अत्यधिक समानता के कारण उप में में उपमान का अभेद आरोपण हो वहा रूपक अलंकार होता है।

उदाहरण के लिए

१. “चरण-कमल बन्दौ हरिराई। ” 

उपर्युक्त पंक्ति में चरण उपमेय तथा कमल उपमान दोनों में भेद , समानता के कारण रूपक अलंकार होगा।

२.”आए महन्त-वसंत। “

उपर्युक्त पंक्ति में बसंत उपमेय तथा महंत उपमान का आरोप होने के कारण रूपक होगा।

३.”मैया मैं तो चंद्र-खिलौना लेहौं । “

उपर्युक्त पंक्ति में चंद्रमा उपमेय तथा खिलौना उपमान पर आरोप होने के कारण रूपक है।

 ४.”गोपी पद पंकज की रज जामै सिर भीजै। “

प्रस्तुत पंक्ति में उपमेय पद है तथा पंकज उपमान। दोनों की समानता के कारण रूपक है।

५.” वन शारदी चंद्रिका-चादर ओढ़े। “

प्रस्तुत पंक्ति में चंद्रिका उपमेय तथा चादर उपमान का आरोप होने के कारण रूपक अलंकार है।

 

3. उत्प्रेक्षा अलंकार

परिभषा:-  जहां उपमेय में उपमान की संभावना पाई जाए उपमेय में उपमान की कल्पना की जाए वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है इस अलंकार में मनु मानव जनों जनों आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

दूसरे शब्दों में समझें तो उत्प्रेक्षा अलंकार वहां माना जाता है जहां वाक्य में समानता होने की संभावना होती हो जैसे –

प्रस्तुत पंक्ति में  काल मानो क्रोध से तनु कांपने उनका लगा मानव हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगह प्रस्तुत पंक्ति में तन के कांपने की तुलना क्रोध से की गई है सोते हुए सागर

उदाहरण 

कहती हुई यो उतरा के नेत्र जल से भर गए।

हिम के कणो से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए। ।

उतरा के नेत्र  – उपमेय / प्रस्तुत अलंकार है।

ओस युक्त जल – कण पंकज – उपमान / अप्रस्तुत अलंकार है।

 

उदाहरण 

सोहत ओढ़े पीत पैट पट ,स्याम सलौने गात।

मानहु नीलमणि सैल  पर , आपत परयो प्रभात। ।

स्याम सलौने गात – उपमेय / प्रस्तुत अलंकार

आपत परयो प्रभात  -उपमान / अप्रस्तुत अलंकार।

4.  मानवीकरण अलंकार ( Maanvikaran alankar )

जहां जड़ प्रकृति निर्जीव पर मानवीय भावनाओं तथा क्रियाओं का आरोप हो वहां मानवीकरण अलंकार होता है।

उदाहरण

=> दिवसावसान का समय

मेघमय आसमान से उतर रही है

वह संध्या सुन्दरी , परी सी। ।

=> बीती विभावरी जाग री

अम्बर पनघट में डुबो रही

तारा घट उषा नागरी।

5. पुनरुक्ति अलंकार ( Punrukti alankar )

काव्य में जहां एक शब्द की क्रमशः आवृत्ति है पर अर्थ भिन्नता न हो वहाँ  पुनरूक्ति प्रकाश  अलंकार  होता है / माना जाता है।

उदाहरण ->

१  सूरज है जग का बूझा – बूझा

२  खड़ – खड़ करताल बजा

३  डाल – डाल अलि – पिक के गायन का बंधा समां।

6. अतिश्योक्ति अलंकार ( Atishyokti alankar )

जहां बहुत बढ़ा – चढ़ा कर लोक सीमा से बाहर की बात कही जाती है वहाँ अतिश्योक्ति अलंकार माना जाता है।

अतिशय + उक्ति बढ़ा चढ़ा कर कहना

उदाहरण

=> हनुमान के पूँछ में लग न सकी आग

लंका सिगरी जल गई , गए निशाचर भाग।

=> पद पाताल  शीश अज धामा ,

अपर लोक अंग अंग विश्राम।

भृकुटि विलास भयंकर काला नयन दिवाकर

कच धन माला। ।

 

7. अन्योक्ति अलंकार ( Anyokti alankar )

अप्रस्तुत के माध्यम से प्रस्तुत का वर्णन करने वाले काव्य अन्योक्ति अलंकार कहलाते है।

माली आवत देख के ,कलियाँ करे पूकार।

फूल – फूल चुन  लिए काल्हे हमारी बार। ।

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निष्कर्ष

इस लेख के माध्यम से हमने जाना कि अलंकार क्या होता है उसकी परिभाषा क्या है उसकी पहचान क्या है तथा उसके सभी भेदों की जानकारी भी हमने प्राप्त करी।

शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों के भेद हमने देखे तथा सब की परिभाषा और उदाहरण को भी जाना।

वैसे तो हमने यहां पर सभी जानकारी उपलब्ध कराने का प्रयास किया है परंतु अगर तब भी कुछ शेष रह गया हो तो आप नीचे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं, अगर आपको अलंकार विषय में कुछ समझने में कठिनाई हुई हो तो वह भी आप पूछ सकते हैं हम आपके सवालों का जवाब अवश्य देंगे।

2 thoughts on “अलंकार ( परिभाषा, भेद और उदाहरण ) – Alankar in Hindi”

  1. This is the best information on alankar topic but I want to say one thing that please add more examples of every particular type or make new post.

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