करुण रस की परिभाषा, भेद और उदाहरण। Karun ras in Hindi

इस लेख के माध्यम से आप करुण रस के अंग, भेद, परिभाषा, उदाहरण आदि को विस्तार से समझ सकेंगे। यह लेख सभी स्तर के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है।

इस लेख के अध्ययन के उपरांत आप करुण रस के समस्त आयामों से परिचित हो सकेंगे। अपने ज्ञान का विस्तार कर इस रस के समस्त प्रश्नों का उत्तर आप स्वयं दे सकेंगे।

यह लेख इस रस के समस्त विषयों को अपने अंदर समाहित करता है।

इसके अध्ययन के उपरांत आपको किसी अन्य स्रोत का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी –

करुण रस की परिभाषा

परिभषा :- अपने प्रिय जनों के बिछड़ जाने या किसी ऐसे प्रिय वस्तु का अनिष्ट हो जाने पर व्यक्ति में शोक का भाव जागृत होता है। उस भाव को करुण रस कहते हैं।

शास्त्र के अनुसार अशोक नामक स्थाई भाव अपने अनुकूल विभाव अनुभव एवं संचारी भाव के सहयोग से अभिव्यक्त होकर जब आस्वाद रूप धारण करता है तब इसकी परिणीति करुण रस में होती है।

स्थाई भाव :- शोक

उद्दीपन विभाव :-

  • प्रिय जन का वियोग ,
  • बंधु ,
  • विवश ,
  • पराधव ,
  • दरिद्रता ,
  • प्रिय व्यक्ति की वस्तुएं ,
  • इस्ट जन – विप्रयोग ,
  • वध ,
  • बंधन ,
  • संकट पूर्ण परिस्थितियां।

संचारी भाव 

  • गिलानी ,
  • मरण ,
  • निर्वेद ,
  • स्नेह ,
  • स्मृति ,
  • घृणा ,
  • उत्कर्ष ,
  • उत्सुकता ,
  • चिंता ,
  • उन्माद ,
  • चिंता ,
  • आशा – निराशा ,
  • मोह ,
  • आवेग आदि।

अनुभाव – 

  • छटपटाना ,
  • छाती पीटना , दु
  • खी की सहायता करना ,
  • मूर्छा ,
  • रंग उड़ना ,
  • विलाप करना ,
  • चित्कार करना ,
  • आंसू बहाना ,
  • रोना आदि ।

Karun ras ke bhed, paribhasha aur udahran - करुण रस

करुण रस विस्तार में

करुण रस एकमात्र ऐसा रस है जो पाठकों में सर्वाधिक संबंध स्थापित करने की क्षमता रखता है। इस में मानवीय सहानुभूति का अधिक प्रसार होता है।

इसमें सभी प्राणियों का भाव एक सामान्य होता है। एक व्यक्ति को शोक तथा विलाप करते हुए देख दूसरा व्यक्ति भी सहानुभूति का भाव रखते हुए शोक तथा विलाप करने लगता है।

राम चरित्र मानस का श्रवण कुमार का वध और पुत्र वियोग में राजा दशरथ की मृत्यु करुण रस की जीवंत प्रस्तुति है.

मानव सामाजिक प्राणी है , समाज में रहते हुए अपने विचारों के आदान-प्रदान करने की आवश्यकता होती है। कभी भी एक व्यक्ति का विचार दूसरे व्यक्ति से मिल पाना मुश्किल होता है।

  • व्यक्ति के पास हृदय , मन – मस्तिष्क आदि श्रेष्ठ रूप से विद्यमान रहते हैं।
  • मनुष्य सभी भावों को ग्रहण करने की क्षमता रखता है।
  • जहां विभिन्न रसों को ग्रहण करने के लिए व्यक्ति को सहृदय होना पड़ता है।
  • वहीं करुण रस भी व्यक्ति के जीवन में अहम योगदान देता है।
  • करुण रस का स्थाई भाव शोक है।

जीवन सुख – दुख , उतार-चढ़ाव आदि से भरा पड़ा है।

व्यक्ति जहां अपने जीवन में सुख की अनुभूति करता है तो परस्पर दुख की अनुभूति भी करता है।

इस दुख की परिणिती शोक में होती है , जो करुण रस को जागृत करती है।

 

करुण रस के उदाहरण

अब आप करुण रस के उदाहरण पढ़ेंगे। हमने यहां पर पहले से ही बहुत सारे उदाहरण दे रखे हैं और आगे आने वाले समय में और भी उदाहरण जुड़ेंगे। यह सभी उदाहरण पाठ्यपुस्तक से लिए गए हैं और उन्हें व्याख्या सहित समझाया गया है। जिससे विद्यार्थियों को करुण रस को समझने में आसानी हो।

1.

” राम राम कही राम कही राम राम कही राम ,

तनु परिहरि रघुवर बिरह राउ गयऊ सुरधाम। “

प्रस्तुत पंक्ति रामचरित्र मानस से लिया गया है।

अपने पुत्र राम के वन गमन के उपरांत राजा दशरथ पुत्र वियोग में सब कुछ भूल चुके हैं। वह  केवल राम – राम की जाप कर रहे हैं। राम-राम की जाप करते हुए अंततः उन्होंने प्राण त्याग दिए। यह दृश्य राम चरित्र मानस में करुण रस की प्रबल प्रस्तुति करता है।

दर्शक इस दृश्य को देखकर अपने अश्रु बहाने पर विवश हो जाता है।

2.

अभी तो मुकुट बंधा था माथ,

हुए कल ही हल्दी के हाथ,

खुले भी न थे लाज के बोल,

खिले थे चुम्बन शून्य कपोल।

हाय रुक गया यहीं संसार,

बिना सिंदूर अनल अंगार

वातहत लतिका वट सुकुमार

पड़ी है छिन्नाधार। ।

3.

सीता गई तुम भी चले मै भी न जिऊंगा यहाँ

सुग्रीव बोले साथ में सब (जायेंगे) जाएँगे वानर वहाँ।

4. रावण के शव पर मन्दोदरी करुण क्रन्दन करने लगी।

 

करुण रस कविता

 

” गीत गाने दो मुझे

वेदना को रोकने को। 

चोट खाकर राह चलते

होश के भी होश छूटे

हाथ जो पाथेय थे ठग –

ठाकुरों ने रात लूटे

कंठ रुकता जा रहा है आ रहा है काल देखो।”

यह पंक्ति सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की है।

जिसमें वह जीवन में मिले अनगिनत दुख को सहते सहते थक गए हैं। अब वह अपने दुखों को अपने शोक को गीत के माध्यम से दूर करना चाहते हैं। उनका कहना है उनके पास जो भी प्रिय था , वह सब समय रूपी ठगों ने उनसे छीन लिया।

जीवन के इस विषम परिस्थिति में वह गीत गाकर अपने दुखों को दूर करने का प्रयत्न कर रहे हैं।

” आह ! वेदना मिली विदाई !

मैंने भ्रम – वश जीवन संचित

मधुकरियो की भीख लुटाई

छलछल थे संध्या के श्रमकण

आंसू – से गिरते थे प्रतिक्षण। 

मेरी यात्रा पर लेती थी

नीरवता अनंत अंगड़ाई। “

प्रस्तुत पंक्ति जयशंकर प्रसाद की देवसेना गीत कविता से ली गई है।

Karun ras kavita in hindi

इसमें नायिका जीवन भर भ्रम में रहते हुए एक तरफा प्रेम करती रही। जब उसने अपने प्रेम का इजहार किया तो वास्तविकता नायिका के सोच के विपरीत थी। जिस भ्रम में पड़कर उसने अपने जीवन को न्यौछावर कर दिया जैसे कोई मधुकरियो की / पके हुए अन्न की भीख को लूटता है।

अब वह जीवन के अंतिम क्षणों में दुख और पीड़ा को सहन करते हुए जीवन यापन भिक्षा मांगते हुए कर रही है।

उन क्षणों को याद करते हुए नायिका की आंखों से आंसू निरंतर प्रतिक्षण गिर रहे हैं।

 

करुण रस तथा वियोग श्रृंगार को लेकर विद्वानों में मतभेद है।

वियोग में भी लोग प्रलाप तथा शोक प्रकट करते हैं , यही स्थिति करुण रस में भी होती है। किंतु करुण रस वहां मानना चाहिए जहां व्यक्ति जीवित रहते हुए भी मिलन को विवश हो जाता है। इसमें मिलने की संभावना सदैव रहती है। स्पष्ट शब्दों में कहें तो जीवित रहते हुए भी अगर कोई प्रेमी – प्रेमिका मिल नहीं पाते वहां भी करुण रस माना गया है।

प्रेमचंद के कितने ही उपन्यास तथा कहानियां प्रकाशित हुई हैं ,  जिसमें यथार्थ जीवन को प्रस्तुत किया गया है। किस प्रकार एक निम्न वर्गीय किसान अथवा व्यक्ति जीवन भर संघर्ष करते हुए अपना जीवन व्यतीत कर देता है। किंतु अंततोगत्वा वह अपनी स्थिति से कभी बाहर नहीं निकल पाता। अपनी अगली पीढ़ी को भी वही स्थिति विरासत में सौंप कर मृत्यु के सईया पर लेट जाता है। इस प्रकार के जीवंत उदाहरणों से प्रेमचंद का साहित्य भरा पड़ा है जहां करुण रस की प्रधानता है।

प्रमुख साहित्य – गोदान , बूढ़ी काकी , आदि है।

 

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महत्वपूर्ण प्रश्न – करुण रस

Below you will read important questions on Karun ras which will solve your all doubts.

प्रश्न – करुण रस का स्थायी भाव क्या है ?

उत्तर – स्थायी भाव शोक है।

 

प्रश्न – स्थायी भाव की संख्या कितनी है ?

उत्तर – स्थायी भावों की संख्या 11 मानी गई है।

 

प्रश्न – करुण रस तथा वियोग श्रृंगार में क्या अंतर है ?

उत्तर – करुण तथा वियोग श्रृंगार में सूक्ष्म अंतर है।  करुण रस जहां जीवित व्यक्ति से मिलने की विवशता को प्रकट करता है , वही वियोग श्रृंगार नायक अथवा नायिका के मृत्यु के उपरांत प्रकट होता है।

 

प्रश्न – राम के वन गमन के उपरांत राजा दशरथ की जिस स्थिति का वर्णन राम चरित्र मानस में किया गया है। वह किस रस से संबंधित है ?

उत्तर – करुण रस। राम के वन गमन के उपरांत राजा दशरथ सब कुछ भूल कर केवल दिन-रात राम राम नाम की जाप करते और निरंतर रोते रहते और उनसे मिलने को व्याकुल होते।

 

प्रश्न – प्रेमचंद के दो साहित्य का नाम बताइए जिसमें करुण रस मुख्य हो।

उत्तर – १ गोदान कृषि जीवन से संबंधित है २ बूढ़ी काकी – वृद्धावस्था में किस प्रकार घर के लोग बुजुर्गों का तिरस्कार करते हैं इसमें मार्मिकता से वर्णन है।

 

प्रश्न – सर्वश्रेष्ठ रस किसे माना गया है ?

उत्तर – श्रृंगार रस को।

 

प्रश्न – सहृदय व्यक्ति को सबसे अधिक कौन रस प्रभावित करता है ?

उत्तर – करुण रस।

 

निष्कर्ष :

उपरोक्त अध्ययन के बाद आपने करुण रस की विस्तृत जानकारी हासिल की होगी।

यह लेख आपके ज्ञान की वृद्धि करने में सक्षम हुआ होगा ऐसी आशा करते हैं। करुण रस तथा वियोग रस में निहित सूक्ष्म अंतर को आपने भली-भांति समझा। जहां करुण रस जीवित व्यक्ति से मिलने की व्यवस्था को प्रकट करता है वही वियोग रस में प्रिय तथा स्वजनों के विचारों के कारण उत्पन्न होता है।

यह लेख आपके विद्यालय अथवा विश्वविद्यालय तथा प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रारूप को ध्यान में रखकर लिखा गया है। आशा है आपको यहां उचित जानकारी मिल पाई हो। किसी भी प्रकार से अगर आपको यह रस समझ में नहीं आया या और अधिक जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो आप नीचे हमें कमेंट बॉक्स में लिख कर बता सकते हैं तत्काल हम आपके विचार , सुझाव तथा मांग पर अवश्य कार्य करेंगे।

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