प्रस्तुत लेख में वात्सल्य रस का संपूर्ण व्याख्यात्मक परिचय दिया गया है। इस लेख के माध्यम से आप वात्सल्य रस की परिभाषा, भेद, स्थायी भाव, आलम्बन, उद्दीपन, विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव और उसके विभिन्न उदाहरण से परिचित हो पाएंगे।
इस लेख के अध्ययन उपरांत आप वात्सल्य रस और विशेषकर श्रृंगार रस में संबंधित कुछ सूक्ष्म बारीकियों को जान पाएंगे। वात्सल्य रस की वर्तमान साहित्य में उपयोगिता और इसके प्रयोग को भली-भांति अध्ययन करेंगे। यह लेख ग्यारह रस में से एक है , पूर्व आचार्यों ने इस रस की उपेक्षा की थी। इन सभी तथ्यों पर आप विस्तार पूर्वक अध्ययन कर , अपने ज्ञान और जिज्ञासा का हल यहां प्राप्त कर सकते हैं –
वात्सल्य रस की पूरी जानकारी – Vatsalya ras in hindi
परिभाषा :- वत्सल को दूसरे शब्दों में कहें तो यह प्रेम है। किंतु यहां शृंगार रस के प्रेम और वत्सल प्रेम में सूक्ष्म अंतर है। शृंगार रस का प्रेम दांपत्य जीवन पर आधारित है तथा वात्सल्य रस का प्रेम वत्सल – पुत्र स्नेह , मानव स्नेह , भागवत प्रेम आदि तक विस्तार है।
प्राचीन आचार्यों ने वात्सल्य रस को स्वीकृति नहीं दी थी। उन्होंने स्पष्ट रूप से नौ रस को ही स्वीकार प्रदान किया था और उन्हें मान्यता दी थी। वात्सल्य रस को मान्यता दिलाने के लिए भक्ति कालीन कवियों ने पुरजोर प्रयत्न किया और आधुनिक कवियों ने वात्सल्य रस को स्वीकृति प्रदान की।
सूरदास ने अपने आराध्य श्री कृष्ण को वत्सल रूप में प्रेम किया। वही गोस्वामी तुलसीदास ने अपने स्वामी श्री राम के बाल लीलाओं का वर्णन कर उनके वत्सल प्रेम को उजागर किया।
आचार्य विश्वनाथ ने वात्सल्य रस को स्वतंत्र रूप से रस की मान्यता दी।
वात्सल्य रस – आलम्बन, उद्दीपन, विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव
स्थायी भाव :- वात्सल्य रस का स्थायी भाव वत्सल है।
आलंबन – संतान, पुत्र, बालक आदि।
उद्दीपन विभाव – भोली – भाली चेस्टाएं, तुतलाना, चंचलता, नटखटपन, सुंदरता, बाल क्रीड़ा आदि।
सात्विक अनुभाव – आलिंगन, चुंबन, स्पर्श, मुग्ध होकर देखना, मीठी – मीठी बातें करना, खिलाना पिलाना, लालन – पालन, पुलकित होना, गदगद होना, दुखी होना।
संचारी भाव – हर्ष, गर्व, मोह, अभिलाषा, आशा, चपलता, आवेद, उत्साह, हास, चिंता, शंका, विस्मय, स्मरण, उदासीनता आदि।
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श्रृंगार रस – भेद, परिभाषा और उदाहरण
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि यह श्रृंगार रस की भांति जिस प्रकार यह रस प्रतीत होता है।
उसी प्रकार इस के दो भेद भी बताए गए हैं –
१ संयोग वात्सल्य तथा २ वियोग वात्सल्य
वात्सल्य रस के उदाहरण – Vatsalya ras examples
ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनिया। ।
व्याख्या –
प्रस्तुत पंक्ति में श्री राम के बाल्य अवस्थाओं के क्रीडा को दर्शाया गया है। जिसमें वह घुटनों के बल कभी चलते हैं , तो कभी खड़े होकर चलने का अभ्यास करते हैं। उनके पैरों में बंधी पायल की घुंघरू की आवाज पूरे राजमहल में गूंज रही है।
जिसको देखकर राजा – रानी और सेविकाएं मंत्रमुग्ध हो रही हैं।
मैया कबहु बढ़ेगी चोटी
कित्ति बार मोहे दूध पिवाती भई अजहुँ हे छोटी। ।
व्याख्या –
उपयुक्त पंक्ति के माध्यम से कवि सूरदास अपने आराध्य श्री कृष्ण के लीलाओं का वर्णन करते हैं। जो संपूर्ण जगत के स्वामी है , आज वह बालक रूप में अपनी मां के साथ वात्सल्य रस लुटा रहे हैं। वह अपनी माता यशोदा से कहते हैं कि – यह मेरे शीश पर जो चोटी है , वह कितने ही समय से छोटी की छोटी है। यह बड़ी क्यों नहीं रही ? जबकि तुम मुझे रोज दूध पिलाती हो और जल्दी बड़ा होने के लिए बोलती हो।
मैया मैं तो चंद्र खिलौना लेहों। ।
व्याख्या –
तुलसीदास ने इस पंक्ति के माध्यम से श्री राम के बाल्यवस्था , उनकी क्रियाओं को व्यक्त किया है। उनके महल में सोने – चांदी आदि के अनेकों खिलौने चारों ओर बिखरे हुए हैं। किंतु उन्होंने ऐसा खिलौना देख लिया है , जो उनकी पहुंच से दूर है। वह अपनी माता से कहते हैं मैया मैं तो यही खिलौना लेहूं। अब श्रीराम के माता-पिता वह खिलौना कहां से लाकर दे ? यह खिलौना तो चंद्रमा है , जो किसी की भी पहुंच से दूर है। अतः उन्होंने युक्ति लगाकर एक पात्र में जल भर उस चंद्रमा के प्रतिबिंब को जल में उतार दिया और श्री राम खिलौने से खेलने लगे।
मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो
बाल ग्वाल सब पीछे परिके बरबस मुख लपटाओ। ।
व्याख्या –
मां यशोदा के नाराज हो जाने के कारण कृष्ण उन्हें अपनी लीलाओं के द्वारा मनाने की कोशिश कर रहे हैं। वह यह बताना चाह रहे हैं , कि उन्होंने माखन चोरी कर नहीं खाया। यह जो मुख पर माखन का लेप है , वह बाल ग्वालों ने मिलकर लगाया है। ताकि कोई भी इसे देखकर चोर समझे। वह इस प्रकार अनेकों उदाहरण देकर अपनी मां को मनाने की कोशिश कर रहे हैं।
निष्कर्ष : –
उपर्युक्त उदाहरण और परिभाषा के माध्यम से आप वात्सल्य रस से भली – भांति परिचित हो सके होंगे। यह श्रृंगार रस की भांति है जिसके दो भेद संयोग और वियोग है। किंतु काफी हद तक इसमें समानता है तो सूक्ष्म भेद भी है। श्रृंगार रस जहां दांपत्य प्रेम का प्रतिनिधित्व करता है , वही वात्सल्य रस पुत्र प्रेम का प्रतिनिधि है। इस रस के माध्यम से बालकों के खेल और उनके द्वारा किए गए क्रियाकलापों जिसके कारण अभिभावक आनंदित होते हैं को रखा गया है।
इस रस की मान्यता पूर्व आचार्यों ने न देकर भूल की थी , आधुनिक आचार्यों ने इसे वही स्थान दिया है जो अन्य रस को प्रदान है। पूर्व समय में इस रस की अवहेलना की गई थी। संस्कृत आचार्यों ने नौ रस को ही स्वीकृति प्रदान की थी , किंतु आधुनिक हिंदी आचार्यों ने इसकी संख्या को ग्यारह माना है।
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महत्वपूर्ण प्रश्न – Important Questions on Vatsalya ras in hindi
प्रश्न – वात्सल्य रस का स्थायी भाव क्या है ?
उत्तर – वत्सल स्थायी भाव है।
प्रश्न – वात्सल्य रस के दो भेद कौन-कौन से हैं ?
उत्तर – संयोग तथा वियोग वात्सल्य रस के दो भेद हैं।
प्रश्न – शृंगार रस तथा वात्सल्य रस में क्या अंतर है ?
उत्तर – श्रृंगार रस दांपत्य प्रेम को दर्शाता है वही वात्सल्य रस पुत्र प्रेम का प्रतिनिधि है।
प्रश्न – रसराज किसे कहा गया है ?
उत्तर – श्रृंगार रस को रसराज कहा गया है।
प्रश्न – बालकों द्वारा किए गए क्रियाकलापों को किस रस के अंतर्गत माना जाएगा ?
उत्तर – वात्सल्य रस।
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