प्रस्तुत लेख में हास्य रस के विषय में विस्तृत ज्ञान प्रस्तुत किया गया है। यह लेख विद्यालय, विश्वविद्यालय अथवा प्रतियोगी परीक्षाओं के अनुरूप तैयार किया गया है।
इस लेख के अध्ययन के बाद विद्यार्थी स्वयं के विवेक से किसी भी प्रकार के हास्य रस से संबंधित प्रश्नों का स्पष्ट और सटीक उत्तर दे पाने में सक्षम होगा। यह लेख विद्यार्थियों के ज्ञान , रुचि और जिज्ञासा को बढ़ाने अथवा उसको ज्ञान का भंडार देने के उद्देश्य से लिखा गया है।
आशा है यह लेख अपने उद्देश्यों की पूर्ति कर सकें.
हास्य रस – Hasya ras in Hindi
परिभाषा :- हास्य रस की प्रस्तुति में विभाव, अनुभाव, संचारी तथा अन्य भाव आस्वाद रूप में प्रकट होते हैं। हास्य नायक के भाव – भंगिमावों तथा उसके वेशभूषा अथवा परिधानों के माध्यम से भी प्रकट अथवा निष्पत्ति होती है।
विद्वानों के अनुसार सहृदय सामाजिक व्यक्ति को उदात रूप में हास्य का अधिक आनंद अनुभव होता है। माना जाता है हास का वेग जितना तीव्र होगा उतना अधिक हास्य रस होगा।
हास्य रस का स्थाई भाव हास है। यह मनोरंजन के उद्देश्यों की पूर्ति करता है।
आलम्बन
हास्य के आलंबनो की कोई सीमा नहीं होती , अर्थात हास्य कभी भी प्रकट हो सकता है। यह प्रायोजित अथवा अप्रायोजित भी होते हैं।
उद्दीपन
हास्य से पूर्ण परिस्थितियां तथा उसको उत्पन्न करने की क्रियाकलाप ही उद्दीपन का विषय बनती है।
अनुभाव
अनुभाव के अंतर्गत
- आंखों का मूंदना ,
- मुंह बनाना ,
- संकेत करना ,
- आंखें खिल उठना ,
- हंसना ,
- हंसते – हंसते लोटपोट हो जाना ,
- व्यंग्य कसना ,
- ताली पीटना ,
- हाथ मारना ,
- नाक – कान – गला आदि का स्पंदन।
रोमांस आदि सात्विक अनुभाव के अंतर्गत आते हैं।
संचारी भाव
संचारी भाव के अंतर्गत – घृणा , हास – परिहास , स्नेह , अर्थ , मति , स्मृति , विषमय , उत्साह , अमर्ष , गर्व , जड़ता , चपलता , शंका , हर्ष आदि सभी भाव संचारी भाव के अंतर्गत गिने गए हैं।
हास्य रस दो प्रकार के हैं
१ आत्मस्थ २ परस्य
1. आत्मस्थ
इसके अंतर्गत व्यक्ति स्वयं हास्य उत्पन्न करता है , इसके लिए किसी अन्य माध्यम की आवश्यकता नहीं होती। कुछ संयोग या ऐसी परिस्थितियां बनती है जब स्वयं ही मुख मंडल पर हास्य की आभा उत्पन्न होती है।
2. परस्य
इसके अंतर्गत व्यक्ति को हास्य उत्पन्न करने के लिए दूसरे व्यक्ति की अथवा नायक की आवश्यकता होती है। नायक के भाव – भंगिमाओ द्वारा किए गए क्रियाकलापों अथवा उसके वेशभूषा या परिधान के माध्यम से हास्य उत्पन्न होता है। कई बार खेल खेलते समय नायक उल्टे कपड़े या फिर शरीर की कुछ ऐसी क्रिया करता है, जिससे दर्शक अथवा पाठक में हास्य रस की उत्पत्ति होती है।
खेल – खेल में नायक कुछ ऐसी मूर्खतापूर्ण कार्य करता है , जिसे दर्शक देखकर आनंदित होता है अथवा हंसता है।
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हास्य रस के उदाहरण – Hasya ras examples
पत्नी खटिया पर पड़ी व्याकुल घर के लोग।
व्याकुलता के कारण , समझ ना पाए रोग।
समझ ना पाए रोग , तब एक वैद्य बुलाया।
इसको माता निकली है , उसने यह समझाया।
यह काका कविराय सुने , मेरे भाग्य विधाता।
हमने समझी थी पत्नी , यह तो निकली माता।
प्रस्तुत पंक्ति में कवि हाथरस जी ने अपनी पत्नी के रोग पर भी हास्य उत्पन्न किया है। उनके कुछ शब्दों के चमत्कार के कारण यह हास्य उत्पन्न हुआ है।
” बिहसि लखन बोले मृदु बानी ,अहो मुनीषु महाभर यानी।
पुनी पुनी मोहि देखात कुहारू , चाहत उड़ावन फुंकी पहारु। “
प्रस्तुत पंक्ति राम चरित्र मानस के सीता स्वयंवर प्रसंग से लिया गया है।
इसमें लक्ष्मण और परशुराम का संवाद है जो , बेहद ही हास्यास्पद है। लक्ष्मण किस प्रकार परशुराम के क्रोध को भड़का रहे थे और उनका मजाक बना रहे थे। इसमें वहां दरबार के सभी लोग हास्य रस का आनंद ले रहे थे। यह प्रसंग आज भी लोगों के मन में हास उत्पन्न करता है।
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महत्वपूर्ण प्रश्न – Important questions on Hasya ras
प्रश्न – रस कितने प्रकार के हैं ?
उत्तर – रस 11 प्रकार के हैं।
प्रश्न – हास्य रस का स्थायी भाव क्या है ?
उत्तर – स्थायी भाव हास है।
प्रश्न – हास्य रस के कितने भेद है ?
उत्तर – दो भेद है – १ आत्मस्थ २ परस्य।
प्रश्न – हास्य रस की उत्पत्ति कैसे होती है ?
उत्तर – उत्पत्ति दो प्रकार से होती है १ स्वयं के माध्यम से २ दूसरों के भाव भंगिमावो अथवा क्रियाकलापों के माध्यम से।
प्रश्न – रसराज किस रस को कहा गया है ?
उत्तर – श्रृंगार रस को रसराज कहा गया है।
प्रश्न – हास किस रस का स्थायी भाव है ?
उत्तर – हास्य रस का।
प्रश्न – मनोरंजन की दृष्टि से किस रस की सृष्टि की जाती है ?
उत्तर – हास्य रस की सृष्टि मनोरंजन की दृष्टि से की जाती है।
प्रश्न – जोकर द्वारा रंगमंच पर किए गए क्रियाकलापों से किस रस की निष्पत्ति होती है ?
उत्तर – हास्य रस की निष्पत्ति होती है।
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आपने इस विषय पर संपूर्ण जानकारी प्रदान की है इसके लिए मैं आभार प्रकट करता हूं