चंद्रधर शर्मा गुलेरी की ख्याति हिंदी जगत में काफी समय से है , उन्हें सामाजिक कवि माना गया है। उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से समाज के वर्ग को यथार्थ रूप में चित्रित किया है। इस लेख में आप गुलेरी जी का संक्षिप्त जीवन परिचय , ( सुमिरिनी के मनके, घडी के पुर्जे, ढेले चुन लो ) महत्वपूर्ण प्रश्न तथा पाठ का सार पढ़ेंगे जो परीक्षाओं के अनुरूप है।
सुमिरिनी के मनके, घडी के पुर्जे, ढेले चुन लो – हिंदी नोट्स
यह पाठ बाल मनोविज्ञान के आधार पर है , जिसमें बालक के मनोवृति का बड़े ही बारीकी से अध्ययन किया गया है। बालक के मन में जो भाव बाल वृत्ति के कारण रहते हैं , उसका दमन करके जब दूसरे भाव को उसके भीतर भरा जाता है तो वह स्वाभाविक प्रवृत्ति से विपरीत बर्ताव करने लगता है। अंततोगत्वा बालक की स्वाभाविक प्रवृत्ति बाहर निकल कर आती है।
चंद्रधर शर्मा गुलेरी का संक्षिप्त जीवन परिचय
लेखक – पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी
जन्म/ स्थान – 1884 राजस्थान जयपुर
शिक्षा – उनकी रूचि बचपन से ही पढ़ने लिखने में थी। गुलेरी जी को संस्कृत , पालि , प्राकृत , अपभ्रंश , ब्रज , अवधि , मराठी , गुजराती , पंजाबी , बंगला , अंग्रेजी , लैटिन तथा फ्रेंच भाषाओं का अच्छा ज्ञान था।
कार्य – अध्यापन कार्य – अजमेर के मेयो कॉलेज में पहले अध्यापक और फिर प्रधानाध्यापक बने , बाद में ओरिएंटल कॉलेज के प्रधानाचार्य भी रहे।
उपाधि – उन्हें इतिहास दिवाकर की उपाधि से सम्मानित भी किया गया था।
रचनाएं – कहानी –
- ‘घंटाघर’ ,
- ‘सुकन्या’ ,
- ‘बुद्ध का कांटा’ , ‘
- हीरे का हार’ ,
- ‘सुखमय जीवन’ ,
- ‘उसने कहा था ‘
साहित्यिक विशेषताएं – संस्कृत भाषा एवं साहित्य के प्रकांड पंडित थे। उसने कहा था एक अद्भुत और नितांत भिन्न एवं मौलिक कहानी लिखकर एक विशिष्ट ख्याति अर्जित की थी।
गुलेरी जी एक प्रतिष्ठित निबंधकार थे।
भाषा शैली – इनकी भाषा शैली अत्यंत सरल एवं सहज है। साथ ही विषयों को बड़ी गंभीरता से पाठक के सामने प्रस्तुत करती है। गुलेरी जी बहुभाषी ज्ञानी थे।
विधा – निबंध – ‘बालक बच गया’
मूल संवेदना – वर्तमान समाज में बच्चे रट – रट कर उत्तीर्ण हो तो जाते हैं , किंतु व्यवहारिक जीवन में उच्च शिक्षा को उतार नहीं पाते।
सुमिरिनी के मनके पाठ का सार
बालक की विद्वता का प्रदर्शन – विद्यालय के वार्षिकोत्सव में प्रधानाध्यापक का ठीक पुत्र अपनी विद्वता का प्रदर्शन करता दिखता है। जिसे देख पिता और अध्यापक फूले नहीं समा रहे हैं।
वृद्ध महाशय द्वारा बालक के बचपन के बचने की संतुष्टि – वृद्ध महाशय द्वारा इनाम मांगने पर बच्चे के चेहरे पर एक रंग आता है , एक रंग जाता है। जब लड्डू शब्द उस बच्चे के मुख से सुनते हैं तो निश्चिंत होते हैं। लेखक को महसूस होता है कि बालक बच गया अर्थात उसके बचपन का भाव अभी उसमें ही निहित है क्योंकि लड्डू की मांग उसके बालपन की स्वाभाविक मांग है।
दूषित शिक्षा प्रणाली की ओर संकेत – वर्तमान शिक्षा पद्धति को गुलेरी जी राष्ट्र के लिए घातक मानते हैं। धर्म हो या विज्ञान प्रकृति हो या पौराणिक ता ठोस शिक्षा बच्चे के व्यक्तित्व के लिए आवश्यक है।
लेखक बचपन को जीवित रखते हुए ही बच्चों को शिक्षित करने के पक्षधर हैं।
सुमिरिनी के मनके पाठ के प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1 – निबंध ‘बालक बच गया’ हमारी किस मानसिकता की ओर संकेत करता है ?
उत्तर – इस निबंध के माध्यम से लेखक बताना चाहता है कि हम सब शिक्षा देने के नाम पर बच्चों पर कठिन से कठिन ज्ञान को उसके कच्चे मन पर थोपना चाहते हैं। उसे हम केवल प्रदर्शन का माध्यम बना देते हैं , जबकि शिक्षा वास्तव में बोझ की भांति थोपी हुई नहीं होनी चाहिए।
लेखक बच्चों के भीतर उनके बचपन को जीवित रखते हुए ही उन्हें शिक्षित करना चाहते हैं।
प्रश्न 2 – बालक द्वारा इनाम में लड्डू मांगने पर लेखक ने सुख की सांस क्यों ली ?
उत्तर – बालक के पिता व उसके शिक्षकों ने बालक की स्वभाविक प्रवृत्तियों का गला घोटने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। लेखक बैठे बैठे उस बालक को सुन रहा था और सोच रहा था कि क्या किसी बालक को उसकी अभी खेलने-खाने की उम्र हो उस पर शिक्षा का इस प्रकार का दबाव उचित है ? जब बालक ने लड्डू मांगा तो लेखक को लगा कि अभी इस बालक का बचपन मरा नहीं है। अभी भी इसको इस दबाव से उभारा जा सकता है लेखक के द्वारा सुख की सांस लेने का यही कारण था।
सुमिरिनी के मनके सप्रसंग व्याख्या
उसके बचने की आशा…………………. वाली खड़खड़ाहट नहीं।
प्रसंग –
लेख – बालक बच गया
लेखक – पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी
संदर्भ – इन पंक्तियों में लेखक ने शिक्षा को जबरदस्ती बच्चे पर थोपने की प्रवृत्ति का विरोध करते हुए उसकी तुलना सुखी और हरी लकड़ी से की है।
व्याख्या ( सुमिरिनी के मनके ) –
बालक के लड्डू मांगने पर लेखक ने राहत की सांस ली और पाया कि बच्चों में बचपन की स्वाभाविकता अभी भी शेष बची है। उसके द्वारा लड्डू की मांग वास्तव में जीवित और हरे पेड़ के पत्तों की जीवंत ध्वनि के समान है जो सभी को संगीत में लगती है शांति और मधुरता का आभास देती है। जबकि बच्चे को कठिन से कठिन प्रश्नों का उत्तर राटवाना सूखी लकड़ी कर्कश चरमराहट की ध्वनि के समान है।
जिसकी चौखट बना दी जाती है और खड़खड़ाहट कानों को चुभती है।
भाषा विशेष –
- भाषा – खड़ी बोली , विषय अनुकूल भाषा का प्रयोग।
- शब्द भंडार – तत्सम , तद्भव शब्दों का सटीक प्रयोग।
- शब्द शक्ति – लक्षणा शब्द शक्ति।
- गुण – प्रसाद गुण
- भीष्म प्रवाह – विचारों को गति प्रदान करने वाली भाषा है।
घड़ी के पुर्जे पाठ का सार
मूल संवेदना – लेखक ने घड़ी के पुर्जों के माध्यम से धर्म विषयक बखान या उपदेश करने वालों पर व्यंग्य किया है। धर्म उपदेशक धर्म के रहस्यों को स्वयं नहीं मानते पर लंबे-लंबे उपदेश देकर धर्म रहस्यों को अपनी सम्मति मानते हैं।
धर्म का प्राचीन स्वरूप – धर्माचार्य अपने पुर्जों से प्राप्त धर्म संबंधी ज्ञान को अपने तक ही सीमित रखना चाहते हैं तथा लंबे-लंबे उपदेश देकर अपनी विद्वता आम लोगों पर थोपना चाहते हैं। धर्म से जुड़ी बातों में कुछ भी नया या वैज्ञानिक नहीं लाना चाहते हैं।
अभी तो अपने प्राचीन ज्ञान से ही जनता पर अपनी प्रतिष्ठा बनाना चाहते हैं।
घड़ी के पुर्जों के माध्यम से धर्म के रहस्य की व्याख्या – लेखक ने घड़ी के पुर्जों को केवल समय बताने तक ही सीमित नहीं रखा। अभी तो वह साधारण व्यक्तियों को भी घड़ी को खोल कर देख ने उसके कलपुर्जे साफ करके फिर से जोड़ने का अधिकार देना चाहते हैं। अर्थात धर्म के गुण रहस्य भी धर्म उपदेशक तक ही सीमित ना रहे जन सामान्य का भी उसके गहरे अर्थों को समझने का अधिकार देना चाहिए।
प्रश्न उत्तर
प्रश्न – लेखक ने धर्म का रहस्य जानने के लिए घड़ी के पुर्जों का ही दृष्टांत क्यों चुना ?
उत्तर – लेखक ने धर्म का रहस्य जानने के लिए घड़ी के पुर्जों का उदाहरण दिया है क्योंकि उन्होंने घड़ी को केवल समय बताने वाली मशीन समझने तक ही सीमित ना रखने को कहा। घड़ी को खोल कर देख ने उसकी साफ-सफाई कल-पुर्जों के विषय में जानकारी हासिल करने का अधिकार सबका होना चाहिए। इसी प्रकार धर्म से संबंधित बातें धर्म उपदेश को अपने तक ही सीमित ना रहे सभी को उसके अर्थों का बोध कराया जाना चाहिए।
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प्रेमघन की छाया स्मृति – लेखक का जीवन परिचय , पाठ का सार , महत्वपूर्ण प्रश्न।
सप्रसंग व्याख्या
धर्म का रहस्य जानने ………………….. कई बातें निकल आवे।
प्रसंग –
लेख – घडी के पुर्जे
लेखक – पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी
संदर्भ –
लेखक का मत है कि धर्म कुछ व्यक्ति विशेष तक ही सीमित ना रहे , अपितु आम लोग उसका बुरा भला समझ सके , जिससे समाज का समग्र विकास हो सके।
व्याख्या –
धर्म आचार्यों के अनुसार उसके द्वारा बताई गई धर्म की व्याख्या समाज के लिए पर्याप्त है। लेखक घड़ी का उदाहरण देकर समझाता है कि घड़ी का कार्य केवल समय बताने तक ही सीमित नहीं है घड़ी देखना यदि नहीं आता तो किसी से भी समय पूछ सकते हो। इस तरह धर्म की जानकारी नहीं है तो भी केवल धर्म आचार्यों से ही पूछ कर संतुष्ट हो जाओ उसकी बारीकियों में जाने की कोशिश मत करो। जिस प्रकार घड़ी से केवल समय देखने का काम करो उसके पुर्जे ठीक करने की कोशिश मत करो उसी प्रकार धर्म की भी गहरी छानबीन मत करो।
भाषा विशेष –
- भाषा सरल सुबोध , खड़ी बोली।
- शब्द भंडार – तत्सम , तद्भव शब्दों का प्रयोग।
- शब्द शक्ति – लक्षणा शब्द शक्ति।
- गुण – प्रसाद गुण
- भाषा – प्रवाह विषय अनकूल भाषा प्रवाह है।
ढेले चुन लो पाठ का सार
मूल संवेदना – यह निबंध लोक जीवन में व्याप्त अंधविश्वासों पर व्यंग करता है , जो हमारे समाज की गहन तथा गंभीर समस्या है। लेखक का मत है कि अपनी आंखों से देखें सत्य को ही सत्य मानना चाहिए।
भविष्य की झूठी कल्पना पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
समाज में व्याप्त अंधविश्वास – अपने जीवनसाथी को चुनने के लिए सोने चांदी तथा लोहे की पेटियां अथवा विभिन्न मिट्टी के ढेरों पर विश्वास एक अंधविश्वास मात्र है। जिसका कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं है , जो समाज के सहायक ना होकर घातक सिद्ध होते हैं।
वर्तमान पर विश्वास – लेखक मोर , कबूतर , मोहर पहाड़ , चक्की इत्यादि विभिन्न उदाहरण देकर अपने विचार पुष्ट करते है कि भविष्य की नींव कल्पना मात्र पर ना टीकाकार गति की मजबूत धरती पर खड़ी करनी चाहिए। वर्तमान के सत्य को नकारना नहीं चाहिए तथा भविष्य की कल्पना को सत्य मानकर स्वीकारना नहीं चाहिए।
प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1 – ‘ढेले चुन लो’ पाठ में किस अंधविश्वास की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर – इस पाठ में जिस विवाह रीति का वर्णन किया गया है , वह अंधविश्वास की प्रतीक है। जिसमें मिट्टी के ढेलों के आधार पर वधु को चुना जाता है। लड़की के सामने खेत की , हवन की , दरगाह की , वह शमशान की मिट्टी के ढेले रखे जाते हैं। लड़की जिसे उठा ले उसका भविष्य उसी के आधार पर निर्धारित होता है।
यह अंधविश्वास ही था कि शमशान की मिट्टी के ढेले उठाने पर अपशगुन होगा।
सप्रसंग व्याख्या
आज का कबूतर ………………….. तेजपिंड से। ।
प्रसंग –
लेख – ढेले चुन लो
लेखक – पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी
संदर्भ –
लेखक ने लोक जीवन में व्याप्त अंधविश्वासों से भरी हुई मान्यताओं का खंडन किया है।
व्याख्या –
लेखक का मत है कि हमें वर्तमान पर विश्वास करते हुए जीना चाहिए , जो आज उपलब्ध है वही सत्य है और अपना है कल की कल्पना में आशा करते हुए जीना व्यर्थ है। लेखक उदाहरण देकर समझा रहे हैं कि यदि आज कबूतर उपलब्ध है तो भविष्य में मिलने वाले मोर की कल्पना करते करते कबूतर भी मत छोड़ देना। आज यदि पैसा हाथ में है कल स्वर्ण मोहर की कल्पना से उस पैसों को मत छोड़ो क्योंकि आंखों देखा ही सत्य है लाखों कोस दूर मंगल , बुध , शनि ग्रह पर विश्वास ना कर वर्तमान की स्थिति और सच्चाई पर विश्वास करो।
भाषा विशेष –
- भाषा – आम बोलचाल की सरल व सहज भाषा है।
- शब्द भंडार – तद्भव शब्द प्रधान खड़ी बोली।
- शब्द शक्ति – लक्षणा शब्द शक्ति।
- गुण – प्रसाद गुण।
- भाषा – प्रवाह विचारों को स्पष्टता देने वाली भाषा है।