तुलसीदास कृत रामचरितमानस विश्व भर का ऐसा ग्रंथ/महाकाव्य है जिसका कोई और सानी नहीं। उन्होंने आदर्श परिवार तथा जीवन की पद्धति को रामचरितमानस में उकेरा है विश्व भर को शिक्षा देने वाला रामचरितमानस कितना महान है इस पर जितनी चर्चा की जाए उतना ही कम। प्रस्तुत लेख में आप तुलसीदास द्वारा एक चौपाई की व्याख्या विस्तृत रूप से पढ़ेंगे।
कबित बिबेक एक नहिं मोरें। सत्य कहउँ लिखि कागद कोरें।।
शब्दार्थ- कबित-कविता, बिबेक- बुद्धि, नहिं- नहीं, मोरें- मेरी, कहउँ- कहूं, कागद- कागज, कोरें- सादा पन्ना।
भावार्थ- उपरोक्त चौपाई के माध्यम से तुलसीदास जी कहना चाहते हैं कि उनके पास कविता लिखने उसे समझने की एक भी बुद्धि मेरे पास नहीं है। मैं तो जो सत्य समझता हूं जो सत्य जानता हूं वह मैंने अपने अनुभव कोरे पन्ने पर लिखा है। यह वह लेखक लिख रहा है जिसने दुनिया भर में प्रसिद्ध राम चरित्र मानस जैसे महाकाव्य की रचना की। क्योंकि तुलसीदास जी का मानना है स्वयं की प्रशंसा सबसे बड़ा पाप है। उन्हें उनके संस्कार स्वयं की प्रशंसा करने से रोकते हैं इसलिए उन्होंने उपरोक्त चौपाई के माध्यम से स्वयं की बुद्धि विवेक शून्य होने की बात लिखी केवल अनुभव और सत्य को ही सर्वोपरि माना।
संबंधित लेख भी पढ़ें
कबीर के दोहे व्याख्या सहित – Kabir ke dohe
Deen Dayal Virad Sambhari Arth Sahit Vyakhya
Jaki Rahi Bhavna Jaisi Prabhu Murat Dekhi Meaning in Hindi
समापन
तुलसीदास जी लेखक दार्शनिक तथा समाज सुधारक आदि थे। उन्होंने रामचरितमानस के माध्यम से समाज में सामंजस्य स्थापित करने का कार्य किया। वह प्रशंसा आदि से बचके ईश्वर में ध्यान लगाने के लिए प्रेरित किया करते थे। इसलिए उन्होंने दुनिया का श्रेष्ठ महाकाव्य लिखकर भी स्वयं अनपढ़ के समान माना है। उन्होंने सत्य और ईश्वर को ही सर्वोपरि माना है। उपरोक्त लेख कैसा लगा अपने सुझाव कमेंट बॉक्स में लिखें, ताकि हम लेख, अधिक सुधार के साथ प्रस्तुत कर सकें।