प्रस्तुत लेख वीभत्स रस की संपूर्ण जानकारी देने में सक्षम है। इस लेख के माध्यम से आप वीभत्स रस की परिभाषा, भेद, उदाहरण, स्थायी भाव, आलम्बन, उद्दीपन, अनुभाव तथा संचारी भाव आदि का विस्तार से अध्ययन कर सकेंगे।
यह लेख विद्यालय , विश्वविद्यालय तथा प्रतियोगी परीक्षाओं के अनुरूप लिखा गया है।
इस लेख के अध्ययन उपरांत वीभत्स रस के सूक्ष्म बारीकियों को जान सकेंगे। आप रस के विषय में और अधिक गहन जानकारी हासिल कर सकेंगे। यहां अध्ययन के उपरांत आप अन्य रस से इसकी भिन्नता को भी बेहद ही सरलता से समझ पाएंगे। दो रसों में भेद करने की क्षमता का विकास कर सकेंगे। यह लेख आपके ज्ञान भंडार को भरते हुए अपने निश्चित उद्देश्य में सफल हो इस आशा के साथ यह लेख लिख रहे हैं –
वीभत्स रस की परिभाषा तथा स्थायी भाव
स्थायी भाव :- जुगुप्सा या घृणा
परिभाषा :- किसी वस्तु अथवा जीव को देखकर जहां घृणा का भाव उत्पन्न हो वहां वीभत्स रस होता है। वीभत्स घृणा के भाव को प्रकट करने वाला रस है।
यह भाव आलंबन , उद्दीपन तथा संचारी भाव के सहयोग से आस्वाद का रूप धारण कर लेती है, तब यह वीभत्स रस में परिणत होती है। इस रस को लेकर आचार्यों में भी मतभेद है , कुछ आचार्य इस रस को मानसिक मानते हैं तो कुछ इसे तामसिक बताते हैं। अर्थात एक पक्ष व्यक्ति से व्यक्ति , तथा सामाजिक बुराई को घृणा के अंतर्गत रखते हैं , तो दूसरा मांस और रक्तपात आदि को इसकी श्रेणी में रखते हैं।
वीभत्स रस का आलम्बन, उद्दीपन, अनुभाव तथा संचारी भाव
आलंबन :- दुर्गंध में मांस , रक्त , चर्बी आदि।
उद्दीपन :- मांस आदि में कीड़े पड़ना , उन से दुर्गंध उठना आदि।
अनुभाव :- थूकना , मुंह फेरना , आंखें मूंदना आदि।
संचारी भाव :- आवेग , व्याधि , जड़ता , मरण आदि।
उपर्युक्त हम पहले ही बता चुके हैं कि, विद्वानों में वीभत्स रस के स्थायी भाव को लेकर मतभेद है। जहां एक और विद्वान वीभत्स रस को मांस , रक्त लौकिक क्रियाओं से जोड़कर देखते हैं। वहीं दूसरे पक्ष के विद्वान मांस, रक्त आदि को अलौकिक नहीं अपितु मानसिक घृणा को वीभत्स रस का स्थायी भाव मानते हैं।
यहां उन भ्रांतियों का भी जिक्र करना दूसरे पक्ष के विद्वान नहीं भूले हैं। इनका मानना है कि साहित्य में वीभत्स रस की रचनाएं बहुतायत मात्रा में हुई है। वह सामाजिक बुराइयों पर लिखे गए साहित्य प्रेमचंद के अनेकों साहित्य , नाटककार जयशंकर प्रसाद तथा अन्य सामाजिक कथाकारों ने जो साहित्य लिखे हैं वह वीभत्स रस प्रधान है क्योंकि उसमें स्थायी भाव घृणा ही है।
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श्रृंगार रस – भेद, परिभाषा और उदाहरण
वीभत्स रस के उदाहरण – Vibhats ras examples
सिर पर बैठ्यो काग आँख दोउ खात निकारत।
खिंचत जीभहिं स्यार अतिहि आनंद उर धारत। ।
गीध जांधि को खोदि – खोदि कै मांस उपारत।
स्वान आंगुरिन काटि – काटि कै खात विदारत। ।
व्याख्या –
प्रस्तुत पंक्ति भारतेंदु हरिश्चंद्र की है जिसमें युद्ध भूमि में मारे गए लोगों के शवों की दुर्दशा का वर्णन किया गया है। उसकी जिजीविषा को मार्मिक रूप से व्यक्त किया गया है। किस प्रकार मृत शरीर के आंखों को कौवे नोच रहे हैं और सियार उनके मासों को खींच खींचकर स्वाद का आनंद ले रहे हैं। गिद्धों के झुंड मांस को खोद – खोद के निकाल रहे हैं। इसमें कुत्ते भी पीछे नहीं हैं , वह भी शव को किस प्रकार दुर्दशा कर रहे हैं। इन दृश्यों को प्रस्तुत कर भारत माता के साथ विदेशियों द्वारा किए गए आक्रमण और लूटपाट को व्यक्त करने का प्रयत्न भारतेंदु कर रहे हैं।
निकल गली से तब हत्यारा
आया उसने नाम पुकारा
हाथों तौल कर चाकू मारा
छूटा लोहू का फव्वारा
कहा नहीं था उसने आख़िर हत्या होगी। ।
व्याख्या –
प्रस्तुत पंक्ति भवानी प्रसाद मिश्र की रामदास कविता से है।
इस पंक्ति में बताया गया है किस प्रकार एक सामान्य व्यक्ति को समाज के दूषित लोगों ने घोषणा कर दी चौराहे पर पूरे समाज के सामने हत्या कर दी। वह निःसहाय सड़क पर तड़पता रह गया किंतु कोई भी उसकी सहायता को आगे नहीं आया। समाज तरह – तरह की बातें करने लगे कोई उसकी सहायता को आगे ना आया। वह हत्यारे भीड़ को खेलते हुए वहां से निकल गए।
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महत्वपूर्ण प्रश्न – Important Questions for Vibhats ras
प्रश्न – रसराज किसे कहा गया है ?
उत्तर – श्रृंगार रस को रसराज कहा गया है।
प्रश्न – रस की संख्या कितनी है ?
उत्तर – रस की संख्या11 है।
प्रश्न – संचारी भाव कितने प्रकार के हैं ?
उत्तर – संचारी भाव साहित्य के अनुसार 33 बताए गए हैं किंतु अनेकों संचारी भाव है जिन्हें गणना नहीं की गई है।
प्रश्न – वीभत्स रस का स्थायी भाव क्या है ?
उत्तर – घृणा वीभत्स रस का स्थायी भाव है।
प्रश्न – विस्मय स्थायी भाव किस रस में होता है ?
उत्तर – अद्भुत रस में।
प्रश्न – वीर रस का स्थायी भाव क्या है ?
उत्तर – उत्साह वीर रस का स्थायी भाव है।
वीभत्स रस निष्कर्ष : –
उपर्युक्त अध्ययन के उपरांत यह स्पष्ट होता है कि , वीभत्स रस के स्थायी भाव को लेकर विद्वानों में पर्याप्त मतभेद है। किंतु एक बात जो दोनों विद्वानों में सामान्य है , उन कारणों के कारण जो मन में भाव उत्पन्न होता है।
उस भाव को दोनों ही पक्ष के विद्वानों ने स्वीकार किया है यह घृणा है।
वीभत्स रस सामान्य तौर पर मानव मन में घृणा के भाव को उत्पन्न करते हैं। यह घृणा व्यक्तिगत तो होती है , साथ ही रक्तपात , मांस आदि चीजों को देखकर भी साधारण मन के अंतः करण में घृणा का भाव उत्पन्न होता है।
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