इस लेख में आप ज्योतिबा फुले का संक्षिप्त जीवन परिचय , पाठ का सार , विचारणीय बिंदु , महत्वपूर्ण प्रश्न , व्याख्यात्मक प्रश्न आदि का विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे। यह लेख परीक्षा के अनुरूप तैयार किया गया है जो विद्यार्थियों के लिए बेहद लाभप्रद है।
ज्योतिबा फुले तथा सावित्री बाई फुले विशेष रूप से स्त्री शिक्षा आरंभ करने तथा ब्राह्मणवादी मानसिकता को चुनौती देने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने स्त्री शिक्षा आरंभ करने के लिए जीवन भर संघर्ष किया और बालिका विद्यालय खोलकर अपने संघर्ष को एक स्थाई रूप प्रदान किया। फुले दंपति ने दलित समाज के बीच जो कार्य किया है वह सराहनीय है।
समाज के लिए दुर्लभ कार्य करने पर भी उन्हें वह सम्मान नहीं मिला जिसके वह अधिकारी थे।
ज्योतिबा फुले
विधा – जीवनी
लेखिका – सुधा अरोड़ा जन्म लाहौर (पाकिस्तान) 1948 में शिक्षा कोलकाता विश्वविद्यालय से। उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा सन 1978 में विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
रचनाएं –
कहानी संग्रह –
- ‘बगैर तरह से हुए’ ,
- ‘युद्ध-विराम’ ,
- ‘काला शुक्रवार’ ,
- ‘कांसे का गिलास’ तथा
- ‘औरत की कहानी’ आदि।
भाषा शैली विशेषताएं –
- भाषा सहज संयत और बोधगम्य
- उर्दू शब्दों से युक्त तत्सम प्रधान
- भाषा – शैली विचार प्रधान , विवेचनात्मक तथा तर्कपूर्ण।
ज्योतिबा फुले पाठ का सार
प्रस्तुत पाठ ज्योतिबा फुले में ज्योतिबा और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के प्रेरक जीवन चरित्र को दर्शाया गया है। शिक्षा का सभी जाति वर्ग वर्ग पर समान अधिकार है और उसके लिए फुले दंपत्ति ने जो , संघर्ष किया है। इस पाठ में यह बताने का प्रयास किया गया है। फुले दंपत्ति ने अछूतों , शोषित व महिलाओं , विधवाओं आदि के उद्धार का प्रण लिया और उसके लिए संघर्ष किया।
- इन दोनों ने उस समय में प्रचलित सामाजिक विषमताओं ,
- रूढ़ियों का विरोध किया और समाज के निचले वर्ग के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।
- उन्होंने ब्राह्मणवादी और पूंजीवादी मानसिकता के विरुद्ध आवाज उठाई ,
- उनका मानना था कि शिक्षा पर केवल उच्च वर्ग का ही अधिकार नहीं है।
- केवल किसी वर्ग विशेष के लिए शिक्षा व्यवस्था हो वह किसी काम की नहीं।
उन्होंने शिक्षा पर सभी का हक है और शिक्षा ही समाज में सभी को समानता व शोषण से मुक्ति दिला सकती है। इस बात पर बल दिया , उनका मुख्य रूप से इस बात पर बल रहा है कि समाज में स्त्री व पुरुष बराबर है और पुरुषों की भांति ही स्त्रियों को भी शिक्षा प्राप्त करने का बराबर हे इस बात के लिए दोनों दंपत्ति को समाज का तिरस्कार व विरोध भी सहना पड़ा।
यह पाठ उनके लिए इसी संघर्ष ,
- समाज सुधार के मार्ग में आने वाली बाधाओं और
- उससे लड़ने की कहानी बताता है।
ज्योतिबा फुले पाठ का स्मरणीय बिंदु
लेखिका द्वारा प्रसिद्ध समाज-सुधारक ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी के द्वारा शिक्षा एवं सामाजिक क्षेत्र में किए गए कार्यों का वर्णन इस पाठ में किया गया है। किंतु सामाजिक विकास के आंदोलन के पांच प्रमुख लोगों में उनका नाम नहीं लिया जाता है क्योंकि सूची को बनाने वाले उच्च वर्ग के प्रतिनिधि थे। ज्योतिबा फुले ने पूंजीवादी , पुरोहितवादी मानसिकता पर खुला हमला बोला। वर्ण , जाति और वर्ग व्यवस्था में निहित शोषण प्रक्रिया को एक-दूसरे का पूरक बताया। ‘गुलामगिरी’, ‘शेतकर याचाआसुड’ में विचारों का संकलन किया गया है। उनके मत में जिस परिवार में पिता बौद्ध , माता ईसाई , बेटी मुसलमान और बेटा सत्य धर्मी हो वह परिवार आदर्श परिवार है।
महात्मा ज्योतिबा फुले ने स्त्री शिक्षा पर बल देते हुए लिखा कि स्त्री शिक्षा के दरवाजे पुरुषों ने इसलिए बंद कर रखे हैं ताकि वह पुरुषों के समान स्वतंत्रता ना ले सकें।
ज्योतिबा फुले ने स्त्री समानता को प्रतिष्ठित करने वाली नई विवाह विधि की रचना की।
उन्होंने अपनी इस नई विधि से ब्राह्मण का स्थान ही हटा दिया।
उन्होंने पुरुष प्रधान संस्कृति समर्थक और स्त्री की गुलामगिरी सिद्ध करने वाले सारे मंत्र हटा दिए।
उसके स्थान पर ऐसे मंत्र रखें जिन्हें वर-वधू आसानी से समझ सके।
1888 में ज्योतिबा फुले ने महात्मा की उपाधि को लेने से यह कहकर इंकार कर दिया कि इससे मेरे संघर्ष का कार्य बाधित होगा। उनकी कथनी उनके आचरण और व्यवहार में उतरती हुई दिखाई देती थी। स्त्री शिक्षा के समर्थक ज्योतिबा ने सबसे पहले अपनी पत्नी को शिक्षित किया उन्हें मराठी , अंग्रेजी भाषा में पारंगत किया।
सावित्रीबाई को पढ़ने में रुचि बचपन से ही थी।
एक बार बचपन में लाट साहब ने उन्हें एक पुस्तक दी।
घर पहुंचने पर पिता ने वह पुस्तक कूड़ेदान में फेंक दी, सावित्रीबाई ने उसे छिपा कर रख दिया और विवाह के पश्चात शिक्षित होने पर उस पुस्तक को पढ़ा।
14 जनवरी 1848 को भारत में पहली ‘कन्या पाठशाला‘ की स्थापना पुणे में हुई।
निम्न वर्ग की बालिकाओं के लिए पाठशाला खोलने के लिए ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई को बहुत सी बाधाओं और बहिष्कारों का सामना करना पड़ा। ज्योतिबा के धर्मभीरु पिता ने भी बहू , बेटे को घर से निकाल दिया। सावित्री को तरह तरह से अपमानित किया जाता था , पर उन्होंने 1840 – 1890 तक 50 वर्षों तक एक प्रण होकर अपना मिशन पूरा किया।
उन्होंने मिशनरी महिलाओं की तरह किसानों और अछूतों की झुग्गी-झोपड़ियों में जाकर काम किया।
वे दलितों और शोषितों के हक में खड़े हो गए।
महात्मा फुले और सावित्रीबाई का अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित जीवन एक मिसाल बन गया।
अभ्यास हेतु काव्यांश
भारत के सामाजिक ………………….समर्थक नहीं थे।
भावार्थ –
जब लोगों के सामने से अज्ञान का पर्दा हटा तब लोगों को सच्चाई का पता चला था। समाज में जिन्हें सबसे निम्न वर्ग में गिना जाता था शूद्रों के बालक और बालिकाए भी शिक्षा प्राप्त करने लगे हुए भी वेद पढ़ने और समझने लगे तो ब्राह्मणवाद खत्म हुआ। ज्ञान का प्रकाश घर – घर पर चहूं और बिखेरने लगा तो ब्राह्मणों को अपने कृतियों पर शर्म आने लगी।
विशेष –
- ज्योतिबा के साहस पूर्ण कार्यों का उल्लेख
- भाषा सरल एवं सुबोध
- समाज की कुरीतियों पर प्रहार
- पूंजीवाद और ब्राह्मणवाद का विरोध।
महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न – ज्योतिबा फुले का नाम समाज सुधारकों की सूची में शुमार क्यों नहीं किया गया ? तर्क सहित उत्तर लिखिए।
उत्तर – भारत के प्रमुख समाज सुधारकों की सूची में ज्योतिबा फुले के शामिल नहीं होने के पीछे कुछ प्रमुख कारण थे –
इस सूची को बनाने वाले लोग समाज के उच्च संभ्रांत वर्ग एवं ब्राह्मणवादी मानसिकता व उसके अधिकारों के समर्थक थे और वे स्वयं समाज के इसी वर्ग से संबंधित है।
वे नहीं चाहते थे कि ज्योतिबा फुले के क्रांतिकारी , मानवतावादी विचार आम जनता तक पहुंचे। क्योंकि यदि आम जनता उनके इन विचारों से प्रभावित हो तो समाज के निम्न वर्ग पर वे उनका वर्चस्व उनकी सप्ताह समाप्त हो जाएगी।
ज्योतिबा फुले की शिक्षा नीति जिससे वे बताते हैं कि शिक्षा पर किसी का एकाधिकार नहीं है।
दलित वर्ग , शोषित व निम्न वर्ग को भी पढ़ने का अधिकार है।
समानता व शिक्षा उनके बराबर अधिकार की बात करते हैं।
यदि शिक्षा द्वारा समाज में यह परिवर्तन हुए तो समाज में उच्च वर्ग ब्राह्मणवादी सोच वर्चस्व पर प्रहार होगा। अतः यह शिक्षा नीति समाज के उच्च वर्ग के खिलाफ थी इसलिए उन्होंने ज्योतिबा फुले का नाम समाज सुधारकों की सूची में नहीं रखा।
प्रश्न – ज्योतिबा फुले और सावित्री कैसे एक और एक मिलकर एक ग्यारह हो गए ?
उत्तर – ज्योतिबा और सावित्री ने आपस में मिलकर और पूरा सहयोग करके स्त्री शिक्षा के मिशन को पूरा किया। वह मिलकर किसानों और अछूतों की झुग्गी झोपड़ियों में जाकर लड़कियों को पाठशाला भेजने का आग्रह करते थे।
लोग उनके काम में तरह – तरह की बाधाएं डालते थे। लांछन लगाते थे पर वह लगातार वर्षों तक एकजुट होकर काम करते रहे।
उन दोनों के मिलकर काम करने से सामाजिक परिवर्तन की राह और आसान हो गई।
इसलिए दोनों के संयुक्त प्रयास एक और एक मिलकर ग्यारह हो गए ,
उन्हें अपने मिशन में सफलता भी मिली।
प्रश्न – शोषण व्यवस्था ने क्या-क्या षड्यंत्र रचे और क्यों ?
उत्तर – शोषण व्यवस्था अर्थात ब्राह्मण तथा उच्च वर्ग ने सावित्री तथा ज्योतिबा फुले के मार्ग में तरह-तरह के अड़चन लगाए और षड्यंत्र की जिससे उनके साम्राज्य की किसी प्रकार से क्षति ना हो।
- उनके संपूर्ण साहित्य , पाठ , वेद , मंत्र आदि दासता और भेदभाव से युक्त था।
- वह निम्न जातियों को दीन-हीन माना करते थे।
- उनका मानना था शिक्षा पर अधिकार केवल उच्च वर्ग तथा ब्राह्मण का है।
- जबकि ज्योतिबा फुले शिक्षा सभी के लिए अनिवार्य बनाना चाहते थे।
- समाज को नई राह तथा दिशा दिखाना चाहते थे , जिस पर चलकर समाज सफलता तथा सुख प्राप्त कर सके।
- ऐसा करने से ब्राह्मण तथा उच्च वर्ग की सत्ता को चुनौती प्रतीत होने लगा।
- जिसके कारण उन्होंने विभिन्न प्रकार के षड्यंत्र रचे।
- जिसमें से बालिकाओं को विद्यालय जाने से रोकना प्रमुख था।
- क्योंकि वह स्त्रियों को अपने बराबर खड़ा होने देना नहीं चाहते थे।
प्रश्न – आदर्श परिवार की परिकल्पना क्या थी स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर – ज्योतिबा फुले की कल्पना थी समाज पढ़ा-लिखा हो , परिवार के प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त हो। वह स्वयं के विवेक से कार्य कर सके और कोई निर्णय कर सके। वह समाज को स्वतंत्र बनाना चाहते थे। ऐसा नहीं कि वह कहीं से विचारों को ग्रहण करें और उस पर बिना सोच विचार किए आगे बढ़ता जाए। ऐसा करके वह गुलामी और दासता का शिकार हो जाता है। इसलिए उन्होंने एक आदर्श परिवार की कल्पना की जिसमें सभी शिक्षित हो और उस धर्म को अपनाएं , जिसमें उन्हें अच्छाई दिखती हो। पाठ में उन्होंने चर्चा भी की है उनके मत में जिस परिवार में पिता बौद्ध , माता ईसाई , बेटी मुसलमान और बेटा सत्य धर्मी हो वह परिवार आदर्श परिवार है।
प्रश्न – उनका दांपत्य जीवन किस प्रकार आधुनिक दंपतियों को प्रेरणा देता है ?
उत्तर – ज्योतिबा फुले का दांपत्य जीवन बेहद ही सुखद था। घर – परिवार तथा समाज से उपेक्षा भाव झेलते हुए भी दोनों ने एक-दूसरे का साथ मजबूती से दिया। ज्योतिबा फुले ने अपनी पत्नी के बचपन की इच्छा को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास किया। सावित्री बाई फुले बचपन से ही शिक्षा ग्रहण करना चाहती थी। किंतु ब्राह्मणवादी सोच में उन्हें शिक्षा ग्रहण करने नहीं दिया। विवाह के उपरांत ज्योतिबा फुले ने अपनी पत्नी को कई भाषाओं में शिक्षित किया और स्त्री शिक्षा का द्वार खोल कर उन्होंने एक और एक ग्यारह का उदाहरण सार्थक सिद्ध किया।
प्रश्न – ज्योतिबा फुले स्त्री – पुरुष के बीच किस प्रकार के संबंध चाहते थे ?
उत्तर – ज्योतिबा फुले स्त्री और पुरुष के बीच बराबरी का संबंध चाहते थे। पुरुष वर्ग की मानसिकता बनी हुई थी कि स्त्रियां उससे कम और अशिक्षित रहे क्योंकि अपना वर्चस्व तभी तक रह सकता है जब तक स्त्री अशिक्षित रहे। इसके लिए उन्होंने स्त्री शिक्षा को वर्जित किया हुआ था। ज्योतिबा फुले ने स्त्री-पुरुष की समानता के लिए ही कन्या विद्यालय की स्थापना की थी और स्त्रियों की शिक्षा पुरुषों के समानांतर हो इसकी वकालत की।
प्रश्न – सावित्री बाई के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन किस प्रकार आए ?
उत्तर – सावित्री बाई के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव विवाह के उपरांत आया , जब उसके बचपन की आशा पूरी होती नजर आई। ज्योतिबा फुले ने सावित्री बाई को शिक्षित किया और कई भाषाओं का ज्ञान कराया। जिसके बाद उनके जीवन में बदलाव स्वाभाविक रूप से आ गए उन्होंने कन्याओं को शिक्षा देने का प्रण लिया और अपने पति के साथ समाज के उपेक्षित वर्ग तक शिक्षा पहुंचाने का कार्य आरंभ किया।
शिक्षित होने के उपरांत सावित्री बाई ईसाई मिशनरियों की तरह झुग्गी झोपड़ी में जाकर किसानों , दलितों , गरीबों आदि को शिक्षित करने उच्च आदर्श को ग्रहण करने तथा ब्राह्मणवादी मानसिकता से ऊपर उठकर विचार करने की प्रेरणा देने लगी। इस कार्य से उन्हें विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ा ब्राह्मणवादी समाज से उपेक्षा का भाव झेलना पड़ा।
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निष्कर्ष
प्रस्तुत पाठ में ज्योतिबा फुले के जीवन और उनके द्वारा किए गए संघर्षों को उजागर किया गया है। ज्योतिबा फुले ने स्त्री शिक्षा के लिए द्वार खोलकर स्त्री की समानता का पक्ष लिया है। एक उच्च समाज तथा ब्राह्मणवादी विचारधारा के खिलाफ जाकर कार्य करना कोई आसान नहीं था। इसके लिए उन्हें विभिन्न प्रकार की समस्याओं तथा चुनौतियों का सामना करना पड़ा। क्योंकि ब्राह्मणवादी तथा उच्च वर्ग महिलाओं तथा दलित वर्गों के लिए शिक्षा का पक्षधर कभी नहीं रहा। उनका मानना था कि वह सदैव नीचे ही रहेंगे और उन पर हमारा वर्चस्व रहेगा। शिक्षा को पाकर महिला , दलित वर्ग उनसे समानता की मांग करेगा , जो उच्च वर्ग की सत्ता के लिए ठीक नहीं है। इसलिए उन्होंने ज्योतिबा फुले के कार्यों में व्यवधान उपस्थित किए।
ज्योतिबा फुले ने जो कार्य करने का विचार बनाया
उसकी शुरुआत स्वयं के घर से कि उन्होंने अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले को शिक्षित किया। कई भाषाओं का ज्ञान कराया और फिर दोनों समाज के बीच कार्य और लक्ष्य को प्राप्त करने निकल पड़े। दोनों ने मिलकर दिन-रात दलित , महिला और वंचित वर्ग के बीच कार्य किया और एक मिसाल पेश की।
फुले दंपत्ति का ही संघर्ष था , प्रेरणा थी कि पहली बालिका विद्यालय स्थापित हो सका।
उन्होंने बालिका विद्यालय के लिए दलित तथा उपेक्षित वर्ग की बालिकाओं को विद्यालय में आमंत्रित किया और लगभग पचास वर्ष उन्होंने व्यवस्थित तथा सुचारू रूप से विद्यालय का संचालन किया।
उनके संघर्ष को कभी भी ब्राह्मणवादी विचारधारा , उच्च संपन्न लोग या उनसे समर्थित विचारधारा रखने वाले लोगों ने ज्योतिबा फुले को कभी भी सम्मानजनक स्थिति प्रदान नहीं की। क्योंकि ऐसा करने से वह गरीब और श्रमिकों के नायक बन जाते , ऐसा डर उन्हें सताता था। स्त्री शिक्षा का द्वार खोल कर फुले दंपत्ति ने स्त्रियों को समाज में सम्मानजनक स्थिति देने का प्रयत्न किया।
वेद पाठ , मंत्र आदि को आसान किया गया जिसमें भेदभाव और आसानी से ना समझने वाले मंत्र को हटाकर सरल और समझ में आ सकने वाले मंत्रों का संकलन किया। पूजा पाठ , विधि – विधान को भी बेहद सरल बना कर उन्होंने समाज में उच्च आदर्श स्थापित करने का जीवन भर प्रयत्न किया।