इस लेख में पद्माकर का संक्षिप्त जीवन परिचय , कविता की व्याख्या तथा महत्वपूर्ण प्रश्नों का अभ्यास है जो परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी है। पद्माकर रीतिकालीन कवि हैं रीतिकालीन कवि श्रृंगार रस का भरपूर प्रयोग किया करते थे। पद्माकर इससे अछूते नहीं हैं , उनके साहित्य में श्रृंगार रस प्रचुर मात्रा में अनुभव करने को मिलता है।
पद्माकर का लगभग समस्त काव्य तथा साहित्य कृष्ण भक्ति तथा श्रृंगार रस से परिपूर्ण है।
उन्होंने कृष्ण के बालक रूप से युवा रूप तक की बड़ी ही सूक्ष्मता से रूप अपने साहित्य में उतारा है। कृष्ण तथा गोपियों की लीलाओं उसके माध्यम से भक्ति रस का परमानंद अपने भक्तों पर न्योछावर करने की लीलाओं का वर्णन किया है।
पद्माकर का संक्षिप्त जीवन परिचय
पद्माकर का जन्म 1733 में बांदा में हुआ। इनके पिता श्री मोहनलाल भट्ट थे। इनके पिता व अन्य वंशज कवि थे , इसलिए इनके वंशज का नाम कवीश्वर पड़ा। बूंदी नरेश , पन्ना के राजा जयपुर से इन्हें विशेष सम्मान मिला। इनका निधन 1833 में हुआ।
रचनाएं – पदमाभरण , रामरसायन , गंगा लहरी , हिम्मत बहादुर , विरुदावली , प्रताप सिंह , विरुदावलि , प्रबोध पचासा मुख्य रचनाएं हैं। कवि राज शिरोमणि की उपाधि से इन्हें सम्मानित किया गया।
काव्यगत विशेषताएं – पद्माकर ने अपना काव्य ब्रजभाषा में रचा है , जिसमें अलंकारों की विविधता है। अनुप्रास , यमक , शैलेश , उपमा , उत्प्रेक्षा इनके प्रिय अलंकार हैं। भाषा भावानुकूल और शब्द चयन विषय अनुकूल है। भाषा में प्रवाह और गति है। मुहावरे और लोकोक्तियां का सुंदर प्रयोग किया है , सवैया और कविता छंद का सुंदर प्रयोग किया है। पद्माकर रीतिकालीन कवि है , अपनी अधिकतर रचनाओं में प्रेम और सौंदर्य का सजीव चित्रण किया है।
पद्माकर कविता 1
औरें भांति कुंजन …………………. बन हैं गए। ।
प्रसंग –
कवि – पद्माकर
काल – रीतिकाल
छंद – कविता
सन्दर्भ – वसंत ऋतु के आगमन का चित्रण किया गया है , ऋतुराज ने प्राकृतिक सौंदर्य का तथा नव युवकों एवं पक्षी समाज पर पड़ने वाले उसके प्रभाव का चित्रात्मक वर्णन किया है।
व्याख्या – ऋतुराज वसंत की मादकता का मनोहारी चित्रण किया है। वसंत के आगमन से प्रकृति की शोभा में वातावरण के सौंदर्य में वृद्धि होती है। समस्त प्रकृति , राग , रस और रंग से पूरित हो उठती है। मन व शरीर में उत्साह का संचार होता है , वसंत ऋतु एक अलग ही प्रकार का चमत्कार पूर्ण प्राकृतिक परिवर्तन और सौंदर्य लेकर आती है।
शिल्प सौंदर्य –
- वसंत ऋतु का मोहक चित्रण किया गया है
- कविता की भाषा ब्रज है
- ‘औरे’ एक शब्द को बार-बार आवृत्ति करके चमत्कार उत्पन्न किया गया है। इससे अर्थ सौंदर्य की वृद्धि हुई है।
- अनेक स्थलों पर अनुप्रास अलंकार की छटा है। ‘भीर भंवरे’ , ‘छलिया छबीले छैल छवि छवे ‘
- भाषा में तुकातमक्ता और माधुर्य गुण दृष्टव्य है।
- श्रृंगार रस है
- चित्रात्मक वर्णन है
- गेयता और संगीतातम्कता विद्यमान है।
महत्वपूर्ण प्रश्न ( पद्माकर कविता 1 )
प्रश्न – पहले पद में कवि ने किस ऋतु का वर्णन किया है ? इस ऋतु में प्रकृति में क्या परिवर्तन होते हैं ?
उत्तर – प्रथम पद में कवि ने वसंत ऋतु का वर्णन किया है , वसंत ऋतु में प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं। बाग – बगीचों में भंवरों की भीड़ बढ़ जाती है। बाग बगीचों में तरह-तरह के फूल खिल जाते हैं। आम के पेड़ों की डालियों पर बोर आ जाता है। पक्षियों का समूह कुछ और ही प्रकार से आवाज करने लगता है।
प्रश्न – ‘ऐसे ऋतुराज के ना आज दिन द्वे गए’ से कवि क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – कवि का तात्पर्य है कि वसंत ऋतु का अभी-अभी प्रारंभ हुआ है , इसको आए अभी अधिक दिन नहीं बीते अभी से प्राकृतिक सौंदर्य मन को लुभाने लगा है। जब वसंत का सौंदर्य अपने चरम शिखर पर होता है। उसकी शोभा अतुलनीय होती है उसका सौंदर्य अद्भुत विलक्षण होता है।
प्रश्न – इस कविता में किस ऋतु का वर्णन है ?
उत्तर – वसंत ऋतू का
प्रश्न – इस ऋतु के आगमन का प्रकृति , नर , पक्षी समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर – सभी हर्ष उल्लास और ऊर्जा से भर जाते है चारो और ख़ुशी की व्यार बहने लगती है।
प्रश्न – छलिया छबीले छैल में कौन सा अलंकार है ?
उत्तर – अनुप्रास अलंकार
प्रश्न – ऋतुराज शब्द का प्रयोग किसके लिए वह क्यों किया है ?
उत्तर – वसंत ऋतू के लिए
पद्माकर कविता 2
गोकुल …………………………….. निचोरत बनै नहीं।
प्रसंग –
कवि – श्री पद्माकर
कविता का नाम – प्रकृति और श्रृंगार
सन्दर्भ –
रीतिकालीन कवि पद्माकर की प्रकृति और श्रृंगार शीर्षक से उद्धृत कविता में कवि ने गोकुल में कृष्ण ग्वालों , गोपियों की होली के अवसर पर की गई धूम मस्ती , छेड़छाड़ का वर्णन किया है। रंग खेलते-खेलते गोपी किस प्रकार कृष्ण को अपना हृदय चोरी-चोरी दे देती है , इसका सुंदर चित्रण है।
व्याख्या –
कवि कहता है कि गोकुल में गलियों में गांव में जहां तक भी लोग हैं वह कुछ ना कुछ अविवेकपूर्ण बातें कर रहे हैं। पर कोई किसी की बात का बुरा नहीं मानता है। कवि कहता है कि पड़ोस में , पिछवाड़े में सब एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक दौड़ रहे हैं लेकिन कोई किसी के गुण – अवगुण को नहीं देख रहा। ऐसे में चतुर सखी के बारे में क्या कहूं कि दूसरी सखी अपने रंग भीगे वस्त्रों को अभी निचोड़ भी नहीं पाई थी कि उसे पुनः सखी ने रंग डालकर और भिगो दिया।
इस सखी को कोई रोक नहीं रहा है।
इस पर रंग में भीगी सखी कहती है कि मैं तो चोरी-चोरी कृष्ण के रंग में रंगी जा चुकी हूं।
अर्थात मेरा तन-मन भी श्याम रंग में रंगा जा चुका है। अब अपना मन श्याम रंग में रंगी जाने के पश्चात उस से मुक्त नहीं होना चाहती इसलिए अपने रंग में भीगे कपड़े नहीं निचोड़ना चाहती।
गोपी श्याम द्वारा रंग डालने पर श्याम के रंग में रंगी जा चुकी है। अर्थात उनसे प्रेम करने लगी है , इस अनन्य प्रेम के कारण वह श्याम के डाले रंग को भी निचोड़ कर अलग नहीं करना चाहती है।
विशेष –
- ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग
- तद्भव शब्दों का सुंदर प्रयोग किया गया है
- कविता में लयबद्धता है
- कवित्त छंद का प्रयोग किया गया है
- श्याम रंग में श्लेष अलंकार है कवि ने श्याम काला रंग तथा श्याम अर्थात कृष्ण के अनुराग प्रेम रंग की ओर संकेत किया है
- श्रृंगार रस के संयोग पक्ष का वर्णन किया गया है
- गोप गाउन कछु तो कछु , पद्माकर परोस पिछवारन , चलित चतुर , चुराई चित चोरा चोरी में अनुप्रास अलंकार है
- भाषा , भाव एवं विषय के अनुकूल है
- वर्णों की मधुर आवृत्ति से संगीतात्मकथा उत्पन्न हो गई है
- गोपी के मनोभावों का हृदय ग्राही चित्रण है
- कमल कांत पदावली में भाषा सरस मधुर एवं प्रवाह लिए हुए हैं
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महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न – होली के अवसर पर सारा गोकुल गांव किस प्रकार रंगों के सागर में डूब जाता है ? पद के आधार पर लिखिए।
उत्तर – पद्माकर ने होली का वर्णन अत्यंत प्रभावी ढंग से किया है। गोकुल के गोप – गोपी दौड़कर घरों के आगे पीछे पंहुच रहे है , और होली खेल रहे हे। चारों और होली का वातावरण हे। एक गोपी पर कृष्ण प्रेम का श्याम रंग चढ़ गया है। वह इसी रंग में डूबे रहना चाहती है। इस होली के वातावरण में कोई किसी का लिहाज नहीं करता है कोई भी कुछ सुनने को तैयार नहीं है।
प्रश्न – कृष्ण प्रेम में डूबी गोपी क्यों श्याम रंग में डूब कर भी उसे नहीं छोड़ना नहीं चाहती ?
उत्तर – गोपी श्याम रंग अर्थात कृष्ण के प्रेम में रंग में डूबी है वह इस स्थिति में रहना चाहती है वह इसको नहीं छोड़ना नहीं चाहती इसका कारण यह है कि वह कृष्ण के प्रेम में स्वयं को अलग नहीं करना चाहती।
प्रश्न – पद में कवि ने वर्षा ऋतु की किन किन विशेषताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है ?
उत्तर – सावन वर्षा ऋतु में आता है कवि ने इस ऋतू को निम्नलिखित रूप से वर्णन किया है –
- बाग बगीचों में भोरों का गुलजार हो रहा है। उनका गुलजार मल्हार राग की तरह प्रतीत हो रहा है।
- राग मल्हार का गायन वर्षा के आगमन के लिए भी किया जाता है।
- इस ऋतु में प्रियतम प्राणों से भी प्यारा प्रतीत हो रहा है।
- सावन में चारों और मोरों का शोर सुनाई देता है। इसमें हिंडोलो की छवि का आभास होता है।
- सावन में प्रेम बरसता है वर्षा की रिमझिम में प्रेम की फुहारों का बरसना लगता है।
- इस मास में झूलना मन को बहुत भाता है
प्रश्न – गुमान हूं ते मानहुँ तै मे क्या सौंदर्य छिपा है ?
उत्तर – इस पंक्ति में यह सौंदर्य छिपा है कि वर्षा ऋतु में प्रियतम चाहे रूठे या उसे बार-बार मनाना भी पडे अच्छा प्रतीत होता है। वर्षा ऋतु मिलन की ऋतु है इसलिए रूठना मनाना बुरा नहीं लगता।
लेखक का जीवन परिचय और बड़ा लिखते तो अच्छा रहता