यह लेख भक्ति रस के विषय में संपूर्ण व्याख्यात्मक जानकारी उपलब्ध कराने की क्षमता रखता है। इस लेख के माध्यम से आप भक्ति रस की परिभाषा, भेद, उदाहरण, स्थायी भाव, आलम्बन, उद्दीपन, अनुभाव तथा संचारी भाव से भली-भांति परिचित हो पाएंगे।
लेख के अध्ययन उपरांत आप भक्ति रस को विस्तार से जान पाएंगे तथा अन्य रस से इसकी भिन्नता को भलीभांति समझ पाएंगे। रस के विषय में अपने ज्ञान और जिज्ञासा का वर्धन कर विभिन्न रसों में निहित सूक्ष्म बारीकियों का गहनता से अध्ययन कर पाएंगे –
भक्ति रस आधुनिक युग की देन है। भक्ति रस को संस्कृत आचार्यों ने मान्यता नहीं दी थी। भक्ति रस को स्वतंत्र रूप से स्थापित करने का श्रेय मधुसूदन सरस्वती , रूप गोस्वामी तथा जीव गोस्वामी को दिया गया है।
भक्ति रस की संपूर्ण जानकारी – Bhakti ras
परिभाषा :- इसके अनुसार ईश्वर की भक्ति को मान्यता प्राप्त है, साथ ही किसी पूज्य व्यक्ति को भी भक्ति रस का आलंबन मान सकते हैं।
भक्तिकालीन कवियों ने ईश्वर की आराधना दास्य स्वभाव तथा साख्य भाव से किया था। इसमें प्रमुख थे तुलसीदास , सूरदास , कालिदास , मीराबाई आदि। इन्होंने आजीवन अपने ईश्वर की भक्ति नहीं छोड़ी। भक्ति के मार्ग पर चलकर उन्होंने अनेकों – अनेक कठिनाइयों का सामना किया। किंतु फिर भी भक्ति रस को आचार्यों ने मान्यता नहीं दी। आधुनिक विद्वानों ने इस पर शोध किया और भक्ति रस को स्वतंत्र रूप से स्थापित करने में सफलता हासिल की।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि भक्ति रस के अंतर्गत जहां ईश्वर की भक्ति को महत्वपूर्ण बताया गया है , वहीं पित्र भक्ति और गुरु भक्ति को भी इसमें मान्यता दी गई है।
भक्ति रस – आलम्बन, उद्दीपन, विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव
स्थायी भाव :- रति/अनुराग/भागवत विषय आदि है।
उद्दीपन विभाव :- भगवान या पूज्य व्यक्ति के विचारों का श्रवण , सत्संग , स्मरण , महान कार्य , कृपा , दया आदि।
अनुभाव :- सेवा , कीर्तन , अर्चन , वंदना , श्रवण , गुणगान , जय – जयकार , स्तुति, प्रार्थना करना , शरणागति आदि।
सात्विक अनुभाव :- हर्ष , शोक , अश्रु , रोमांच , स्वेद , कंपन आदि।
संचारी भाव – हर्ष , आशा , गर्व , स्तुति , धृति , उत्सुकता , विस्मय , उत्साह , हास्य , लज्जा , निर्वेद , भय , आशंका , विश्वास , संतोष आदि।
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श्रृंगार रस – भेद, परिभाषा और उदाहरण
भक्ति रस के उदाहरण – Bhakti ras ke udahran
हे गोविन्द हे गोपाल , हे दया निधान
व्याख्या –
प्रस्तुत पंक्ति के अनुसार गोविंद को ईश्वर का रूप मानकर उन्हें दया निधान और जीवनदाता बताया गया है। उनकी दास्य भाव में आराधना की गई है।
राम तुम्हारे इसी धाम में
नाम-रूप-गुण-लीला-लाभ। ।
व्याख्या –
प्रस्तुत पंक्तियां मैथिलीशरण गुप्त की है , उन्होंने एक महाकाव्य यशोधरा के आरंभ में मंगलाचार किया है। जिसमें राम जो ईश्वर के प्रतिनिधित्व करते हैं उनको इस जगत का स्वामी माना गया है। इस जगत में यश – कीर्ति , धन , लाभ जितनी भी लीलाएं हैं , वह सब उनके द्वारा रची गई माया के निहित है। इसमें अपने आराध्य श्री राम को अपने संपूर्ण कर्म समर्पित करते हुए भक्ति की गई है।
प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी
जाकी गंध अंग-अंग समाही। ।
व्याख्या –
प्रस्तुत पंक्ति में ईश्वर को चंदन और स्वयं व्यक्ति को पानी बताया गया है। चंदन जो शीतलता प्रदान करता है , जल में मिलने के कारण वह चंदन ही बन जाता है। जिसकी सुगंध पूरे जल में व्याप्त हो जाती है। ठीक इसी प्रकार ईश्वर पूरे जगत में व्याप्त है , उनकी उपस्थिति के कारण ही यह जग चलाएमान है।
जल में कुम्भ , कुम्भ में जल है , बाहर भीतर पानी
फूटा कुम्भ , जल जलही समाया , इहे तथ्य कथ्यो ज्ञायनी।
व्याख्या –
प्रस्तुत पंक्तियां कबीर दास की है , उन्होंने ईश्वर को जल तथा मनुष्य को कुंभ कहा है। जिस प्रकार घड़े को जल के भीतर डुबाया जाता है तो घड़े के अंदर और बाहर जल की उपलब्धता होती है। ठीक इसी प्रकार मनुष्य जिसमें आत्मा का निवास है , जब वह पृथ्वी पर आता है तो उसके भीतर और बाहर सर्वत्र परमात्मा विद्यमान रहते हैं। यह गूढ़ रहस्य कबीर दास समझाने का प्रयत्न कर रहे हैं , जो बड़े से बड़े ज्ञानियों को भी समझ से बाहर है।
यह घर है प्रेम का खाला का घर नाहीं
सीस उतारी भुई धरो फिर पैठो घर माहि। ।
व्याख्या –
कबीर दास ने उपरोक्त पंक्ति के माध्यम से भक्ति रस को बेहद ही दुर्लभ बताया है। भक्ति करना सभी के बस की बात नहीं है , इसके लिए अपने मान-सम्मान अहंकार आदि को त्यागना पड़ता है। तब जाकर भक्ति प्राप्त होती है। यह एक प्रकार से गर्दन काटने जैसी स्थिति होती है जो प्रत्येक व्यक्ति नहीं कर सकता।
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द
गुरु मेरा पारब्रह्म ,गुरु गोविन्द। ।
व्याख्या –
उपर्युक्त पंक्ति में गुरु की भक्ति को दर्शाया गया है। गुरु को जगत में श्रेष्ठ माना गया है। क्योंकि गुरु वह व्यक्ति होता है जो गोविंद से परिचय कराता है , अर्थात भगवान से परिचय कराता है। इस पंक्ति में गुरु को ही गोविंद और परब्रह्मा माना गया है , उनसे मिले ज्ञान के कारण ही इस संसार का अस्तित्व है।
बाला में बैरागन होंगी ,
जिन मेरे श्याम रीझे सो ही भेष धरूंगी। ।
व्याख्या –
मीराबाई श्री कृष्ण की भक्ति में इतना डूब चुकी थी कि , उन्होंने लोक – लाज और कुल की मर्यादा को त्याग कर बैरागन तपस्वी होना स्वीकार किया। उन्होंने सांसारिक मोह का तनिक भी ध्यान नहीं किया। उन्होंने वही भेष धारण किया जिसके कारण उसके आराध्य श्री कृष्ण खुश हो सके उनसे रीझ सके।
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महत्वपूर्ण प्रश्न – Important Questions on Bhakti ras
प्रश्न – प्राचीन आचार्यों के अनुसार रस की संख्या कितनी है ?
उत्तर – प्राचीन आचार्यों के अनुसार रस की संख्या 9 मानी गई है
प्रश्न – रसराज किसे कहते हैं ?
उत्तर – श्रृंगार रस को रसराज कहते हैं।
प्रश्न – आधुनिक समय में रस की संख्या कितनी है ?
उत्तर – आधुनिक समय में रस की संख्या 11 मानी गई है।
प्रश्न – भक्ति रस का स्थायी भाव क्या है ?
उत्तर – भक्ति रस का स्थायी भाव रति/अनुराग/भागवत विषय आदि है।
प्रश्न – संचारी भाव कितने प्रकार के हैं ?
उत्तर – संचारी भाव अनेकों प्रकार के हैं किंतु व्याकरण में 33 माने गए हैं।
प्रश्न – भक्ति रस के अनुसार किस प्रकार की भक्ति को स्वीकार की गई है ?
उत्तर – भक्ति रस के अनुसार ईश्वर की भक्ति , गुरु भक्ति तथा पित्र भक्ति को स्वीकार किया गया है।
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