नेताजी का चश्मा ( पाठ का सार, प्रश्न उत्तर ) class 10

लेखक स्वयं प्रकाश जी के द्वारा नेताजी का चश्मा कहानी एक देश भक्ति से प्रेरित है। जिसमें कवि ने देश के निर्माण में सभी लोगों की भागीदारी को व्यक्त करने का प्रयत्न किया है, चाहे वह किसी भी उम्र के लोग क्यों ना हो। एक साधारण सा अपंग व्यक्ति भी देश भक्ति और राष्ट्र निर्माण का किस प्रकार भागीदारी है इस कहानी में लेखक ने व्यक्त करने का प्रयास किया है।

प्रस्तुत लेख में आप लेखक का संक्षिप्त जीवन परिचय, पाठ का सार तथा परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण प्रश्नों का अभ्यास भी करेंगे।

नेताजी का चश्मा पाठ का सार, महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर के साथ

यह पाठ (नेताजी का चश्मा) दसवीं कक्षा जो सी.बी.एस.ई बोर्ड के द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम है उसके तहत पढ़ाया जाता है। इसकी पुस्तक क्षितिज भाग 2 नाम से जानी जाती है। प्रस्तुत लेख मे हम पाठ से संबंधित सभी पहलुओं पर विस्तार से अध्ययन करेंगे।

स्वयं प्रकाश के जीवन तथा उनके साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए

20 जनवरी 1947 को स्वयं प्रकाश जी का जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में हुआ। इनका आरंभिक जीवन राजस्थान में बीता। मैकेनिकल इंजीनियरिंग मेंउच्च स्तर की पढ़ाई की। इसी पढ़ाई के माध्यम से उन्होंने एक प्रतिष्ठित औद्योगिक प्रतिष्ठान में नौकरी भी प्राप्त की। किंतु साहित्य में स्वतंत्र लेखन की रुचि रखने के कारण उन्होंने स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति भी प्राप्त की।

यह भोपाल में रहते हुए ‘वसुधा’ पत्रिका का संपादन भी करते थे। इनकी स्वतंत्र लेखनी आज भी पाठकों को पढ़ने के लिए मिलती रहती है। स्वयं प्रकाश जी ने हिंदी विषय से m.a. किया तथा 1980 में पीएचडी की डिग्री भी प्राप्त की। उन्होंने विभिन्न प्रकार के साहित्य की रचना की जिसमें कहानी, उपन्यास, निबंध, नाटक, संपादन आदि सम्मिलित है। इन्हें विभिन्न प्रकार के सम्मान भी प्राप्त हुए हैं।

कहानी संग्रह

  • मात्रा और भार,
  • सूरज कब निकलेगा,
  • आसमा कैसे-कैसे,
  • अगली किताब,
  • आएंगे अच्छे दिन भी,
  • आदमी जात का आदमी,
  • अगले जन्म,
  • संधान,
  • छोटू उस्ताद

प्रमुख उपन्यास

  • जलते जहाज पर,
  • ज्योति रथ के सारथी,
  • उत्तर जीवन कथा, \
  • बीच में विनय,
  • और इंधन।

निबंध –

  • स्वांतः सुखाय,
  • दूसरा पहलू,
  • रंगशाला में एक दोपहर,
  • एक कहानीकार की नोटबुक।

नाटक

  • फिनिक्स,
  • चौबोली,
  • सब का दुश्मन

संपादन –

  • वसुधा,
  • चमक,
  • क्यों

लेखक की भाषा शैली – लेखक की भाषा शैली सरल और प्रवाहमय। यह पात्रों के अनुकूल अपने भाषा को ढाल दिया करते थे जिसके कारण पाठक को पढ़ने में रुचि जागृत होती है। लेख को पढ़कर पाठक उस दृश्य का साक्षात अनुभव करने लगता है।

साहित्य की विशेषता – लेखक ने सामाजिक विषयों को अपने साहित्य में उठाया है विशेषकर मध्यम वर्गीय समाज से जुड़े हुए मुद्दे। जिसमें वर्ग शोषण, चेतना, सामाजिक कुरीतियां, जाति प्रथा आदि को अपना विषय बनाया है। जिसमें भेदभाव के विरुद्ध प्रतिकार का स्वर देखने को मिलता है।

उनकी कहानियां कई बार व्यंग्यात्मक रूप में भी देखने को मिली है।

नेताजी का चश्मा पाठ का सार

यह कहानी छोटे से कस्बे की है जहां से हालदार साहब ड्यूटी के लिए हर पंद्रहवे दिन गुजरा करते थे। जिसमें कस्बे के मुख्य चौराहे पर एक प्रतिमा थी। वह प्रतिमा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की थी, जिसको बनाने का जिम्मा निकट के सरकारी विद्यालय के शिक्षक जो ड्राइंग बनाते थे उनको दिया गया था। मास्टर जी ने प्रतिमा ठीक प्रकार से बनाया किंतु उसमें एक छोटी सी खामी रह गई उन्होंने नेताजी का चश्मा नहीं बनाया, चाहे कोई भी कारण रहा हो।संभवतः समय का अभाव रहा हो या अंतिम चरण में चश्मा टूट गया हो कारण चाहे जो भी हो बिना चश्मा पहने नेताजी कुछ अजीब लग रहे थे।

हालदार साहब निरंतर उस कस्बे से होकर गुजरते जहां वह प्रतिमा स्थापित की गई थी।

कुछ समय बाद उन्होंने देखा प्रतिमा पर एक काला प्रेम का चश्मा अलग से लगाया गया है, जो संभवत जीवित व्यक्ति पहनता है। उन्हें कुछ आश्चर्य हुआ इसी क्रम में वह जब भी आगे कस्बे से निकलते तो वह चश्मे को बदला हुआ पाते, उन्हें अचरज होता। एक दिन वह कारण जानने के लिए कस्बे में रुके और पान की दुकान से पान खाते हुए उन्होंने पूछा ‘नेताजी का चश्मा आखिर हर बार बदल कैसे जाता है?

पान वाले ने भी हंसते हुए कहा कैप्टन चश्मे वाला यह काम करता है।

हालदार साहब कुछ समझे नहीं उन्होंने पूछा क्या वह ‘आजाद हिंद फौज’ में काम करते थे? पानवाला जोर से हंसने लगा और कहा वह लंगड़ा आजाद हिंद फौज में क्या जाएगा जो ठीक से चल भी नहीं पाता। हालदर साहब को इस प्रकार की बात पसंद नहीं आई कि वह एक देशभक्त का मजाक उड़ा रहा था। तभी कैप्टन हाथ में लकड़ी की संदूक लिए उस और आ गया जहां हालदार साहब खड़े थे पान वाले ने इशारा करते हुए कहा वही कैप्टन है जो हर बार चश्मा बदल दिया करता है।

कैप्टन उस चश्मे को इसलिए बदल दिया करता था कि जब कोई व्यक्ति नेताजी पर लगाए गए चश्मे को पसंद कर लेता तो उसका मूल्य लेकर वह उस चश्मे को बेच देता और दूसरा चश्मा उनके प्रतिमा पर लगा दिया करता था। लगभग दो साल के अंतराल पर हालदार साहब ने मूर्ति पर चश्मा नहीं देखा, खबर के अनुसार कैप्टन अब मर चुका था। इसके कारण हालदार साहब काफी दुखी थे और उस कस्बे से निकलते हुए अब वह प्रतिमा को नहीं देखना चाहते थे। किंतु ना चाहते हुए भी उनका ध्यान आदत के अनुसार प्रतिमा पर चला जाया करता था।

आज उन्होंने पाया मूर्ति पर वह चश्मा तो नहीं है किंतु एक सरकंडे से बना हुआ छोटा चश्मा अवश्य है। जो संभवत बच्चों ने खेल खेल में पहनाया था।  यह देखकर हालदार साहब की आंखें भर आई और उन्होंने महसूस किया कि राष्ट्र के निर्माण में सभी का योगदान है चाहे वह किसी भी उम्र के क्यों ना हो।

नेताजी का चश्मा महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

प्रश्न – सेनानी न होते हुए भी चश्मे वाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?

उत्तर – चश्मे वाला, नेताजी की प्रतिमा पर चश्मे की कमी को देखते हुए अपना बेचने वाला चश्मा लगा दिया करता था। यह उसकी देश भक्ति और राष्ट्र भक्ति की निशानी थी। वह पूरे कस्बे में चर्चित व्यक्ति था जिसकी देशभक्ति जगजाहिर थी। हो सकता है लोग उसके देश भावना को नेताजी के प्रति लगाव को देखकर व्यंग्यात्मक रूप से कैप्टन कहते हो। किंतु यह नाम उस व्यक्ति पर जचता था, क्योंकि उसकी दीवानगी नेताजी के प्रति देखी जा सकती थी।

प्रश्न – हालदार साहब ने ड्राइवर को चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था, लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा –

(क) हालदार साहब पहले मायूस हो गए थे?

(ख) मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है?

(ग) हालदार साहब इतनी सी बात पर भावुक क्यों हो उठे?

उत्तर

(क) हालदार साहब को जब यह सूचना मिली कि कैप्टन अब इस दुनिया में नहीं रहा तो वह मूर्ति पर चश्मे को ना देख कर यह गहन चिंतन में पड़ गए थे कि अब नेता जी की मूर्ति पर कोई चश्मा नहीं लगाएगा।

अब नेता जी की मूर्ति बिना चश्मे की ही रहेगी जिससे उनकी मूर्ति अधूरी प्रतीत होगी।

(ख) मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा देख कर यह उम्मीद जगी कि अब भी नेता जी के प्रति श्रद्धा और सम्मान रखने वाला जीवित है। जो उनके योगदान और बलिदान को कभी भूलना नहीं देगा। आने वाली पीढ़ी उनके बलिदान को याद रखेगी। ऐसे महान क्रांतिकारी के प्रति श्रद्धा को देखकर हालदार साहब के मन में उम्मीद जगी कि अभी कोई देशभक्तों का सम्मान करने वाला जीवित है।

(ग) मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा देखकर हालदार साहब को यह लगा कि अभी नेताजी का सम्मान करने वाला कोई जीवित है। देशवासियों में महान वीरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान की भावना अभी भी जागृत है। कैप्टन के मरने के बाद बच्चों ने यह दायित्व अपने कंधों पर लिया था जो राष्ट्र के विकास और प्रगति तथा देश के वीर सपूतों के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है।

प्रश्न – आशय स्पष्ट कीजिए :

” बार-बार सोचते क्या होगा उस काम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्ती-जिंदगी-जवानी सब कुछ छोड़ देने वालों पर हंसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूंढती है। ”

उत्तर – हालदार साहब जब पान की दुकान पर खड़े पान वाले से वार्तालाप कर रहे थे तब पान वाले की हंसी उन्हें काफी पीड़ादायक महसूस हुई। वह सोचने लगे इस प्रकार बलिदानी यों के प्रति समर्पित और श्रद्धा का भाव रखने वालों पर दुनिया किस प्रकार हंसती है।

उन्हें आगामी भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा।

उन बलिदानों के प्रति जब देशवासियों की श्रद्धा को कम होते पाया।

आज समाज किस प्रकार जाति, धर्म, वर्ग में विभाजित हो गया।

सबके मत भिन्न भिन्न होने लगे, ऐसी परिस्थिति में देश का भविष्य हालदार साहब को उज्जवल नजर नहीं आ रहा था। वह ऐसे लोगों के बीच स्वयं को पा रहे थे जिन्होंने देशभक्तों एवं बलिदानियों को भुलाने का कार्य कर रहे थे।

प्रश्न – पान वाले का रेखाचित्र नेताजी का चश्मा पाठ के आधार पर प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर – ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ में पान वाले की दुकान कस्बे के बीचो बीच मूर्ति के पास स्थित है, जहां हालदार साहब गुजरते हुए रुकते हैं और पान खाते हुए सभी घटनाओं की जानकारी उससे प्राप्त कर लेते हैं। जब हालदार साहब को नेता जी की मूर्ति पर चश्मे के बार-बार बदल जाने की घटना पर आश्चर्य हुआ तो उन्होंने पान वाले से इस घटना का रहस्य जानने के लिए पान खाते हुए उससे पूछा।

पानवाला काफी मोटा, खुशमिजाज, बात-बात में हंसने वाला। हंसते हुए उसकी तोंद रोचक लगती है, जैसे वह ऊपर-नीचे उछल रही हो। उसके दांत लाल और काले हो गए थे।  उसके मुंह में हमेशा पान रहता था जिसे वह चबाते हुए बात किया करता था। उसे आसपास की समस्त घटनाओं की जानकारी रहा करती थी। किसी भी कस्बे की जानकारी प्राप्त करना उससे सुलभ था। हालदार साहब ने जब नेताजी के चश्मे का रहस्य जानना चाहा तो वह हंसता हुआ, लंगड़ा जिसका नाम कैप्टन है उसका परिचय कराता है। इस हंसी पर हालदार साहब स्वयं को ठगा हुआ महसूस करते हैं, उनकी भावनाओं को ठेस लगता है।

पानवाला किस प्रकार एक आस्थावान व्यक्ति का मजाक उड़ा रहा है।

जो चाहे अनचाहे देशभक्तों को याद कर रहा है उससे प्रेम कर रहा है।

प्रश्न – “वह लंगड़ा क्या फौज में। पागल है पागल!” कैप्टन के प्रति पान वाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।

उत्तर

उपरोक्त प्रसंग है – जब हालदार साहब जब पान खाने और मूर्ति पर चश्मा बदल जाने का रहस्य जानने के लिए पान की दुकान पर जाते हैं वहां पानवाला यह टिप्पणी देता है।

किसी भी व्यक्ति का मजाक नहीं उड़ाया जाना चाहिए, उसके विशेषताओं को देख कर उसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। विशेषकर जब कि वह किसी रूप से अक्षम हो कैप्टन शारीरिक रूप से अक्षम है। किंतु वह समाज में इस प्रकार का कार्य कर रहा है जो उसे समाज में सर्वोच्च स्थान देता है। जबकि पान वाले को इस बात की समझ नहीं थी कि वह कितना महान कार्य कर रहा है। इसी अज्ञानता के कारण वह कैप्टन के लिए व्यंग्यात्मक रूप से बोलता है, वह लंगड़ा क्या फौज में जाएगा वह ठीक से चल भी नहीं पाता वह पागल है। इस प्रकार के शब्द का प्रयोग करने से बचना चाहिए।

अपंगता किसी के साथ भी कभी भी घट सकती है।

हो सकता है कुछ ही क्षण में दुर्घटना के कारण स्वयं पान वाला भी अपंग हो जाए, शारीरिक रूप से अक्षम हो जाए। इसलिए किसी का मजाक बनाने से पूर्व हजारों बार विचार किया जाना चाहिए। कैप्टन के प्रति समाज को सम्मान की दृष्टि रखनी चाहिए जिसने देश के खातिर शहीद हुए बलिदानी यों शहीदों के प्रति अपनी श्रद्धा को बनाए रखा देश प्रेम को जागृत रखा।

कैप्टन के विषय में पान वाले का दृष्टिकोण निंदा का विषय है।

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समापन

उपरोक्त लेख देशभक्ति पर आधारित है, जिसके लेखक स्वयं प्रकाश हैं।

इस पाठ में देशभक्तों, बलिदानियों के प्रति वर्तमान समय की स्थिति को व्यक्त करने का प्रयत्न किया गया है। आज किस प्रकार भी तो ना सही किंतु अधिकतर लोग देश के बलिदानियो के प्रति श्रद्धा रखते हैं चाहे वह किसी भी धर्म संस्कृति वर्ग आदि से हो। इस लेख में नेताजी सुभाष चंद्र की प्रतिमा पर एक अपंग व्यक्ति द्वारा चश्मे की कमी को पूर्ति करना उसकी मृत्यु के पश्चात बच्चों द्वारा खेल खेल में चश्मे की पूर्ति करना देशभक्तों देश के लिए प्राण न्योछावर करने वालों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव प्रकट होता है। इसी भाव को लेखक ने प्रस्तुत पाठ में प्रकट करने का सफल प्रयास किया है।

स्वयं प्रकाश जी का समस्त साहित्य अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि वह मध्यम वर्गीय समाज से विशेष जुड़े हुए थे जिसमें उन्होंने असमानता, वर्ग विनता आदि को उद्घाटित करने का प्रयास किया है।

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