संवदिया कहानी का सार, प्रश्न-उत्तर और सप्रसंग व्याख्या

इस लेख में आप फणीश्वर नाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय संवदिया कहानी का मूल सार तथा प्रश्न-उत्तर और सप्रसंग व्याख्या का अध्ययन करेंगे जो परीक्षा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। यह लेख समग्र रूप से प्रकट करने का प्रयास किया गया है, जो विद्यार्थियों के हितों की पूर्ति करता है।

फणीश्वर नाथ रेणु आंचलिकता के लेखक हैं, उनके संपूर्ण साहित्य का अध्ययन करने पर पता चलता है। वह ग्रामीण जीवन को काफी बारीकी से प्रकट करने का प्रयास करते हैं। उनके उपन्यास भी ग्रामीण जीवन और आंचलिकता पर आधारित होते हैं।

संवदिया कहानी भी आंचलिकता और ग्रामीण परिवेश को दर्शाता है। पूर्व समय में जब चिट्ठी, टेलीफोन आदि की व्यवस्था नहीं थी तब संवदिया मुख्य भूमिका निभाया करते थे। वह संवाद को एक स्थान से ले जाकर दूसरे स्थान तक पहुंचाया करते थे। तब उसका मान आदर खूब हुआ करता था।

किंतु आज सवंदिया के प्रति लोगों के दृष्टिकोण पूर्ववत नहीं है।

फणीश्वर नाथ रेणु – संवदिया पाठ का सार, प्रश्न-उत्तर और सप्रसंग व्याख्या

लेखक – फणीश्वर नाथ रेणु

जन्म / स्थान सन 1921 बिहार पूर्णिया जिला हिंगना गांव।

शिक्षा- रेणु जी की आरंभिक शिक्षा नेपाल में हुई।

कार्य- लेखन कार्य – 1953 से हुए साहित्य सृजन के क्षेत्र में आ गए उन्होंने कहानी उपन्यास तथा निबंध आदि विविध साहित्यिक विधाओं में लेखन कार्य किया।

रचनाएं

  • मैला आंचल
  • परती परीकथा
  • कितने चौराहे
  • ठुमरी
  • अग्निखोर
  • मारे गए गुलफाम
  • ऋण
  • जल-धन जल
  • नेपाली क्रांत
  • संवदिया

साहित्यिक विशेषताएं-

  1. लेखक आंचलिक कथाकार है
  2. उनके साहित्य में अभावग्रस्त जनता की बेबसी एवं पीड़ा को सशक्त वर्णन है
  3. ग्रामीण समाज को नई सांस्कृतिक गरिमा प्रदान की है

भाषा शैली-

  • इनकी भाषा संवेदनशील संप्रेषण है और भाव प्रधान है
  • आंचलिक शब्दों और मुहावरों का सुंदर प्रयोग है
  • देशज शब्द के प्रयोग से मानवीय संवेदना की गहरी अभिव्यक्ति की है।

मृत्यु- 1977

संवदिया कहानी की मूल संवेदना

विधा- कहानी

इस कहानी में मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति हुई है, जिसमें विपन्न बेसहारा तथा सहनशील बड़ी बहूरिया की असहाय स्थिति मानसिक यातना तथा पीड़ा का मार्मिक चित्रण हुआ है।

संवदिया पाठ का सार

संवदिया की विशेषता- संवदिया अर्थात संदेशवाहक जो बिना लालच के संवाद पहुंचाने का कार्य करता है। संवाद के प्रत्येक शब्द भावना, स्वर का ध्यान रखते हुए उसी ढंग से जाकर सुनाना सवंदिया की विशेषता है। गांव के लोग उसे निठल्ला, कामचोर और पेटू समझते हैं।

बड़ी बहूरिया की सामाजिक आर्थिक व मानसिक स्थिति-

बड़ी बहूरिया की सामाजिक व आर्थिक स्थिति पहले से बहुत अच्छी थी, हवेली में नौकर चाकर की भीड़ लगी रहती थी। तब बड़ी बहूरिया के हाथों में मेहंदी लगा कर अपने परिवार का पेट पालती थी, किंतु अब उसकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चली थी कि वह अपना गुजारा उधार लेकर चला रही थी।

इसी दुख से वह अपने मायके हरगोविंद के हाथ संदेश भेजना चाहती थी क्योंकि वह इसी कारण मानसिक यातना झेल रही थी।

बड़ी बहूरिया का संदेश –

अपने आर्थिक दुख के कारण वह अपने मायके हरगोविंद के हाथों संदेश भेजना चाहती है कि भाई आकर उसे लिवा जाए नहीं तो वह पोखरे में डूब कर जान दे देगी।

बथुआ साग खा – खाकर कब तक जिऊँ, किसके लिए जिऊँ? किस लिए जिऊँ ?

हरगोविंद की मानसिक स्थिति-

बड़ी बहूरिया के संवाद का एक-एक शब्द हरगोविंद के मन में कांटे की तरह चुभ रहा था तथा वह बड़ी बहूरिया की वेदना बेबसी पीड़ा और दुख समझ रहा था। जिससे उसे स्वयं मानसिक पीड़ा हो रही थी।

वह उसके मायके में कैसे संवाद सुनाएगा?

गांव वाले उस पर थूकेंगे, कैसा गांव है जहां लक्ष्मी जैसी बड़ी बहूरिया दुख भोग रही है ?

उसके मन में अपने गांव तथा बड़ी बहूरिया की बहुत इज्जत थी, वह बड़ी बहूरिया को गांव छोड़कर नहीं जाने देगा।

हरगोविंद का संकल्प –

अपने गांव वापस पहुंचने पर उसने बड़ी बहूरिया के पांव पकड़ लिए माफी मांगते हुए उसका संदेश ना पहुंचाने की बात कही साथ ही स्वयं को उसका बेटा बताते हुए संकल्प लेता है कि उसकी मां समान है। पूरे गांव में मां का समान है, वह आग्रह करता है कि वह गांव छोड़कर ना जाए। साथ ही संकल्प लेता है कि अब वह निठल्ला नहीं बैठा रहेगा।

वह गांव में कोई भी कष्ट नहीं होने देगा, उसके सभी काम करेगा।

संवदिया प्रश्न उत्तर

प्रश्न – संवदिया कहानी का प्रतिपाद्य क्या है?

उत्तर – सवंदिया कहानी में मानवीय संवेदना की और विलक्षण पहचान हुई है, इसमें असहाय और सहनशील नारी मन के कोमल तंतु की उसके दुख और करुणा की पीड़ा और यातना की सूक्ष्म पकड़ हुई है। इस कहानी में रेनू जी ने बड़ी बहूरिया की पीड़ा को उसके भीतर के हाहाकार को संबोधन के माध्यम से अभिव्यक्ति प्रदान की है।

प्रश्न – बड़ी बहूरिया का संवाद हरगोविंद उसके मायके तक क्यों नहीं पहुंचा सका ?

उत्तर – बड़ी बहूरिया की मानसिक पीड़ा और यातना को हरगोविंद बहुत अच्छी तरह समझ रहा था। उसके मायके पहुंचकर वहां का खुशनुमा वातावरण व आवभगत देखकर उसकी हिम्मत नहीं हुई कि उसे हरगोविंद को अपने गांव की इज्जत भी मिट्टी में मिलती दिख रही थी। तथा लग रहा था कि फिर गांव की लक्ष्मी सदा के लिए गांव छोड़ कर चली जाएगी। उसकी वेदना का समाचार व किस मुंह से सुनाएगा।

प्रश्न – संवदिया की क्या विशेषता है? और गांव वालों के मन में संवदिया की क्या अवधारणा है ?

उत्तर – सवंदिया संवाद को हूबहू ग्रहण करके गंतव्य स्थान तक पहुंचाता है। यह कार्य बेहद जटिल है, क्योंकि संवाद देने वाला जिस स्वर और भाव से बोल रहा है उस स्वर और भाव के साथ संवाद को पहुंचाना होता है। यह कार्य इतना सरल नहीं होता जितना लगता है। गांव के लोगों ने यह अवधारणा बना ली है कि सवंदिया निठल्ला और कामचोर व्यक्ति होता है। जिसे कोई कार्य नहीं होता बस बैठकर खाने की आदत होती है। यह अवधारणा लोगों की सरासर गलत है।

प्रश्न – बड़ी हवेली से बुलावा आने पर हरगोविंन के मन में किस प्रकार की आशंका हुई ?

उत्तर – हरगोविंद सवंदिया है, वह संवाद को लेकर जाता है जिसके कारण उसका घर बार चल पाता है। हरगोविंद को आज से पूर्व बड़ी हवेली में नहीं बुलाया गया था। हरगोविंद को बड़ी हवेली के सभी हालातों का पता था, यहां तक की बड़ी बहूरिया हवेली में अकेले रहती है और किस प्रकार की परिस्थिति में वह अपना जीवन चला रही है इससे भी वह वाकिफ था।

बड़ी हवेली से बुलावा आने पर उसके मन में संदेह उत्पन्न हुआ कोई खास बात अवश्य होगी। इसलिए मुझे बुलाया जा रहा है जबकि आजकल का जमाना टेलीफोन और तार-पत्र  का है ऐसे स्थिति में संवादिया से कोई महत्वपूर्ण सूचना ही भेजने का कार्य होगा इसीलिए हवेली में बुलाया गया है ऐसा संशय हुआ।

प्रश्न – बड़ी बहूरिया अपने मायके संदेश क्यों भेजना चाहती थी ?

उत्तर – बड़ी बहूरिया का जब व्याह हुआ था तब वह हवेली रौनक तथा धन-धान्य से भरा रहता था। लेकिन जबसे उसके पति की मृत्यु हुई सभी भाई अलग हो गए जमीन जायदाद का बंटवारा हो गया। सभी गांव छोड़कर शहर में जा बसे, गांव में केवल बड़ी बहूरिया अकेले रह गई थी। जीवन का निर्वाह बड़ी कठिनाई से चल रहा था। खाने-पीने के भी लाले पड़े थे, क्योंकि कोई कमाने वाला नहीं था। यहां का जीवन अब नर्क के समान हो गया था। कोई सुध लेने वाला तक नहीं रहा था।

वह अपने जीवन से इतना परेशान हो गई थी कि वह अपने मायके वापस जाकर रहने को विवश हो गई थी। वही साग बथुआ खा कर अपना जीवन बिताने की सोच रही थी। क्योंकि वह जीवन हवेली जैसे नर्क से बेहतर था। इसलिए बड़ी बहूरिया अपना संदेश मायके भेजना चाहती थी।

प्रश्न – हरगोविंद बड़ी हवेली में पहुंचकर अतित की  किन स्मृतियों में खो जाता है ?

उत्तर – हरगोविंद बड़ी हवेली पहुंचकर अतीत की उन स्मृतियों में खो जाता है जब हवेली में धन लक्ष्मी की वर्षा हुआ करती थी। पूरे गांव के लोग हवेली से सहायता लेने के लिए आया करते थे। खुशहाली हवेली में साक्षात लक्ष्मी के रूप में विराजमान रहा करती थी। नौकर-चक्रों की भीड़ रहा करती थी। हवेली में कोई भी कार्य हवेली के लोगों को करने की आवश्यकता नहीं रहती थी। नौकर चाकर समय से कार्य पूरा कर दिया करते थे।  बड़ी बहूरिया शान से हवेली में रहा करती थी, आज की स्थिति वैसी नहीं है। इसलिए वह अतीत की स्मृतियों में खो जाता है।

प्रश्न – बड़ी बहूरिया का संवाद हरगोविंद क्यों नहीं सुना सका ?

उत्तर – बड़ी बहूरिया का संवाद हरगोविंद इसलिए नहीं सुना सका क्योंकि इससे उसके स्वयं की बदनामी थी। उसका पूरा गांव इस संवाद से बदनामी का शिकार हो जाता, क्योंकि बड़ी बहू रिया को पूरा गांव लक्ष्मी के समान मानता था और उसका आदर करता था। किसी भी मौके पर कोई भी गांव का व्यक्ति निसंकोच सहायता के लिए हवेली में आया करता था और बड़ी बहूरिया अपनी संतान मानकर पूरे गांव की सेवा किया करती थी। आज बड़ी बहूरिया की स्थिति ठीक नहीं होने पर पूरे गांव के लोग उसकी अवहेलना कर रहे हैं। यहां तक कि उसे गांव छोड़ने की नौबत आ रही है, ऐसी स्थिति बेहद ही कष्टदायक थी। इसी बदनामी के डर से हरगोविंद ने बड़ी बहूरिया का संवाद नहीं सुनाया।

संवदिया सप्रसंग व्याख्या

बड़े भैया के मरते ही जैसे सब  ……………….  बेचारी बड़ी बहूरिया। ।

प्रसंग –

लेख – संवदिया

लेखक – फणीश्वर नाथ रेणु

संदर्भ –

इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक ने बड़ी बहूरिया की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण पति की मृत्यु के पश्चात उसके भाइयों में परस्पर गृह क्लेश को बताया है।

व्याख्या

बड़ी बहूरिया के पति की मौत के बाद घर की रौनक ही चली गई, परिवार बिखर गया क्योंकि सारी संपत्ति का बंटवारा सभी भाइयों ने आपस में कर लिया और गांव छोड़ कर चले गए। बड़ी बहूरिया के पास मायके जाने के अतिरिक्त और कोई स्थान नहीं है। बड़े भाई की मृत्यु के पश्चात घर का जो हाल हुआ वह बहुत कष्टदायक था।

वह केवल एक बेचारी बनकर रह गई उसकी भावनाओं कि किसी को कद्र नहीं।

भाषा विशेष –

  • भाषा लोक जीवन से जुड़ी आंचलिक भाषा का प्रयोग किया है
  • शब्द भंडार आंचलिक शब्दों का प्रयोग है
  • लोकोक्ति मुहावरा ‘खेल खत्म हो जाना’ , ‘दावा करना’ ,  ‘लीला करना’
  • शब्द शक्ति अभिधा शब्द शक्ति
  • गुण प्रसाद गुण
  • भाषा प्रवाह – मन की पीड़ा यातना का मार्मिक वर्णन करने की भाषा सहायक सिद्ध हुई है।

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समापन

फणीश्वर नाथ रेणु का साहित्य अध्ययन करने पर स्पष्ट होता है कि उनकी संपूर्ण साहित्य आंचलिकता से ओतप्रोत है। संवदिया कहानी में उनकी आंचलिकता के दर्शन होते हैं। बड़ी बहूरिया कहानी की नायिका है हरगोविंद जो संवाद ले जाने का कार्य करता है। हरगोविन के माध्यम से इस कहानी के मर्म को उकेरने का प्रयास किया है। इसके माध्यम से उन्होंने आंचलिक जीवन को भी प्रकट किया है। ग्रामीण तथा शहरी परिवेश को भी उद्घाटित करने का प्रयत्न किया है।

किस प्रकार ग्रामीण परिवेश में आज भी स्त्री को सम्मान का विषय माना जाता है, इस विषय को पाठ में उजागर किया गया है। परिवार में विघटन के कारण स्थिति दयनीय हो जाती है इस दर्द को भी पाठ में बताया गया है। अंततोगत्वा हरगोविंद की बुद्धि के कारण पाठ का कथानक आदर्श स्थिति में पहुंचता है।

आशा है उपरोक्त लेख आपको पसंद आया हो, अपने प्रश्न कमेंट बॉक्स में लिखें हम आपके प्रश्नों के उत्तर तत्काल देने का प्रयत्न करेंगे।

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