प्रस्तुत लेख में रौद्र रस के संपूर्ण आयामों को विस्तार से लिखा गया है। यहां रौद्र रस की परिभाषा और भेद ,उदाहरण, आलम्बन, उद्दीपन, विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव सहित लिखे गए हैं। यह लेख विद्यालय, विश्वविद्यालय तथा प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इस लेख में निहित जानकारी आपके ज्ञान अथवा रुचि का निश्चित ही विकास करेगा।
रौद्र रस तथा अन्य रस की भिन्नता को भी आप समझ सकेंगे। यह लेख इस प्रकार से तैयार किया गया है इसके अध्ययन के उपरांत आप लंबे समय तक इस रस से परिचित रहेंगे।आशा है यह लेख आपके ज्ञान के विकास को बढ़ा कर अपने उद्देश्यों की प्राप्ति करे –
Raudra Ras (रौद्र रस)
परिभाषा :- सहृदय में विद्यमान क्रोध रस नामक स्थायी भाव अपने अनुरूप विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव के सहयोग से जब अभिव्यक्त होकर अस्वाद का रूप धारण कर लेता है, तब उसे रौद्र रस कहा जाता है।
यही कारण है कि कुछ विद्वान रौद्र रस के स्थायी भाव क्रोध को उदात भाव ना मानकर वीभत्स, भयंकर रस की भांति माना है। ऐसा करते समय वह रौद्र रस की सूक्ष्म बारीकियों की अवहेलना करते हैं।रौद्र रस प्रमुख ग्यारह रसों में से एक है।इस रस के साहित्य बेहद ही कम देखने को मिलते हैं। इस रस के विषय में साहित्यकारों में काफी मतभेद है –
डॉ आनंद प्रकाश दीक्षित का कथन है – रौद्र रस में क्रोध सात्विक रूप में प्रकट नहीं होता। क्रोध अनुदारता का पक्षपाती है और अन्याय गुणों का सर्वथा ग्राहक। क्रोध में मनुष्य बावला हो जाता है, किंतु उत्साह में विवेक का त्याग नहीं करता।
प्रचलित तौर पर रौद्र रस के स्थायी भाव क्रोध को, वीर रस के समान मानना ठीक नहीं रहेगा। वीर रस में जहां शत्रुओं का मर्दन किया जाता है। वही रौद्र रस में व्यक्ति क्षणिक क्रोध के वशीभूत होता है। किंतु व्यक्ति के मन में तामसिक भाव जागृत नहीं होते। व्यक्ति जीवन में क्रोध न्याय – नीति और अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए करता है।
रौद्र रस – आलम्बन, उद्दीपन, विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव
स्थायी भाव :- रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है।
आलंबन :- क्रोधोत्तेजक अनुचित कर्म तथा अनुचित अन्यायपूर्ण कर्म करने वाले व्यक्ति।
विभाव :- असत्य, अन्याय, दुष्टाचार, अनुचित, अपमान, अत्याचार, शत्रुता, अनिष्टकर सामाजिक कुरीतियां आदि ।
उद्दीपन :- चेष्टाओं का अनिष्टकारी होना, दुष्ट व्यक्तियों के कटु वचन, अपमान करना, अनाचार, दुराचार आदि।
अनुभाव :- आंखें तरेरना, आंख लाल होना, भवें तानना, दांत पीसना, पांव पटकना, गालियां देना, अस्त्र-शस्त्र चलाना, प्रचंड रूप धारण करना, आवेग भरे वचन बोलना, क्रोध सूचक वचन, संघारक प्रवृत्ति, ललकारना, प्रहार करना, धक्के मारना, मुट्ठी खींचना, कांपना, स्वेद, निस्वास , रोमांच, स्तंभ।
संचारी भाव :- घृणा, ग्लानि, गर्व, उन्माद, श्रम, ईर्ष्या, साहस, उत्साह, आवेद, अमर्ष, उग्रता, मती, स्मृति, चपलता, आशा, उत्सुकता, हर्ष आदि।
रौद्र रस को समाज से जोड़कर देखा जाता है।
इसके द्वारा उत्पन्न भाव उतना उदात होगा जितना आलंबन तीव्र होगा। अर्थात रौद्र रस का आलंबन जितना अधिक पीड़ाजनक, दुखदाई, अन्यायी , अपराधी होगा उसका रौद्र रस उतना ही उदात होगा।
उपर्युक्त हमने रौद्र रस और वीर रस के बारे में संक्षेप टिप्पणी लिखी थी।
यहां समझना आवश्यक है वीर रस और रौद्र रस में सामान्य तथा सूक्ष्म अंतर निहित है। युद्धवीर का उद्देश्य शत्रु का मर्दन करना होता है, जिसमें द्वंद्व – प्रहार तथा शक्ति प्रदर्शन आदि मूल है। जबकि रौद्र रस में व्यक्ति क्रोध करता है, यहां युद्धवीर जैसा वातावरण नहीं होता। केवल कटु वचन और स्वयं के नुकसान आदि जैसे क्रियाकलाप होते हैं। क्रोध तथा आवेश की स्थिति अधिक देर तक नहीं रहती यही सुख मंतर वीर रस से है।
भयानक रस की परिभाषा, भेद और उदाहरण। Bhayanak ras in Hindi
रौद्र रस के उदाहरण – Raudra ras examples in Hindi
भारत का भूगोल तड़पता, तड़प रहा इतिहास है।
तिनका – तिनका तड़प रहा है, तड़प रही हर सांस है।
सिसक रही है सरहद सारी, मां के छाले कहते हैं।
ढूंढ रहा हूं किन गलियों में, अर्जुन के सूत रहते हैं। ।
व्याख्या –
प्रस्तुत पंक्ति में व्यक्ति क्रोध के वशीभूत उन कारकों की खोज कर रहा है।जिसके कारण उसकी मां समान मातृभूमि प्रताड़ित है। अपनी मां समान मातृभूमि की रक्षा के लिए अर्जुन जैसे वीरों की खोज की जा रही है। गली-गली और चौराहों में उसी युवा को ढूंढने का प्रयत्न है।उन शूरवीर को जागृत करने का प्रयत्न है जो मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने का सामर्थ्य रखते हैं।
रस की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण
श्रृंगार रस – भेद, परिभाषा और उदाहरण
रे नृप बालक काल बस बोलत तोहि न सांभर।
धनुहि सम त्रिपुरारि द्युत बिदित सकल संसारा।
व्याख्या –
प्रस्तुत प्रसंग सीता स्वयंवर का है। धनुष के टूट जाने के उपरांत क्रोध के वशीभूत विश्वामित्र दरबार में त्वरित उपस्थित होते हैं। शिव का धनुष तोड़ने वाले को दंड देने का यत्न करते हैं।इस सभा में परशुराम – लक्ष्मण संवाद होता है, जिसमें क्रोध के वशीभूत होकर विश्वामित्र जी लक्ष्मण को कहते हैं –
हे राजा के बालक , तू अपने काल के वशीभूत होकर मेरा अपमान कर रहा है। जिसके तेज और पराक्रम को पूरा संसार जानता है। जिस परशुराम ने पूरे संसार में क्षत्रियों का नाश कर दिया था। आज तू उसे नहीं पहचान रहा है।
श्रीकृष्ण के सुन वचन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे
सब शील अपना भूलकर, करतल युगल मलने लगे
संसार देखें अब हमारे, शत्रु रण में मृत पड़े
करते हुए यह घोषणा वे हो गए उठ खड़े। ।
व्याख्या –
उपरोक्त पंक्ति मैथिलीशरण गुप्त की है। इस पंक्ति में कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश के उपरांत अर्जुन क्रोध से जलने लगते हैं।सब कुछ नाश करने को आतुर होते हैं, अपराधियों को उसका दंड देना, धर्म और नीति का कार्य मांनते हैं। जिसके लिए वह अपने सगे – संबंधियों को भी रणभूमि में दंड देने की घोषणा करते हुए उठ खड़े होते हैं।
विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीत
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होय न प्रीत। ।
व्याख्या –
उपरोक्त पंक्ति रामायण के लंका कांड की है। राम समुद्र से लंका जाने के लिए रास्ता तीन दिन तक तपस्या कर रास्ता मांगते रहे।किंतु समुद्र ने उनके इस आग्रह पर ध्यान नहीं दिया और ना ही उन्हें कोई मार्ग बताया। इस पर श्री राम ने क्रोध करते हुए अपने धनुष – बाण का प्रयोग करने को आतुर हुए। यहां राम ने स्पष्ट किया है विनय और याचना करते हुए मुझे तीन दिन बीत गए, किंतु जड़मति समुद्र मेरी विनय शीलता की प्रतीक्षा ले रहा है। ऐसे लोगों से क्रोध और भय दिखाकर ही कार्य करवाना उचित होगा।
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अनेक शब्दों के लिए एक शब्द – One Word Substitution
रौद्र रस महत्वपूर्ण प्रश्न – Important Questions about Raudra ras
प्रश्न – रौद्र रस का स्थायी भाव क्या है?
उत्तर – क्रोध
प्रश्न – रस कितने प्रकार के हैं?
उत्तर – रस की संख्या 11 है।
प्रश्न – रौद्र रस तथा युद्धवीर में क्या अंतर है?
उत्तर – रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है यह क्षणिक होता है साथ ही यह सात्विक भी है। युद्धवीर वीरता का प्रदर्शन से संबंधित है जिसमें शत्रु का मर्दन किया जाता है।
प्रश्न – संचारी भाव की संख्या कितनी है?
उत्तर – संचारी भाव की संख्या अनगिनत है किंतु साहित्य में 33 संख्या मानी गई है।
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रौद्र रस निष्कर्ष :-
उपर्युक्त लेख के माध्यम से अपने रौद्र रस का संपूर्ण अध्ययन किया होगा। इस रस में निहित युद्धवीर और रौद्र रस की सूक्ष्म बारीकियों को बताया गया है। अध्ययन में अपने उन बारीकियों को अवश्य ही समझा होगा। आशा है यह लेख आपके शिक्षा के भंडार में अहम योगदान दे सके।किसी भी प्रकार की और जानकारी तथा विस्तार के लिए हमें नीचे कमेंट बॉक्स में लिखें।