बालगोबिन भगत (Summary, question, solution) Class 10

प्रस्तुत लेख में आप लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी का संक्षिप्त जीवन परिचय तथा बालगोबिन भगत पाठ का सार महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर आदि का विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे।यह पाठ रेखाचित्र के आधार पर है जिसे रामवृक्ष बेनीपुरी ने उद्घाटित किया है। उन्होंने विलक्षण चरित्र से भरपूर बालगोबिन भगत जो स्वभाव से कबीरपंथी थे का चरित्र इस लेख के माध्यम से उद्घाटित किया है। इस पाठ के माध्यम से युगिन समाज का भी दर्शन होता है।

बालगोबिन भगत (लेखक का जीवन परिचय)

लेखक का जीवन परिचय पढ़ने पर स्पष्ट होता है कि उनका जीवन काल स्वाधीनता संग्राम से पूर्व तथा बाद का है। अर्थात उनके साहित्य में इस संघर्ष को देखा जाना कोई बड़ी बात नहीं है। लेखक ने बालगोबिन भगत के माध्यम से समाज के सबसे नीचे वर्ग की छवि को उजागर किया है जिसने मानवीय मूल्यों के साथ-साथ सामाजिक तथा मानवीय सरोकार की झांकी को प्रस्तुत किया है।

बालगोबिन भगत कहानी का नायक है जो ग्रामीण जीवन से संबंधित है। नायक के माध्यम से लेखक ने उस वर्ग की आस्था और निष्ठा को प्रकट किया है जो सदैव हास्य स्थिति पर रहे हैं। यह लेख रेखाचित्र शैली में लिखा गया है, क्योंकि लेखक ने अपने स्मृति तथा अनुभव का प्रयोग किया है।

balgobin bhagat question answer ncert, balgovin lesson ki summry, balgobin bhagat path ka sar, balgovin bhagat ke prshan uttar
balgobin bhagat question answer ncert

बालगोबिन भगत पाठ का सार

कहानी के आरंभ में लेखक ने बालगोबिन भगत की शारीरिक बनावट को बताया है जो कद काठी से मझोला है चेहरा गोरा चिट्टा तथा साठ से ऊपर की उम्र लगती है। उसके बाल पके हुए हैं, चेहरा सफेद बालों से जगमग है वह कमर पर लंगोटी बांधे तथा कबीरपंथीयों की टोपी सिर पर पहने रहते है। सर्दियों में एक कंबल ले लेता है, बाकी समय उसे कंबल की आवश्यकता या किसी अन्य अतिरिक्त वस्त्र की आवश्यकता नहीं होती।

मस्तक पर चंदन का लेप, गले में तुलसी की माला पहने उसके वेशभूषा का वर्णन किया है। वह कोई साधु या महात्मा नहीं किंतु सत्संग के माध्यम से जो उसे ज्ञान प्राप्त होता है उसे अपने जीवन में अपनाता है तथा उसको निर्वाह करता है। घर, मकान अन्य सामाजिक लोगों से भी अधिक साफ सुथरा रखता है। बालगोबिन तथा उसके घर को देखने से यह लगता है जैसे वह बहुत बड़ा साधु महात्मा हो, जबकि वह जाति का तेली है। उसके पास थोड़ी बहुत जमीनें हैं, किंतु वह कबीरपंथी आचरण के कारण कभी झूठ नहीं बोलता किसी का दिल नहीं दुखाता, व्यवहार का मृदु है, सामाजिक व्यक्ति है।

बिना पूछे किसी व्यक्ति का कोई सामान नहीं लेता। कबीर पंत का पूरा निर्वाह करता है।

घर में जितनी पैदावार आती है उसको पहले कबीरपंथी मठ ले जाकर दान करता है। वहां से मिले हुए अनाज को ही अपने घर में प्रसाद के स्वरूप लाता है और अपना जीवन चलाता है। चाहे कैसा भी मौसम हो वह सवेरे स्नान कर अपनी खंजड़ी लेकर गीत गाता है। भादों की अंधेरी रात में वह अपने गीत के माध्यम से अपने ईश्वर को मनाता है। उसके इस गीत में सामाजिक लोग भी शामिल होते हैं। एक उत्सव का माहौल बन जाता है। बाल गोविंद भक्ति भाव से सराबोर होकर आंगन में नाचने लगता है। चाहे सर्दी हो या गर्मी सुबह शाम उसकी खंजड़ी बजती है। साथ ही ईश्वर की भक्ति से जुड़े गीत की आवाज भी गूंजने लगती है।

बालगोबिन अपने ईश्वर से इतना जुड़ गया था कि वह ईश्वर को सर्वत्र निराकार मानता था।

इसका एक मर्म तब देखने को मिला जब उसका इकलौता बेटा असमय मृत्यु को प्राप्त हुआ। वह काफी समय से कमजोर था, शायद किसी बीमारी का शिकार रहा होगा। बालगोविंद उसकी पूरी देखभाल किया करते थे। बड़े उत्साह से बेटे की शादी कराई थी बहू भी सुंदर और सुशील मिली थी। जिस दिन उसका बेटा मरा उस दिन लेखक ने घर जाकर जो दृश्य देखा वह अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता। बालगोबिन के बेटे का पार्थिव शरीर आंगन में चटाई पर था। उसके ऊपर सफेद कपड़ा डाला गया था।  उस पार्थिव शरीर के पास बालगोविंद आसन जमाए गीत गा रहे थे और अपने बहू को समझा रहे थे – यह रोने का नहीं बल्कि उत्सव मनाने का समय है क्योंकि मेरे बेटे की आत्मा परमात्मा के पास चली गई है इससे और उत्तम की बात क्या हो सकती है।

यह बालगोबिन  का चरम विश्वास बोल रहा था, जिसने उसे भक्ति से प्राप्त किया था।

बेटे का पूरा दाह संस्कार अपनी बहू से ही करवाया। सभी संस्कार की विधि समाप्त होने पर बाल गोविंद ने बहू के बड़े भाई को बुलाकर उसका पुनर्विवाह कराने का आदेश दिया। किंतु बहू कहां मानने वाली थी, उसने ससुर की सेवा करते हुए पूरा जीवन निर्वाह करने की ठान ली थी किंतु बालगोबिन भगत स्वभाव और व्यवहार के सरल व्यक्ति थे। उन्होंने बहुत से कहा अगर वह अपने भाई के साथ मायके नहीं गई और पुनर्विवाह नहीं किया तो वह स्वयं घर छोड़ कर चला जाएगा।

वह अपने पुत्र या अपने घर से बंधन बांधकर नहीं रखना चाहते थे। वह अपनी बहू को किसी प्रकार का कष्ट नहीं देना चाहते थे, बल्कि उसके मांग में हमेशा सिंदूर और हंसी खुशी भी देखना चाहते थे। बालगोबिन भगत की मृत्यु भी महात्मा की भांति हुई हुए। प्रत्येक वर्ष की भांति गंगा स्नान करने जाते थे सर्द मौसम था हल्की बुखार शरीर पर चढ़ी हुई थी वह गंगा स्नान के लिए चार-पांच दिन की यात्रा करके जाते थे। वह रुक कर बीच में कहीं खाना नहीं खाते थे और ना ही भीख मांगते थे। वह घर से खाना खाकर जाते और घर आकर ही खाना खाते थे, यही उनके आचरण में था।

जब वह गंगा स्नान के लिए निकले उन्हें बुखार था सर्दी का मौसम भी आ गया था, लोगों ने काफी चेतावनी दी कि वह गंगा स्नान ना करें किंतु वह धार्मिक व्यक्ति कहां मानने वाले थे। उन्हें तो भक्ति का परम सुख प्राप्त करना था।

वह गंगा स्नान कर घर लौटे उस दिन भी उन्होंने संध्या का गीत गाया पर लगता था जैसे तागा टूट गया हो माला का एक-एक दाना बिखर गया हो।  अगले दिन जब लोगों ने बालगोबिन के घर से खंजड़ी तथा गीत की आवाज नहीं सुनी तो उन्हें आश्चर्य हुआ। घर जाकर देखा तो बाल गोविंद नहीं रहे।  अर्थात बाल गोविंद की आत्मा परमात्मा से मिलने अनंत सफर पर जा चुकी थी

बालगोबिन भगत ( प्रश्न एवं उत्तर )

1 प्रश्न – खेती-बाड़ी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे ?

उत्तर – बालगोबिन एक गृहस्थ थे उनके पास कुछ खेती की जमीन भी थी। उनका जीवन बेहद ही साधारण था उनके परिवार में उनका एक बेटा और एक बहू थी उनकी सादगी और भक्ति भावना को देखते हुए उन्हें साधु कहा जाता था।

कुछ और निम्नलिखित विशेषताएं भी थी –

  • वह साधारण वेशभूषा में रहते थे, कमर पर लंगोट तथा सिर पर कबीरपंथी टोपी बांधे रहते थे।
  • सुबह – शाम भक्ति के गीत गाते थे।
  • ईश्वर तथा परमात्मा के महत्व को जानते थे।
  • वह अपना घर तथा आसपास का वातावरण साफ सुथरा रखते थे।
  • घर पर अनाज लाने से पूर्व वह कबीरपंथी मठ में अनाज का दान किया करते थे।
  • वह झूठ नहीं बोलते थे।
  • किसी का सामान भी बिना पूछे उपयोग में नहीं लाते थे।

अन्य विभिन्न प्रकार के क्रियाकलाप तथा व्यवहार को देखते हुए गांव के लोग उसे साधु कहा करते थे।

2 प्रश्न – भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी ?

उत्तर – बालगोबिन को अपने बेटे से विशेष लगाव था, वह उनका सदैव खयाल रखते थे। बेटा शरीर से कुछ कमजोर था इस कारण वह अधिक समय अपने पुत्र को दिया करते थे। उसकी शादी भी की पुत्रवधू सुंदर और सुशील थी उसे अपनी पुत्री की भांति लालन-पालन किया करते थे।

जब पुत्र की मृत्यु और समय हुई तो सारा क्रियाकलाप अपनी पुत्रवधू से ही करवाया।

बालगोबिन यह जानते थे कि उनकी मृत्यु के बाद पुत्र वधू बिल्कुल अकेली हो जाएगी इससे उसका जीवन कष्ट से बीतेगा वह संसार के उतार-चढ़ाव तथा दुखों को अकेले सहन नहीं कर पाएगी। इसलिए बेटे के अंतिम संस्कार के बाद उसे जब मायके भेजने और दूसरा ब्याह करने की बात कही गई तो पुत्र वधू भगत को अकेला नहीं छोड़ना चाह रही थी।  क्योंकि वह उसे पिता के समान मानती थी। वह भी जानती थी अब इनका कोई देखरेख करने वाला नहीं है, ऐसे में वह उस ससुर रुपी परमात्मा की सेवा करते हुए अपना जीवन निर्वाह करना चाहती थी।

3 प्रश्न – भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएं किस तरह व्यक्त की ?

उत्तर – भगत कबीर पंथी थे जिन्हें ईश्वर पर अटूट विश्वास होता है। वह ईश्वर को सर्वत्र मानते हैं जिसका कोई आकार नहीं है वह चर-अचर सर्वत्र विद्यमान रहता है। वह आत्मा और परमात्मा के भेद को भी जानते थे। जब उनके बेटे की मृत्यु हुई तो उन्होंने बेहद सादगी से उसका सभी संस्कार पूर्ण किया बेटे के पार्थिव शरीर को आंगन में एक चटाई पर लिटाया कुछ फूल उसके ऊपर अर्पित किया। एक दिया जलाकर आंगन में बैठे उत्सव गीत गा रहे थे और अपनी बहू को रोने से मना कर रहे थे साथ ही समझा रहे थे कि यह उत्सव मनाने का समय है क्योंकि बेटे की आत्मा उस परमात्मा के पास चली गई है इससे और बड़ी बात क्या हो सकती है।

यह भगत का ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास बोल रहा था, इन्हीं सभी क्रियाकलापों से भगत की भावनाएं प्रकट हो रही थी।

4 प्रश्न – भगत के व्यक्तित्व और उसकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत करें।

उत्तर – गोरा चिट्टा मझोले कद काठी का लगभग उम्र साठ साल के पार होगी। सिर के बाल सफेद हो चुके थे, चेहरे पर सफेद झुर्रियां आ गई थी फिर भी उसका चेहरा जगमगाता रहता था, जैसे किसी प्रकार की चिंता उसके जीवन में ना रह गई हो। शरीर पर साधारण वेश कमर में लंगोटी और सिर पर कबीरपंथी की एक टोपी, हां सर्दी में एक कंबल और देखने को मिलता था। मस्तक पर चंदन का लेप गले में तुलसी की माला देखने से कोई साधु ही प्रतीत होता है। भगत को पहली बार देखने वाला व्यक्ति साधु या महात्मा ही समझ बैठता है

5 प्रश्न – बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी ?

उत्तर – क्योंकि वह भक्ति भावना से जुड़े हुए थे, वह ईश्वर के प्रति सच्ची निष्ठा रखते थे कोई ढोंग या पाखंड नहीं करते थे। उन्हें आत्मा और परमात्मा के विषय में जानकारी थी, उन्होंने अपनी दिनचर्या बना रखी थी। चाहे कोई भी मौसम हो किसी भी प्रकार की स्थिति हो वह उस दिन चर्या का पालन अवश्य किया करते थे। सुबह स्नान के लिए वह नदी पर जाते वहां से लौटकर कीर्तन भजन करते दिन भर के क्रियाकलाप के बाद वह रात को भी कीर्तन भजन किया करते थे। इसी कारण उनके आंगन में सदैव सत्संग का वातावरण बना रहता था। चाहे कैसी भी स्थिति हो कैसा भी मौसम हो वह अपनी दिनचर्या का पालन करना नहीं छोड़ते थे। यही कारण है कि गांव के लोग उसकी दिनचर्या को देखकर अचरज में पड़ जाते थे।

6 प्रश्न – पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएं लिखिए।

उत्तर – बालगोबिन नित्य सुबह शाम कीर्तन भजन गाया करते थे। उनके गायन में वह मधुर स्वर लहरी हुआ करती थी कि आसपास के समाज को भी एकत्र कर लिया करती थी। देखते ही देखते एक खुशनुमा माहौल बन जाता था, जिसमें हर एक कोई गीत गा रहा होता कोई नाच रहा होता।

बालगोबिन खेतों में काम करते हुए जब मधुर स्वर को छेड़ते तो वहां काम करने वाली महिलाएं भी साथ-साथ गुनगुनाने लगती और एक ऐसा दृश्य बन जाता कि सभी महिलाएं एक साथ धान को रोकने लगती। एक खूबसूरत क्रम देखने को मिलता था। अंधेरी रात में भी जब भगत का मधुर संगीत कानों में पड़ता तो आदमी ज्ञान के किसी प्रकाश में गोता खाने लगता था।

7 प्रश्न – कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन सामाजिक मान्यताओं का उल्लेख करें।

उत्तर – बालगोबिन समाज में सबसे अलग इसलिए थे क्योंकि वह सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों को नहीं मानते बल्कि स्वयं की मान्यताओं का पालन किया करते थे।

पाठ के आधार पर निम्नलिखित कारणों से स्पष्ट होता है –

  • बालगोबिन वर्ण व्यवस्था को नहीं मानते थे। वह कृषक के साथ-साथ संत महात्मा भी थे।
  • बाह्य आडंबर को सिरे से नकारते और ईश्वर का सर्वत्र दर्शन करते थे, चाहे वह सजीव हो या निर्जीव।
  • अन्य लोगों की भांति वह बुराई, असत्य का पालन नहीं करते बल्कि सत्य और निष्ठा पर विश्वास किया करते थे।
  • बिना बताए या पूछे किसी का सामान प्रयोग में नहीं लाते थे।
  • लोग अपनी मेहनत से उपजाए हुए अनाज को कहीं दान करना उचित नहीं समझते।  भगत उसके विपरीत कबीरपंथी मठ में अपना सारा अनाज दान कर देते और वहां से जो प्रसाद स्वरूप मिलता उसी से अपना जीवन चलाते थे।
  • अपने द्वारा तय किए गए मानदंडों का वह नित्य दिनचर्या में प्रयोग किया करते थे चाहे मौसम कैसा भी हो।
  • पुत्र की मृत्यु पर वह शोक मनाने की बजाय उत्सव मनाने की बात करते हैं क्योंकि वह आत्मा और परमात्मा के भेद को जानते थे।
  • धर्म की मान्यता के अनुसार स्त्रियां चिता को अग्नि नहीं देती। जबकि भगत ने अपने पुत्र का दाह संस्कार अपनी पुत्रवधू से ही करवाया था।
  • अपनी पुत्रवधू का पुनः विवाह कराने के लिए आदेश देना उन्हें अन्य सामाजिक व्यक्ति से अलग करता है। वह अपने स्वार्थ के लिए किसी का जीवन बर्बाद नहीं करना चाहते थे।
  • नदी स्नान के लिए वह लगभग पांच मिल जाया करते थे जिसमें वह घर से खाना खाकर जाते और घर लौट कर ही खाना खाते बीच में भीख नहीं मांगते और ना ही किसी का दिया हुआ भोजन करते।

उपरोक्त बिंदुओं से स्पष्ट होता है कि भगत समाज में प्रचलित मान्यताओं को अधिक महत्व नहीं देते थे बल्कि वह उन मान्यताओं का समर्थन करते थे जो तर्कसंगत और न्याय पूर्ण हो।

8 प्रश्न – धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियां किस तरह चमत्कृत कर देती थी, उस माहौल का शब्द चित्र प्रस्तुत करें।

उत्तर – धान रोपाई का ग्रामीण परिवेश देखने को बनता है, संपूर्ण गांव के लोग लगभग खेत में होते है। चारों ओर खेत में लबालब पानी भरा हुआ कहीं बैल चल रहा है कहीं हल कहीं धान की रोपाई हो रही है। कहीं स्त्रियां गीत गा रही है तो कहीं पुरुष मिट्टी को बराबर कर रहे हैं।

यह मौसम आषाढ़ मास का होता है जब बारिश रिमझिम रिमझिम गिरती है।

बालगोबिन ऐसे में अपनी स्वर लहरी को छेड़ कर एक सुखद माहौल बना देते हैं। समूचा गांव जब खेत में उतरकर धान की रोपाई कर रहा होता है तो भगत का गीत उनके होठों को गुनगुनाने पर विवश कर देता है। साथ-साथ वह लोग भी भगत के गाने को गाते हैं। देखते ही देखते पूरा दृश्य संगीतमय हो जाता है।सभी कीचड़ में सने हुए धान की रोपाई कर रहे हैं और उंगलियां गाने के बोल पर थे रखती हुई रोपाई करती हुई करीने से आगे बढ़ती जाती है। इतना ही नहीं बैल भी भगत का गाना सुनते हुए कदमताल के साथ अपना कार्य आरंभ कर देते हैं। उनमें भी नई ऊर्जा का संचार हो जाता है, हलवाहे खुशी से झूम उठते हैं उनका कार्य देखते ही देखते संपन्न हो जाता है। कभी बैठकर मेड पर थोड़ा सा सुस्ता भी लेते हैं।

बच्चे, बूढ़े सभी सभी भगत के गीत से झूमने लगते हैं जैसे स्वर्ग का कोई गायन संगीत की महफिल सजी हो।

रामवृक्ष बेनीपुरी का जीवन परिचय

लेखक – रामवृक्ष बेनीपुरी

जन्म – 1899 मुजफ्फरपुर बिहार

लेखक बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गांव में हुआ था। आरंभिक जीवन काफी संघर्षों से परिपूर्ण रहा, क्योंकि उनके माता-पिता का बचपन में ही देहांत हो गया था। वह बाल्यकाल से ही राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय भूमिका का निर्वाह कर रहे थे।वह दसवीं की परीक्षा के उपरांत इस कार्य से जुड़ गए थे, जिस कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। आरंभ सही कुशाग्र बुद्धि के थे जिसका परिणाम हमें देखने को भी मिलता है।

उनकी रचनाएं 15 वर्ष की आयु में ही प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं में छपने लगी थी।

वह आगे चलकर एक प्रतिभाशाली पत्रकार के रूप में भी कार्यरत हुए उन्होंने विभिन्न प्रकार की पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया जिसमें – तरुण भारत, किसान मित्र, बालक, युवक, योगी, जनता, जनवाणी और नई धारा प्रमुख है। कवि तथा लेखक के रूप में भी उन्होंने विशेष भूमिका निभाई है उनके साहित्य का अध्ययन आज भी पाठ्यक्रम में किया जाता है। उनका पूरा साहित्य ‘बेनीपुरी रचनावली’ के सातों खंड में प्रकाशित है।

उन्होंने विभिन्न प्रकार के गद्य साहित्य में अपनी रचनाएं की है

उपन्यास – पतितों के देश में

कहानी – चिता के फूल

नाटक – अंबपाली

रेखाचित्र – माटी की मूरतें

यात्रा वृतांत – पैरों में पंख बांधकर

संस्मरण – जंजीरें और दीवारें

लेखक का सम्पूर्ण साहित्य सामान्य जीवन तथा मध्यम वर्गीय परिवार का विशेष दर्शन होता है। उनके साहित्य का अध्ययन करने पर स्पष्ट होता है कि उन्होंने युगीन समस्या पर विशेष बल दिया है। समाज में वर्ग भिन्नता, ग्रामीण परिवेश, सामाजिक रूढ़ियां उभर कर सामने आती है इनकी रचनाओं के कारण ही इन्हें कलम का जादूगर कहा जाता है।

मृत्यु – 1968

संबंधित लेख का भी अध्ययन करें

नेताजी का चश्मा ( पाठ का सार, प्रश्न उत्तर ) class 10

रस की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण

अलंकार की परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण – Alankar in hindi

लोकोक्तियाँ अर्थ एवं वाक्य में प्रयोग सहित उदाहरण

संधि की परिभाषा, भेद, एवं उदाहरण सहित संपूर्ण जानकारी

क्रिया की परिभाषा, उदहारण, भेद

समास की परिभाषा, उदाहरण, भेद

संपादक को पत्र

अवकाश हेतु पत्र

सर्वनाम की पूरी जानकारी – परिभाषा, भेद, प्रकार और उदाहरण 

हिंदी वर्णमाला की पूरी जानकारी

अनेक शब्दों के लिए एक शब्द – One Word Substitution

उपसर्ग की संपूर्ण जानकारी

अव्यय की परिभाषा, भेद, और उदाहरण

विशेषण की परिभाषा, भेद, तथा उदाहरण

क्रिया विशेषण की परिभाषा, भेद, और उदाहरण

समापन

लेखक ने प्रस्तुत पाठ के माध्यम से एक साधारण भारतीय व्यक्ति की चारित्रिक विशेषता को उभारने का प्रयास किया है। वह बेहद सादगी के साथ अपना जीवन जीता है, सभी मान्यताओं को सम्मान करता है तथा आचरण इस प्रकार का कि किसी दूसरे जीव को कोई कष्ट ना हो।

इसी प्रकार लेखक कृषक समाज तथा ग्रामीण समाज को उद्घाटित करना चाहते हैं। बालगोबिन संभवत इस समाज का नायक था, जिसने आत्मा और परमात्मा के महत्व को भी समझ लिया था। अपने पुत्र की मृत्यु के पश्चात सामान्य जनमानस की भांति शोक संतप्त नहीं हुआ बल्कि मंगल गीत गाने लगा। उसका अटूट विश्वास था कि पुत्र की आत्मा उस परमपिता से मिलने गई है जिसने उसे जीवन दिया था जिसने उसका पालन पोषण किया है।बालगोबिन भगत का चरित्र निश्चित ही अद्भुत तथा विलक्षण व्यक्तित्व से युक्त था।

Leave a Comment