सूर्यकांत त्रिपाठी निराला छायावादी कवि हैं , इनकी कविताएं प्रासंगिक और मार्मिक अधिक मात्रा में है इन्होंने अपने जीवन में जितने दुख झेले वह उनके काव्य में छलकते हैं। इस लेख में आप ‘गीत गाने दो मुझे’ और ‘सरोज स्मृति’ कविता का सप्रसंग व्याख्या , काव्य सौंदर्य और महत्वपूर्ण प्रश्न का अभ्यास करेंगे जो परीक्षा की दृष्टि से काफी अहम है।
गीत गाने दो मुझे – Geet gaane do mujhe question answer
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को महामानव भी कहा गया है। वास्तव में वह अपने स्वभाव से महान थे , वह दीन-दुखियों की सहायता के लिए सदैव तैयार रहते थे। अपने उपयोग में आने वाली वस्तुओं का तो वह मोह कभी करते ही नहीं। जो उनके उपयोग में वस्तुएं नहीं होती वह सदैव दूसरों की सहायता के लिए घर से अंतर्ध्यान हो जाया करती थी , अर्थात वह वस्तु जरूरतमंद के पास पहुंच जाया करती थी। ऐसे महान व्यक्तित्व का कवि निश्चित ही महान होता है , यही कारण है लोग उन्हें निराला कहते हैं।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का संक्षिप्त जीवन परिचय
जन्म – बंगाल 1898 निराला जी के बचपन का नाम सूर्यकुमार था। जब वह केवल तीन वर्ष के थे , तभी उनकी माता का निधन हो गया। किशोरावस्था में उनका विवाह कर दिया गया। पत्नी की प्रेरणा से निराला जी की साहित्य और संगीत में रुचि उत्पन्न हुई। सन 1918 में उनकी पत्नी मनोहरा देवी परलोक सिधार गई। उसके बाद पिता , चाचा , चचेरे भाई एक-एक कर सब मृत्यु को प्राप्त हुए। इतना ही नहीं इनकी दो संतानों का भी अल्पायु में स्वर्गवास हो गया।
अंत में पुत्री सरोज की असामयिक मृत्यु ने निराला जी को तोड़ कर रख दिया। निराला जी का पूरा जीवन अभावों में गुजरा , दुख को इन्होंने जीवन में बारीकी से जिया था।
शिक्षा – नौवीं कक्षा तक
संपादन कार्य –
- 1922 रामकृष्ण मिशन द्वारा प्रकाशित पत्रिका समन्वय के संपादन में।
- 1923-24 मतवाला के संपादक मंडल में
रचनाएं –
- काव्य कृतियां – परिमल , गीतिका , अनामिका , बेला ,अर्चना , आराधना नए पत्रे आदि।
- उपन्यास – अप्सरा , अलका , प्रभावती , इरावती , निरुपमा , रतिनाथ की चाची आदि।
- कहानी संग्रह – लिली , चतुरी चमार , सुकुल की बीवी , सखी , देवी।
- रेखाचित्र – कुलीभाट
- निबंध संग्रह – प्रबंध पदम , प्रबंध प्रतिमा , चाबुक , चयन।
- समीक्षा – रविंद्र कविता , कानन , पंत और पल्लव।
साहित्यिक विशेषताएं –
- प्रेम , प्रकृति चित्रण और रहस्यवाद।
- भारतीय इतिहास दर्शन और परंपरा का व्यापक बोध।
- समकालीन जीवन के यथार्थवादी पक्षों का चित्रण
- राष्ट्रीय चेतना और भारतीय संस्कृति का गंभीर चित्रण
- भारतीय किसान के जीवन से लगाओ
भाषा शैली –
- छंदोबद्ध और छंद मुक्त कविता
- तत्सम प्रधान भाषा
- खड़ी बोली
- चित्रात्मक बिम्ब योजना
- भाषा का कसाव , शब्दों की मितव्यिता और अर्थ की प्रधानता
- प्रबंध काव्य , मुक्तक काव्य और ग्रंथ सभी प्रकार की शैलियों का प्रयोग
मृत्यु – 1961 इलाहाबाद
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला – गीत गाने दो मुझे
पाठ परिचय
इस कविता में कवि ने ऐसे समय की ओर संकेत किया है , जहां सब और व्याप्त निराशा ही निराशा है। वेदना से भरा कवि अपने दुख को भुलाने के लिए गीत गाना चाहता है। क्योंकि उसके जीवन में अनेकों ऐसी घटनाएं हो चुकी है जिससे एक साधारण मानव टूट जाता है। कवि के अनुसार पृथ्वी पर जीवन रूपी लो बुझ गई है और वह इस लौ को जगाना चाहता है। वह निराशा में आशा का संचार करना चाहता है। उनके जीवन में प्रिय जनों की आकस्मिक मृत्यु ने उन्हें भीतर से तोड़ कर रख दिया था। उनकी पत्नी , भाई-भतीजे यहां तक कि उनके बच्चे भी असमय मृत्यु को प्राप्त हुए थे।
गीत गाने दो मुझे सप्रसंग व्याख्या
गीत गाने दो……………………. आ रहा है काल देखो
प्रसंग –
कवि – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
कविता – गीत गाने दो मुझे
संदर्भ –
कवि संघर्ष करते-करते हार चुका है और उसे लग रहा है कि उसका अंत काल समीप है।
व्याख्या –
कवि कहता है कि जीवन में निरंतर बढ़ रहे दुख को कम करने के लिए मुझे गीत गाने दो , वह अपनी वेदना को कम करने के लिए गीत गाना चाहता है। अपने जीवन में लगातार एक के बाद एक दुख आने से और लगातार संघर्ष करते – करते कवि टूट गया है। उसके होश उड़ चुके हैं निरंतर आघातों के कारण होश वालों के भी होश उड़ जाते हैं। अब जीवन जीना आसान नहीं है , कवि के पास जीवन जीने के लिए थोड़ा बहुत था वह भी ठग लुटेरों ने अर्थात ईश्वर ने लूट लिया है। छल कपट के द्वारा वह भी मुझसे दूर हो चुका है।
कवि को अपनों ने व समाज ने धोखा दिया है , पीड़ा सहते सहते कवि का गला रूंध गया है। उसके गले से आवाज नहीं निकल रही है , उसे लग रहा है जैसे उसकी मृत्यु समीप आ रही है।
ऐसे निराश भरे वातावरण में कवि गीत गाना चाहता है , जिससे उसका दुख कम हो सके।
विशेष –
- कवि ने अत्यधिक दुख को सहने के लिए गीत गाने का सफल प्रयास किया है।
- गीत गाकर वेदना को भूलने की बात
- छायावादी शैली की विशेषता है
- खड़ी बोली का प्रयोग
- भाषा सरल व प्रभावशाली ,
- भाषा में लयात्मकता व संगीतात्मक
- मुहावरों का प्रयोग
- ‘ होश छूटना ‘ , ‘चोट खाना’
- गीत-गाने , ठग – ठाकुरों – अनुप्रास अलंकार
- छंद मुक्त शैली
काव्य सौंदर्य ( गीत गाने दो मुझे )
भर गया है जहर से…………….. फिर सीखने को।
भाव सौंदर्य-
इन पंक्तियों में कवि को लग रहा है कि पूरा संसार हार मानकर विष से भर गया है। लोग एक-दूसरे को पहचान कर भी सही परिचय नहीं देते हैं। लोगों के बीच मानवता और प्रेम भावनाएं खत्म हो चुकी है। लोगों में जीने की लालसा खत्म हो चुकी है , कवि मानवता की लौ को फिर से जलाना चाहता है। वह ऐसे गीत गाना चाहता है कि निराशा से भरे इस संसार में आशा का संचार हो सके।
शिल्प सौंदर्य ( गीत गाने दो मुझे )
कवि – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
कविता – गीत गाने दो मुझे
भाषा – खड़ी बोली
शैली – छायावादी
छंद – मुक्त छंद
शब्द चयन – उच्च कोटि
भाव – लाक्षणिकता प्रधान
छंद कविता – तुकांत
शब्दावली – तत्सम
अलंकार – अनुप्रास – ‘लोग-लोगों’ , विरोधाभास – ‘जल उठो फिर सीचने को ‘
मुहावरों का प्रयोग
संगीतात्मकथा एवं लयात्मकता
महत्वपूर्ण प्रश्न ( गीत गाने दो मुझे )
प्रश्न – ‘ जल उठे फिर सीचने को ‘ इस पंक्ति का भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – कवि कहते हैं कि धरती पर प्रेम , प्यार व मानवता की भावना समाप्त हो रही है। मानव निराशा में डूबता जा रहा है , उसके अंदर संघर्ष की शक्ति समाप्त होती जा रही है। उसे फिर से पल्लवित करने के लिए स्वयं मैं तेज उत्पन्न करना होगा। लोगों के दुखों को दूर करने के लिए आशा के गीत गाने होंगे। धरती की बुझती हुई लौ को जलाए रखने के लिए स्वयं को जलाना होगा।
सरोज स्मृति पाठ परिचय
यह कविता हिंदी काव्य साहित्य का पहला शोक गीत है। यह कविता कवि की दिवंगता पुत्री पर केंद्रित है। पुत्री की असामयिक मृत्यु ने कवि को तोड़ दिया है , उसे पुत्री के विवाह का समय याद आ रहा है। पुत्री का विवाह हर तरीके से नए ढंग का था। कवि ने इस विवाह में माता-पिता दोनों का कर्तव्य निभाया था , विवाह के समय पुत्री के चेहरे पर स्वाभाविक लग जाती। कवि को अपनी पुत्री के रूप में अपनी स्वर्गीय पत्नी की याद आती है। पुत्री का विवाह हो गया , विवाह में ना तो मांगलिक गीत गाए गए और ना ही किसी रिश्तेदार को बुलाया गया। विवाह के बाद मां के द्वारा दी जाने वाली शिक्षा भी पुत्री को कवि ने दी और पुष्प सैया भी सजाई।
रोते हुए कवि को भी कभी शकुंतला याद आती है तो कभी सरोज का बचपन। विवाह के कुछ समय बाद वह ननिहाल चली गई जहां उसे मामा – मामी का आगाध प्यार मिला था। ननिहाल में ही वह कली सरोज बड़ी हुई जहां की लता सरोज की मां थी। वहीं उसने असमय मृत्यु का वरण किया , इस कविता में वहीं पिता का संघर्ष तथा पुत्री के लिए कुछ ना कर पाने का दुख भी व्यक्त हुआ है। कवि इस कविता में अपने सभी किए कर्मों से अपनी पुत्री का तर्पण करते हैं।
सरोज स्मृति सप्रसंग व्याख्या
मां की कुल शिक्षा ……………………………….. दृग वर महामरण।
प्रसंग –
कवि – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
कविता – सरोज स्मृति
संदर्भ –
इसमें कवि ने अपनी पुत्री के पालन-पोषण से लेकर उसकी मृत्यु तक का वर्णन किया है।
व्याख्या –
यहां कभी अपने स्वर्गीय पुत्री को संबोधित करते हुए कहता है कि मां के अभाव में मां के द्वारा पुत्री के विवाह पर पुत्री को दी जाने वाली शिक्षा मैंने ही तुम्हें दी। तुम्हारी पुष्प सैया मैंने ही सजाई , इस समय कवि को शकुंतला की याद आई जिस प्रकार महर्षि कण्व ने महामहिम शकुंतला को विवाह के पश्चात शिक्षा दी थी , उसी प्रकार कवि ने मां विहीन सरोज को शिक्षा दी थी।
लेकिन उस घटना और यहां की स्थिति में अंतर है क्योंकि शकुंतला को उसकी मां स्वयं छोड़ कर गई थी। लेकिन सरोज की मां को मृत्यु ले गई थी , विवाह के बाद सरोज फिर अपने ननिहाल चली गई। जहां नानी और मामा-मामी का उसे बेहद प्यार मिला। मामा-मामी सरोज पर प्यार की ऐसी वर्षा करते थे जैसे बादल पृथ्वी पर जल की वर्षा करते हैं। ननिहाल में सभी उसके सुख-दुख में लगे रहे , वह लोग हमेशा सरोज के कल्याण में ही व्यस्त रहते थे।
सरोज जिस लता की अर्थात अपनी मां मनोहरा की कली थी उस लता का पालन पोषण भी उसी घर में हुआ था। वह ननिहाल में पलवल कर किशोरी बनी और अब वहां युवती बनकर पहुंची है। अंत में सरोज ने ननिहाल में ही और समय मृत्यु का वरण किया ननिहाल वालों की गोद में ही अपनी आंखें मूंद ली।
विशेष –
- कवि अपनी स्वर्गीय पुत्री पर विलाप करते हुए उसे संबंधित घटनाओं को याद कर रहे हैं।
- शकुंतला को याद कर रहे हैं पुत्री से तुलना कर कवि की वेदना बड़ी है।
- भाषा खड़ी बोली
- छंद मुक्त कविता
- ‘मामा …… अपार’ – उपमा अलंकार
- वह लता …… महावरण – रूपक अलंकार
- छायावादी शैली
- पहला शोकगीत
- भाषा सरल , सरस ,लयात्मक
- कली, खली , पली , हिली …… पद मैत्री।
काव्य सौंदर्य ( सरोज स्मृति )
श्रृंगार रहा जो निराकार ……………… स्वर पर उतरा।
भाव सौंदर्य –
कवि को अपनी पुत्री के श्रृंगार में वही श्रृंगार दिखा जो आकार रहित रहकर उसकी कविता में रस भरता है। पुत्री का श्रृंगार व श्रृंगार गीत था जो उसने अपनी स्वर्गीय पत्नी के संग आया था , जो उसके प्राणों में राग रंग भरता था। सरोज विवाह के समय अत्यधिक सुंदर लग रही थी , कवि को लगा कि जैसे उसकी पत्नी का आलोक सौंदर्य आकाश से उतरकर पृथ्वी पर सरोज के रूप में आ गया हो।
सरोज का रति रूप कवि को उसकी पत्नी की याद दिला रहा था। सरोज के विवाह में कोई रिश्तेदार नहीं था ना , किसी को निमंत्रण भेजा गया था। ना मांगलिक गीत गाए गए , नाही रात को जागकर गीत गाए गए। केवल घर में प्यार भरा शांत वातावरण था , जो कि नव युगल के नव जीवन के लिए जरूरी था।
शिल्प सौंदर्य –
कवि – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
कविता – सरोज स्मृति
भाषा – खड़ी बोली
शैली – छायावादी
छंद – मुक्तक छंद
शब्दावली – तत्सम
अलंकार –
- अनुप्रास अलंकार – ‘राग-रंग’ ‘रति रूप’
- मानवीयकरण ‘प्रिय मौन …….. उतरा।’
- विरोधाभास – ‘प्रिय मौन एक संगीत भरा.’
- रूपक – ‘रति रूप’
छंद कविता – तुकांत
रस – वात्सल्य
बिम्ब – स्मृति
लयात्मकता
महत्वपूर्ण प्रश्न ( सरोज स्मृति )
प्रश्न – ‘आकाश बदलकर बना मही’ में आकाश और मही शब्द किन की ओर संकेत करते हैं।
उत्तर – आकाश कवि की स्वर्गीय पत्नी की ओर तथा मही नववधू के वेश में सजी कवि की पुत्री की ओर संकेत करते हैं। कवि की पुत्री विवाह पर अत्यधिक सुंदर लग रही थी , कवि को लगता था कि मानो उसकी पत्नी का अलौकिक सौंदर्य आकाश से उतरकर पृथ्वी पर सरोज के रूप में उतर आया हो। पुत्री सरोज रति जैसा सौंदर्य कवि को उसकी पत्नी की याद दिला रहा है।
प्रश्न – ‘वह लता वही कि जहां कली तू अकेली ‘ पंक्ति के द्वारा इस प्रसंग को उद्घाटित किया गया है ?
उत्तर – इस पंक्ति के द्वारा कवि का कहना है कि सरोज की मां का लालन-पालन भी वही हुआ था , जहां सरोज का हुआ। अर्थात सरोज ननिहाल में ही पली बढ़ी और युवा हुई।
प्रश्न – सरोज का विवाह अन्य विवाहों से किस प्रकार भिन्न था ?
उत्तर – सरोज का विवाह अन्य विवाहों से अनेक तरह से भिन्न था –
- इस विवाह में अन्य विवाहों की तरह सगे-संबंधी नहीं थे , क्योंकि उन्हें बुलाया नहीं गया था।
- उसके विवाह में उसके पिता ने कोई दान-दहेज नहीं दिया था।
- इस विवाह में कोई आडंबर या दिखावा नहीं था
- घर में विवाह के गीत भी नहीं गाए गए , ना ही दिन-रात सारा घर जागा। जैसे विवाह के अवसर पर सामान्यता देखा जाता है।
- विदाई के समय कन्या को दी जाने वाली शिक्षा भी कवि ने स्वयं अपनी बेटी को दी।
- शादी से पहले जो भी संस्कार किए जाते थे , वह भी नहीं किए गए क्योंकि कवि उन्हें नहीं मानता था।
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