प्रस्तुत लेख में श्रृंगार रस के अंग , भेद , परिभाषा आदि को विस्तृत उदाहरण से समझने का प्रयत्न करेंगे। यह लेख रस का अध्ययन करने वाले सभी विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है।
यह लेख विद्यालय , विश्वविद्यालय अथवा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए लाभकारी है। इस लेख में श्रृंगार रस के विषय को विस्तृत रूप से समझाने का प्रयत्न किया गया है , जो विद्यार्थियों के लिए काफी लाभप्रद है।
श्रृंगार रस – Shringar ras in hindi
- श्रृंगार दो शब्दों के योग से बना है श्रृंग + आर।
- श्रृंग का अर्थ है काम की वृद्धि , तथा आर का अर्थ है प्राप्ति।
- अर्थात जो काम अथवा प्रेम की वृद्धि करें वह श्रृंगार है।
- श्रृंगार का स्थाई भाव दांपत्य रति / प्रेम है।
- श्रृंगार रस को रसों का राजा (रसराज ) भी कहा गया है।
- इसके अंतर्गत पति – पत्नी या प्रेमी – प्रेमिका के प्रेम की अभिव्यंजना की जाती है।
उदहारण –
कृष्ण सोलह हजार गोपियों के साथ एक साथ रासलीला रचा रहे हैं।
अर्थात सोलह हजार कृष्ण दिख रहे हैं , जो बांसुरी की धुन से सभी गोपियों को प्रेम रस में सराबोर किए हुए हैं। गोपियां अपने प्रेमी कृष्ण के साथ रासलीला रचा रहे हैं। इस आनंद के उत्सव में जग तथा अन्य विषयों की सुध बिसरा गई है।
यहां –
- उद्दीपन विभाव – नायक – नायिका की चेस्टाए हैं , वृंदावन आदि प्रस्तुत है।
- अनुभाव – आलिंगन , रोमांच , अनुराग आदि है।
- संचारी भाव – उग्रता , मरण , जुगुप्सा जैसे भावों को छोड़कर सभी श्रृंगार के अंतर्गत आते हैं।
व्यक्ति जन्म से ही सौंदर्य प्रेमी होता है , वह जगत में सौंदर्य के प्रति आकर्षित होता है। जो विभाव , अनुभाव , संचारी आदि भावों के माध्यम से जागृत होता है।
श्रृंगार रस के दो भेद हैं
१ संयोग श्रृंगार
२ वियोग श्रृंगार।
इन दोनों के माध्यम से प्रेम के विशाल रूप को प्रकट किया जाता है। प्रेम के व्यापक , उदात्त और इसी मनोवैज्ञानिक दृष्टि के कारण श्रृंगार रस को रसराज भी कहा जाता है।
1. संयोग श्रृंगार – Sanyog shringar ras
संयोग श्रृंगार के अंतर्गत नायक नायिका का परस्पर मिलन होता है। दोनों के द्वारा किए गए क्रियाकलापों को उनके सुखद अनुभूतियों को संयोग श्रृंगार के अंतर्गत माना गया है।
संयोग श्रृंगार के उदाहरण
” हुए थे नैनो के क्या इशारे इधर हमारे उधर तुम्हारे।
चले थे अश्कों के क्या फवारे इधर हमारे उधर तुम्हारे। “
प्रस्तुत पंक्ति में नायक – नायिका के संयोगवश मिलने के कारण दोनों की आंखों में जो बातचीत हुई। उससे अश्रु की धारा निकली , यह संयोग श्रृंगार की प्रबल अनुभूति कराता है।
2. वियोग श्रृंगार – Viyog shringar ras
वियोग श्रृंगार को विप्रलंभ श्रृंगार भी माना गया है। वियोग श्रृंगार की अवस्था वहां होती है , जहां नायक – नायिका पति-पत्नी का वियोग होता है। दोनों मिलन के लिए व्याकुल होते हैं , यह बिरह इतनी तीव्र होती है कि सबकुछ जलाकर भस्म करने को सदैव आतुर रहती है।
माना गया है जिस प्रकार सोना आग में तप कर निखरता है , प्रेम भी विरहाग्नि में तप कर शुद्ध रूप में प्रकट होती है।
वियोग श्रृंगार के उदाहरण
” जल में शतदल तुल्य सरसते , तुम घर रहते हम न तरसते
देखो दो – दो मेघ बरसते , मैं प्यासी की प्यासी ……
आओ हो बनवासी। “
प्रस्तुत पंक्ति मैथिलीशरण गुप्त की यशोधरा का विरह वर्णन से लिया गया है।
इसमें नायिका अपने स्वामी के बिरहा अवस्था में अपने पति के लौट आने की आशा करती है। दिन – रात दोनों नेत्रों से अश्रु की वर्षा करती रहती और उनके आगमन की प्रतीक्षा में राह ताकती ।
यह नायिका द्वारा अपने नायक की प्रतीक्षा में प्रेम की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करता है।
श्रृंगार रस के उदाहरण
” पिय सौं कहेहु संदेसरा ऐ भँवरा ऐ काग
सो धनि बिरहें जरि गई तेहिक धुंआ हम लाग। “
प्रस्तुत पंक्ति मलिक मोहम्मद जायसी , बारहमासा से ली गई है। जिसमें नायिका अपने प्रिय के विरह में कौवे को अपना संदेशा प्रियतम को सुनाने के लिए कह रही है। उसे कह रही है , वह अग्नि में इस प्रकार जल रही है तथा जल चुकी है कि उस आग से उठने वाले धुएं के कारण ही मेरा रंग काला हो गया है।
” यह तन जारों छार कै कहों कि पवन उड़ाउ
मकु तेहि मारग होइ परों कंत धरै वहं पाउ। “
विरहाग्नि में जलती हुई नायिका कहती है , या तो मेरे प्राण निकल जाए , यह हवा का झोंका मुझे अपने स्वामी के राह में ले जाए। जहां मेरे पिया का मिलन हो सके , मेरे प्रियतम मुझे मिल जाए। मैं उसी राह पर राख बनकर भी रहना चाहती हूं , इसी के कारण शायद मेरे प्रेमी से मिलन हो सके।
” के पतिआ लए जाएत रे मोरा पिअतम पास।
हिए नहि सहए असह दुख रे भेल साओन मास। ।”
प्रस्तुत पंक्ति विद्यापति की है इसमें राधा अपने प्रियतम कृष्ण के पास संदेशा भेजना चाह रही है। वह अपने सखी से कह रही है , हे सखी मेरा पत्र मेरे प्रियतम के पास कौन लेकर जाएगा और यह बताएगा। अब मुझसे बिरहा नहीं सहा जा रहा है , सावन का मास भी आकर निकल जाता है किंतु यह मास भी प्रियतम के बिना मुझे नहीं सुहाता।
श्रृंगार रस कविता – Shringar ras kavita
” मुझे भाग्यहीन की तू संबल
युग वर्ष बाद जब हुई विकल
दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूं आज , जो नहीं कही!
हो इसी कर्म पर वज्रपात
यदि धर्म , रह नत सदा माथ
इस पथ पर मेरे कार्य सकल,
हो भ्रष्ट शीत के -से शतदल !
कन्ये , गत कर्मों का अर्पण
कर , करता मैं तेरा तर्पण ! “
प्रस्तुत पंक्ति सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के सरोज स्मृति से ली गई है। यहां पुत्री के असमय निधन के उपरांत वह अपने हृदय की पीड़ा को व्यक्त कर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। वह अपने आपको भाग्यहीन मानते हैं। क्योंकि पत्नी के उपरांत के बाद एक सहारा बेटी ही थी जिसके माध्यम से जीवन बीत रहा था। अब वह बेटी का सहारा भी खत्म हो गया। जिसकी पीड़ा एक पिता का हृदय सहन नहीं कर पा रहा।
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रस की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण
महत्वपूर्ण प्रश्न – श्रृंगार रस
प्रश्न – श्रृंगार रस का स्थाई भाव क्या है ?
उत्तर – स्थाई भाव रति अथवा दांपत्य प्रेम है।
प्रश्न – श्रृंगार रस के कितने उपभेद हैं ?
उत्तर – इस के दो भेद हैं संयोग श्रृंगार तथा वियोग श्रृंगार।
प्रश्न – रसराज किस रस को कहा गया है ?
उत्तर – श्रृंगार रस को रसराज माना गया है।
प्रश्न – ” मधुबन तुम कत रहत हरे , विरह वियोग श्याम सुंदर के , ठाड़े क्यों न जरे। ” किस रस के अंतर्गत आएगा ?
उत्तर – शृंगार रस के वियोग श्रृंगार पक्ष के अंतर्गत। यहां गोपियां कृष्ण के बिरह मे मधुबन को कोस रही हैं अथवा उलाहना दे रही है।
प्रश्न – रस कितने प्रकार के हैं ?
उत्तर – रस 11 प्रकार के हैं। कुछ विद्वान नौ रस को मानते हैं वह वात्सल्य रस और भक्ति रस को नहीं मानते।
बढ़िया तरीके से लिखा गया लेख मुझे बहुत पसंद आया
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