जयशंकर प्रसाद ( अंतरा भाग 2 ) देवसेना का गीत , कार्नेलिया का गीत

इस लेख में जयशंकर प्रसाद कक्षा 12वीं अंतरा भाग 2 देवसेना का गीत तथा कार्नेलिया का गीत का विस्तार से अध्ययन करेंगे। साथ ही जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय प्राप्त करेंगे। यह लेख आपको परीक्षा में उच्च अंक दिला पाने में सक्षम होगा।

अंतरा भाग 2 , कक्षा 12वीं में देवसेना का गीत तथा कार्नेलिया का गीत जयशंकर प्रसाद के द्वारा लिखित कविता का संकलन किया गया है। यह प्रथम पाठ के रूप में पढ़ने को मिलेगा। देवसेना का गीत जयशंकर प्रसाद के द्वारा रचित स्कंदगुप्त नाटक का अंश है। वही कार्नेलिया का गीत चंद्रगुप्त नाटक का अंश है।

इस लेख में आप देवसेना का गीत , कार्नेलिया का गीत तथा जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय प्राप्त करेंगे। अंत में महत्वपूर्ण प्रश्न अभ्यास भी होगा। जिसका अभ्यास करा परीक्षा के लिए तैयारी कर सकेंगे। संभवत आपको इस लेख के माध्यम से परीक्षा में सर्वोच्च अंक प्राप्त हो सकेगा।

जयशंकर प्रसाद जीवनी

जन्म – सन 1888 में काशी के सुंघनी साहू परिवार में

शिक्षा – उन्होंने विधिवत शिक्षा केवल आठवीं कक्षा तक प्राप्त की। स्व शिक्षा द्वारा उन्होंने संस्कृत , पाली , उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं का गहन अध्ययन किया।

लेखन कार्य – वेदों और उपनिषदों में उन्होंने विशेष चिंतन और मनन रहा। साहित्य की विभिन्न विधाओं में उनकी लेखनी निरंतर चलती रही।

रचनाएं –

  1. काव्य –  झरना , आंसू , लहर , कामायनी , कानन – कुसुम
  2. नाटक – राजश्री , अजातशत्रु , चंद्रगुप्त , स्कंदगुप्त , ध्रुवस्वामिनी।
  3. उपन्यास – कंकाल , तितली , इरावती।
  4. कहानी संग्रह –  छाया , प्रतिध्वनि , आंधी , इंद्रजाल , आकाशदीप।
  5. निबंध – काव्य कला तथा अन्य निबंध।

पुरस्कार –  हिंदुस्तानी एकेडमी एवं काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा कामायनी पर मरणोपरांत मंगला प्रसाद पारितोषिक। 

साहित्यिक विशेषताएं –  प्रसाद साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसमें भारतीय दर्शन संस्कृति एवं मनोविज्ञान के साथ-साथ भारतीय जीवन का सफल चित्रण हुआ है। जैसे –

  • प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण
  • मानव प्रेम
  • ईश्वर प्रेम
  • देश प्रेम
  • मानव सौंदर्य

भाषा शैली –

  • संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग।
  • मुक्त छंद की रचनाएं।
  • छायावादी काव्य के प्रमुख कवि
  • प्रतीक योजना , बिंब विधान
  • अलंकारों का सुंदर प्रयोग
  • माधुर्य गुण से युक्त शब्दावली।

मृत्यु – सन 1937 में साहित्य के देवता चिर निद्रा में लीन हो गए।

 

‘ देवसेना का गीत ‘  पाठ का सार

देवसेना का गीत  , जयशंकर प्रसाद के प्रसिद्ध नाटक स्कंदगुप्त का अंश है। देवसेना , स्कंदगुप्त के प्रेम से वंचित रह जाने पर अपने जीवन के अंतिम क्षणों में अपने दुख , वेदना और व्याकुलता का प्रकट करते हुए गीत गाती।

हृणों के हमले में मालवा के राजा बंधु वर्मा और उसका पूरा परिवार मारा जाता है , लेकिन उसकी बहन देवसेना किसी तरह बच जाती है।

देवसेना , स्कंदगुप्त से प्रेम करती है और उससे पूरा विश्वास है कि मुश्किल घड़ी में स्कंद गुप्त उसका साथ देगा और उससे विवाह करेगा।  लेकिन स्कंदगुप्त तो धन कुबेर की पुत्री विजया से विवाह करना चाहता है। इस बात से देवसेना पूरी तरह टूट जाती है। अपना बाकी जीवन देश सेवा के लिए समर्पित कर देती है। यह गीत अपने जीवन के अंतिम क्षणों में गाती है।

देवसेना के माध्यम से जयशंकर प्रसाद भारत वासियों को स्वाधीनता संग्राम में अपना योगदान सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। देवसेना अंत में पूरी निष्ठा के साथ देश सेवा में लग जाती है। उसके आगे वह स्कंदगुप्त के प्रेम को भी पुनः ठुकरा देती है। अर्थात व्यक्तिगत प्रेम से सर्वोच्च देश प्रेम को जयशंकर प्रसाद ने बताया है।

 

सप्रसंग व्याख्या

 

आह वेदना ……………………………….  नीरवता अनंत अंगड़ाई।

प्रसंग –

कवि – जयशंकर प्रसाद ,

कविता – देवसेना का गीत

संदर्भ – इसमें देवसेना अपने दुख और संघर्षों का वर्णन करते हुए कहती है कि उसकी जीवन यात्रा पर अगर किसी ने अधिकार किया है तो वह है एकमात्र उसका अकेलापन।

व्याख्या –

देवसेना कहती है कि मुझे जीवन के अंतिम क्षणों में भी दुख और पीड़ा ही मिल रही है। मैंने अपना जीवन इसी आशा में गुजार दिया कि स्कंदगुप्त मुझसे प्रेम करता है लेकिन यह मेरा भ्रम था। इसी कारण मैंने अपने जीवन को देश सेवा के लिए समर्पित कर दिया। अर्थात अपने जीवन के मधुर यादों को दान कर दिया। मैं बस अपने जीवन को जीती जा रही थी जबकि वास्तविकता कुछ और थी। अतः जीवन के अंतिम क्षणों में भी मुझे दुख ही मिला। मानो संध्या भी उसके दुख में आंसू बहा रही हो। ऐसा लगता है मानो उसकी जीवन रूपी यात्रा में अगर कोई साथ चलता है तो वह स्वयं अकेले।

विशेष –

  • देवसेना के जीवन संघर्षों का सजीव चित्रण हुआ है।
  • खड़ी बोली , मुक्तक छंद की रचना है
  • छायावादी रचना है
  • करुण रस है
  • उपमा , अनुप्रास और मानवीकरण अलंकार है
  • ऐतिहासिक घटना पर आधारित है।

 

काव्य सौंदर्य

श्रमित स्वपन ……………………..  विभाग की तान उठाई।

भाव पक्ष –

इसके माध्यम से देवसेना कहती है कि जिस प्रकार दिन भर के थके हारे पथिक को कोई भी मधुर गीत अच्छा नहीं लगता , उसी प्रकार अपने जीवन के संघर्षों से थकी हारी देवसेना को स्कंद गुप्त का प्रेम प्रसंग अच्छा नहीं लगता।

शिल्प सौंदर्य –

  • कवि –  जयशंकर प्रसाद
  • कविता –   देवसेना का गीत
  • भाषा –  खड़ी बोली
  • शैली – छायावादी
  • रस –  वियोग रस
  • छंद –  मुक्तक
  • अलंकार –  स्वप्न का मानवीकरण अलंकार
  • शब्दावली –  तत्सम
  • गुण –  माधुर्य गुण
  • शब्द शक्ति –  लाक्षणिकता
  • प्रतीक विधान – पथिक , स्वप्न
  • छंद – कविता तुकांत
  • सार – देवसेना के जीवन में संघर्ष को प्रदर्शित करना।

 

महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न – देवसेना की हार या निराशा के क्या कारण है ?

उत्तर – देवसेना मालवा के राजा बंधु वर्मा की बहन है और हूणों के आक्रमण में उनका सारा परिवार नष्ट हो जाता है , अर्थात मारा जाता है। वह अपने भाई का स्वप्न साकार करने के लिए स्कंदगुप्त की शरण में आती है। वह उससे प्रेम करती है , परंतु स्कंदगुप्त मालवा के धनकुबेर की कन्या विजया को चाहता है , इसलिए उसे प्रेम में निराशा मिलती है। जीवन के अंतिम क्षणों में स्कंदगुप्त उससे प्रणय निवेदन करता है , तो वह उसे स्वीकार नहीं करती। इस प्रकार दोनों ही बार वह प्रेम में निराशा को पाती है। उसे अपने आपको कमजोर जानते हुए भी मुसीबतों और कठिनाइयों को डटकर सामना करती है , परंतु वह अब हार गई है। इस प्रकार प्रेम में मिली असफलता और जीवन में मिली असफलता के कारण देवसेना स्वयं को थकी और हारी हुई महसूस करती है।

 

प्रश्न – छायावाद क्या है ? अपने शब्दों में लिखें।

उत्तर – छायावाद के प्रमुख चार कवि थे जिसमें से जयशंकर प्रसाद एक है। छायावादी कवि श्रृंगार और प्रकृति प्रेमी थे। छायावाद का समय 1936 – 1940 के आसपास का माना जाता है। इस समय भारत अंग्रेजों के अधीन था अर्थात अंग्रेजी सत्ता भारत में काबिज थी। वह अपने मन मुताबिक भारत वासियों पर अपने निर्णय थोप रहे थे , चाहे वह भारत के हित में हो या नहीं , उन्हें केवल अपने हितों का ध्यान था।

इस समय स्वतंत्रता आंदोलन भी चरम पर पहुंच चुकी थी। लेखकों , कवियों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए बंधी हुई कलम से लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए आह्वान किया। क्योंकि वह अपने लेख में सीधे तौर पर यह नहीं लिख सकते थे उनके भारतवासियों उठो और अंग्रेजों को मार भगाओ। इसलिए वह प्रकृति और सौंदर्य का अपने काव्य में प्रयोग करते हुए लोगों को जागरूक कर रहे थे।

छायावाद की यही विशेषता उनके काव्य को श्रेष्ठ बनाती है।

 

प्रश्न – मैंने भ्रम वश जीवन संचित मधुकरियो की भी लुटाई , पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – मधुकरियों का शाब्दिक अर्थ होता है पके हुए अन्न । देवसेना पूरे जीवन इस भ्रम में रहती है कि स्कंदगुप्त जिससे वह प्रेम करती है , वह भी उसे चाहता है। जबकि वास्तविकता यह नहीं थी , जब मालवा देश के राजा बंधु वर्मा पर विदेशी आक्रमणकारियों ने आक्रमण किया देवसेना का पूरा परिवार इस आक्रमण में मारा जाता है। उसके पास अब कोई सहारा नहीं बचता , अंत में वह स्कंद गुप्त के पास शरण मांगने जाती है और अपने विवाह का प्रस्ताव देवसेना स्कंद गुप्त के सामने रखती है।

स्कंदगुप्त विवाह का प्रस्ताव ठुकरा देता है , जिससे देव सेना टूट जाती है क्योंकि वह पूरे जीवन यह समझती रही कि स्कंदगुप्त उससे प्रेम करता है जबकि ऐसा नहीं हुआ। निराश , हताश देवसेना देश सेवा में लीन हो जाती है और एक आश्रम में शरणागत होती है।

 

‘ कार्नेलिया का गीत ‘ पाठ का सार

कार्नेलिया का गीत , जयशंकर प्रसाद के प्रसिद्ध नाटक चंद्रगुप्त से लिया गया है। सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस की बेटी कार्नेलिया जब सिंधु नदी के तट पर खड़े होकर भारत की गौरव गाथा का अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य को देखती है तो इसे अपना देश माननीय लगती है। वह कहती है कि भारत वह स्थान है जो माधुर्य और लालीमा से भरा हुआ है। जहां अनजान व भूले-भटके लोगों को भी आश्रय मिल जाता है। दूर देशों से आए हुए रंग-बिरंगे पक्षी भी भारत में ही अपना घोंसला बनाना चाहते हैं , यहां के लोग दूसरों के दुख तकलीफों को देखकर अत्यंत भावुक हो जाते हैं। विशाल समुद्र की लहरें भी भारत के किनारों से टकराकर शांत हो जाती है। अर्थात उन्हें यहां भी आकर आश्रय मिल जाता है।

 

काव्य सौंदर्य

 

हेम कुंभ …………………………..रजनी भर तारे। 

भाव सौंदर्य –

उषा रूपी पनिहारीन अपने सोने के घड़े में सुख-समृद्धि और वैभव लाकर संपूर्ण भारतवर्ष में उड़ेल देती है , अर्थात बिखेर देती है। जबकि सारी रात जागने के कारण तारे मस्ती से ऊँघने लगते हैं।

शिल्प सौंदर्य –

  • कवि –  जयशंकर प्रसाद
  • कविता – कार्नेलिया का गीत
  • भाषा –  खड़ी बोली
  • शैली –  छायावादी
  • रस  –  शांत रस
  • छंद –  मुक्त छंद
  • अलंकार –  उषा और तारों का मानवीकरण किया गया है , रूपक अनुप्रास और मानवीकरण अलंकार है।
  • प्रतिक विधान –  उषा , तारे , घड़ा
  • शब्द शक्ति –  लाक्षणिकता
  • छंद कविता –  तुकांत
  • गुण –  माधुर्य
  • सार – प्रभात कालीन वातावरण का आकर्षण एवं सजीव वर्णन।

 

महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न – ‘उड़ते खग’ और ‘बरसाती आंखों के बादल’ में क्या विशेष अर्थ व्यंजित है ?

उत्तर – उड़ते खग के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि पक्षी गण तक भारत को अपना घर समझकर इसी और मुख करके उड़ते हैं और अपने बच्चों को जन्म देते हैं। अर्थात यहां प्रत्येक प्राणी को अपने घर जैसी सुख सुविधाएं प्राप्त होती है। बरसाती आंखों के बादल के माध्यम से कवि कहता है कि इस देश के लोग अपने दुख के क्षणों को भूल कर दूसरों के दुख को अपना समझ कर उनके लिए सहारा बनते हैं। इस देश में प्रेम और करुणा सर्व व्याप्त है।

 

प्रश्न –  कार्नेलिया का गीत में , कार्नेलिया भारत के किन विशेषताओं को बता रही है ?

उत्तर – कार्नेलिया सिंधु नदी के तट पर बैठकर भारत के विभिन्न विशेषताओं की ओर ध्यान आकर्षित कर रही है। भारत में सूर्योदय सर्वप्रथम होता है यहां की लालिमा जो सबका जीवन संवारने को तत्पर रहती है। यही कारण है कि पक्षी गण भी भारत की ओर अपना मुख किए चले आते हैं और यहां अपना निवास बनाते हैं ,  यहीं के होकर रखें जाते हैं। भारत में जो प्रेम और स्नेह लोगों के द्वारा मिलता है , वह अन्य देशों में नहीं मिल सकता।  भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां सभी देश के लोगों का सम्मान देवता मानकर किया जाता है। यहां आकर व्यक्ति को यह देश अपना मालूम होता है।  यह भारत के हृदय की विशालता ही है , जो सभी लोगों को खुले दिल से अपना आता है।

 

प्रश्न – जहां पहुंच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा , पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – कार्नेलिया सिंधु नदी के तट पर लहरों की ओर एकटक नजर से देख रही है। लहरें भारत के जमीन पर आकर विलुप्त हो जाती है , अर्थात उसे यहां शरण मिल जाती है। जिस प्रकार भारत पशु , पक्षी और मनुष्यों को अपने यहां शरण देता है , उनका सेवा स्वागत करता है। उसी प्रकार इन लहरों को भी भारत में आकर स्थान मिल जाता है। यही भारत और उसकी संस्कृति की महानता है जो अन्य जगह दुर्लभ है।

 

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