कच्चा चिट्ठा बड़ा ही रोचक पाठ है , जिसमें लेखक के जिज्ञासु मन और संग्रह करने की प्रवृत्ति को इस पाठ के माध्यम से उतारा गया है। इस लेख में ब्रजमोहन व्यास का संक्षिप्त जीवन परिचय , पाठ का सार तथा महत्वपूर्ण प्रश्नों का अभ्यास करेंगे जो परीक्षा के अनुरूप तैयार किया गया है।
लेखक ने पुरातत्व संबंधी संग्रहालय का निर्माण , विभिन्न ऐतिहासिक संकलन , कम खर्च , ईमानदारी व मेहनत से किया है। इस पाठ को पढ़ने के बाद लेखक के व्यक्तित्व और उसके प्रवृत्ति का एक झलक मिल जाता है।
ब्रजमोहन व्यास का संक्षिप्त जीवन परिचय
लेखक – ब्रजमोहन व्यास
जन्म स्थान – सन 1886 इलाहाबाद
शिक्षा – इन्होंने पंडित गंगानाथ झा और पंडित बालकृष्ण भट्ट से संस्कृत का ज्ञान प्राप्त किया। आरंभिक शिक्षा इलाहाबाद में ही प्राप्त की।
कार्य / नौकरी – नगरपालिका के कार्यपालक अधिकारी रहे , समाचार पत्र समूह लीडर के जनरल मैनेजर भी रहे। इलाहाबाद में पुरातत्व संबंधी प्रयाग संग्रहालय का निर्माण किया अनुवाद कार्य भी किया।
रचनाएं –
- अनुवाद – जानकी हरण (कुमारदास कृत)
- जीवनी पंडित बालकृष्ण भट्ट , पंडित मदन मोहन मालवीय।
- आत्मकथा – मेरा कच्चा चिट्ठा।
साहित्यिक विशेषताएं – उनकी इतिहास और पुरातत्व में गहरी रुचि थी जिससे संग्रहकारी प्रवृत्ति और खोजशील वृत्ति के कारण वे देश और समाज को इलाहाबाद का विशाल और प्रसिद्ध संग्रहालय भेंट कर पाए।
भाषा शैली –
- रोचकता ,
- सहजादा ,
- संस्कृत ,
- लोकोक्ति और मुहावरेदार शैली का प्रयोग है।
उनकी रचना के माध्यम से उनका ऐतिहासिक और सामाजिक ज्ञान सहज ही प्रकट होता है।
मृत्यु सन – 1963
कच्चा चिट्ठा पाठ का सार
लेखक की पुरातत्व में संग्रह कारी वृत्ति – लेखक अपनी संग्रह कार्य प्रवृत्ति के कारण कहीं भी जाता था तो खाली हाथ नहीं लौटता था। पसोवा जाने पर भी लेखक को पुरातत्व से संबंधित चीजें मिली और उन्होंने उन सब को काफी कम कीमत पर खरीद लिया। इसके लिए उन्हें चाहे कोई चाल चलनी पड़ती , वह स्वयं को रोक नहीं पाते थे। जैसे चंद्रायण का व्रत करती बिल्ली को यदि चूहा दिख जाए तो उसे अपना धर्म निभाना ही पड़ता है।
लेखक का ईमानदार व्यक्तित्व –
मथुरा के लाल पत्थर की बनी 8 फुट लंबी मूर्ति जिसका सिर नहीं था , लेखक ने खेत में काम कर रही बुढ़िया से ₹2 में खरीदी। फ्रांस के एक व्यक्ति द्वारा जब उसका मूल्य ₹10000 आंका गया तब भी लेखक का ईमान नहीं डाला क्योंकि उन्होंने पुरातत्व संबंधी वस्तुओं का संग्रह संग्रहालय के लिए किया था, व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं ठीक। इसी प्रकार शिव की मूर्ति का उठाना किंतु गांव वाले के रोष प्रकट करने पर चुपचाप वापस कर देना , लेखक के ईमानदार व्यक्तित्व को प्रकट करता है।
संग्रहालय का शिलान्यास –
विभिन्न शिलालेख ताम्र – मूर्तियों , ताल पत्र पर हस्तलिखित पुस्तकों के गट्ठर , सिक्के , कई हजार चित्र , मनके , मोहरे एकत्रित करने पर उनको रखने का स्थान छोटा पड़ने लगा। फल स्वरुप मुंसपैल्टी एक्ट के तहत हर्जाना एकत्र कर कंपनी बाग में एक भूखंड भवन के लिए मिल गया। मुंबई के प्रसिद्ध इंजीनियर मास्टर साठे और भूता उन दोनों ने मिलकर संग्रहालय के भवन का नक्शा तैयार किया। ताराचंद ने भवन के शिलान्यास का पूरा कार्यक्रम निश्चित किया तथा प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संग्रहालय भवन का शिलान्यास किया।
लेखक संग्रहकर्ता आशिक नहीं –
लेखक को पुरातत्व संबंधी पुस्तकों को खोजने का शौक है। संग्रहालय के लिए लेखक विभिन्न हथकंडे अपनाकर उन वस्तुओं को औने-पौने दाम में खरीदते थे। उसे संग्रहालय में जमा कर निश्चिंत हो जाते थे , किसी आशिक की तरह वे वस्तुएं पाने के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार नहीं होते थे।
आभार प्रकट –
लेखक ने संग्रहालय निर्माण में विभिन्न लोगों का आभार व्यक्त करते हैं , जिसमें डॉक्टर पन्नालाल जिन्होंने भूखंड में सहायता की डॉक्टर ताराचंद जिन्होंने शिलान्यास का पूरा कार्यक्रम निश्चित किया। मास्टर साठे और भूता जिन्होंने संग्रहालय का नक्शा बनाया रायबहादुर, कामता प्रसाद कक्कड़ , हिज हाईनेस श्री महेंद्र सिंहजू देव नागौर , नरेश तथा सुयोग्य दीवान लाल भागवेंद्र सिंह के सहयोग और सहानुभूति से संग्रहालय बन सका।
उनका स्वामी भक्त अर्दली जगदेव का आभार प्रकट करते हैं।
कच्चा चिट्ठा महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न – अपना सोना खोटा तो पटेवा का कौन दोस ? से लेखक का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – इस कथन का तात्पर्य है कि जब अपनी चीज में कोई दोस रखने वाले का दोस देना व्यर्थ है। खोटी चीज हो तो परखने वाला तो खोटा ही कहेगा।
चतुर्मुख शिव की मूर्ति के गायब होने पर गांव वालों का शक लेखक पर ही गया।
उसके शक का आधार सही था। क्योंकि लेखक इस प्रकार के काम के लिए प्रख्यात हो चुका था। जब खोट उसमें था तो गांव वाले तो शक करेंगे ही , इसमें उसका कोई दोष नहीं था। यह एक स्वाभाविक सी बात थी।
प्रश्न – चंद्रायण व्रत करती हुई बिल्ली के सामने एक चूहा स्वयं आ जाए तो बेचारी को अपना कर्तव्य पालन करना ही पड़ता है। लेखक ने यह वाक्य के संदर्भ में कहा और क्यों ?
उत्तर – लेखक ने यह वाक्य स्वयं के लिए कहा , क्योंकि कौशांबी जाते हुए पुरातत्व संबंधी महत्वपूर्ण वस्तुएं लेखक को मिली लेकिन कोई व्यक्ति नहीं मिला जिससे पूछ कर वह ले लेते। वे महत्वपूर्ण वस्तुएं लेखक को ललचा रही थी , क्योंकि संग्रहालय की दृष्टि से वे अत्यंत महत्वपूर्ण थी इसलिए लेखक चतुर्मुख शिव की मूर्ति को उठाने का मोह छोड़ नहीं पाया। लेखक का मन उस मूर्ति को देखकर ललचा गया ठीक उसी प्रकार जैसे बिल्ली के सामने चूहा आ जाए तो उसे खा ही लेती है , भले ही उसने चंद्रायण व्रत रखा हो जो अत्यंत कठिन हो।
सप्रसंग व्याख्या ( कच्चा चिट्ठा )
मैं तो केवल निमित्त मात्र ………………………… मैंने सन्यास ले लिया।
प्रसंग –
लेख – कच्चा चिट्ठा
लेखक – ब्रजमोहन व्यास
संदर्भ –
लेखक द्वारा प्रयाग संग्रहालय का निर्माण करते करते इस तरह उससे जुड़ गए कि उन्हें वह अपने पुत्र के समान प्रतीत होने लगा।
व्याख्या ( कच्चा चिट्ठा ) –
लेखक अपना आभार व्यक्त करते हुए कहते हैं कि वह तो एक साधन मात्र थे , केवल बहाना भर थे , इस महान कार्य को संपन्न करने में। जिस प्रकार सूर्य के उगने से पूर्व आकाश में फैली लालिमा संकेत देती है कि सूर्योदय होने वाला है। वैसे ही मेरे कार्यों की सहायता से यह महान कार्य संपन्न हो सका। यह संग्रहालय मेरे पुत्र के समान था , जिसे मैंने जन्म दिया उसका पालन पोषण कर बड़ा किया तथा उसके रहने की व्यवस्था की। अर्थात संग्रहालय की एक – एक वस्तु का संग्रह किया उसका निर्माण कर उसके लिए विशाल भवन बनवा दिया , उसके संरक्षण हेतु अभिभावक को सौंप कर स्वयं उस कार्य से मुक्ति ली।
विशेष –
- भाषा – सरल सुबोध तथा प्रवाह पूर्ण है
- शब्द भंडार – तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है
- शब्द शक्ति – लक्षणा शब्द शक्ति
- गुण – प्रसाद गुण
- भाषा प्रवाह – विचारों की अभिव्यक्ति हेतु सुगम भाषा का प्रयोग
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प्रेमघन की छाया स्मृति – लेखक का जीवन परिचय , पाठ का सार , महत्वपूर्ण प्रश्न।
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