अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा, उदाहरण, भेद, इसकी पहचान कैसे होती है, महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर, आदि का विस्तार पूर्वक इस लेख में अध्ययन किया जा सकता है।
अतिशयोक्ति अलंकार को सरल बनाने के लिए हमने कठिनाई स्तर की पहचान करते हुए अतिरिक्त उदाहरण का प्रयोग किया है। इस लेख का अध्ययन आप विद्यालय,विश्वविद्यालय तथा प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कर सकते हैं। इसके अध्ययन से आप लगभग सभी अलंकारों से परिचित हो सकते हैं।
अलंकार को काव्य का आभूषण माना गया है अर्थात यह काव्य में प्रस्तुत होकर उसे अलंकृत करते हैं, उसकी शोभा को बढ़ाते हैं साथ ही चमत्कार उत्पन्न करने की क्षमता भी रखते हैं। अलंकार साहित्य को रुचिकर बनाने में भी योगदान देते हैं।
अलंकार के मुख्यतः दो भेद हैं – शब्दालंकार ,अर्थालंकार। अतिशयोक्ति अलंकार का संबंध अर्थालंकार से है।
अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा
जब किसी बात को इतना बढ़ा-चढ़ा कर कहा जाए कि वह लोग सीमा के बाहर हो तब वहां अतिशयोक्ति अलंकार माना जाता है। जैसे –
“हनुमान की पूंछ में लगन न पाई आग,
लंका सिगरी जल गई, गए निशाचर भाग। ।
उपरोक्त वाक्य में हनुमान जी के लंका दहन का प्रसंग को बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है।
इस पंक्ति में आग लगने से पूर्व ही लंका बहते हुए सिगरी की भांति जलकर राख हो गई और वहां रहने वाले निशाचर अर्थात राक्षस या तो जलकर मर गई या भाग गए।
यह अतिशयोक्ति है जो बढ़ा-चढ़ा कर उस दृश्य को प्रस्तुत किया गया है।
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अलंकार की परिभाषा, भेद, और उदाहरण
अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण
उदहारण | व्याख्या |
आगे नदिया पड़ी अपार घोड़ा कैसे उतरे पार
राणा ने सोचा इस पार तब तक चेतक था उस पार। |
प्रस्तुत वाक्य में महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का वर्णन है जो राणा के सोच से भी तेज कार्य किया करता था। राणा कुछ सोचते उससे पूर्व घोड़ा उस कार्य को कर देता था ,जबकि ऐसा संभव नहीं है यह बढ़ा चढ़ा कर कहा गया है। |
देख लो यह साकेत नगरी है यही
स्वर्ग से मिलने गगन को जा रही। |
साकेत नगरी को स्वर्ग से मिलता हुआ दिखाना अतिशयोक्ति है। क्योंकि कोई भी नगर स्वर्ग में कैसे जा सकता है यह असंभव है। |
कागद पर लिखत न बनत ,कहत संदेसु लजात
कहिहै सब तेरौ हियो , मेरे हिय की बात। |
बिना कागज पर लिखे और बिना कुछ कहे हृदय से हृदय की बात का वर्णन इस वाक्य में है। जबकि वार्तालाप के लिए तीन माध्यमों का होना आवश्यक है मौखिक,लिखित या सांकेतिक इन तीनो माध्यम का न होना अतिशयोक्ति है। |
पानी परात को छुयो नहीं , नैनन के जल सों पग धोए। | यहाँ पानी के बिना आंसू से पैरो को धोने की बात पर जोर दिया गया है। जो असमान्य बात है। |
हनुमान की पूंछ में लगन न पाई आग
लंका सिगरी जल गई गए निशाचर भाग। |
हनुमान के लंका दहन का वर्णन है इस वाक्य के अनुसार हनुमान की पूंछ में आग लगने से पूर्व ही लंका जलकर राख हो गई और वहां के निशाचर भाग खड़े हुए। बिना आग लगाए लंका नगरी का जलना आदिशक्ति है। |
छुअत टूट रघुपति न दोसू। | यह प्रसंग सीता स्वयंवर का है जहां राम ने धनुष को तोड़ा था। इस पंक्ति में बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया गया है कि धनुष को छूते ही वह टूट गया, जबकि ऐसा संभव नहीं हो सकता। |
तुम्हारी या दंतुरित मुस्कान ,मृतक में भी डाल देगी जान। | मृतक शरीर में मुस्कान के माध्यम से जान फुकना लोक सीमा से परे का विषय है। अर्थात यहां अतिशयोक्ति का प्रयोग किया गया है। |
जिस वीरता से शत्रुओं का सामना उसने किया
असमर्थ हो उसके कथन में ,मौन वाणी ने किया। |
अद्भुत वीरता का प्रदर्शन देख वाणी के द्वारा उसे व्यक्त नहीं किया जा सका और वह सभी बातें वीरता का वर्णन मौन वाणी अर्थात चुप रह कर हो गई। यह संभव से परे की बात है चुप रह कर कोई बात कैसे कह सकता है। |
पिय सो कहेहु सँदेसरा ऐ भँवरा ऐ काग
सो धनि बिरहें जरि गई तेहिक धुंआ हम लाग। |
नायिका कौआ के माध्यम से अपने प्रेमी के पास संदेशा भेज रही है और काला धुआं उठने का स्रोत स्वयं के शरीर को बता रही है ,जबकि वास्तविकता में ऐसा संभव नहीं है। |
अतिशयोक्ति अलंकार की पहचान
अतिशयोक्ति अलंकार को साधारण रूप में समझें तो इसके अंतर्गत बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन किया जाता है। अर्थात जो कार्य संभव नहीं है उसको भी शब्दों के चमत्कार से संभव और सरल बताया जाता है।
जैसे क्रोध में व्यक्ति कहता है फूंक मार कर पहाड़ उड़ा दूंगा वास्तविक रूप से यह संभव नहीं है। किंतु काव्य में प्रयुक्त हुआ है ,अतः यह अतिशयोक्ति अलंकार का अंग बन जाता है।
अतिशयोक्ति अलंकार के अन्य उदाहरण
1
पत्रा ही तिथि पाइयै वा घर के चहुँ पास
नितप्रति पून्यौईं रहे आनन ओप उजास।
2
मानहु बिधी तन-अच्छ छबि स्वच्छ राखिबै काज
दृग-पग पोंछन कौं करे भूषन पायंदाज। ।
3
साँसनि ही सौं समीर गयो अरु ,
आँसुन ही सब नीर गयो ढरि।
4
तेज गयो गुन लै अपनो
अरु भूमि गई तन की तनुता करि। ।
5
रकत ढरा माँसू गरा हाड भए सब संख
धनि सारस होइ ररि मुई आई समेटहु पंख।
6
केहिक सिंगार को पहिर पटोरा ,
गियँ नहि हार रही हुई डोरा। ।
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निष्कर्ष –
उपरोक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि जहां बढ़ा चढ़ाकर वर्णन किया जाता है जो सामान्य से बिलकुल अलग होता है वहां अतिशयोक्ति माना जाता है। इसके अंतर्गत साधारण तौर पर इस लोक में शायद संभव न हो वैसा भी अनुमान किया जाता है। अर्थात इसके अंतर्गत असम्भव को भी सम्भव होता दिखाया जाता है।
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