आवारा मसीहा दिशाहारा, सार, प्रश्न उत्तर, विष्णु प्रभाकर कक्षा 11

यहां आप लेखक विष्णु प्रभाकर का आवारा मसीहा दिशाहारा पाठ का सार , व्याख्यात्मक प्रश्न तथा महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर प्राप्त करेंगे। हिंदी साहित्य में शरतचंद का नाम उपन्यास लेखक में बड़े आदर के साथ लिया जाता है।

उनके साहित्य मैं प्रकृति, कल्पनाशीलता , प्रेम आदि की गहन तथा सूक्ष्म दृष्टिकोण देखने को मिलता है। बालक को स्वतंत्रता दी जाए तो वह अपने भीतर निहित गुणों को विकसित कर सकता है।जोर-जबरदस्ती से वह अपने ऊपर बोझ मानते है इसलिए चाहिए कि उसकी बारीकियों को समझाना। बालक प्रेम के अधिकारी होते हैं दंड के नहीं।

प्रेम के अभाव में उन्हें सभी कार्य दंड के समान प्रतीत होते हैं।

आवारा मसीहा विष्णु प्रभाकर

विधा – जीवनी

संदेश – इस रचना के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि व्यक्ति जीवन के हर मोड़ पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करें , यह आवश्यक नहीं किंतु , किसी विशेष क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन से उसके पूरे व्यक्तित्व का आकलन हो सकता है। प्रतिभा के विकास को हर समय उचित अवसर मिले आवश्यक नहीं लेकिन जब भी मिले उसका उपयोग करना चाहिए।

आवारा मसीहा पाठ का सार

‘आवारा मसीहा’ विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित महान कथाकार शरतचंद्र की जीवनी है। इसके लिए विष्णु प्रभाकर जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पाठ आवारा मसीहा के प्रथम पर्व दिशाहारा का अंश है। इसमें लेखक ने शरदचंद्र  के बचपन से किशोरावस्था तक के जीवन के विविध पहलुओं को इस प्रकार वर्णित किया है। जिसमें बचपन की शरारतों में भी शरद के एक अत्यंत संवेदनशील और गंभीर व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं। उनके रचना संसार के समस्त पात्र वस्तुतः उनके वास्तविक जीवन के ही पात्र हैं।

शरद के पिता यायावर प्रवृत्ति (घुम्मकड़) के थे।

वह कभी भी एक जगह बंध कर नहीं रहे। उन्होंने कई नौकरियां की तथा छोड़ी।

वह कहानी , नाटक , उपन्यास इत्यादि रचनाएं लिखना तो प्रारंभ करते किंतु उनका शिल्पी मन किसी दास्ता को स्वीकार नहीं कर पाता। इसलिए रचनाएं पूर्ण नहीं हो पाती थी , जब पारिवारिक भरण-पोषण असंभव हो गया तब शरद की माता सपरिवार अपने पिता के घर आ गई।

भागलपुर विद्यालय में

  • सीता-बनवास,
  • चारु-पीठ,
  • सद्भाव-सद्गुरु,
  • तथा ‘प्रकांड व्याकरण’ इत्यादि पढ़ाया जाता था।

प्रतिदिन पंडित जी के सामने परीक्षा देनी पड़ती थी और विफल होने पर दंड भोगना पड़ता था। तब लेखक को लगता था कि साहित्य का उद्देश्य केवल मनुष्य को दुख पहुंचाना ही है। नाना के घर में शरद का पालन-पोषण अनुशासित रीति और नियमों के अनुसार होने लगा। घर में बाल सुलभ शरारत पर भी कठोर दंड दिया जाता था। फेल होने पर पीठ पर चाबुक पढ़ते थे , नाना के विचार से बच्चों को केवल पढ़ने का अधिकार है , प्यार और आदर से उनका जीवन नष्ट हो जाता है।

वहां सृजनात्मकता के कार्य भी लुक-छुप कर करने पड़ते थे।

शरद को घर में निषिद्ध कार्यों को करने में विशेष आनंद आता था।

निषिद्ध कार्यों को करने में उन्हें स्वतंत्रता का तथा जीवन में ताजगी का अनुभव होता था।

  • शरद को पशु-पक्षी पालना,
  • तितली पकड़ना,
  • उपवन लगाना,
  • नदी या तालाब में मछलियां पकड़ना,
  • नाव लेकर नदी में सैर करना और बाग में फूल चुराना अति प्रिय था।

शरद और उनके पिता मोतीलाल दोनों के स्वभाव में काफी समानताएं थी।

  • दोनों साहित्य प्रेमी,
  • सौंदर्य बोधी,
  • प्रकृति प्रेमी,
  • संवेदनशील
  • तथा कल्पनाशील और यायावर घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे।

कभी-कभी शरद किसी को कुछ बताए बिना गायब हो जाता , पूछने पर वह बताता कि तपोवन गया था। वस्तुतः तपोवन लताओं से घिरा गंगा नदी के तट पर एक स्थान था , जहां शरद सौंदर्य उपासना करता था।

अघोरनाथ अधिकारी के साथ गंगा घाट पर जाते हुए शरद ने जब अपने अंधे पति की मृत्यु पर एक गरीब स्त्री के रुदन का करुण स्वर सुना तो शरद ने कहा कि दुखी लोग अमीर आदमियों की तरह दिखावे के लिए जोर-जोर से नहीं रोते , उनका स्वर तो प्राणों तक को भेद जाता है , यह सचमुच का रोना है। छोटे से बालक के मुख से रुदन की अति सूक्ष्म व्याख्या सुनकर अघोरनाथ के एक मित्र ने भविष्यवाणी की थी कि जो बालक अभी से रुदन के विभिन्न रूपों को पहचानता है , वह भविष्य में अपना नाम ऊंचा करेगा।

अघोरनाथ के मित्र की भविष्यवाणी सच साबित हुई।

शरद के स्कूल में एक छोटा सा पुस्तकालय था , शरद ने पुस्तकालय का सारा साहित्य पढ़ डाला था।

व्यक्तियों के मन के भाव को जानने में शरद का महारत हासिल थी , पर नाना के घर में उसकी प्रतिभा को पहचानने वाला कोई ना था। शरद छोटे नाना की पत्नी कुसुम कुमारी को अपना गुरु मानते रहे। नाना के परिवार की आर्थिक हालत खराब होने पर शरद के परिवार को देवानंदपुर लौट कर वापस आना पड़ा। मित्र की बहन धीरू कालांतर में देवदास की पारो , श्रीकांत की राजलक्ष्मी , बड़ी दीदी की माधवी के रूप में उभरी।

शरद को कहानी लिखने की प्रेरणा अपने पिता की अलमारी में रखी हरिदास की गुप्त बातें और भवानी पाठ जैसी पुस्तकों से मिली।  इसी अलमारी में उन्हें पिता द्वारा लिखी अधूरी रचनाएं भी मिली , जिन्होंने शरद के लेखन का मार्ग प्रशस्त किया। शरद ने अपनी रचनाओं में अपने जीवन की कई घटनाओं एवं पात्रों को सजीव किया है।

शरद में कहानी गढ़कर सुनाने की जन्मजात प्रतिभा थी।

वह पंद्रह वर्ष की आयु में , इस कला में पारंगत होकर गांव में विख्यात हो चुका था। गांव के जमींदार गोपाल दत्त , मुंशी के पुत्र अतुल चंद ने उसे कहानी लिखने के लिए प्रेरित किया। अतुल चंद्र शरद को थिएटर दिखाने कोलकाता ले जाता और शरद से उसकी कहानी लिखने को कहता। शरद ऐसी कहानियां लिखता की अतुल चकित रह जाता।

अतुल के लिए कहानियां लिखते-लिखते शरद ने मौलिक कहानियां लिखना आरंभ कर दिया।

शरद का कुछ समय ‘डेहरी आन सोन’ नामक स्थान पर बिता। शरद ने गृहदाह उपन्यास में इस स्थान को अमर कर दिया। श्रीकांत उपन्यास का नायक श्रीकांत स्वयं शरद है , काशी कहानी का नायक उनका गुरु पुत्र था , जो शरद का घनिष्ठ मित्र था। लंबी यात्रा के दौरान परिचय में आई विधवा स्त्री को लेखक ने चरित्रहीन उपन्यास में जीवंत किया है। विलासी कहानी के सभी पात्र कहीं ना कहीं लेखक से जुड़े हैं। ‘शुभदा’ में हारुण बाबू के रूप में अपने पिता मोतीलाल की छवि को उकेरा है।

श्रीकांत और विलासी रचनाओं में सांपों को वश में करने की घटना शरत का अपना अनुभव है।

तपोवन की घटना ने शरद को सौंदर्य का उपासक बना दिया।

देवानंद गांव में शरतचंद्र का संघर्ष और कल्पना से परिचय हुआ।  बातें उनकी साधना की नियुक्ति इसलिए संरक्षण कभी भी देवानंद गांव के ऋण से मुक्त नहीं हो पाए।

आवारा मसीहा प्रश्न-उत्तर

१ प्रश्न – बालक शरत को ऐसा क्यों लगा कि साहित्य का उद्देश्य मात्र दुख पहुंचाना है ? आपके विचार से साहित्य के कौन-कौन से उद्देश्य हो सकते हैं?

उत्तर –

बालक शरत को साहित्य तथा किताबें पढ़ना उसे याद करना बालक को मात्र दुख पहुंचाना उद्देश्य नजर आता था। क्योंकि बालक का मन खेलकूद तथा मनोरंजन में होता है।

लेकिन दबाव बनाकर बच्चों को साहित्य आदि का पाठ पढ़ाया जाता है।

यह उसके ऊपर बोझ के समान नजर आता है।

शरत जब बाल काल में अपने नाना जी के घर रहने लगा तब उसके नानाजी ने खेलकूद-मनोरंजन आदि पर प्रतिबंध लगा दिया था। उनका सोच रूढ़िवादी थी , उनका मानना था ज्यादा लाड-प्यार करने से बालक बिगड़ जाते हैं। नाना जी घर बालकों की शरारत पर सख्त प्रतिबंध था। पाठ को ठीक से याद ना करने तथा परीक्षा में कम अंक आने पर कोड़े से पिटाई की जाती थी।

इन सभी दुखद अनुभव को किसी भी बालक के लिए दुखद अनुभूति देता है , जिसके लिए लेखक ने साहित्य के उद्देश्य को मात्र दुख पहुंचाना बताया है।

२ प्रश्न – नाना के घर किन-किन बातों का निषेध था। शरत को उन निषिद्ध कार्यों को करना क्यों प्रिय लगता था ?

उत्तर – बालाजी परंपरावादी सोच के व्यक्ति थे जब शरत अपने नाना जी के घर रहने लगा। वहां के नियम कानून उसे बेहद जटिल जान प्रतीत होते थे , क्योंकि नानाजी बच्चों को प्यार देने के पक्ष में नहीं थे। उनका मानना था प्यार देने से बच्चे बिगड़ जाते हैं इसलिए वहां कड़ी सजा का भी प्रावधान था , बाल शरारत भी छिप-छिपा कर करना पड़ता था।

शरत के पिता प्रकृति प्रेमी सौंदर्य प्रेमी साहित्य प्रेमी तथा संगीत प्रेमी थे और वह घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे इसलिए वह कभी एक जगह टिक कर नहीं रहे। यह सभी गुण शरत में भी थे यह सभी समानताएं दोनों के बीच थी इसलिए शरत छिप-छिपा कर अपने सभी शौक पूरा किया करता था।

वह सभी निषिद्ध कार्य जो नाना जी के द्वारा थे उन सभी को शरत छिपकर पूरा किया करता था।

कुछ प्रमुख कार्य जो शरत को करने से आनंद प्राप्त होते थे।

जैसे

  • पशु-पक्षी का पालन करना,
  • तितली पकड़ना,
  • उपवन लगाना,
  • नदी या तालाब में मछली पकड़ना,
  • नाव लेकर सैर करना,
  • बागों में जाकर फूल को चुराकर लाना,
  • प्रकृति के बीच घंटों बैठकर तपस्या करना,
  • सौंदर्य का दर्शन करना आदि।

इन सभी कार्यों को कर कर शरत को ताजगी का अनुभव होता था।

वह एक सुकून का समय इन सभी के बीच पाता था इसलिए उसे इन सभी कार्यों को करने में आनंद आता था।

३ प्रश्न – बच्चों के प्रति शरत के नाना की क्या मान्यता थी ?

उत्तर – बच्चों के प्रति नाना की मान्यताएं ठीक नहीं थी , वह रूढ़ीवादी विचारधारा के थे।  उनका मानना था बालक को ज्यादा प्यार नहीं देना चाहिए , उसे कड़ी निगरानी में लालन-पालन किया जाना चाहिए तथा शिक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

बालक अगर गलती करता है तो उसे सुधार के लिए कड़ी सजा देनी चाहिए।

इन सभी विचारों से नाना का रूप रूढ़िवादी तथा कठोर व्यक्तित्व के रूप में उभर कर सामने आती है। शरत ने पाठ में मनोरंजन तथा पढ़ाई के विषय में जो दंड की व्यवस्था थी उसे बताकर नाना के दृष्टिकोण को स्पष्ट किया है।

४ प्रश्न – आपको शरत और उसके पिता मोतीलाल में क्या समानताएं नजर आती है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –

शरत तथा उसके पिता मोतीलाल स्वभाव से काफी समान थे।

  • दोनों की रुचि लगभग मिलती थी,
  • दोनों साहित्य प्रेमी थे,
  • सौंदर्य बोधी थे,
  • प्रकृति प्रेमी थे, ‘
  • संवेदनशील थे तथा कल्पनाशील थे।

उससे भी बड़ी बात दोनों घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे जिसका परिचय पाठ में मिलता है।

शरत अपना समय बिताने के लिए बिना बताए भी घर से गायब रहता था।

पूछने पर तपोवन जाने की बात कहकर टाल दिया करता था। यह उसके घुमक्कड़ स्वभाव को ही बताता है। साहित्य में गहन रुचि होते हुए भी वह कभी पुरा लेख नहीं लिखते थे। उनका मानना था यह सभी बंधन है जो कल्पनाशीलता है उसको एक जगह सीमित करना ठीक नहीं। प्रकृति के प्रति दोनों का विशेष आग्रह था , दोनों प्रकृति के सानिध्य में अधिक समय व्यतीत करते थे।

५ प्रश्न – जो रुदन के विभिन्न रूपों को पहचानता है , वह साधारण बालक नहीं है। बड़ा होकर वह निश्चय ही मन मनोविज्ञान के व्यापार में प्रसिद्ध होगा। अघोरनाथ के मित्र की टिप्पणी पर अपनी टिप्पणी कीजिए।

उत्तर – अघोरनाथ के मित्र साहित्य की गहनता को जानते थे। गंगा घाट पर जाते हुए शरत ने जब अंधे पति की मृत्यु पर विधवा को विलाप करते हुए देखा तो उनकी आंखों में स्वयं अश्रु आ गए। उस विधवा का रुदन हृदय का था। वह आंसू बहा रही थी किंतु वह चिल्ला नहीं रही थी , जैसे अन्य लोग विलाप करते हैं।

उसका यह विलाप हृदय का था जिसे देखकर शरद ने कहा यह उसके आत्मा का विलाप है।

जो सामान्य मनुष्य को दिखाई नहीं देता , उसका रुदन , हृदय का रुदन है।

इन सभी बातों को सुनकर अघोरनाथ के मित्र ने कहा जो साहित्य के बारीकी को इतनी कम उम्र में जानता है वह निश्चय ही मनोविज्ञान का बड़ा जानकार बनेगा। ऐसा ही हुआ शरद जब बड़े हुए तो वह लोगों के व्यवहार को देखकर उसके मनोविज्ञान को पढ़ लिया करते थे। इसमें वह कुशल थे। वास्तव में अघोरनाथ के मित्र ने जो कहा वह सत्य ही कहा क्योंकि किसी भी आत्मा की आवाज को सुना नहीं जा सकता। विधवा का रुदन उसकी करुणा हृदय का विलाप प्रकट कर रहा था। जो व्यक्ति रो-चिल्लाकर नहीं बल्कि हृदय से रो रहा हो उसका रुदन कोई अनुभवी व्यक्ति ही कर सकता है।

उसकी करुणा ज्यादा होती है।

६ प्रश्न – सिद्ध कीजिए कि शरतचंद्र एक संवेदनशील प्रकृति प्रेमी , परोपकारी एवं दृढ़ निश्चय व्यक्ति थे।

उत्तर – शरतचंद्र प्रकृति के प्रेमी थे यह प्रेम उनको पिता के सामान बनाता है। वह जब नाना के घर रहा करते थे , तब घंटों तथा कई दिनों के लिए तपोवन में जाकर प्रकृति का सानिध्य प्राप्त करते थे और तपस्या किया करते थे। प्रकृति से लगाओ ही उन्हें उनके जीवन को सहारा देता रहा। पिता की भांति वह अधिक कल्पनाशील व्यक्ति भी थे , कल्पना की उड़ान में सवार वह दिव्य अनुभूति प्राप्त किया करते थे।

परोपकार की भावना भी उनमें कूट-कूट कर भरी थी।

जैसे पाठ में दो दृष्टांत देखने को मिले हैं।

ग्रैंड ट्रंक रोड से दूर कच्ची सड़क पर वैष्णव संत की डाकुओं द्वारा हत्या किए जाने पर शरद काफी क्रोध में आते और प्रतिशोध की भावना उनमें जागृत होती है। डाकुओं को सबक सिखाते हैं तथा नाना के घर जब उन्हें रहना पड़ा उससे पूर्व उनकी माता ने धन के अभाव में घर को बेच दिया तथा गहने गिरवी रख दिए। नाना के घर उसकी पढ़ाई की फीस भी पूरी नहीं हो पाती थी जिसके लिए वह बगीचे से फूल तोड़ कर उसकी माला बनाते या बेच दिया करते।

वह कोई जन्मजात चोर नहीं थे या चोरी करना उनका लक्ष्य नहीं था।

यह उनके परोपकार की भावना थी जो दूसरे लोगों की सहायता करने के लिए प्रेरित किया करती थी।

७ प्रश्न – शरत की रचनाओं में उनके जीवन की अनेक घटनाएं एवं पात्र सजीव हो उठते हैं। आवारा मसीहा पाठ के आधार पर विवेचन कीजिए।

उत्तर –

शरत ने अपने साहित्य में जीवंत पात्रों का उदाहरण पेश किया है। उनके साहित्य की घटनाएं तथा पात्र उनके जीवन से संबंधित है। जैसे मित्र की बहन धीरू कालांतर में देवदास की पारो , श्रीकांत की राज्य लक्ष्मी बड़ी दीदी की माधवी रूप में उभरी है।

यह पात्र वह थे जो उनके जीवन से संबंधित है।

उन्होंने उन स्थानों को भी अपने साहित्य में अमर बना दिया जिस स्थान में उनके जीवन पर एवं प्रभाव डाला था।

  • गृहदाह नामक उपन्यास में डेहरी आन सोल।
  • श्रीकांत उपन्यास का नायक श्रीकांत स्वयं शरत है।
  • काशीनाथ कहानी का नायक उसका गुरु पुत्र है जो शरद का घनिष्ठ मित्र था।
  •  यात्रा के दौरान परिचय में आई विधवा स्त्री चरित्रहीन उपन्यास से संबंधित है।
  • विलासी कहानी सभी पात्र कहीं न कहीं लेखक के जीवन से जुड़े हैं।

शुभदा में हारून बाबू के रूप में पिता मोतीलाल की छवि को करने का प्रयास किया गया है। श्रीकांत और विलासी  रचनाओं में सांपों को वश में करने की घटना शरद का स्वयं का तपोवन की घटना से संबंधित है।

८ प्रश्न – आवारा मसीहा उपन्यास में वर्णित तत्कालीन समाज में नारी की स्थिति के विषय में बताइए।

९ प्रश्न – शरत के पिता मोतीलाल साहित्यकार होते हुए भी घर जमाई बनने के लिए क्यों विवश हुए।

१० प्रश्न – शरद के शौक कौन-कौन से थे ? उन्हें उसे छिपकर पूरे क्यों करने पड़ते थे।

११ प्रश्न – इस गांव के ऋण से वह कभी मुक्त नहीं हो सका लेखक ने ऐसा क्यों कहा ?

१२ प्रश्न – आवारा मसीहा पाठ में वर्णित बाल सुलभ शरारतों का वर्णन कीजिए।

उत्तर –

पाठ में वर्णित बाल सुलभ शरारतों का जिक्र करते हुए बताया गया है जैसे मछली पकड़ना , नाव पर सैर करना , तितलियां पकड़ना , बागों  से फूल चुराना , लट्टू घुमाना आदि शरारती बालक शरद को बेहद पसंद है।

प्रतिबंध होने के बावजूद वह छुप-छुपाकर अपने शौक पूरा किया करते थे।

१३ प्रश्न – शरत को नाना के घर पर क्यों रहना पड़ा ?

उत्तर –

शरत को अपने नाना के घर परिवारिक आर्थिक स्थिति खराब होने के बाद रहना पड़ा।

उनके घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण मां के गहने तथा घर बेचना पड़ा था।

१४ प्रश्न – वर्तमान समय में नारी की स्थिति पर आवारा मसीहा में वर्णित समाज में नारी की स्थिति दोनों में अंतर को स्पष्ट कीजिए।

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आवारा मसीहा निष्कर्ष –

विष्णु प्रभाकर ने शरत चंद के जीवन को बारीकी से समझने तथा साहित्य में प्रकट करने का प्रयास किया है। यह प्रयास निश्चित तौर पर सराहनीय है। शरत के संपूर्ण जीवन पर संग्रह एकत्रित करना एक चुनौती का विषय था जिसे विष्णु प्रभाकर ने किया।

शरतचंद्र के आरंभिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए उनके पारिवारिक आर्थिक स्थिति को उजागर किया है। उनके भीतर छुपी हुई प्रतिभा को किस प्रकार बंधनों में बांधा जा रहा था। व स्पष्ट होता है नाना के घर पारिवारिक रूढ़िवादी सोच उन्हें चारों ओर से जकड़ने का प्रयत्न कर रही थी।  फिर भी शरद ने उन बंधनों में बंधना स्वीकार नहीं किया।

पिता की भांति स्वतंत्र प्रवृत्ति को अपनाया और कल्पनाशीलता की दुनिया में डूब गए।

पिता के द्वारा छोड़े गए अधूरे साहित्य को उन्होंने पूरा किया

हिंदी सिनेमा जगत में उन्होंने देवदास नामक फिल्म के लिए लेखन कार्य किया जो आज भी मिसाल दी जाती है।

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