असगर वजाहत अन्तरा भाग 2, Asghar wajahat, Antra bhag 2

असगर वजाहत एक सामाजिक कवि हैं जिन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से समाज के मूल स्वरूप को उसके भीतर छिपी मौका परस्ती व धोखाधड़ी को उजागर करने का प्रयत्न किया है।

उनका साहित्य समाज में व्याप्त विकारों को उजागर करता है और उससे निवारण का मार्ग सुझाता है। वजाहत जी ने शासन व्यवस्था और उसके पीछे कार्य कर रहे उद्देश्यों को पहचाना है और जनता के समक्ष प्रस्तुत किया है। यह लेख असगर वजाहत के कुछ कविताओं के मूल सार, प्रश्न उत्तर तथा सप्रसंग व्याख्या जो परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है को पूर्ण रूप से व्यक्त करता है।

यह लेख असगर वजाहत जी का महत्वपूर्ण लेख है, जिसमें उन्होंने सत्ता तथा समाज के स्वरूप को उजागर करने का प्रयत्न किया है। सत्ता किस प्रकार जनता को धोखा देती है। उसे छल से अपना मित्र बनाती है, अपना चारा बनाती है और भोली भाली जनता पोशाक धारी भेड़ियों के झांसे में आ जाती है और अपना अहित कर बैठती है। लोगों के आंखों पर इस प्रकार का चश्मा चढ़ा दिया जाता है कि उन्हें जो दिखाया जाता है वही दिखता है उसके अलावा सोच विचार करने की क्षमता उनके पास नहीं रहती है।

लेखक परिचय – असगर वजाहत अन्तरा भाग 2

जन्म / स्थान –  सन 1946 फतेहपुर उत्तर प्रदेश

शिक्षा – आरंभिक शिक्षा फतेहपुर में तथा विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हुई।

कार्य – सन 1955 – 56 से ही असगर वजाहत ने लेखन कार्य आरंभ कर दिया था। प्रारंभ में उन्होंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन कार्य किया बाद में वे दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करने लगे।

असगर वजाहत की रचनाएं – 

  • कहानी संग्रह – दिल्ली पहुंचना है ,
  • स्विमिंग पूल
  • सब कहां कुछ
  • आधी बानी
  • मैं हिंदू हूं।

नाटक –

  • फिरंगी लौट आए
  • इन्ना की आवाज
  • वीरगति
  • समिधा
  • जिन लाहौर
  • नई देख्या
  • अकी।

नुक्कड़ नाटक – सबसे सस्ता गोश्त (संग्रह)

उपन्यास –

  • रात में जागने वाले
  • पहर दोपहर
  • सात आसमान
  • कैसी आगि लगाई।

पुरस्कार / सम्मान –

साहित्यिक सम्मान हिंदी अकादमी से सन 2000 में सृजनात्मक लेखन के लिए संस्कृति पुरस्कार।

साहित्यिक विशेषताएं –

इन्होंने अपने लेखन में समाज के यथार्थ को जगह दी है, मजदूरों, आम जनता के शोषण को और शोषक के अत्याचार को दर्शाया है। इन्होंने कहानी, उपन्यास, नाटक तथा लघु कथा तो लिखी ही है, साथ ही फिल्मों एवं धारावाहिकों के लिए पटकथा लेखन का कार्य भी किया है।

भाषा शैली –

भाषा में व्यंग्य की तीक्षणता के साथ-साथ गंभीरता और सहजता के दर्शन होते हैं। मुहावरों और तद्भव शब्दों के प्रयोग के कारण सहज और सादगी से परिपूर्ण है। व्यंग्य का सहारा लेते हुए समाज राजनीति और अव्यवस्था की सत्यता को उद्घाटित किया है।

शेर , पहचान , चार हाथ , साझा ( असगर वजाहत अन्तरा भाग 2 लघु कथाएं )

विधा – लघु कथाएं

पाठ की मूल संवेदना – इन चार लघु कथाओं में लेखक ने व्यवस्था, शासन तंत्र शोषण और मजदूरों किसानों की समस्या पर करारी चोट की है।

१. शेर-व्यवस्था का प्रतीक

‘शेर’ असगर वजाहत की प्रतीकात्मक और व्यंग्यात्मक लघु कथा है। शेर व्यवस्था का प्रतीक है, जो अभी तक खामोश रहती है। जब तक सारी जनता उसके खिलाफ नहीं बोलती। जैसे ही व्यवस्था के खिलाफ उंगली उठती है, सत्ता उसे कुचलने का प्रयास करती है। सत्ता में बैठे लोग जनता को विभिन्न प्रलोभन देकर उसे अपनी और मिलाने का प्रयास करते हैं , जबकि सच्चाई यह है कि वह केवल अपना उल्लू सीधा कर रहे होते हैं। शेर द्वारा दिए गए प्रलोभन से गधा, लोमड़ी, उल्लू और कुत्ता का समूह बिना कुछ सोचे विचारे उसके मुंह में जा रहे थे।

प्रमाण से अधिक महत्वपूर्ण विश्वास – भोली-भाली जनता प्रमाण को अधिक महत्व न देते हुए विश्वास के आधार पर शोषक वर्ग सत्ता वर्ग की बात मानती है। यह जानते हुए भी कि शेर एक मांसाहारी जीव है , जो सभी को खा जाता है। सभी जानवरों को यह विश्वास दिला दिया जाता है कि अब शेर, अहिंसा और अस्तित्ववादी का समर्थक हो गया है और वह जानवरों का शिकार नहीं करेगा। अतः जानवर उनकी बात मान कर शेर के मुंह में स्वयं प्रवेश कर लेते हैं। किंतु लेखक जैसे कुछ लोग हैं जो प्रमाण को ही अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं, जिन्हें सत्ता कुचलने का प्रयास करती है।

२. पहचान

राजा द्वारा दिए गए हुकुम – राजा ने अपने राज्य में उत्पादन बढ़ाने के लिए खैराती, रामू, छिद्दू आदि आम जनता को यह आज्ञा दी कि अपनी आंखें बंद करके काम करें। अपने-अपने कानों में पिघला शीशा डलवा ले, अपने होंठ सिलवा ले क्योंकि बोलना उत्पादन में सदा बाधक रहा है, फिर उन्हें कई तरह की चीजें कटवाने और जुड़वाने का हुक्म दिया गया।

जिससे राजा आश्चर्यजनक रूप से दिन-रात प्रगति करने लगा।

राजा की निरंकुशता का परिणाम – इस कहानी में शासनतंत्र की निरंकुशता और लालच को दर्शाया गया है। यदि जनता राज्य की स्थिति को अनदेखा करती है तो शासक वर्ग निरंकुश हो जाता है। प्रगति के नाम पर समस्त साधनों को हड़प कर अपना भला करता है, ऐसे शासक वर्ग को बहरी गूंगी और अंधी जनता पसंद आती है जो केवल उसकी आज्ञा का पालन करें। खैराती, रामू और छिद्धू ऐसी जनता के प्रतीक है जो आंख मूंदकर अपने राजा पर विश्वास करती है, पर जब तक वह अपनी आंखें खोल दी है तब तक राजा अत्यधिक बलशाली हो चुका होता है।

उसका विरोध करने की हिम्मत उसमें नहीं होती।

३. चार हाथ

‘चार हाथ’ पूंजीवादी व्यवस्था में मजदूरों के शोषण को उजागर करती है। मिल मालिकों का लालच मजदूरों के शोषण का कारण बनता है, मिल मालिक मजदूरों को मात्र एक के रूप में लेता है, जो उसको लाभ देंगे व हर संभव प्रयास करता है कि उन मजदूरों का अस्तित्व समाप्त हो जाए और वह विरोध की स्थिति में ना रहे ताकि उसके इशारे पर चलते हुए वह दुगना दाम कर सके। अधिक उत्पादन के चक्कर में वह मजदूरों के लोहे के हाथ लगाता है जिससे सारे मजदूर मर जाते हैं। अंत में उसे समझ आता है कि यदि अधिक उत्पादन और मुनाफा चाहिए तो मजदूरी आधी कर दो और दुगने मजदूर रख लो।

४. साझा

साझा मैं आजादी के बाद किसानों की बदहाली का वर्णन किया गया है। पूंजीपतियों व गांव के प्रभुत्वशाली वर्ग की नजर में किसान की जमीन और उत्पाद पर है वह हर संभव प्रयास द्वारा उसे हासिल करना चाहता है। हाथी समाज के अमीर और प्रभुत्व शाली वर्ग का प्रतीक है जो किसानों की सारी मेहनत और कमाई धोखे से हड़प लेता है और किसानों को पता भी नहीं चलता किसान सक्षम होते हुए भी लाचार रह जाता है।

महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर ( असगर वजाहत अन्तरा भाग 2 )

1 प्रश्न – ‘प्रमाण से अधिक महत्वपूर्ण है विश्वास’ कहानी के आधार पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर – लघु कथा ‘शेर’ से ली गई इन पंक्तियों में लेखक ने भोली-भाली जनता और धूर्त सत्ता के बारे में बताया है।  लेखक यह मानने को तैयार नहीं है कि शेर के मुंह में रोजगार का दफ्तर है। किंतु उसे बार-बार यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया जाता है कि शेर का मुंह यही सब दुखों का अंत है। शेर का मुंह हिंसा का प्रतीक है, यह सभी जानवर मानते हैं, किंतु केवल विश्वास दिलाने पर वह स्वेच्छा से उस मुंह के अंदर जा रहे हैं। आज का सत्ताधारी व राजनैतिक वर्ग भी सर्वप्रथम लोगों का विश्वास हासिल करता है, उसके पश्चात उनका शोषण करता है। जिसका पता जनता को नहीं चलता वह अंत तक यही सोचती है कि सत्ता उसके हित के लिए काम करती है।

2 प्रश्न – शेर कहानी के आधार पर हमारी सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर – शेर नामक लघु कथा में हमारी सत्ता और व्यवस्था का और लेखक आम आदमी का प्रतीक है। लेखक कहना चाहता है कि सत्ता तभी तक खामोश रहती है, जब तक उसकी आज्ञा का पालन करते हैं। विरोध करते ही वह खूंखार हो जाती है ऊपर से देखने पर शेर अहिंसावादी, न्याय प्रिय तथा बुद्ध का अवतार प्रतीत होता है। लेकिन जैसे ही लेखक उसके मुंह में प्रवेश करने का संकल्प करता है तो शेर की वास्तविकता अपने आप प्रकट हो जाती है।

3 प्रश्न- लोमड़ी स्वेच्छा से शेर के मुंह में क्यों जा रही थी?

उत्तर – लेखक ने शेर लघु कथा में जितने भी जानवरों को शामिल किया है वह सभी प्रतीकात्मक पात्र हैं उनका संबंध मानव से है लोमड़ी चालाक प्रवृत्ति का प्रतीक है, कुत्ता झुंड तथा समूह का प्रतीक है। इसी प्रकार उल्लू, गधा जैसे पात्रों को लेखक ने अपने लघुकथा में स्थान दिया है। इसके माध्यम से वह भोली-भाली सामान्य जनता को संबोधित करते हुए उन्हें जागृत करने का प्रयत्न कर रहे हैं। लोमड़ी (चालाक) प्रवृत्ति का व्यक्ति अपने स्वार्थ के कारण शेर के मुंह में स्वेच्छा से जा रहा था उसका उद्देश्य यह था कि वह वहां जाकर अपने लिए चालाकी से रोजगार प्राप्त कर लेगा। किंतु राजनेता और एक सामान्य जनता के बीच की खाई को हम आप भली-भांति जानते हैं। वहां सामान्य जनता के स्वार्थ या भलाई का कार्य कभी नहीं किया जाता।

4 प्रश्न- कहानी के लेखक ने शेर को किस बात का प्रतीक बताया है?

उत्तर- लेखक ने कहानी में जितने भी पात्र का प्रयोग किया है वह सब प्रतीकात्मक है, उसी क्रम में शेर को शासन और व्यवस्था का प्रतीक बताया है। यह प्रजा को अपने ढंग से चलाना चाहती है, अगर प्रजा आंख, मुंह बंद कर इनकी आज्ञा का पालन करें इसके अनुसार कार्य करें, तो वह शांत रहते हैं। किंतु जहां प्रजा कोई प्रश्न उठाएं या विरोध करें तो यह शेर की बनाई हुई व्यवस्था उसे ध्वस्त करने के लिए आक्रमक हो जाती है। यहां लेखक में सामंती व्यवस्था पर व्यंग्यात्मक चोट किया है।

5 प्रश्न- शेर के मुंह को और रोजगार के दफ्तर के बीच क्या अंतर है?

उत्तर- असगर वजाहत का यह लेख व्यंग्यात्मक रूप से लिखा गया है जिसमें सभी पात्र प्रतीकात्मक हैं। शेर हिंसा का प्रतीक है वह अपने शिकार को पीछा करके उसकी हत्या कर अपना पेट भरता है।  अर्थात जो कोई शेर के मुंह में जाता है उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है, उसका जीवन खत्म हो जाता है। ठीक उसी प्रकार वर्तमान की स्थिति में रोजगार पाने वाले युवा रोजगार दफ्तर के चक्कर लगा लगा कर अंत में हताशा और निराशा को ही प्राप्त करते हैं। नौकरी के उम्मीद में वह अपना जीवन का महत्वपूर्ण समय बर्बाद कर देते हैं। उनका महत्वपूर्ण समय रोजगार दफ्तर के चक्कर काटते हुए बीत जाते हैं, शासन व्यवस्था शेर के मुंह के समान है जो युवाओं के उम्मीद को आशाओं को निगल जाता है, उसके अस्तित्व को समाप्त करने को आतुर रहता है।

6 प्रश्न- राजा ने जनता को हुक्म क्यों दिया कि सब लोग अपनी आंखें बंद कर ले?

उत्तर- सत्ता पर आरूढ़ कोई भी व्यक्ति यह नहीं चाहता की प्रजा उसके ऊपर कोई उंगली उठाए। वह सदैव मनमानी करने के लिए आतुर रहता है, उसके मन के अनुरूप क्रियाकलाप पर कोई लगाए यह उन्हें गवारा नहीं होता। इस पाठ में भी वैसी ही स्थिति है। राजा ने जनता को इसलिए अपनी आंखें बंद करने के लिए कहा कि वह एक-दूसरे को ना देख सके, अपने कार्य को करते रहे, ताकि वह सभी को अपने अनुसार चलाते रहे। अगर जनता की आंखें खुल गई तो वह सत्ता पर प्रश्नचिन्ह उठाने लगेंगे, वह अपने अधिकारों के लिए जागरूक होंगे और सत्ता पर बैठे हुए लोगों के मंसूबे कभी पूरा नहीं हो सकेंगे।

सप्रसंग व्याख्या ( असगर वजाहत अन्तरा भाग 2 )

अगले दिन मैंने कुत्तों का एक  ………………… रोजगार दफ्तर है।

प्रसंग –

पाठ का नाम – शेर लघु कथा

लेखक – असगर वजाहत

संदर्भ – इन पंक्तियों में शेर को व्यवस्था का प्रतीक बताया गया है, लेखक ने दिखावा करने वालों सत्ता का साथ देने वालों और चापलूसी पर व्यंग भी किया है।

व्याख्या

लेखक कहता है कि छोटे-छोटे जानवरों को विभिन्न प्रलोभन में हंसकर शेर के मुंह में जाते हुए देखा है। कुत्तों का समूह जो कभी सत्ता के विरोध में नारे लगा रहा था, कभी हंस और गा रहा था वह भी व्यवस्था से डरकर शेर के मुंह में जा रहा है। अर्थात व्यवस्था का विरोध करने वालों का यह समूह व्यवस्था की शक्ति के आगे विवश है। उनका समर्थन करने तथा उनकी आज्ञा मानने के लिए विवश है। लेखक के अनुसार यह छद्म क्रांतिकारी है, जो दिखावा और सत्ता का विरोध कर रहे हैं किंतु भीतर ही भीतर हुए दुम दबाकर उसका समर्थन भी कर रहे हैं। शेर को अहिंसा वादी और सभी के अस्तित्व की रक्षा करने वाला घोषित कर दिया गया है।

लेखक ने शेर के कार्यालय में जाकर उसके कर्मचारियों से रोजगार के दफ्तर के बारे में पूछा कर्मचारी उन सुविधा भोगियों और चापलूसों का प्रतीक है जो केवल अपना ही स्वार्थ सिद्ध करते रहते हैं कर्मचारियों के अनुसार जनता को यह विश्वास है, या फिर वह विश्वास दिलाया गया है कि शेर का मुंह ही सारे दुखों को देने वाला है। अर्थात व्यवस्था और सत्ता ही तुम्हारे सारे दुखों को दूर करेगी। सच्चाई यह है कि प्रमाण अर्थात यह सिद्ध होता है कि व्यवस्था के कारण सारी समस्याएं हैं किंतु लोगों ने प्रमाण से अधिक विश्वास को महत्व दिया है।

भाषा विशेष  –

  • लेखक ने प्रतीकों के माध्यम से व्यवस्था पर व्यंग्य किया है
  • शेर व्यवस्था का प्रतीक है कुत्तों का समूह झूठे क्रांतिकारियों का कर्मचारी सुविधा भोगी चापलूसी का और छोटे जानवर आम जनता का प्रतीक है
  • छोटे-छोटे संवादों में गहनता छिपी है
  • भाषा सादगी से पूर्ण चिंतन प्रधान है
  • व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग है
  • लेखक लीक से अलग चलने वालों का प्रतीक है।

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निष्कर्ष

आइए नजर डालते हैं आपने इस लेख के माध्यम से क्या सीखा। सबसे पहले आपने लेखक असगर वजाहत के बारे में जाना और उनके द्वारा किए गए रचनाओं एवं नाटकों की लिस्ट पढ़ी।

उसके बाद हमने पढ़ा उनके द्वारा लिखी गई 4 कहानियां जो अंतरा भाग 2 से उठाए गए हैं. उसके बाद हमने महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर एवं सप्रसंग व्याख्या का भी अध्ययन किया। आशा है कि यह लेख आपके लिए मददगार साबित हुआ होगा।

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