इस लेख में आप केदारनाथ सिंह जी का संक्षिप्त जीवन परिचय , बनारस कविता कक्षा 12 पाठ का सार , सप्रसंग व्याख्या , काव्य सौंदर्य तथा महत्वपूर्ण प्रश्नों का संकलन प्राप्त करेंगे जो परीक्षा के अनुरूप तैयार किया गया है।
केदारनाथ सिंह प्रयोगवाद परंपरा में से एक प्रतिष्ठित कवि थे। इन्होंने अपने काव्य के माध्यम से लोकजीवन को जोड़ने का प्रयास किया है। इनके सभी साहित्य पर समग्र रूप से प्रकाश डालें तो प्रतीत होता है इनके काव्य लोक जीवन के आसपास है।
केदारनाथ सिंह जी का प्रत्येक काव्य किसी विशेष विषय पर ध्यान आकृष्ट करता है।
वैसे ही उनकी कविता ‘बनारस’ भी है। बनारस जो आस्था , धर्म और मोक्ष का स्थान माना जाता है , वहां के बदलते क्षण – प्रतिक्षण के दृश्य को केदारनाथ सिंह ने बड़ी ही बारीकी से प्रस्तुत किया है। जिसे सामान्य व्यक्ति देख कर भी अनदेखा कर देता है अर्थात उस विषय पर कभी ध्यान नहीं दे पाता।
केदारनाथ सिंह ( बनारस कविता कक्षा 12 ) जीवन परिचय
जन्म – सन 1934 को उत्तर प्रदेश के चकिया गांव में।
शिक्षा – बी.ए. बनारस के उदय प्रताप कॉलेज से , m.a. काशी हिंदू विश्वविद्यालय से।
उपाधि – पी.एच.डी. आधुनिक हिंदी कविता में बिंब विधान का विकास।
कार्य – अध्यापन कार्य – बनारस , देवरिया , गोरखपुर तथा नई दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली के भारतीय भाषा केंद्र में हिंदी के प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हुए।
लेखन कार्य – अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरा सप्तक में उनकी कविताएं शामिल की गई। केदारनाथ जी हिंदी के साठोत्तरी कविता धारा के विशिष्ट रचनाकार हैं जो पिछले पांच दशकों से रचना कर्म में लगे हैं।
रचनाएं – काव्य संग्रह – अभी बिल्कुल अभी , यहां से देखो , अकाल में सारस , जमीन पक रही है।
आलोचना – कल्पना और छायावाद
निबंध संग्रह – मेरे समय के शब्द , कब्रिस्तान में पंचायत।
पुरस्कार –
- अकाल में सारस पर साहित्य अकादमी पुरस्कार
- मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रीय सम्मान
- कुमारन आशान व्यास सम्मान
- दयावती मोदी पुरस्कार
काव्यगत विशेषताएं –
- केदारनाथ सिंह नई कविता – धारा के वरिष्ठ रचनाकार हैं।
- उनकी अधिकतर कविताओं में संवेदना और विचार की उपस्थिति उन्हें सहज और प्रभावपूर्ण बनाती है।
- सौंदर्य और प्रेम से युक्त काव्य
- आस्था और विश्वास का स्वर
- सामाजिक चेतना की अभिव्यक्ति
बनारस कविता का परिचय
बनारस कविता में कवि केदारनाथ सिंह ने बनारस के सांस्कृतिक एवं सामाजिक परिवेश का सजीव चित्रण किया है , उसमें आस्था , श्रद्धा , विरक्ति , विश्वास , आश्चर्य और भक्ति का समावेश है। मृत्यु यहां किसी अंत के बोध से पैदा होने वाली हताशा का कारण नहीं बनती।
बल्कि जीवन को नए सिरे से जीने की सीढ़ी है , यहां ना तो हवन कुंड से धुआं उठना बंद होता है और ना चिता की अग्नि ठंडी होती है।
सप्रसंग व्याख्या ( बनारस कविता )
जो है वह सुगबुगाता ……………..कटोरों का निचाट खालीपन।
प्रसंग –
कवि – केदारनाथ सिंह
कविता – बनारस
संदर्भ –
इसमें कवि ने बसंत के समय जागृत उल्लास व नवीन चेतना का बड़ा ही सजीव चित्रण किया है।
व्याख्या –
जब बनारस में बसंती हवा चलने लगती है तो , जिसमें चेतना का रूप दिखाई नहीं देता उसमें भी अंकुरण होने लगता है , अर्थात बसंत के आगमन से पूरे वातावरण में नया उल्लास व जोश आने लगता है। आदमी जब दशाश्वमेध घाट पर जाता है तो गंगा के निरंतर स्पर्श से घाट का पत्थर भी मुलायम हो जाता है। अर्थात हमारे मन में व्याप्त कठोरता भी आस्था व भक्ति से मुलायम होने लगती है। यहां घाट की सीढ़ियों पर बैठे बंदरों की आंखें भी अजीब सी चमक से भरी रहती है। भिखारियों के कटोरा को एकदम खालीपन एक विचित्र सी चमक से भरा हुआ दिखाई देता है। अर्थात सब उनके खाली कटोरे भी दान दक्षिणा से लबालब भर जाएंगे।
विशेष –
यहां कवि ने बनारस शहर का सजीव चित्रण किया है।
काव्य सौंदर्य –
- खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग किया है
- मुक्तक छंद की रचना है
- ‘बैठे बंदरों’ और ‘एक अजीब’ में अनुप्रास अलंकार है .
- और पाता …. हो गया है ‘ में विरोधाभास अलंकार है
बनारस कविता की सप्रसंग व्याख्या
जो वह खड़ा है ……… बिलकुल बेखबर।
प्रसंग –
कवि – केदारनाथ सिंह
कविता – बनारस
संदर्भ –
इसमें कवि ने बनारस शहर की आस्था विश्वास और श्रद्धा का वर्णन किया है।
व्याख्या – कवि कहता है कि बनारस जो कुछ है वह बिना किसी खंबे के सदियों से खड़ा है। अर्थात लोगों के मन की आस्था , श्रद्धा , विश्वास , भक्ति आदि सब कुछ बिना सहारे के अपने आप ही लोगों के जन-जीवन में रच बस गया है। जो दिखाई नहीं देता उसे राख और रोशनी के ऊंचे-ऊंचे आग के खंबे और पानी के खंभे , धुंए के , सुगंध के और आदमी के उठते हुए हाथों के खंभे थामे हुए हैं।
बनारस शहर सदियों से किसी न देखे हुए सूर्य को अरग देता हुआ गंगा के जल में अपनी एक टांग पर खड़ा है। अर्थात अपनी दूसरी टांग बिल्कुल अनजान बना हुआ लोग गंगा स्नान करते हैं। सूर्य को ईश्वर का रूप मानते हैं और एक पैर पर खड़े होकर अर्घ देते हैं। उस समय उन्हें अपने दूसरे पैर का ध्यान नहीं होता। यहां कवि कहना चाहता है कि इसे अन्य संस्कृतियों से ना चिंता है , ना लगाओ , ना द्वेष इसलिए यह शहर अपने आप ही में पूर्ण है विलक्षण है , अद्भुत है।
विशेष – बनारस में एक तरफ आध्यात्मिकता का दर्शन होता है और दूसरी तरफ आधुनिकता का।
काव्य सौंदर्य –
- खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग
- मुक्तक छंद
- ‘ऊंचे-ऊंचे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है
- ‘बिलकुल बेखबर’ में अनुप्रास अलंकार है।
बनारस कविता का काव्य सौंदर्य
अगर ध्यान से देखो ………….. और, आधा नहीं।
भाव सौंदर्य –
संध्या के समय बनारस शहर को ध्यान पूर्वक देखने पर पता चलता है कि यह शहर आधा पूर्ण है और आधा रिक्त। संध्या के समय मंदिरों , घाटों पर आधा बनारस शहर जल मंत्र और फूल से भगवान की आरती करते हुए श्रद्धा भक्ति में सराबोर हुआ दिखता है।
शिल्प सौंदर्य –
कवि – केदारनाथ सिंह
कविता – बनारस
भाषा – खड़ी बोली
शैली – प्रगतिवादी
रस – शांत रस
छंद – मुक्तक छंद
अलंकार – अनुप्रास
प्रतीक विधान – प्रतीकात्मकता
शब्द शक्ति – लक्ष्णा
शब्द चयन – तत्सम शब्दावली
छंद कविता – तुकांत कविता
गुण – ओज गुण
सार – यहां के जीवन में अत्यंत दुख है तो उत्कट सुख भी।
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बनारस कविता का महत्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न – ‘खाली कटोरा में बसंत का उतरना’ से क्या आशय है ?
उत्तर – इस कथन के माध्यम से कवि या कहना चाहता है कि वसंत के आने पर सारे बनारस शहर में धूल भरी आंधियां चलने लगती है। वही खाली कटोरे लेकर बैठे भिखारी को यह उम्मीद होने लगती है कि वसंत आते ही अनेक त्यौहार आएंगे और उन खाली कटोरा में दान देने वाले लोगों के कारण दान दक्षिणा से भर जाएंगे। अर्थात अब फिर से उनके खाली कटोरे पैसों से लबालब भर जाएंगे।
प्रश्न – बनारस की पूर्णता और रिक्तता को कवि ने किस प्रकार दिखाया है ?
उत्तर – बनारस की पूर्णता बनारस के गंगा के तट पर सदा किसी न किसी त्योहार की भीड़ लगी रहती है। श्रद्धालु दूर-दूर से आकर पूजा-पाठ स्नान दान तथा शिव के दर्शन करते हैं और खूब दान दक्षिणा पूर्ण कर पुण्य कमाते हैं। इस प्रकार यह शहर भरा रहता है। बनारस की रिक्तता बनारस की रिक्तता से आशा है कि दिन ढलते – ढलते अपने श्रद्धालु घर लौट जाते हैं यह शहर अंधेरी गलियों से गंगा की तरफ जाने वाले शवों को दिखाया है जिसमें शहर धीरे-धीरे खाली होता रहता है।
दिशा कविता का परिचय
दिशा बाल मनोविज्ञान पर आधारित है , कवि केदारनाथ की एक लघु कविता है। इसमें बच्चों को निश्चल और स्वाभाविक सरलता का अत्यंत भावपूर्ण चित्र हुआ है। इसे कवि पतंग उड़ाते हुए बालक से पूछता है कि बताओ हिमालय किधर है। इस पर बालक बिना कोई विचार किए बाल सुलभ सरलता से उत्तर देता है कि जिधर उसकी पतंग उड़ती जा रही है हिमालय उधर ही है। बालक का यह सहज उत्तर कवि को मोह लेता है कवि सोचता है कि प्रत्येक व्यक्ति का अपना-अपना यथार्थ है।