संधि किसे कहते हैं? परिभाषा उदाहरण भेद आदि का विस्तारपूर्वक इस लेख में आप अध्ययन करेंगे। इस लेख को हमने विद्यार्थियों के कठिनाई स्तर का अध्ययन करते हुए सरल बनाने का प्रयत्न किया है।
इस लेख को आप विद्यालय, विश्वविद्यालय तथा प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अध्ययन कर सकते हैं। अंत में आपको कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न भी दिए जाएंगे, जिससे आप अपने समझ का आकलन कर सकेंगे।
संधि के भेद
दो वर्णों के मेल से उत्पन्न होने वाले परिवर्तन को संधि कहते हैं। संधि का सामान्य सा अर्थ है मेल करना। जिसमें दो शब्द या पद एक दूसरे से जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं, इसी प्रक्रिया को हम संधि कहते हैं। वर्णों के आधार पर संधि तीन प्रकार के माने गए हैं –
- स्वर संधि
- व्यंजन संधि
- विसर्ग संधि
स्वर संधि कितने प्रकार की होती हैं
स्वर के साथ स्वर का मेल होने से जो विकार या परिवर्तन उत्पन्न होता है, उसे स्वर संधि कहा जाता है। दो स्वर आपस में मिलकर एक नए स्वर का निर्माण करते हैं, साथ ही तीसरे अर्थपूर्ण शब्द का निर्माण करते हैं। स्वर संधि के पांच भेद माने गए हैं –
- दीर्घ संधि
- गुण संधि
- वृद्धि संधि
- यण संधि
- अयादि संधि
दीर्घ स्वर संधि
दो सजातीय स्वर और मिलकर दीर्घ स्वर के रूप में परिवर्तित होते हैं, ऐसी संधि को दीर्घ स्वर संधि कहते हैं।
अ + अ = आ
वेद + अंत | वेदांत |
स्व + अर्थ | स्वार्थ |
परम + अर्थ | परमार्थ |
धर्म + अधर्म | धर्माधर्म |
सत्य + अर्थ | सत्यार्थ |
धर्म + अर्थ | धर्मार्थ |
अन्न + अभाव | अन्नाभाव |
अ + आ = आ
गज + आनन | गजानन |
हिम + आलय | हिमालय |
सत्य + आनंद | सत्यानंद |
शिव + आलय | शिवालय |
परम + आनंद | परमानन्द |
धर्म + आत्मा | धर्मात्मा |
रत्न + आकर | रत्नाकर |
आ + अ = आ
शिक्षा + अर्थी | शिक्षार्थी |
विद्या + अर्थी | विद्यार्थी |
सीमा + अंत | सीमान्त |
दीक्षा + अंत | दीक्षांत |
यथा + अर्थ | यथार्थ |
रेखा + अंकित | रेखांकित |
सेवा + अर्थ | सेवार्थ |
आ + आ = आ
कारा + आवास | कारावास |
दया + आनंद | दयानन्द |
दया + आलु | दयालु |
श्रद्धा + आनद | श्रद्धानन्द |
महा + आत्मा | महात्मा |
वार्ता + आलाप | वार्तालाप |
विद्या + आलय | विद्यालय |
इ + इ = ई
कवि + इंद्र | कवीन्द्र |
रवि + इंद्र | रविंद्र |
कपि + इंद्र | कपीन्द्र |
अति + इव | अतीव |
गिरि + इंद्र | गिरीन्द्र |
अभि + इष्ट | अभीष्ट |
मुनि + इंद्र | मुनींद्र |
इ +ई = ई
प्रति + ईक्षा | प्रतीक्षा |
मुनि + ईश्वर | मुनीश्वर |
कवि + ईश्वर | कवीश्वर |
कवि + ईश | कवीश |
परि + ईक्षा | परीक्षा |
हरि + ईश | हरीश |
रवि + ईश | रवीश |
ई + इ = ई
योगी + इंद्र | योगीन्द्र |
पत्नी + इच्छा | पत्नीच्छा |
मही + इंद्र | महीन्द्र |
नारी + इच्छा | नारिच्छा |
शची + इंद्र | शचीन्द्र |
नारी + इंदु | नारीन्दु |
गिरि + इंद्र | गिरीन्द्र |
ई + ई = ई
नदी + ईश | नदीश |
रजनी + ईश | रजनीश |
सती + ईश | सतीश |
योगी + ईश्वर | योगीश्वर |
नारी + ईश्वर | नारीश्वर |
जानकी + ईश | जानकीश |
लक्ष्मी + ईश | लक्ष्मीश |
उ + उ = ऊ
भानु + उदय | भानूदय |
बहु + उद्देश्यीय | बहुद्देशीय |
सु + उक्ति | सूक्ति |
अनु + उदित | अनूदित |
गुरु + उपदेश | गुरुपदेश |
लघु + उत्तर | लघुत्तर |
विधु + उदय | विधूदय |
उ + ऊ = ऊ
लघु + ऊर्मि | लघूर्मि |
साधु + ऊर्जा | साधूर्जा |
मधु + ऊष्मा | माधूष्मा |
सिंधु + ऊर्मि | सिंधूर्मि |
अम्बु + ऊर्मि | अम्बूर्मी |
मधु + ऊष्मा | माधूष्मा |
सिंधु + ऊर्जा | सिन्धूर्जा |
ऊ + उ = ऊ
वधू + उत्सव | वधूत्सव |
वधू + उपकार | वधूपकर |
भू + उत्सर्ग | भूत्सर्ग |
भू + उद्धार | भूद्धार |
सरयू + उल्लास | सरयूल्लास |
ऊ + ऊ = ऊ
भू + ऊष्मा | भूष्मा |
भू + उर्ध्व | भूर्ध्व |
भू + ऊर्जा | भूर्जा |
वधू + ऊर्मि | वधूर्मि |
सरयू + ऊर्मि | सरयूर्मि |
गुण संधि
‘अ’ या ‘आ’ का मेल होने से ‘इ’ या ‘ई’ का मेल होने से ‘ए’ हो जाता है। ‘अ’ या ‘आ’ से ‘उ’या ‘ऊ’ का मेल होने पर ‘ओ’ हो जाता हे ‘अ’ या ‘आ’ से ‘ऋ’ का मेल होने से ‘अर्’ हो जाता है।
अ + इ = ए
भारत + इंदु | भरतेंदु |
गज + इंद्र | गजेंद्र |
नर + इंद्र | नरेंद्र |
स्व + इच्छा | स्वेच्छा |
कमल + इंदु | कमलेन्दु |
शुभ + इच्छु | शुभेक्षु |
शुभ + इंदु | शुभेंदु |
अ + ई = ए
कमल + ईश | कमलेश |
राम + ईश्वर | रामेश्वर |
लोक + ईश | लोकेश |
दिन + ईश | दिनेश |
गण + ईश | गणेश |
परम + ईश्वर | परमेश्वर |
नर + ईश | नरेश |
आ + इ = ए
राजा + इंद्र | राजेंद्र |
रमा + इंद्र | रमेंद्र |
महा + इंद्र | महेंद्र |
यथा + इष्ट | यथेष्ट |
जैन + इंद्र | जैनेंद्र |
कन्या + इच्छा | कन्येचा |
आ + ई = ए
महा + ईश्वर | महेश्वर |
महा + ईश | महेश |
लंका + ईश | लंकेश |
रमा + ईश | रमेश |
उमा + ईश | उमेश |
राका + ईश | राकेश |
राज + ईश | राजेश |
अ + उ = ओ
नर + उत्तम | नरोत्तम |
नव + उदय | नवोदय |
सूर्य + उदय | सूर्योदय |
लोक + उक्ति | लोकोक्ति |
चंद्र + उदय | चंद्रोदय |
पर + उपचार | परोपकार |
वन + उत्सव | वनोत्सव |
अ + ऊ = ओ
समुद्र + उर्मी | समुद्रोर्मि |
जल + उर्मी | जलोर्मि |
नव + ऊढ़ा | नवोढ़ा |
सूर्य + ऊर्जा | सुर्योजा |
सागर + उर्मी | सगरोर्मि |
आ + उ = ओ
महा + उदधि | महोदधि |
महा + उत्सव | महोत्सव |
महा + उदय | महोदय |
महा + उपदेश | महोपदेश |
गंगा + उत्सव | गंगोत्सव |
गंगा + उदक | गंगोदक |
महा + उपकार | महोपकार |
आ + ऊ = ओ
गंगा + उर्मी | गंगोर्मि |
महा + ऊष्मा | महोष्मा |
दया + उर्मि | दयोर्मि |
महा + ऊर्जा | माहोर्जा |
अ + ऋ = अर्
सप्त + ऋषि | सप्तर्षी |
राज + ऋषि | राजर्षि |
देव +ऋषि | देवर्षि |
ब्रह्म + ऋषि | ब्रह्मर्षि |
आ + ऋ = अर्
वर्षा + ऋतु | वर्षर्त्तु |
राजा + ऋषि | राजर्षि |
महा + ऋषि | महर्षि |
ब्रह्मा + ऋषि | ब्रह्मर्षि |
वृद्धि संधि
अ या आ का मेल ए या ऐ से होने पर ऐ रूप में परिवर्तित हो जाता है। तथा अ या आ का मेल ओ या औ से होने पर औ हो जाता है जैसे –
अ + ए = ऐ | एक + एक | एकैक |
“ | लोक + एषणा | लोकैषणा |
अ + ऐ = ए | परम + ऐश्वर्य | परमैश्वर्य |
“ | मत + ऐक्य | मतैक्य |
आ + ए = ऐ | सदा + एव | सदैव |
“ | तथा + एव | तथैव |
आ + ऐ = ऐ | महा + ऐश्वर्य | महैश्वर्य |
“ | विद्या + ऐश्वर्य | विद्यैश्वर्य |
अ + ओ = औ | परम + ओज | परमोज |
“ | दंत + ओष्ठ | दन्तोष्ठ |
“ | जल + ओघ | जलौघ |
अ +औ = औ | परम + औषध | परमौषध |
“ | वन + औषध | वनौषध |
आ + ओ = औ | महा + ओजस्वी | महौज्सवी |
“ | महा + ओज | महौज |
आ + औ = औ | महा + औषध | महौषध |
“ | महा + औदार्य | महौदार्य |
यण संधि
इ ई उ ऊ और ऋ के बाद भिन्न स्वर आए तो इ/ई का य। उ / ऊ का व और ऋ का र हो जाता है जैसे –
इ + अ = य | अति + अधिक | अत्यधिक |
“ | यदि + अपि | यद्यपि |
“ | अति + अंत | अत्यंत |
“ | गति + अवरोध | गत्यवरोध |
इ + आ = या | परि + आवरण | पर्यावरण |
“ | इति + आदि | इत्यादि |
“ | अति + आचरण | अत्याचार |
“ | वि + आप्त | व्याप्त |
“ | अभि + आगत | अभ्यागत |
ई + अ = य | देवी + अर्पण | देव्यर्पण |
“ | सखी + अपराध | सख्यपराध |
ई + आ = या | देवी + आगमन | देव्यागमन |
“ | देवी + आलय | देव्यालय |
“ | सखी + आगम | सख्याग्म |
इ + उ = यु | उपरि + उक्त | उपर्युक्त |
“ | प्रति + उपकार | प्रत्युपकार |
“ | प्रति + उत्तर | प्रत्युत्तर |
“ | अभि + उदय | अभ्युदय |
इ + ऊ = यू | नि + ऊन | न्यून |
“ | वि + ऊह | व्यूह |
ई + उ = यु | सखी + उपेक्षा | सख्युपेक्षा |
“ | नदी + उद्गम | नदयुद्गम |
ई + ऊ = यू | नदी + उर्जा | नदयूर्जा |
“ | नदी + उर्मी | नदयूर्मी |
इ + ए = ये | प्रति + एक | प्रत्येक |
“ | अधि + एषणा | अध्येषणा |
ई + ऐ = यै | नदी + ऐश्वर्य | नाद्यैश्वर्य |
“ | सखी + ऐश्वर्य | सख्यैश्वर्य |
उ + अ =व | अनु + अय | अन्वय |
“ | सु + अच्छ | स्वच्छ |
“ | सु + अल्प | स्वल्प |
“ | मधु + अरि | मध्वरि |
उ + आ = वा | सु + आगत | स्वागत |
“ | गुरु + आकृति | गुर्वाकृति |
“ | गुरु + आदेश | गुर्वादेश |
उ + इ = वि | अनु + इति | अन्विति |
“ | अनु + इत | अन्वित |
उ + ई = वी | अनु + ईक्षण | अन्वीक्षण |
“ | अनु + ईक्षक | अन्वीक्षक |
उ + ए = वे | अनु + एषण | अन्वेषण |
“ | प्रभु + एषणा | प्रभ्वेणा |
ऊ + अ = वा | वधू + आगमन | वध्वागमन |
“ | भू + आदि | भ्वादि |
ऋ + अ = र् | पितृ + अर्पण | पितृर्पण |
“ | मातृ + अर्पण | मात्रर्पण |
“ | मातृ + अनुमति | मात्रनुमति |
ऋ + आ = रा | मातृ + आज्ञा | मात्रज्ञा |
“ | पितृ + आदेश | पित्रादेश |
ऋ + उ = रु | पितृ + उपदेश | पितृपदेश |
“ | मातृ + उपदेश | मात्रुपदेश |
ऋ + इ =रि | मातृ + इच्छा | मात्रिच्छा |
“ | पितृ + इच्छा | पित्रिच्छा |
अयादि संधि
‘ए’ या ‘ऐ’ का किसी भिन्न स्वर से मेल होने पर क्रमशः अय् , आय् हो जाता है। ‘ओ’, ‘औ’ का किसी भिन्न स्वर से मिल होने पर क्रमशः ‘अव्’, ‘आव्’ हो जाता है जैसे –
ए + अ = अय् | ने + अन | नयन |
“ | शे + अन | शयन |
ऐ + अ = आय् | नै + अक | नायक |
“ | सै + अक | सायक |
“ | गै + अक | गायक |
“ | गै + अन | गायन |
ऐ + इ = आयि | गै + इका | गायिका |
“ | नै + इका | नायिका |
ओ + अ = अव् | पो + अन | पवन |
“ | भो + अन | भवन |
ओ + इ = अवि | भो + इष्य | भविष्य |
“ | पो + इत्र | पवित्र |
“ | हो + अन | हवन |
औ + इ = आवि | नौ + इक | नाविक |
औ + अ = आव् | पौ + अन | पावन |
“ | पौ + अक | पावक |
औ + उ = आवु | भौ + उक | भावुक |
व्यंजन संधि
व्यंजन का व्यंजन से तथा व्यंजन का स्वर से मेल होने पर उसमें जो परिवर्तन आता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं। जैसे –
- उत् + नति = उन्नति
- दिक् + गज = दिग्गज
- उत् + चारण = उच्चारण
- सत् + धर्म = सदधर्म
1 नियम – व्यंजन तालिका के पहले वर्ण तथा तीसरे वर्ण में परिवर्तन होता है। यदि पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प् ) का मेल किसी भी वर्ग के तीसरे, चौथे वर्ण(य्, र्, ल्, व्, ह), (ग्, ज्, ड्, ब् ) से किया जाए तो वहां वर्ण में भेद उत्पन्न हो जाता है।
क् + अ = ग | दिक् + अम्बर | दिगंबर |
“ | दिक् + अंत | दिगंत |
क् + इ = गी | वाक् + ईश | वागीश |
क् + ग = ग्ग | दिक् + गज | दिग्गज |
क् + ज = ग्ज | वाक् + जाल | वाग्जाल |
क् + द = ग्द | वाक् + दत्ता | वाग्दत्ता |
“ | वाक् + दान | वाग्दान |
च् + अ = ज | अच् + अंत | अजंत |
ट् + आ = डा | षट् + आनन | षडानन |
ट् + द = ड्द | षट् + दर्शन | षड्दर्शन |
त् + अ = द | तत् + अनुसार | तदनुसार |
“ | तत् + अंत | कृदंत |
त् + ग = द्ग | भगवत् + गीता | भगवद्गीता |
त् + भ = द्भ | भगवत् + भजन | भगवद्भजन |
“ | तत् + भव | तद्भव |
त् + ध = द्ध | सत् + धर्म | सद्धर्म |
त् + गु = द्गु | सत् + गुरु | सद्गुरु |
त् + वा = द्वा | सत् + वाणी | सद्वाणी |
त् + ग = द् ग | उत् + गम | उद्गम |
त् + घ = द् घ | उत् + घाटन | उद्घाटन |
त् + य = द् य | उत् + योग | उद्योग |
प् + ज = ब्ज | अप् + ज | अब्ज |
2 नियम – व्यंजन तालिका के पहले वर्ण का पांचवे वर्ण में परिवर्तन होता है।यदि पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प् ) का मेल म् या न् से हो तो क् का ड्, च् का ञ्, ट्, का ण्, त्, का न्,प् का म् बन जाता है।
क् + म = ड़् | वाक् + मय | वाङ्मय |
ट् + म = ण् | षट् + मास | षड्मास |
“ | षट् + मुख | षड्मुख |
त् + म = न् | सत् + मार्ग | सन्मार्ग |
“ | उत् + मत्त | उन्न्मत |
“ | चित् + मय | चिन्मय |
“ | तत् + मय | तन्मय |
त् + न = न् | उत् + नति | उन्नति |
3 नियम त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व अथवा किसी स्वर से हो जाए तो त् का द् में परिवर्तन हो जाता है।
त् + च् = च् | उत् + चारण | उच्चारण |
“ | उत् + चरित | उच्चरित |
“ | शरत् + चंद्र | शरच्चन्द |
“ | सत् + चरित | सच्चरित |
“ | सत् + चित | सच्चित |
त् + ज् = ज् | सत् + जन | सज्जन |
“ | उत् + ज्वल | उज्जवल |
“ | तत् + जनित | तज्जनित |
“ | जगत् + जननी | जगज्जननी |
“ | विपत् + जाल | विपज्जाल |
त् + ट् = ट् | तत् +टीका | तट्टीका |
“ | तत् + टंकार | तट्टंकार |
“ | बृहत्त + टीका | बृहट्टीका |
त् + ड = ड्ड | उत् + डयन | उडडयन |
त् + ल् = ल् | उत् + लेख | उल्लेख |
“ | तत् + लीन | तल्लीन |
“ | उत् + लास | उल्लास |
त् + श् = छ् | उत् + श्वास | उच्छ्वास |
“ | उत् + शिष्ट | उछिष्ट |
“ | सत् + शास्त्र | सच्छास्त्र |
“ | तत् + शिवम् | तच्छिवम |
त् + ह् = ध् | उत् + हार | उद्धार |
“ | पत् + हति | पद्धति |
“ | उत् + हत | उद्धत |
“ | तत् + हित | तद्धित |
“ | उत् + हरण | उद्धरण |
4 नियम – यदि म् के बाद कोई व्यंजन य, र, ल, व, श, ष, स, ह, हो तो म् का अनुस्वार में परिवर्तन हो जाता है।
म् + ल = म् | सम् + लाप | संलाप |
म् + ह = म् | सम् + हार | संहार |
म् + व = म् | सम् + विधान | संविधान |
म् + ल = म् | सम् + लग्न | संलग्न |
म् + र = म् | सम् + रक्षक | संरक्षक |
म् + श = म् | सम् + शोधन | संशोधन |
म् + स = म् | सम् + सार | संसार |
म् + स = म् | सम् + स्मरण | संस्मरण |
म् + श = म् | सम् + शय | संशय |
म् + व = म् | सम् + वहन | संवहन |
म् + य = म् | सम् + योग | संयोग |
म् + ग = ड् | सम् + गति | संगति |
म् + क = ड् | सम् + कल्प | संकल्प |
म् + ग = ड् | सम् + गम | संगम |
म् + क = ड् | किम् + कर | किंकर |
म् + स = ञ् | सम् + चय | संचय |
म् + ज = ञ् | सम् + जीवनी | संजीवनी |
म् + त = न् | परम् + तु | परंतु |
म् + त = न् | सम् + तोष | संतोष |
म् + ध = न् | सम् + ध्या | संध्या |
म् + प = म् | सम् + पूर्ण | संपूर्ण |
म् + भ = म् | सम् + भावना | संभावना |
म् + म = म् | सम् + मान | संम्मान |
म् + म = म् | सम् + मति | सम्मति |
म् + म = म् | सम् + मोहन | सम्मोहन |
म् + म = म् | सम् + मुख | सम्मुख |
5 नियम – किसी भी स्वर के बाद यदि छ् वर्ण आ जाए तो छ् का च्छ में परिवर्तन हो जाता है
आ + छादन | आच्छादन |
अनु + छेद | अनुच्छेद |
छत्र + छाया | छत्रच्छाया |
परि + छेद | परिच्छेद |
संधि + छेद | सन्धिच्छेद |
स्व + छंद | स्वच्छंद |
6 नियम – यदि अ, आ के अलावा किसी भी स्वर के बाद स् आये तो स् का ष में परिवर्तन हो जाता है
इ + स = ष | वि + सम | विषम |
“ | वि + साद | विषाद |
“ | अभि + सेक | अभिषेक |
“ | नि + सिद्ध | निषिद्ध |
उ + स = ष | सु + सुप्ति | सुषुप्ति |
“ | सु + समा | सुषमा |
7 नियम – यदि ऋ,र्, ष् के बाद न् आये तो न् का ण् में परिवर्तन हो जाता है।
राम + अयन | रामायण |
परि + नाम | परिणाम |
भूष + अन | भूषण |
परि + मान | परिमाण |
प्र + नाम | प्रणाम |
ऋ + न | ऋण |
8 नियम – र् के संबंध में नियम – ह्रस्व स्वर के आगे र् हो और उसका मेल र् से हो तो हर स्वर का दीर्घ स्वर हो जाता है तथा र् का लोप हो जाता है।
निर् + रोग | नीरोग |
निर् + रव | नीरव |
निर् + रस | नीरस |
3. विसर्ग संधि
विसर्ग (:) का मेल किसी व्यंजन या स्वर से होने पर विसर्ग में जो विकार या परिवर्तन आता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं।
उदाहरण के लिए –
- तपः + बल = तपोबल
- मनः + योग = मनोयोग
- मनः + हर = मनोहर
- रजः + गुण = रजोगुण
1 विसर्ग का नियम (ओ) – विसर्ग से पहले यदि ‘अ’ हो और उसका मेल ‘अ’ या किसी वर्ग के तीसरे चौथे या पांचवें वर्ण ग घ ड ज झ ञ् ड ढ ण द ध न ब भ म तथा य र ल व् श ह से हो तो विसर्ग का ‘ओ’ हो जाता है।
विसर्ग + अ = ओ | मनः + अनुकूल | मनोनुकूल |
विसर्ग + ग = ओ | अधः + गति | अधोगति |
“ | रजः + गुण | रजोगुण |
विसर्ग + द = ओ | पयः + द | पयोद |
विसर्ग + ध = ओ | पयः + धर | पयोधर |
विसर्ग + ब = ओ | तपः + बल | तपोबल |
विसर्ग + भ = ओ | तपः + भूमि | तपोभूमि |
विसर्ग + य = ओ | मनः + योग | मनोयोग |
विसर्ग + र = ओ | मनः + रथ | मनोरथ |
विसर्ग + व = ओ | वयः + वृद्ध | वयोवृद्ध |
विसर्ग + श = ओ | यशः + धन | यशोधन |
विसर्ग + ह = ओ | मनः + हर | मनोहर |
विसर्ग + ग = ओ | तमः + गुण | तमोगुण |
विसर्ग + ब = ओ | मनः + बल | मनोबल |
विसर्ग + र = ओ | मनः + रंजन | मनोरंजन |
2 विसर्ग का नियम – विसर्ग से पहले ‘अ’ ‘आ’ को छोड़कर अन्य स्वर हो तथा विसर्ग का मेल किसी भी स्वर या किसी भी वर्ण के तीसरे चौथे पांचवें वर्ग ग घ ड ज झ ञ् ड ढ ण द ध न ब भ म तथा य र ल व् श ह से हो तो विसर्ग ‘र’ हो जाता है जैसे –
विसर्ग + आ = र + आ = रा | निः + आशा | निराशा |
विसर्ग + आ = र + आ = रा | दुः + आशा | दुराशा |
विसर्ग + ज = र + ज = र्ज | निः + जन | निर्जन |
विसर्ग + ज = र + ज = र्ज | दुः + जन | दुर्जन |
विसर्ग + ज = र + ज = र्ज | पुनः + जन्म | पुनर्जन्म |
विसर्ग + ग = र + ग = र्ग | दुः + गुण | दुर्गुण |
विसर्ग + ग = र + ग = र्ग | दुः + गम | दुर्गम |
विसर्ग + ध = र + ध = र्ध | निः + धन | निर्धन |
विसर्ग + ध = र + ध = र्ध | निः + धारण | निर्धारण |
विसर्ग + ब = र + ब = र्ब | निः + बल | निर्बल |
विसर्ग + ब = र + ब = र्ब | दुः + बल | दुर्बल |
विसर्ग + व = र + व = र्व | निः + विकार | निर्विकार |
विसर्ग + व = र + व = र्व | निः + विघ्न | निर्विघ्नं |
विसर्ग + व = र + व = र्व | आशीः + वाद | आशीर्वाद |
विसर्ग + ल = र + ल = र्ल | निः + लज्ज | निर्लज्ज |
विसर्ग + ल = र + ल = र्ल | निः + लोभ | निर्लोभ |
विसर्ग + ल = र + ल = र्ल | निः + लिप्त | निर्लिप्त |
विसर्ग + म = र + म = र्म | बहिः + मुख | बहिर्मुख |
3. विसर्ग का नियम – विसर्ग के बाद यदि च, छ, हो तो विसर्ग का श हो जाता है
जैसे –
विसर्ग + श = श्च | निः + चल | निश्चल |
“ | निः + चय | निश्चय |
“ | निः + चिंत | निश्चिंत |
“ | दुः + चरित्र | दुश्चरित्र |
“ | दुः + चक्र | दुष्चक्र |
विसर्ग + छ = च्छ | निः + छल | निश्चल |
4 विसर्ग का नियम – विसर्ग के पहले इ, उ हो तो विसर्ग का मेल क ख ट ठ प या फ से हो तो विसर्ग का ष रूप में परिवर्तन हो जाता है जैसे –
विसर्ग + च = श्च | निः + चल | निश्चल |
“ | निः + चय | निश्चय |
विसर्ग + क = ष्क | दुः + कर्म | दुष्कर्म |
“ | दुः + क्र | दुष्कर |
“ | निः + कपट | निष्कपट |
“ | निः + कंटक | निष्कंटक |
“ | निः + कलंक | निष्कलंक |
विसर्ग + ट = ष्ट | धनुः + टंकार | धनुष्टंकार |
विसर्ग + ठ = ष्ठ | निः + ठुर | निष्ठुर |
विसर्ग + प् = ष्प | निः + प्राण | निष्ठान |
“ | निः + पाप | निष्पाप |
“ | चतुः + पाद | चतुष्पाद |
“ | दुः + परिणाम | दुष्परिणाम |
विसर्ग + फ् = ष्फ | निः + फल | निष्फल |
5 विसर्ग का नियम – विसर्ग के बाद यदि त, थ हो तो विसर्ग ‘स’ हो जाता है
जैसे –
दुः + तर | दुस्तर |
मनः + ताप | मनस्ताप |
निः + तेज | निस्तेज |
नमः + ते | नमस्ते |
मनः + थल | मनस्थल |
6 विसर्ग का नियम – विसर्ग के बाद श ष स हो तो विस्तार के बाद आने वाले व्यंजन का दिवत्व हो जाता है और विसर्ग का लोप हो जाता है जैसे –
दुः + शासन | दुशासन |
दुः + साहस | दुस्साहस |
निः + संग | निस्संग |
दुः + सह | दुस्सह |
निः + संतान | निस्संतान |
निः + संदेह | निस्संदेह |
7 विसर्ग का नियम – विसर्ग से पहले अ अथवा आ होत और विसर्ग के बाद कोई भी स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है
जैसे
- अतः + एव अतएव
8 विसर्ग का नियम – पूर्व स्वर दीर्घ और विसर्ग का लोप – यदि विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है और विसर्ग से पूर्व स्वर दीर्घ हो जाता है जैसे –
निः + रोग | निरोग |
निः + रव | नीरव |
निः + रज | नीरज |
निः + रस | नीरज |
9 विसर्ग में परिवर्तन ना होना यदि विसर्ग के पूर्व अ और बाद में क या प हो तो विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता जैसे –
- प्रातः + काल = प्रातः काल
- अंतः + करण = अंतः करण
हिंदी व्याकरण की कुछ विशेष संधि
हिंदी भाषा अन्य भाषाओं से विशेष है, इसकी अपनी कुछ विशेषताएं हैं जिसके कारण इसकी अलग पहचान है। हिंदी भाषा में तद्भव, तत्सम जैसे शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है। जिनका संबंध संस्कृत भाषा से होता है।
इनके संबंध में कुछ विशेष नियम लागू होते हैं जिन्हें हम महाप्राणीकरण या अल्पप्राणीकरण आदि के नाम से जानते हैं –
1 महाप्राणीकरण – शब्द के अंत में यदि अल्पप्राण ध्वनि के आगे ध्वनि ‘ह’ हो तो अल्पप्राण ध्वनि महाप्राण ध्वनि हो जाती है
जैसे –
- तब + ही = तभी
- जब + ही = जभी
- कब + ही = कभी
- सब + ही = सभी
2 अल्पप्राणीकरण – कभी-कभी पहले शब्द के अंत में आने वाले महाप्राण ध्वनि अल्पप्राणीकरण हो जाता है
जैसे –
- ताख़ + पर = ताक पर
- दूध वाला = दूद वाला
3 लोप – विशेष परिस्थितियों में शब्दों के संधि से उनके बीच एक का लोप हो जाता है
जैसे –
- यहां + ही = यहीं
- वहां + ही = वहीं
- कहां + ही = कहीं
- यह + ही = यही
- वह + ही = वही
- इस + ही = इसी
- उस + ही = उसी
4 दो स्वरों के पास पास आने से ‘य’ वर्ण आ जाता है तथा दीर्घ स्वर का ह्रस्वीकरण हो जाता है
जैसे –
- मुनि + ओं = मुनियों
- कवि + ओं = कवियों
- नदी + ओं = नदियों
- नारी + ओं = नारियों
- दवाई + ओं = दवाइयों
- लड़की + ओं = लड़कियों
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निष्कर्ष
हिंदी व्याकरण अपने में विशिष्ट स्थान रखता है, यह अन्य भाषाओं के व्याकरण से काफी अलग है। यहां उच्चारण तथा मात्राओं के शुद्धता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। जब उसका विघटन किया जाता है या खंड खंड में बांटा जाता है तब भी उसके मात्राओं को महत्व दिया जाता है।
उपरोक्त लेख में हमने उन सभी विशिष्ट महत्व का संधि के रूप में अध्ययन किया। इसके अंतर्गत हमने स्वर, व्यंजन, विसर्ग संधि आदि के बारे में विस्तृत रूप से उदाहरण सहित समझने का प्रयत्न किया है। इस लेख को हमने सरल बनाने के लिए विद्यार्थियों के कठिनाई स्तर की पहचान की थी। आशा है यह लेख आपको पसंद आया हो आपके ज्ञान की वृद्धि हो सकी हो। संबंधित विषय से प्रश्न पूछने के लिए कमेंट बॉक्स में लिखें हम आपके प्रश्नों के उत्तर तत्काल देंगे।
(यहां कंप्यूटर कृत भाषा का प्रयोग किया गया है, उपरोक्त लेख में सुक्ष्म मात्राओं की गलती हो सकती है। आप उन्हें चिन्हित कर हमें कमेंट बॉक्स में बताएं हम उन्हें तत्काल दूर करने का अवश्य ही प्रयत्न करेंगे।)