उत्प्रेक्षा अलंकार ( परिभाषा, भेद, उदाहरण ) Utpreksha alankar

इस लेख में उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा, भेद, उदाहरण, पहचान कैसे करें, प्रश् उत्तर आदि विस्तृत रूप से अध्ययन करेंगे।

साथ ही उत्प्रेक्षा अलंकार तथा अन्य अलंकारों के समानता तथा भेद पर भी विस्तार से जानकारी हासिल करेंगे। लेख के अध्ययन से आप सभी प्रकार के हिंदी परीक्षा की तैयारी कर सकते हैं। इस लेख का प्रयोग विद्यालय, विश्वविद्यालय तथा प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए किया जा सकता है।

अलंकार का प्रमुख कार्य काव्य की शोभा को बढ़ाना होता है ,साथ ही यह काव्य में प्रस्तुत होकर चमत्कार उत्पन्न करते हैं। अर्थात काव्य को रोचक,आकर्षक बनाने का कार्य करते हैं।

मुख्य रूप से दो प्रकार के अलंकार माने गए हैं

१ शब्दालंकार

२ अर्थालंकार।

शब्दालंकार के अंतर्गत प्रमुख तीन अलंकार है।

अर्थालंकार के अंतर्गत लगभग दस प्रमुख अलंकार माने गए हैं, जिनमें से उत्प्रेक्षा अलंकार एक है।

उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा

जहां रूप,गुण आदि की समानता के कारण उपमेय में उपमान की कल्पना या संभावना मानी जाती हो,वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

उदाहरण के लिए

कहते हुए यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए

हीम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए। ।

यहां पंक्ति में नेत्र के जल अर्थात आंसुओं को हीम कणों अर्थात बर्फ के समान माना है,जिससे कमल के फूल धूल कर नए हो जाते हैं उसी प्रकार आंसुओं से धूल कर आंख नये प्रतीत हो रहे है।

इस अलंकार की पहचान :- मानो, मनो, ज्यों, जनु आदि शब्दों से किया जाता है।

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उत्प्रेक्षा अलंकार के उदहारण

उदहारण  व्याख्या 
1. उस वक्त मारे क्रोध के तनु कांपने उनका लगा। मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा । क्रोध के वशीभूत शरीर इस प्रकार थर थर कांपने लगा जैसे हवा के पहले से सागर में ऊंची ऊंची लहरें उठती है। जैसे सागर कांपता हुआ प्रतीत होता है ठीक उसी प्रकार शरीर कांप रहा है।
2. पाहुन ज्यों आए हो गांव में ,शहर के। मेघ आए बड़े बन ठन के संवर के। गांव में मेघों का आना वह भी घनघोर विकराल रूप धारण करके जैसे गांव में कोई शहर का मेहमान आया हो। उसी प्रकार मेघ सज संवर कर आए हैं।
3. सोहत ओढ़े पीत पट स्याम सलोने गात। मनहूं नीलमनि सैल पर आपत परयौ प्रभात। इस वाक्य में श्री कृष्ण के पीले वस्त्र की ओर संकेत किया गया है,जिसे उन्होंने पहना हुआ है। उसपर सुबह की किरणें इस प्रकार पड़ रही है जैसे नीलमणि पत्थर पर पढ़ती हो, उसका आकर्षण कृष्ण में देखा जा सकता है।
4. ले चला साथ मैं तुझे कनक। ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण झनक।
5. नील परिधान बीच सुकुमार, खुल रहा मृदुल अधखुला अंग।  खिला हो ज्यों बिजली का फूल , मेघ बन बीच गुलाबी रंग। नीले कपड़ों के बीच सुकुमार इस प्रकार प्रतीत हो रहा है जैसे बिजली के चमकने से गुलाबी रंग की आकृति दिखती हो।  यह आकृति फूल के समान प्रतीत होती है।

ऐसा ही सुकुमार दिख रहा है।

6. कहते हुए यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए ,हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए। प्रस्तुत पंक्ति में उत्तरा के नेत्र से बहने वाले आंसुओं को हिम के कण समान माना है,जो कमल के फूलों पर पड़कर उन्हें धो देता है। अर्थात नवीन बना देता है ,उसी प्रकार उत्तरा के नेत्र नवीन प्रतीत हो रहे हैं।

अन्य उदाहरण

7. फुले है कुमुद फूली मालती सघन बन ,फूली रहे तारे मानो अगनित है।

8. भोर का नभ राख से लिपा हुआ चौका बहुत काली सिल,

जरा से लाल केसर से कि जैसे धूल गई हो।

सुबह के समय आसमान का रंग राख से लिपा हुआ रसोईघर प्रतीत होता है ,जिसमें काला सिलबट्टा नजर आ रहा है। लाल केसर अर्थात सूर्य की पहली किरणों से ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे सारी रसोई धूल गई हो।

9. सिर फट गया उसका वहीं मानो अरुण रंग का घड़ा।

सिर फटने के कारण उसमें से निकलने वाले रक्त की धारा इस प्रकार प्रतीत हो रही है जैसे घड़े से अरुण अर्थात सूर्य के समान लाल रक्त निकल रहा हो ,यह सिर घड़े के समान प्रतीत हो रहा है।

10. मधुर बचन कहि-कहि परितोषीं। जनु कुमुदिनी पोषीं।

11. भई मुदित सब ग्राम बधूटीं। रंकन्ह राय रासि जनु लूटी।

12. पद्मावती सब सखी बुलाई मनु फुलवारी सबै चली आई।

पद्मावती के द्वारा सखी को बुलाए जाने से ऐसा प्रतीत हो रहा है की फुलवारी में उसकी सभी सखियां उपस्थित हो।

13. मानौ भीत जानि महासीत तें पसारि पानि मानो ,छतियाँ की छाँह राख्यौ पावक छिपाय के

14. काँपा कोमलता पर सस्वर ज्यों मालकोश नव वीणा पर।

कांपता हुआ कोमल स्वर ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे मालकोश राग पर आधारित कोई राग वीणा के साथ संगत कर रहा है।

15. मानहु बिधि तन-अच्छछबि स्वच्छ राखीबं काज दृग-पग पोंछन कौं करे भूषन पायंदाज।

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निष्कर्ष –

उत्प्रेक्षा अलंकार का उपरोक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि इन अलंकारों की पहचान मानो,मनु,ज्यों,मनहुँ,जनु आदि शब्दों से की जाती है। इसके अंतर्गत व्यक्ति वस्तु या प्राणी में अत्यंत समानता देखी जाती है।

अर्थात भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

उपरोक्त परिभाषा,उदाहरण आदि से हमने विस्तृत रूप से समझाने का भी प्रयास किया है।

फिर भी संबंधित विषय से आपके मन में प्रश्न हो तो,आप हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर पूछ सकते हैं।

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