बादल को घिरते देखा है नागार्जुन – कविता की व्याख्या

इस लेख में आप नागार्जुन का संक्षिप्त जीवन परिचय, बादल को घिरते देखा है कविता की व्याख्या , काव्य सौंदर्य तथा महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर प्राप्त करेंगे जो परीक्षा के अनुकूल है।

नागार्जुन प्रगतिशील कवि हैं , वह कबीर की भांति कहीं भी एक जगह टिक कर नहीं रहा करते थे , इसलिए उनकी भाषा शैली में भिन्नता देखने को मिलती है। कहीं वह ठेठ ग्रामीण शब्दों का प्रयोग करते हैं तो कहीं संस्कृत निष्ठ शब्दों का। उनका संपूर्ण साहित्य प्रकृति तथा ग्रामीण परिवेश से जुड़ा हुआ है।

बादल को घिरते देखा है – नागार्जुन

कवि – नागार्जुन का जन्म बिहार के तरौनी जिला में हुआ था।

नागार्जुन का वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र था , प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत पाठशाला तथा उच्च शिक्षा वाराणसी तथा कोलकाता में हुई।

रचनाएं –

काव्य कृतियां –

  • युगधारा ,
  • पथराई आंखें ,
  • तालाब की मछलियां ,
  • सतरंगी पंखों वाली ,
  • तुमने कहा था ,
  • रतनगर्भा ,
  • पुरानी जूतियां का कोरस ,
  • हजार – हजार बाहों वाली आदि।

उपन्यास –

  • बलचनामा ,
  • जमनिया का बाबा ,
  • कुंभी  पाक ,
  • उग्रतारा ,
  • रविनाथ की चाची ,
  • वरुण की बेटी आदि।

सम्मान – विलक्षण प्रतिभा के धनी नागार्जुन को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। कुछ महत्वपूर्ण पुरस्कार इस प्रकार हैं –

  • साहित्य अकादमी पुरस्कार
  • भारत भारती पुरस्कार
  • मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार
  • राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार
  • हिंदी अकादमी दिल्ली का शिखर सम्मान आदि।

काव्यगत विशेषताएं – नागार्जुन प्रगतिशील काव्यधारा के साहित्यकार रहे हैं , कविताओं में बांग्ला , संस्कृत , अरबी , फ़ारसी तथा मैथिली आदि भाषाओं के शब्दों का प्रयोग किया गया है।

  • भाषा सहज सरल व चित्रात्मक है
  • काव्य में खड़ी बोली का प्रयोग भी है
  • तत्सम , तद्भव शब्दों का प्रयोग मिलता है
  • काव्य में धारदार व्यंग्य का वर्णन किया गया है
  • काव्य की विशेषता छंदबद्ध तथा छंदमुक्त है।

बादल को घिरते देखा है कविता का परिचय

नागार्जुन द्वारा रचित ‘बादल को घिरते देखा है’ कविता में प्रकृति का चित्रण किया गया है। यह कविता नागार्जुन की कविता संग्रह ‘युगधारा’ से ली गई है। वर्षा ऋतु के आने पर संपूर्ण प्रकृति में जो परिवर्तन आ जाता है , उसका कवि ने दृश्यों द्वारा वर्णन किया है। इसी प्रकृति से संबंधित मनोभावों को विविध के माध्यम द्वारा अभिव्यक्त किया गया है। यह दृश्य कुछ इस प्रकार हैं , पावस की उमस को शांत करते हुए मानसरोवर में तैरते हुए हंस , चकवा – चकवी का हिमालय की गोद में सुवास को खोजते हिरण , हिमालय की चोटियों पर बादल का गरजना और तूफान मनोरम उंगलियों को बंसी पर फिरते किन्नर और किन्नरिया। यह सभी चित्र बहुत ही आकर्षक मनोरम तथा हृदयस्पर्शी होने के साथ-साथ कविता को मनोरंजक और रोचक बनाते हैं।

यदि देखा जाए तो ऐसा लगता है कि कवि ने कालिदास की परंपरा को आगे बढ़ाया है।

बादल को घिरते देखा है कविता का मूल भाव

नागार्जुन के कविता संग्रह ‘युगधारा’ से लिया गया है। कविता में प्रकृति चित्रण का सुंदर उदाहरण है। वर्षा ऋतु आने पर सारी प्रकृति जैसे अपनी विरहाग्नि शांत करती नजर आती है। इसी भाव को कवि ने बिंबो से व्यक्त किया है। कविता में हिमालय की पहाड़ियों , दुर्गम बर्फीली घाटियों झीलों , झरनों तथा देवदारू के जंगलों के बीच दुर्लभ वनस्पतियों जीव-जंतुओं गगनचुंबी कैलाश पर्वत पर मेघा किन्नर किन्नरियों के बिलास पूर्ण में जीवन का अत्यंत आकर्षण वर्णन किया है।

कवि बताता है कि जब स्वच्छ और धवल चोटियों पर वर्षा कालीन बादल छा जाते हैं तो संपूर्ण प्रकृति उल्लास से भर जाती है। मानसरोवर के सुनहरे कमलों पर ओस मोतियों के समान झलकते हैं। पावस की उमस से व्याकुल समतल प्रदेशों से आकर हंस झीलों में तैरते हुए कमल डंडियों को खोजते हैं। रात की विरह पीड़ा से व्याकुल चकवा – चकवी सवेरा होते ही अपनी प्रणय क्रीड़ा में मगन हो जाते हैं। सैकड़ों हजारों फुट दुर्गम बर्फीली घाटी में अपनी ही नाभि से उठने वाली मादक सुगंध को ना पाने पर युवा हिरण को खींझते हुए देखा है।

पर्वतों पर छाई घटा कालिदास की रचना मेघदूत की याद दिलाती है। कवि ने भीषण जाड़ों में मेघों को झंझावात तेज हवाएं को आपस में भिड़ ते हुए देखा है। पर्वतीय शोभा पर मुग्ध कवि को किन्नर किन्नरीयों का विलास पूर्ण जीवन याद आ जाता है। वह मस्ती के वातावरण में द्राक्षासव मदिरा तथा संगीत का आनंद उठाते दिखाई देते हैं।

बादल को घिरते देखा है – प्रसंग सहित व्याख्या

कहां गया धनपति  …………घिरते देखा है। ।

प्रसंग –

पर्वत की चोटियों पर छाई मेघमाला कवि के हृदय में कालिदास द्वारा रचित काव्य मेघदूत का स्मरण करा देती है। कवि पर्वतीय प्रदेश में मेघदूत के पात्रों एवं स्थानों को खोजने का प्रयास करता है , जिसमें उसे निराशा ही मिलती है।

व्याख्या (बादल को घिरते देखा है ) –

कवि निराशा के स्वर में कहता है कि ना जाने वह धनपति कुबेर जिसने यक्ष को निर्वासन का दंड दिया था कहां चला गया। उसकी वैभव नगरी जिसका नाम अलकापुरी था उसका भी कोई निशान नहीं दिखाई दे रहा है। कालिदास ने अपने प्रसिद्ध विरह काव्य मेघदूत में जिस आकाशगंगा का वर्णन किया है वह भी ना जाने कहां बहती है। उस आकाशगंगा का जल भी कहीं दिखाई नहीं देता , मेघदूत के पात्र एवं स्थलों को प्रयास करने के बाद भी कभी नहीं खोज पाता , जो मेघ का दूत बनकर अलकापुरी भेजा था वह मेघदूत भी न जाने कहां गया। संभवत इसी पर्वत पर बरस पड़ा हो।

कवि कहता है बादलों ने प्रेम संदेश दिया हो या ना हो। शायद वह कालिदास की कल्पना में ही उपजा था , लेकिन मैंने इस पर्वत प्रदेश में भीषण सर्दी मैं गगनचुंबी कैलाश पर्वत पर मेघ खंडों को तूफानी हवाओं से टकराते हुए देखा है।

शिल्प सौंदर्य –

  • कालिदास द्वारा रचित मेघदूत में धनपति कुबेर ने यक्ष को एक वर्ष का निर्वासन दंड दिया था इस निर्वाचन अवधि में यक्ष ने मेघ को दूत बनाकर अपनी प्रिया के पास संदेश भिजवाया था। कवि ने पुरानी घटना का उल्लेख किया है।
  • महामेघ और झंझानील का बिंब प्रभावशाली बन पड़ा है
  • कवि कल्पित में अनुप्रास अलंकार की छटा है
  • भाषा चित्रात्मक सरल व सहज है
  • काव्य की विशेषता छंदबद्ध तथा छंदमुक्त है
  • संस्कृत निष्ठ तथा मैथिली भाषा का पूरा प्रभाव है।

बादल को घिरते देखा है – काव्य सौंदर्य

अमल धवल   ………………..कमलों पर गिरते देखा है। ।

भाव पक्ष – इन काव्य पंक्तियों में कवि ने वर्षा ऋतु में हिमालय पर्वत की बर्फीली चोटियों पर अपने अनुभव का वर्णन कर रहा है। यहां बादलों के घिरने की छटा का मनोहारी चित्रण किया गया है। यहां बर्फ के छोटे-छोटे कणों को गिरते हुए देखा है। मानसरोवर में खिलने वाले कमलों को स्वर्णिम बताया गया है। बर्फ के कारण जब कमल पर गिरते हैं तो वह मोती जैसे दिख रहे हैं। पर्वतों की चोटियों को स्वच्छ और सफेद बताया गया है।

शिल्प पक्ष –

  • छोटे-छोटे में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है
  • छोटे-छोटे मोती जैसे में उपमा अलंकार है
  • अमल-धवल छोटे-छोटे में अनुप्रास अलंकार है
  • अनेक तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।

महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर ( बादल को घिरते देखा है )

प्रश्न – कविता में चित्रित प्रकृति चित्रण एवं जन जीवन को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – प्रकृति चित्रण कविता में वर्षा ऋतु में पर्वत शिखरों पर बादलों के घिरने की शोभा का वर्णन है और ओस को मोती के समान बताया गया है।  ओस कमल के फूलों पर गिरना बहुत ही मनोहारी चित्र उपस्थित कर देता है। हिमालय पर स्थित झीलों में हंसों के तैरने का दृश्य भी नयनाभिराम है।  वसंत ऋतु के प्रातः कालीन सूर्य की किरणें अनोखी छटा उपस्थित करती है। कस्तूरी मृग को अपनी नाभि से उठने वाली सुगंध के पीछे पागल होते देखा जा सकता है।

जनजीवन – इस प्राकृतिक वातावरण में जन-जीवन मस्ती से परिपूर्ण होता है। किन्नर किन्नरी मृगछालाओं पर बैठकर चिंताओं से दूर मस्ती में  बांसुरी बजाते रहते हैं भोज पत्तों से बनी झोपड़ी में चंदन की तिपाही पर चांदी के बने मणियों से सजे हुए सूरा पात्र रखे हुए हैं। किन्नर और किन्नरियों की वेशभूषा और साज-सज्जा बड़ी मनमोहक है।

प्रश्न – बादलों का वर्णन करते हुए कवि को कालिदास की याद क्यों आती है ?

उत्तर – बादलों का वर्णन करते हुए कालिदास की याद कवी को इसलिए आती है कि कालिदास द्वारा रचित मेघदूत में धन कुबेर ने यक्ष को एक वर्ष का जो निर्वासित दंड दिया था। उस अवधि में यक्ष ने मेघ को दूत बनाकर अपनी प्रिया के पास अपना संदेश भेजा था।

कवि ने उन स्थानों को खोजने का प्रयास किया है जिनका उल्लेख मेघदूत में है पर भी नहीं मिले।  न अकाश गंगा मिली और न वह मेघ मिला इसी कारण कवि को उनकी याद आती है।

प्रश्न – प्रणय कलह से कवि का क्या तात्पर्य है ?

उत्तर – प्रणय का संबंध प्रेम से है।कविता में प्रणय कलह से कवी का आशय प्रेम के मद में खो जाना तथा अपने प्रेमी के साथ प्रेम भरी शरारत और मस्ती करना अपने प्रेमी संग समय को व्यतीत करना है।

प्रश्न – कस्तूरी मृग के अपने ऊपर ही चढ़ने के क्या कारण है ?

उत्तर – कस्तूरी के नाभि से एक सुगंध निकलती है , जो बड़ी ही मनमोहक होती है। इस सुगंध की दिव्य अनुभूति मृग को खोजने पर विवश कर देती है। इस सुगंध की खोज में मृग इधर-उधर दौड़ता रहता है , किंतु इस सुगंध का स्रोत वह कभी नहीं ढूंढ पाता। पूरा जीवन सुगंध के स्रोत को ढूंढने में निकल जाता है। जिसके कारण मृग स्वयं पर चढ़ने लगता है। इस खोज के पीछे उसका जीवन भर का संघर्ष तथा थकान और पानी की प्रबल इच्छा निहित होती है।

प्रश्न – कवि ने ‘महामेघ को झंझानिल से गरज-गरज भिड़ते देखा है’ क्यों कहा है ?

उत्तर – क्योंकि बरसात के लिए बादल का निर्माण हिमालय की चोटी या बर्फीले पहाड़ों से हुआ करती है। वहां से जल भर भर के बादल दूर-सुदूर स्थलों पर जाकर बरसते हैं , लेकिन कवि ने अपने आंखों से हिमालय के दुर्गम चोटियों पर भी बड़े-बड़े मेघों को विकराल रूप में देखा है। उसके गर्जना को स्वयं से अनुभव किया है , सब कुछ तबाह कर देने वाले बरसात को भी साक्षात आंखों से देखा है। इसलिए महामेघ को झंझा नील से गरज गरज कर भीड़ते देखा है कहा गया है।  क्योंकि साक्षात कवि ने इन सभी दृश्यों को अपने आंखों से प्रत्यक्ष रूप से देखा तथा अनुभव किया है।

प्रश्न – ‘बादल को घिरते देखा है’ पंक्ति को बार-बार दोहराए जाने से कविता में क्या सौंदर्य आया है ? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – बादलों को घिरते देखा है , इस पंक्ति का प्रयोग कविता में अनेकों स्थल पर किया गया है।  क्योंकि कवि ने इस कविता के माध्यम से अपने यात्रा वृतांत अपने आंखों देखा हाल बताने की कोशिश की है। इन पंक्तियों के प्रयोग से दृश्यात्मक रूप उभर कर आता है। जिससे पाठक को वह दृश्य साक्षात रूप में दिखता है या अनुभव करने लगता है। इन पंक्तियों के प्रयोग से काव्य में सौंदर्य की वृद्धि हुई है और यह विश्वास जगता है कि वास्तव में कभी उस दुर्गम स्थल पर पहुंचा होगा। उन सभी दृश्यों को अपने आंखों से अनुभव किया होगा।

निम्नलिखित काव्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए

प्रश्न (क)

निशा काल से चिर-अभिशापित / बेबस उस चकवा-चकई का

बंद हुआ क्रंदन , फिर उनमें / उस महान सरवर के तीरे

शैवालों की हरी दरी पर / प्रणय-कलह छिड़ते देखा है। ।

उत्तर – चकवा-चकई एक पक्षी की प्रजाति है। जिसे माना जाता है वह रात्रि के समय अलग अलग हो जाते हैं , यह उनको मिला हुआ श्राप है ऐसी मान्यता है। दिन भर चकवा-चकई आपस में मिलते-जुलते हैं , प्रणय क्रीडा करते हैं और संध्या होते ही एक दूसरे से बिछड़ जाते हैं। रात्रि के समय वह अलग होकर बिताते हैं। यह उनके जीवन का अभिशाप है। इस बेबसी को कोई प्रेमी युगल ही समझ सकता है।

पुनः सवेरा होते ही दोनों इस प्रकार मिलते हैं जैसे बरसों से बिछड़े हो और उनकी क्रीडा हंसना खेलना आदि सभी सरोवर के किनारे हरी भरी घास पर आरंभ होता है। इस क्रीड़ा को कवि ने साक्षात अपनी आंखों से देखा है।

प्रश्न (ख)

अलख नाभि से उठनेवाले / निजी के ही उन्मादक परिमल –

के पीछे धावित हो-होकर / तरल तरुण कस्तूरी मृग को

अपने पर चिढ़ते देखा है। ।

उत्तर – युवा कस्तूरी मृग के नाभि से एक दिव्य सुगंध उत्पन्न होती है। वह सुगंध दिव्य अनुभूति कराती है। इस खुशबू की खोज में युवा मृग दिनभर दौड़ता भागता है।  किंतु खुशबू का स्रोत कहीं ढूंढ नहीं पाता। इस भागदौड़ और खुशबू की खोज में असफल युवा मृग के लिए हताशा और निराशा का कारण बनता है , जिस पर वह स्वयं से चिढ़ जाता है।

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संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए

प्रश्न (क) छोटे-छोटे मोती जैसे कमलों पर गिरते देखा है।

प्रश्न (ख) समतल देशों से आ-आकर हंसों को तीरते देखा है।

(ग)  ऋतु बसंत का सुप्रभात था अगल-बगल स्वर्णिम शिखर थे।

प्रश्न (घ)  ढूंढा बहुत परंतु लग गया जाने दो, वह कवि कल्पित था।

 

बादल को घिरते देखा है पर मेरे विचार

कवि नागार्जुन यायावर प्रवृत्ति के व्यक्ति थे , उनके स्वभाव में एक जगह टिक कर रहना नहीं था इसलिए वह सदैव भ्रमण किया करते थे। यहां तक की वह जब श्रीलंका की यात्रा पर थे तब उनका पुत्र जन्म लिया था। कवि नागार्जुन अपनी यात्रा के दौरान कहीं भी दूर से दूर निकल जाया करते थे। कभी वह दुर्गम पहाड़ियों पर पहुंच जाते तो कभी प्रकृति के सानिध्य में घूमते और वहां की संस्कृति को समझना भाषा ग्रहण करना आदि उनका प्रमुख गुण था।

बादल को घिरते देखा है कविता में कवि ने अपने आंखों देखा वर्णन किया है। यात्रा के दौरान वह हिमालय की उन दुर्गम चोटियों पर जा पहुंचे थे जहां मान्यता अनुसार स्वर्ग की अलकापुरी नगरी होती थी। जहां से बादल बड़े-बड़े विकराल रूप लेकर मैदानी भागों में जाकर बरसते हैं। उन सभी जगहों को उन्होंने साक्षात अपने आंखों से देखा था। इस यात्रा का आंखों देखा वर्णन दृश्यात्मक रूप में उपस्थित करना उनका मुख्य उद्देश्य रहा है।

कवि नागार्जुन प्रगतिशील विचारधारा के थे उन्होंने साहित्य को एक नया आयाम देकर अपना नाम साहित्य में अमर किया है। उनकी भाषा शैली में भिन्नता भी देखने को मिलती है। कहीं वह संस्कृत के शब्दों का प्रयोग करते हैं तो कहीं देश तो कहीं क्षेत्रीय , ठेठ बोली का भी प्रयोग करते हैं।  उनके साहित्य को अध्ययन करने पर यह जानकारी मिलती है की उन्होंने भाषा के सभी रूपों का प्रयोग करने का प्रयत्न किया है इसलिए उन्होंने भाषा को बहता नीर भी कहा है।

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