इस लेख के माध्यम से आप हिंदी वर्णमाला के सभी प्रमुख अंगों पर सूक्ष्मता से जानकारी प्राप्त कर सकेंगे। भाषा , वर्ण , वर्णमाला तथा शब्द निर्माण आदि इस लेख में चर्चा के बिंदु हैं। इस लेख का अध्ययन कर आप वर्णमाला के विषय में गहनता से ज्ञान अर्जन कर सकेंगे।
वर्ण से लेकर वर्णमाला और शब्दों के निर्माण की इस लेख में विस्तृत जानकारी उपलब्ध है। इसका अध्ययन कर शब्दों का निर्माण करना भी आप सीख सकेंगे। आशा है यह लेख आपको पसंद आए , इस उम्मीद के साथ यह लेख लिखा जा रहा है।
हिंदी वर्णमाला स्वर और व्यंजन की पूरी जानकारी – Hindi Varnamala
मानव सामाजिक प्राणी है , समाज में रहते हुए उसे अपने विचारों का आदान-प्रदान करना होता है। इसके लिए उसे भाषा की आवश्यकता होती है। मानव द्वारा उत्पन्न किए गए सार्थक ध्वनि को भाषा कहते हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है , सार्थक ध्वनि उन्हें ही कहते हैं जिनका कोई मतलब होता है। जानवर भी ध्वनि उत्पन्न करते हैं किंतु व्याकरण की दृष्टि से उनके ध्वनि को मान्यता नहीं दी गई है।
भाषा की लघुतम इकाई ध्वनि अथवा वर्ण है। वर्ण के समूह को वर्णमाला कहते हैं।
सार्थक वर्णों के माध्यम से अक्षर का निर्माण किया जाता है।
अक्षर के माध्यम से पद तथा पदबंध उसके उपरांत वाक्य का निर्माण किया जाता है।
वर्णमाला किसे कहते हैं ?
- वर्णों के समूह को वर्णमाला कहा जाता है।
- वर्णमाला दो अक्षरों के समूह से बना है वर्ण+ माला अर्थात ऐसी माला जो वर्णो की हो।
वर्ण किसे कहते हैं?
- भाषा की सबसे लघुतम इकाई ध्वनि है।
- सार्थक ध्वनि को वर्ण कहा जाता है।
- इन वर्ण के माध्यम से अक्षर अथवा शब्द का निर्माण किया जाता है।
- इन अक्षरों के माध्यम से वाक्य का निर्माण संभव है।
वर्णमाला में कितने वर्ण हैं ?
- वर्णमाला में 52 वर्ण लिखे जाते हैं
- जिनमें 13 स्वर , 35 व्यंजन , 4 संयुक्त व्यंजन है।
- किंतु व्याकरण की दृष्टि से वर्णों की संख्या 45 मानी गई है
- जिसमें 10 स्वर , 35 व्यंजन है।
1 स्वर –
अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ए , ऐ , ओ , औ , ( ऋ , अं , अः इनकी गिनती नहीं की जाती )
2 व्यंजन –
क , ख ,ग , घ , ङ
च , छ , ज , झ , ञ
ट , ठ , ड , ढ , ण
त , थ , द , ध ,न
प , फ ,ब , भ , म
य , र ,ल ,व
श , ष , स ह
क्ष , त्र , ज्ञ
3 संयुक्त व्यंजन –
क्ष , त्र , ज्ञ ,श्र। ( दो व्यंजनों के सहयोग से इन व्यंजनों का निर्माण हुआ है अतः यह संयुक्त व्यंजन है। )
विदेशी वर्ण
विदेशी वर्ण जिनका प्रयोग भी किया जाता है – ऑ , कॉ , फॉ , क़ , ख़ , ग़ , ज़ ,फ़ आदि।
हिंदी वर्णमाला स्वर की जानकारी विस्तार में
जिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वांस – वायु बिना किसी रूकावट के मुख से निकलती है , उन्हें स्वर कहते हैं।
यद्यपि ‘ ऋ ‘ को लिखित रूप में स्वर माना जाता है।
परंतु आजकल हिंदी में इसका उच्चारण ‘ री ‘ के समान होता है।
पारंपरिक वर्णमाला में ‘ अं ‘ और ‘ अः ‘ को स्वरों में गिना जाता है , परंतु उच्चारण की दृष्टि से यह व्यंजन के ही रूप है। ‘ अं
‘ को अनुस्वर और ‘ अः ‘ को विसर्ग कहा जाता है। यह हमेशा स्वर के बाद ही आते हैं।
जैसे – इंगित , अंक , अतः , प्रातः विसर्ग का प्रयोग हिंदी में प्रचलित संस्कृत शब्दों में से होता है।
अनुस्वार जिस स्पर्श व्यंजन से पहले आता है उसी व्यंजन के वर्ग के अंतिम नासिक के वर्ण के रूप में वह उच्चरित होता है।
स्वर के भेद ( हिंदी वर्णमाला )
उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर स्वरों को तीन भागों में बांटा गया है
ह्रस्व स्वर ( short vowels )
दीर्घ स्वर ( long vowels )
प्लुत स्वर ( two time longer vowels )
ह्रस्व स्वर –
जिस वर्ण को सबसे कम समय में उच्चारित किया जाता है , उन्हें हर स्वर कहते हैं।
जैसे – अ , इ ,उ ,ऋ इनके उच्चारण में जो समय लगता है उसे एक मात्रा का समय कहते हैं।
ह्रस्व ‘ ऋ ‘ का प्रयोग केवल संस्कृत के तत्सम शब्दों में होता है
जैसे – ऋषि , रितु , कृषि , आदि।
ह्रस्व स्वरों को मूल स्वर भी कहते हैं।
दीर्घ स्वर –
जिन स्वरों के उच्चारण में स्वरों से अधिक समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं।
यह स्वर हैं – आ , ई , ऊ , ए , ऐ , ओ , औ।
यह स्वर ह्रस्व स्वरों के दीर्घ रूप नहीं है वरन स्वतंत्र ध्वनियाँ है।
इन स्वरों में ‘ ए ‘ तथा ‘ औ ‘ का उच्चारण संयुक्त रूप से होता है। ‘ एे ‘ मे औ+ इ स्वरों का संयुक्त रूप है। यह उच्चारण तब होगा जब बाद में क्रमशः – ‘ य ‘ और ‘ व ‘ आए जैसे – भैया = भइया , कौवा = कउआ
प्लुत स्वर –
जिन स्वरों के उच्चारण में 2 मात्राओं से अधिक समय लगे उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं।आजकल यह प्रचलन समाप्त हो चुका है , हिंदी में प्लुत स्वर का प्रयोग ना के बराबर होता है।
अब व्याकरण की पुस्तकों में भी इसका उल्लेख नहीं मिलता।
जैसे – रा SS म , का SS म
जीभ के आधार पर प्रयोग –
जीभ के आधार पर तीन प्रकार से स्वरों का उच्चारण किया जाता है – १ अग्र स्वर २ मध्य स्वर ३ पश्च स्वर
१ अग्र स्वर – इन स्वरों के उच्चारण में जीभ का अगला हिस्सा कार्य करता है जैसे – इ , ई ,ए ,ऐ।
२ मध्य स्वर – इस स्वर के उच्चारण में जीभ का मध्य भाग कार्य करता है जैसे – अ
३ पश्च स्वर – इन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पिछला भाग कार्य करता है जैसे – आ , उ , ऊ ,ओ , औ ,ऑ।
जीभ के उठने के आधार पर –
संवृत – इ , ई , उ , ऊ
अर्ध संवृत – ऐ ,ओ
निवृत – आ
अर्ध निवृत – अ , ए , औ , ऑ।
वर्णों के प्रमुख उच्चारण स्थान –
नासिका – अं , ङ , ञ , ण , न , म
कंठ – अ , आ , ह , क , ख ,ग , घ , ङ , अः
तालु – इ ,ई , य , श , च , छ , ज , झ , ञ।
दंत – स , त , थ , द , ध ,न
दंत मूल – र , ल
कंठ + तालु -ए , ऐ
दंत + होठ – व
होठ – उ , ऊ
होठ + कंठ – ओ , औ
होठों के आधार पर स्वर का उच्चारण
अवृतमुखी – इन स्वरों के उच्चारण में होठ गोलाकार के नहीं होते नाही आपस में चिपकते हैं। वायु दोनों होठों के मध्य से बाहर निकलती है और स्वरों का उच्चारण होता है जैसे – अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ए , ऐ।
वृत्तमुखी – इन स्वरों के उच्चारण में होठ गोलाकार के होते हैं जैसे – उ , ऊ ,ओ ,औ ,ऑ।
नाक अथवा मुंह के आधार पर स्वरों का उच्चारण –
नीरनुनासिका – इन स्वरों के उच्चारण में वायु केवल मुख से बाहर निकलती है इसमें नासिका का प्रयोग नहीं होता
जैसे – अ , आ , इ , ई
अनुनासिका – इन स्वरों के उच्चारण में वायु मुख और नासिका दोनों जगह से निकलती है अतः यह अनुनासिका स्वर माना जाता है – अँ , आँ , इँ।
सघोष स्वर ध्वनि –
जिन स्वरों के उच्चारण में जोर अथवा घर्षण होता है वह सघोष ध्वनि मानी जाती है। व्याकरण की दृष्टि से सभी स्वर सघोष स्वर है।
हिंदी वर्णमाला – व्यंजन की संपूर्ण जानकारी
जिन वर्णों के उच्चारण में वायु रुकावट के साथ या घर्षण के साथ मुंह से बाहर निकलती है , उन्हें व्यंजन कहते हैं। व्यंजन का उच्चारण सदा स्वर की सहायता से किया जाता है।
हिंदी में कुल 37 व्यंजन है , जिनमें दो आगत व्यंजन ( ज़ , फ़ ) भी शामिल है।
उन्हें निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया गया है –
स्पर्श व्यंजन 27
अंतः स्थ व्यंजन 4
उष्म व्यंजन 4
आगत व्यंजन 2
क्ष , त्र , ज्ञ , श्र मूलत व्यंजन नहीं है वह संयुक्त व्यंजन है।
व्यंजनों का वर्गीकरण ( हिंदी वर्णमाला )
उच्चारण की दृष्टि से व्यंजन वर्णों को दो प्रकार से विभाजित किया गया है
1 स्थान के आधार पर
2 प्रयत्न के आधार पर
स्थान के आधार पर – व्यंजनों का उच्चारण मुख के विभिन्न अवयवों – कंठ , तालु , मूर्धा आदि से किया जाता है , जो वर्ण मुख के जिस भाग से बोला जाता है वही उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहलाता है।
प्रयत्न के आधार पर – व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में स्वास का कंपन , स्वास की मात्रा तथा जीवा आदि अवयवों द्वारा स्वास के अवरोध की प्रक्रिया का नाम प्रयत्न है।
प्रायः यह तीन प्रकार से होता है
१ स्वरतंत्री में सांस के कंपन के रूप में
२ स्वास की मात्रा के रूप में
३ मुख अवयव द्वारा स्वास रोकने के रूप में।
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हिंदी वर्णमाला विषय पर महत्वपूर्ण बिंदु
- भाषा की सबसे महत्वपूर्ण इकाई ध्वनि है।
- ध्वनि के लिखित रूप को वर्ण कहते हैं।
- वर्णों की व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं।
- वर्ण के दो भेद हैं १ स्वर २ व्यंजन।
- स्वर दो प्रकार के हैं ह्रस्व और दीर्घ।
- अनुनासिक स्वरों का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से होता है।
- व्यंजनों का वर्गीकरण उच्चारण स्थान तथा प्रयत्न के आधार पर किया जाता है।
- व्यंजनों को सघोष – अघोष , अल्पप्राण – महाप्राण , स्पर्श – संघर्षी वर्गों में बांटा जाता है।
- शब्द के जिस अक्षर पर बल दिया जाता है उसे बलाघात कहते हैं।
किसी भाषा को सीखने और बोलने के लिए यह आवश्यक है कि उस भाषा की वर्णमाला का ज्ञान होना आवश्यक है।
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मा के ऊपर माँ की जो मात्रा लगी है,उसे क्या कहते हैं
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