कबीर कक्षा ग्यारहवीं ( प्रश्न उत्तर व्याख्या सहित )

कबीर दास अंतरा भाग-एक  ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ने को मिलेगा। इस लेख में आप कबीर का संक्षिप्त जीवन परिचय , पाठ का परिचय , व्याख्या तथा परीक्षा के अनुरूप महत्वपूर्ण प्रश्नों का अभ्यास कर सकेंगे।

कबीरदास समाज सुधारक तथा एक कवि थे। उनकी लेखनी सदैव व्यर्थ के कर्मकांड को उजागर करना और समाज को एकजुट करने के उद्देश्य से होती थी। वह किसी भी धर्म के बुराइयों को उजागर करने से परहेज नहीं करते थे। यही कारण है कि उनको सभी धर्म के लोग अपने धर्म के विरोधी मानते थे।

जबकि ऐसा नहीं था , उनका मानना था जहां बुराई और व्यर्थ के आचार-व्यवहार हो उसको तत्काल हटा देना चाहिए। क्योंकि यह समाज के लिए हितकर नहीं होता है।  इसीलिए उन्होंने जितनी आलोचना हिंदू समाज की , उतनी ही मुसलमान समाज की भी की।

कबीर कक्षा ग्यारहवीं

(भक्ति कालीन निर्गुण काव्य धारा के संत कवि)

जीवन परिचय –

कबीर का जन्म 1398 में काशी में हुआ। नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपति ने इस का लालन-पालन किया। यह गुरु रामानंद के शिष्य थे। कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे यह उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है –

‘मसि कागद छुयो नहीं , कलम गही ना हाथ’

सन 1518  में मगहर में उनका देहांत हो गया।

रचनाएं –

बीजक(साखी सबद रमैनी) कबीर की कुछ मुख्य रचनाएं गुरु ग्रंथ साहब में संकलित है।

काव्यगत विशेषताएं –

भक्ति काल की निर्गुण (निराकार के रूप में उपासक) काव्य धारा के संत कवि कबीर का आविर्भाव ऐसे समय में हुआ जब राजनीतिक , धार्मिक एवं सामाजिक क्रांति या अपने चरम पर थी। कबीर क्रांतिकारी छवि के थे एक और कबीर ने समाज में फैली कुरीतियों एवं आडंबरों पर प्रहार किया।  दूसरी और उनका भक्तों रूप देखने को मिला।

कबीर की रचनाओं की भाषा सधुक्क्ड़ी है। सधुक्क्ड़ी में बोलचाल की अवधि , भोजपुरी , पंजाबी इत्यादि बोलचाल की भाषाओं के शब्दों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग होता है। इसलिए सधुक्क्ड़ी को पंचमेल खिचड़ी भाषा कहा जाता है। कबीर का काव्य तुकात्मक एवं लयबद्धता के कारण यह गेय  अर्थात गाने वाले पद हैं। इनके उन्होंने साखी शब्द एवं रमैनी के माध्यम से अपनी भावनाओं को जनमानस तक पहुंचाया। कबीर के काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है।

कबीर पद – 1

अरे इन दोउन ………………………………. राह हवै जाई।

प्रसंग –

प्रस्तुत पद कबीर के बीजक संग्रह से उद्धृत है। हिंदू व मुसलमान दोनों धर्मों में पर्याप्त कर्मकांड एवं बाह्य आडंबर का विरोध करते हुए कबीर कहते हैं कि यह दोनों अज्ञानता वश बाह्य आडंबरों , कर्मकांडों को वास्तविक धर्म मान बैठे हैं। इन्हें धर्म के मर्म का ज्ञान नहीं है। धर्म का वास्तविक अर्थ है उचित कर्म से व्यक्ति एवं समाज का मार्गदर्शन करना। परंतु यह केवल दिखावा करते हैं। वास्तव में यह दोनों ही पथभ्रष्ट हो चुके हैं , इनका यह ज्ञान परमात्मा की प्राप्ति में बाधक है।

व्याख्या –

हिंदुओं के विषय में कबीर का कहना है कि यह वर्ण भेद में विश्वास करते हैं। उच्च वर्ग का व्यक्ति निम्न वर्ग के व्यक्ति को अस्पृश्य मानता है।  उसे अपने बर्तनों को छूने नहीं देता , परंतु स्वयं वेश्या गमन जैसे निम्न कर्म में लिप्त रहता है। तात्पर्य है कि हीन कर्मों में लीन है , केवल श्रेष्ठ होने का दिखावा करते हैं।

मुसलमानों की दशा भी कुछ भी नहीं है , यह दिखावा करते हैं कि पीर औलिया मानकर माया मोह से दूर है। दूसरी ओर अपनी रसना के आगे विवश हैं , केवल स्वाद के लिए मांसाहार करते हैं जीव हत्या करते हैं। जीव हिंसा करने वाले खुदा के बंदे कैसे हो सकते हैं ? समाज की नीतियों के प्रतिकूल रक्त संबंधों में विवाह करते हैं दोनों ही सत्य की राह से भटके हैं।

इस प्रकार इन दोनों को ही ईश्वर प्राप्ति नहीं हो सकती।

 

काव्य सौंदर्य

अरे इन दोउन ………………………………. राह हवै जाई।

भाव पक्ष –

  1. कबीर का समाज सुधारक रूप दृष्टव्य है।
  2. हिंदुओं एवं मुसलमानों दोनों के आडंबरों पर तीखा प्रहार किया गया है।
  3. आडंबरों  को ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में बाधक माना गया है।
  4. ईश्वर एक है राम-रहीम में कोई भेद नहीं है। ईश्वर सर्वदा है , ईश्वर सर्वव्यापी है। एवं सभी प्राणियों के हृदय में विद्यमान है।  दोनों को ही मानवता अपनाने को कहा है।

कला पक्ष –

  1. सधुक्कडी भाषा में भावों की सहज सरल अभिव्यक्ति है।
  2. शब्द चयन भावपुर्ण एवं भाव अनुकूल है।
  3. ‘ सब सखियां ‘ , ‘ कहे कबीर ‘ अनुप्रास अलंकार है
  4. गेय पद शैली ,
  5. मुक्तक शैली
  6. सहज और सरल भाषा

 

कबीर पद पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1 – कबीर ने हिंदुओं और मुसलमानों के किन बाह्याडम्बरों की बात की है ?

उत्तर – हिंदू एवं मुसलमान दोनों ही अज्ञानतावश बाह्याडम्बरों को ही धर्म समझ बैठे हैं। धर्म के वास्तविक स्वरूप का उन्हें ज्ञान नहीं है। यह दोनों ही पथ भ्रष्ट हो चुके हैं।  हिंदू वर्ण भेद में विश्वास करते हैं , उच्च वर्ण के व्यक्ति निम्न वर्ण के व्यक्ति के साथ छुआछूत की भावना रखता है। उसे अपने बर्तन तक सोने नहीं देता। दूसरी और वैश्यागमन जैसे नीच कर्मों में लिप्त है। मुसलमानों की दशा यह है कि इनके पीर औलिया मांसाहार करते हैं।  समाज की नीति के विरुद्ध मुसलमान अपने ही रक्त संबंध में विवाह करते हैं।

प्रश्न 2 – कबीर के अनुसार ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में क्या बाधक है ?

उत्तर – कबीर के अनुसार ईश्वर की प्राप्ति लोगों को अपनाकर की जा सकती है भेदभाव , अस्पृश्यता तथा जीव हत्या के माध्यम से नहीं हो सकता।  ईश्वर का वास प्रत्येक प्राणी में है , कण-कण में है। यहां तक कि उनका मानना है चीटी के पैरों में भी अगर घुंघरू की आवाज होती है तो वह भी ईश्वर को सुनाई दे देता है। अर्थात ईश्वर की प्राप्ति प्रेम , अनुराग और त्याग से ही संभव है। भेदभाव और जीव हत्या ईश्वर की प्राप्ति में बाधक है।

प्रश्न 3  – इस पद में कबीर का कवि रूप नहीं , समाज सुधारक रूप दिखाई पड़ता है सिद्ध करें।

उत्तर – कबीर एक ही समय पर कवि , समाज सुधारक , दार्शनिक आदि थे। उनकी लेखनी परिस्थिति के अनुकूल ढल जाती थी। इस कविता में भी उनका समाज सुधारक रूप देखने को मिला है।  क्योंकि उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों को बारीकी से अध्ययन किया है। वह समाज को एकजुट और सच के मार्ग पर लाना चाहते हैं।

एक-दूसरे से भेदभाव की भावना रखना , तथा जीव हत्या करना किसी भी धर्म में उचित नहीं ठहराया जा सकता। ढेर प्रकार के बाह्य आडंबर समाज में विद्यमान हैं। उन सभी को उजागर करते हुए वह समाज सुधारक की भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं।

प्रश्न 4 – कबीर के अनुसार ईश्वर प्राप्ति कैसे की जा सकती है ?

उत्तर – ईश्वर की प्राप्ति सत्य का आचरण करते हुए , धर्म का पालन करते हुए प्रत्येक व्यक्ति के प्रति समान दृष्टिकोण रखते हुए की जा सकती है।  जो व्यक्ति धर्म का पालन नहीं करता , किसी जीव को दुख देता है , झूठ बोलता है तथा समाज के लिए हानिकारक होता है। ऐसे व्यक्ति ईश्वर की प्राप्ति नहीं कर सकते। ईश्वर की प्राप्ति करना है तो पहले सभी विकार को अपने हृदय और शरीर से निकाल कर बाहर फेंकना होगा। ईश्वर के प्रति अनुरक्ति रखनी होगी , इस विश्वास के साथ ईश्वर की प्राप्ति की जा सकती है।

 

कबीर पद 2

बालम आवो……………………………….. जीव जाए रे। 

प्रसंग –

प्रस्तुत पद बीजक संग्रह से उद्धृत है। यहां कबीर का भक्ति रूप दृष्टव्य है। इस पद में कबीर ने स्वयं को पत्नी और परमात्मा को पति मानकर परमात्मा रुपी पति के वियुक्त जीवात्मा की विरहावस्ता का वर्णन किया है।

व्याख्या –

परमात्मा से मिलन ना होने के कारण कबीर को एक वियोगीनी की भांति न अन्न भाता है , ना नींद आती है। निर्गुण मार्गी संत कवियों ने साधक को नायिका और परमात्मा को नायक के रूप में चित्रित किया है। यहां पति अर्थात् परमात्मा , निराकार परंतु पत्नी साधक साकार रूप में विद्यमान है।  यहां निर्गुण और सगुण दोनों मतों के बीच एक साम्य स्थापित करते हुए दिखाई देते हैं।

 

काव्य सौंदर्य ( कबीर कक्षा ग्यारहवीं )

बालम आवो……………………………….. जीव जाए रे।

भाव पक्ष –

  1. कबीर का भक्त रूप दृष्टव्य है
  2. ज्ञान चक्षु खुलने पर साधक ईश्वर प्राप्ति के लिए आतुर हो उठता है।

कला पक्ष –

  1. भाषा सधुक्कडी
  2. ‘ दुखिया देह ‘  , ‘कोई कहे’ ,‘जिव जाय’  अनुप्रास अलंकार।
  3. कामिन को है ………… प्यासे को नीर  दृष्टान्त है।
  4. लय एवं तुकबध गेय पद शैली
  5. रस विप्रलंभ , वियोग श्रृंगार , भक्ति रस।

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कबीर कक्षा ग्यारहवीं महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी – Kabir Class 11 Questions and answers

प्रश्न 1 – कबीर ने साधक और परमात्मा को किस रूप में चित्रित किया है ?

उत्तर – कबीर ने साधक को पत्नी एवं परमात्मा को पति के रूप में चित्रित किया है। जिस प्रकार प्रेयसी प्रियतम से मिलने के लिए आतुर रहती है , उसी प्रकार ज्ञान हो जाने पर साधक निरंतर परमात्मा से मिलन को आतुर रहता है। उसे सांसारिक कार्यों में कोई सुख नहीं मिलता है। जैसे प्रेयसी को बिरहावस्था में न अन्न भाता है ना नींद आती है।

प्रश्न 2 – इस पद में सांसारिक प्रेम का वर्णन है , फिर भी यह भक्ति का श्रेष्ठ उदाहरण है कैसे ?

उत्तर – भक्ति का मार्ग सभी के लिए सुलभ है , चाहे वह देवता हो या मनुष्य। मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार ईश्वर की प्राप्ति कर सकता है। यहां सांसारिक प्रेम को प्रदर्शित किया गया है। प्रेम से शुद्ध और कुछ नहीं है , प्रेम के वशीभूत होकर ईश्वर भी भक्तों के हो जाते हैं। जो भक्त स्वयं को अपने ईश्वर को समर्पित कर देता है , दिन-रात उसी का आदेश मानकर कार्य करता है। वह निश्चित ही अपने ईश्वर को प्राप्त कर लेता है।

कबीर दास निर्गुण – निराकार के उपासक थे , उन्होंने ईश्वर को पति रूप में प्रेम किया , स्वयं को पत्नी बताया। इससे बढ़कर और कौन सा प्रेम हो  सकता है ? अर्थात यह भक्ति का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण सिद्ध हुआ है।

 

प्रश्न 3 – इस पद में कौन सा रस है ?

उत्तर – शृंगार रस का – वियोग श्रृंगार है , भक्ति रस से परिपूर्ण है।

 

प्रश्न 4 – कामिन को है……………….. जो प्यासे को नीर ‘ में कौन सा अलंकार है ?

उत्तर – दृष्टांत अलंकार

 

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