इस लेख में बहुव्रीहि समास की परिभाषा, उदाहरण आदि का विस्तृत रूप से अध्ययन करेंगे। यह समास का एक भेद है जो अन्य देशों से बिल्कुल विपरीत है।
इसलिए लेख को हमने आसान बनाने का प्रयास किया है। इसको पढ़ने के बाद आप समास तथा बहुव्रीहि समास से परिचित हो सकेंगे।
बहुव्रीहि समास की परिभाषा
इस समस्त पद में कोई भी पद प्रधान नहीं होता बल्कि अन्य पद प्रधान होता है वहां बहुव्रीहि समास होता है। बहुव्रीहि शब्द का अर्थ है – जिसके पास बहुत धन हो।
बहुव्रीहि समास के उदाहरण
समस्तपद | विग्रह |
चक्रपाणि | चक्र है पाणी (हाथ) में जिसके अर्थात विष्णु |
नीलकंठ | नीला है कंठ जिसका |
अंशुमाली | अंशु है माला जिसकी – सूर्य |
पितांबर | पीत है अंबर (वस्त्र) जिसका -कृष्ण |
मृग लोचनी | मृग के समालोचन है जिसके |
त्रिलोचन | तीन है लोचन जिसके – शिव |
चंद्रमौली | चंद्र है मौली पर जिसके – शिव |
दशानन | दस हैं सिर जिसके – रावण |
चक्रधर | चक्र को धारण करने वाला अर्थात विष्णु |
गजानन | गज के समान मुख है जिसके – गणेश |
घुड़सवार | घोड़े पर है जो सवार |
चंद्रशेखर | चंद्र है शेखर जिसके – शिव |
चतुर्भुज | चार है भुजाएं जिसकी – विष्णु |
सुलोचना | सुंदर है लोचन जिसके |
लंबोदर | लंबा है उधर जिसका अर्थात गणेश |
अजातशत्रु | जिसका कोई शत्रु ना हो |
अल्पबुद्धि | अल्पबुद्धि है बुद्धि जिसकी |
चक्रधर | चक्र को धारण करने वाला- कृष्ण |
हलधर | हल को धारण करने वाला – बलराम |
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कर्मधारय और बहुव्रीहि में अंतर
कर्मधारय समास तथा बहुव्रीहि समास में एक समानता यह है कि इन दोनों में विशेषण ,विशेष्य तथा उपमेंय ,उपमान का संबंध पाया जाता है।
एक छोटा सा सूक्ष्म अंतर दोनों के भेदों को अंतर करता है।
कर्मधारय समास के अंतर्गत एक पद दूसरे पद का विशेषण या अपमान होता है। कर्मधारय समास में शब्दों के अर्थ अलग नहीं होते जो लिखा जाता है उसका अर्थ भी वही होता है। जैसे – महाराज – महान है जो राजा।
ठीक इसके अनुसार बहुव्रीहि समास के दोनों पदों में विशेषण विशेष्य या उपमेंय ,उपमान का संबंध नहीं होता। इसमें दोनों पदों में प्रधानता भी नहीं होती बल्कि अन्य पद प्रधान होता है।
जैसे – नीलकंठ – नीला है जो कंठ अर्थात शिव।
शिव शब्द नीलकंठ से बिल्कुल विपरीत है ,यह अन्य पद की प्रधानता को प्रदर्शित करता है।
द्विगु और बहुव्रीहि समास में अंतर
द्विगु समास तथा बहुव्रीहि समास में कई स्थानों पर पहचान करने में असुविधा का सामना करना पड़ता है। किंतु यह बेहद ही बारिक और सुख में अंतर दोनों में भेद उत्पन्न करता है।
बहुव्रीहि समास में पहला पद संख्यावाचक होता है ,यह हम जानते हैं। इसका पूर्व पद संख्या को प्रदर्शित करता है और एक समूह वाचक या संख्या वाचक होने का प्रमाण देता है।
जैसे – त्रिभुवन – तीन भवनों का समूह
बहुव्रीहि समास में संख्या पूर्व पद में अवश्य होती है , किंतु वह एक अन्य पद की ओर संकेत करता है।
जैसे -दशानन कहने पर लंकापति नरेश रावण की ओर ध्यान जाता है। अर्थात यह बहुव्रीहि की विशेषता है।
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निष्कर्ष –
उपर्युक्त अध्ययन से हमने बहुव्रीहि समास को बेहद ही बारीकी से समझने का प्रयास किया है। इसके अंतर्गत परिभाषा उदाहरण के माध्यम से यह समास और भी आसान हो गया है।
आशा है यह लेख आपको समझ आया हो तथा आप में बहुव्रीहि समास शब्दों का निर्माण करने की कला भी विकसित हुई होगी।
फिर भी किसी प्रकार का प्रश्न मन में उपजता है तो आप हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं।