शब्द शक्ति ( अभिधा, लक्षणा, व्यंजना ) का सम्पूर्ण ज्ञान

इस लेख में आप शब्द शक्ति का विस्तृत रूप से अध्ययन करेंगे। यह लेख आपके सभी प्रकार की परीक्षाओं के लिए कारगर है।

किसी शब्द का अर्थ या प्रभाव उस शब्द की शक्ति कहीं जाती है। हिंदी व्याकरण में इसका विशेष महत्व है। हिंदी व्याकरण के अंतर्गत अभिधा, लक्षणा, व्यंजना, तीन प्रकार की शब्द शक्तियां है। इनके प्रयोग से शब्दों का प्रभाव बदल जाता है।

इस विषय को सरल तथा समझ के अनुकूल बनाने के लिए हमने विद्यार्थियों के कठिनाई स्तर की पहचान की है।

शब्द शक्ति की परिभाषा

किसी शब्द का अर्थ उसकी शक्ति से ही ज्ञात होता है। शब्द का अर्थ तीन प्रकार से ज्ञात होता है। अतः शब्द शक्ति की तीन शक्तियां है १ अभिधा २ लक्षणा ३ व्यंजना। 

अभिधा शब्द शक्ति

शब्द की जिस शक्ति से उसके जगह प्रचलित अर्थ का बोध होता है, उसे अभिधा शक्ति कहते हैं।  अभिधा शक्ति से प्राप्त अर्थ को अभिधार्थ या वाच्यार्थ कहते हैं। शब्दकोश ने वाच्यार्थ पर ही दिया होता है।

जैसे – शेर एक प्राणी विशेष के लिए प्रयुक्त शब्द है जिसका अर्थ रूढ है शेर।

शब्द सुनते ही हमारा ध्यान जंगल के एक विशाल शक्तिशाली पशु की ओर जाता है, जो पशुओं का राजा होता है तथा जिसके सिर पर केशर है तथा जो बिल्ली की जाति का एक पशु है।

लक्षणा शब्द शक्ति

जब वाक्य में प्रयुक्त शब्द के अभिधा शक्ति से अर्थ ग्रहण करने में बाधा पड़ती है, तब अधिकार से संबंधित दूसरा अर्थ जिसे शब्द शक्ति से ग्रहण किया जाता है उसे लक्षणा  कहते हैं। इससे प्राप्त अर्थ को लक्ष्यार्थ कहा जाता है।

रमा तो गाय है इस वाक्य में अभिधा शक्ति से गाय का अर्थ ग्रहण करने में बाधा पड़ रही है।

गाय शब्द का वाक्य एक पशु विशेष है, जो दूध देती है।  परंतु रमा तो गाय नहीं है, एक लड़की या युवती है।

यहां लक्षणा शक्ति आगे आती है और अर्थ होता है रमा बहुत भोली भाली है।

भोली – भाली कहने से वाक्य में वह बात नहीं आ पाती जो गाय शब्द से आई है।

भोलापन गाय का एक गुण है। इस प्रकार लक्ष्यार्थ, वाच्यार्थ से संबंधित होता है उससे पूरी तरह अलग नहीं होता।

इसी प्रकार जब अत्यधिक मूर्ख व्यक्ति के लिए गधा शब्द प्रयुक्त किया जाता है, तो वहां भी यह लक्षणा शक्ति होती है।

व्यंजना शब्द शक्ति

जहां शब्द का अर्थ ना तो अभिधा से निकलता है, और ना ही लक्ष्णा से।  अर्थात दोनों ही शब्द शक्तियां जहां अर्थ स्पष्ट करने में चुप रह जाती है। वहां तीसरी शक्ति आगे बढ़ती है और उस तीसरी व्यंजना शक्ति से अर्थ का बोध ग्रहण होता है।

व्यंजना से प्राप्त अर्थ को व्यंजनार्थ या व्यंग्यार्थ कहते हैं।

कविता में प्रायः व्यंजना का अधिक प्रयोग किया जाता है।

अभिधा और लक्षणा का संबंध केवल शब्दों से होता है। परंतु व्यंजना शब्द पर ही नहीं अर्थ और परिस्थिति पर भी आधारित होती है। उदाहरण सवेरा हो गया है इस वाक्य का विभिन्न व्यक्तियों के लिए पृथक – पृथक अर्थ होगा। पुजारी के लिए इसका अर्थ पूजा का समय हो गया है , किसान के लिए खेत पर जाने का समय हो गया है।

व्यंजना विशिष्ट के अर्थ का बोध कराती है, साहित्य में व्यंजना प्रधान काव्य को श्रेष्ठ माना जाता है।

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निष्कर्ष

शब्द शक्ति किसी भी शब्द के वास्तविक रूप को प्रकट करने का सामर्थ्य रखती है। इसके माध्यम से शब्दों की बारीकियों का प्रयोग किया जाता है। अपने भावों को प्रकट करने के लिए व्यक्ति शब्दों का प्रयोग करता है उन्हें और अधिक प्रभावी बनाने के लिए इसका प्रयोग करता है।

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