मशहूर व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई जी की यह कहानी टॉर्च बेचने वाला बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। किस प्रकार भय से व्यापार किया जा सकता है उसको इस कहानी के माध्यम से उजागर किया है। मशहूर व्यंग्यकार सादत अली मंटो का कहना था व्यंग्यकार कोई ईट – पत्थर से नहीं बल्कि सलीके से मारता है। उसके शब्दों की चोट इतनी भीतरी होती है की चोट का एहसास लंबे समय तक रहता है। हरिशंकर परसाई ने इस लेख में ऐसा ही कुछ व्यंग्य प्रस्तुत किया है जो आज के समाज में भी चरितार्थ है।
इस लेख में टॉर्च बेचने वाले कहानी का सार , व्याख्या तथा महत्वपूर्ण प्रश्नों का अभ्यास मिलेगा , जो परीक्षा में अधिकतम अंक दिलाने में सहयोग कर सकता है।
टॉर्च बेचने वाला – हरिशंकर परसाई
टॉर्च बेचने वाला हरिशंकर परसाई की कालजई रचना है। आज भी इसकी वास्तविकता से इनकार नहीं किया जा सकता है। इस कहानी का मर्म समाज पर आधारित है। समाज में फैले अंधविश्वासों की ओर व्यंग्यकार का इशारा है जिसका फायदा पाखंडी लोग उठाते हैं। धर्म के ठेकेदार , धर्म का व्यापार करने से नहीं चूकते , धर्म का भय दिखाकर वह अपना व्यापार करते हैं और खूब धन – दौलत कमाते हैं। एक डरा हुआ व्यक्ति तथा समस्याओं से घिरा हुआ व्यक्ति इन जैसे पाखंडीयों के झांसे में आ जाता है। और उनके व्यापार का आधार बन जाता है। दो मुख्य कहानी के आधार पर हरिशंकर परसाई ने टॉर्च बेचने वाला कहानी को चरितार्थ करके दिखाया है।
हरिशंकर परसाई का संक्षिप्त जीवन परिचय
विधा – व्यंग्य विधा
रचनाकार – हरिशंकर परसाई
जन्म – 1922
मृत्यु – 1995
प्रमुख रचनाएं –
कहानी संग्रह –
- ‘हंसते हैं रोते हैं’ ,
- ‘जैसे उनके दिन फिरे’
उपन्यास –
- ‘रानी नागफनी की कहानी’ ,
- ‘तट की खोज’
निबंध संग्रह –
- ‘भूत के पांव पीछे’ ,
- ‘पगडंडियों का जमाना’ ,
- ‘सदाचार का ताबीज’ ,
- ‘शिकायत मुझे भी है’ ,
- ‘और अंत में’
व्यंग्य लेखन संग्रह –
- ‘वैष्णव की फिसलन’ ,
- ‘तिरछी रेखाएं’ ,
- ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’ ,
- ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’
भाषा शैली की विशेषताएं –
- सरल और सुबोध भाषा शैली
- तत्सम शब्दों का सटीक प्रयोग
- मुहावरों का प्रयोग
- भाषा शैली व्यंग्यपूर्ण , संवादात्मक , उपदेशात्मक।
टॉर्च बेचने वाला – पाठ परिचय
परसाई जी ने टॉर्च बेचने वाले दो मित्रों के माध्यम से समाज में घटित अंधविश्वास रूढ़ियों पर कुठाराघात करने के लिए अपने सशक्त हास्य और व्यंग्य के माध्यम से समाज पर तीव्र प्रहार किया है। दो मित्रों में से एक टॉर्च बेचते बेचते प्रवचन कर्ता बन जाता है , तो दूसरा संतों की वेशभूषा में भोली जनता की आत्मा और अंधेरे को दूर करने की बात करता है। आत्मा के उजाले के लिए लोगों को संसार का घना अंधकार दिखाकर भय पैदा कर देता है। इस प्रकार रचना के माध्यम से समाज में व्याप्त अंधविश्वास और तथाकथित धर्माचार्य पाखंडीयों पर कड़ा प्रहार किया है।
लेखक बहुत दिनों बाद एक दाढ़ी बढ़ाए लंबा कुर्ता पहने हुए उस व्यक्ति से मिला जो पहले चौराहे पर सूरज छाप टॉर्च बेचा करता था। बदली हुई वेशभूषा का कारण पूछने पर उसने बताया कि जीवन में कुछ ऐसा घटित हुआ कि उसने टॉर्च बेचने का काम छोड़ दिया। इसके बाद वह लेखक को उस घटना के विषय में बताता है। पांच साल पहले वह और उसका दोस्त निराश बैठे थे , उसने सामने एक प्रश्न था पैसा कैसे पैदा करें ? इस सवाल के हल के लिए अपनी किस्मत आजमाने के लिए अलग-अलग दिशाओं में दोनों मित्र निकल पड़े , इस वादे के साथ की पांच साल बाद इसी स्थान पर मिलते हैं।
इन पांच वर्षों के दौरान
पहला मित्र टॉर्च बेचने का धंधा करने लगा। वह चौराहे पर या मैदान में लोगों को इकट्ठा कर लेता तथा अंधेरे का डर बड़े ही नाटकीय अंदाज से दिखाता कि उसकी सारी टॉर्च हाथों हाथ बिक जाती , उसका धंधा खूब चल रहा था।
वायदे के मुताबिक पांच साल बाद वह निश्चित स्थान पर पहुंचा , परंतु उसका मित्र वहां नहीं मिला , वह उसे ढूंढने निकल पड़ा। उस शाम उसे एक मैदान में मंच पर सुंदर रेशमी वस्त्रों से सजी एक भव्य पुरुष दिखाई दिया। हजारों लोग श्रद्धा से सिर गुरु गंभीर वाणी में तन्मय होकर सुन रहे थे। वह व्यक्ति प्रवचन दे रहा था – ‘मैं आज मनुष्य को घने अंधकार में देख रहा हूं , आज आत्मा में भी अंधकार है।
मनुष्य की आत्मा भय पीड़ा से त्रस्त है। आज मनुष्य इस अंधकार से घबरा उठा है , डरो मत जहां अंधकार है वही प्रकाश है। प्रकाश को बाहर नहीं अंदर में खोजो। ‘ इस प्रकार वह लोगों को पहले डराते हैं फिर तुरंत उसे अपने साधना मंदिर में बुलाकर अंतर ज्योति जलाने का आह्वान करते हैं। लोग तन्मय होकर संत की बातें सुन रहे थे पर उसकी हंसी छूट रही थी।
तभी उसने देखा कि
भव्य पुरुष मंच से उतरकर कार में बैठने जा रहा था , उसने तो उस भव्य पुरुष को नहीं पहचाना पर भव्य पुरुष ने उसे पहचान कर कार में बिठा लिया। संत की वेशभूषा में यह उसका मित्र ही था।
बंगले के वैभव को देखकर वह हैरान हो गया था।
फिर दोनों मित्रों में खुलकर बातचीत हुई।
उस संत ने अपने मित्र से पूछा कि उसने इतनी दौलत कैसे पाई ?
क्या वह भी टॉर्च बेचता है ?
फिर वह कहता है कि उन दोनों के प्रवचन एक जैसे ही हैं।
वह भी लोगों को अंधेरे का डर दिखाकर टॉर्च बेचता है , तथा संत बना मित्र भी लोगों को डर दिखाकर टॉर्च बेचता है। दोनों लोगों के जीवन में प्रकाश लाने का वादा करते हैं , पर दूसरे मित्र की टॉर्च किसी कंपनी की बनाई हुई नहीं , वह बहुत सूक्ष्म है , मगर उसकी कीमत बहुत अधिक मिल जाती है।
मित्र का सारा रहस्य समझ में आ गया।
पहला मित्र संत के साथ दो दिन तक रहा , अब उसने निर्णय लिया कि नया धंधा शुरू करूंगा। वह टोर्च की पेटी नदी में फेंक देता है , दाढ़ी बढ़ाकर लंबा कुर्ता पहन लेता है। वह लेखक को बताता है कि पहले वह लोगों को बाहर ही अंधकार से डराता है , फिर लोगों को आत्मा के प्रकाश फैलाने की बात कहकर उन्हें आसानी से ढक लेता है। इस प्रकार दोनों मित्र इस ठगी के धंधे में अंधेरे को दूर करने की बात करते हैं बस फर्क सिर्फ बाहर के अंधेरे और अंदर के अंधेरे का ही है।
टॉर्च बेचने वाला – सप्रसंग व्याख्या
” मगर यह बताओ ………………………. भीतर आत्मा में कैसे घुसा।
प्रसंग –
प्रस्तुत गद्यांश प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य लेख टॉर्च बेचने वाले से अवतरित है। इसमें लेखक ने टॉर्च बेचने वाले दो मित्रों के माध्यम से बताया है कि किस प्रकार अपने-अपने तरीके से वह दोनों भोली-भाली जनता को बेवकूफ बनाते हैं।
व्याख्या –
जब लेखक उस व्यक्ति को नए रूप में देखता है तो वह उसके रूप परिवर्तन पर अनेक आशंकाएं जताते हुए प्रश्न करता है। लेखक उससे दाढ़ी रखने और लंबा कुर्ता पहनने का कारण जानना चाहता है। उसे लगता है कि कहीं उसे उसकी बीवी ने तो नहीं त्याग दिया या यह भी हो सकता है कि उसे उधार मिलना बंद हो गया हो।
उसे साहूकार कर्ज चुकाने के लिए तंग करते हो या किसी चोरी के मामले में फस गया हो।
यह सभी कारण व्यक्ति को साधु सन्यासी का रूप धारण करने को मजबूर करते हैं।
वह टोर्च बेचकर लोगों के जीवन में प्रकाश भरने का दावा करता है।
अब वह जानना चाहता है कि आखिर बाहर का टॉर्च भीतर उसकी आत्मा में कैसे घुस गया।
क्योंकि अब वह आत्मा के प्रकाश की बातें करने लगता है। व्यंग्यार्थ यह है कि बाहरी आदमी दुनिया के प्रपंच से तंग आकर , आंतरिक ज्ञान और प्रकाश की बातें करने लगता है।
विशेष –
- व्यंग्यात्मक भाषा शैली का प्रयोग
- तत्सम शब्दों का प्रयोग
- प्रश्नात्मक शैली अपनाई गई है
- संवाद शैली , रोचकता।
महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर ( टॉर्च बेचने वाला )
प्रश्न – भव्य पुरुष ने कहा – ‘जहां अंधकार है , वही प्रकाश है ‘। इसका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – इसका तात्पर्य है कि अंधेरे को चीरने के लिए प्रकाश की आवश्यकता होती है। अंधेरे और प्रकाश का गहरा संबंध है , अंधेरे से ही प्रकाश निकलता है , तभी अंधकार मिटता है। भव्य पुरुष हृदय के अंधकार की बात कर रहा है , इसी हृदय से प्रकाश की किरणें फूटती है।अंधकार में प्रकाश की किरणें होती है , तो प्रकाश में अंधकार की थोड़ी कालीमा भी होती है। प्रकाश को अंदर में खोजना पड़ता है।
प्रश्न – भीतर के अँधेरे की टॉर्च बेचने और सूरज छाप बेचने के धंधे में क्या फर्क है ?
उत्तर – इस पाठ में दो प्रकार के अंधेरों का जिक्र किया गया है , बाहरी अंधकार और भीतरी अंधकार। कुछ लोग साधु संत का रूप धारण कर हृदय के अंधकार को मिटाने का उपाय बताते हैं , यही उपाय भीतर के अंधकार की टॉर्च है। और इसी प्रकार लोगों की भावनाओं का शोषण करते हैं। मात्र धन प्राप्ति ही ऐसे लोगों का एक मात्र उद्देश्य होता है। सूरज छाप टॉर्च बेचने वाले बाहर के अंधेरे का डर दिखाकर लोगों को भयभीत करते हैं उनके सामने तरह तरह की दुर्घटनाओं की आशंका जताते हैं फिर प्रकाश के नाम पर टॉर्च बेचते हैं।
प्रश्न – लेखक ने टॉर्च बेचने वाली कंपनी का नाम ‘सूरज छाप’ ही क्यों रखा ?
उत्तर – टॉर्च तथा सूरज दोनों प्रकाश का प्रतीक है। लेखक ने टॉर्च बेचने वाली कंपनी का नाम सूरज छाप इसलिए रखा क्योंकि टॉर्च अंधेरा दूर करने का कार्य करता है और उसका व्यापार अंधेरे का भय दिखाकर ही होता है। पहले वह अंधेरे का दृश्य दर्शकों के सामने उपस्थित करता है , जिसमें भय का संचार होता है।
दूसरा विषय यह भी है कि पहले वह टॉर्च भी इसी नाम से बेचा करता था।
प्रश्न – पांच साल बाद दोनों दोस्तों की मुलाकात किन परिस्थितियों में और कहां होती है ?
उत्तर – दोनों दोस्तों ने व्यापार आरंभ करने से पूर्व पांच साल के उपरांत तय समय और जगह पर आकर मिलने की शर्त रखी थी। टॉर्च बेचने वाला व्यक्ति सूरज छाप नाम से टॉर्च बेचा करता था , उसका धंधा काफी अच्छा चल रहा था। पांच साल होने के बाद तय किए हुए स्थान पर जब दूसरा दोस्त नहीं मिला तो उसकी खोज में वह निकल पड़ा। एक खुले विशाल मैदान में धर्म का उपदेश चल रहा था , मंच पर एक भव्य पुरुष बैठा था उसके आगे हजारों की भीड़ श्रद्धा और आस्था के साथ प्रवचन का लाभ ले रही थी। कुछ घटनाक्रम के उपरांत दोनों की मुलाकात होती है। जब धर्म उपदेशक मंच से नीचे उतरता है , तो वह अपने मित्र को पहचान लेता है।
उसे इशारे से गाड़ी में बैठने के लिए कहता है और अपने घर ले जाता है।
वहां मित्र की खोज में निकले व्यक्ति को पता चलता है कि वह उसका ही वास्तविक मित्र है।
दोनों की मुलाकात होती है।
प्रश्न – सवाल के पांव जमीन में गहरे गड़े हैं। यह खड़ेगा नहीं। इस कथन में मनुष्य की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत है और क्यों ?
उत्तर – सवाल के पांव जमीन में गड़े हैं , यह उखड़ेगा नहीं। व्यक्ति में सदैव यथाशीघ्र सब कुछ प्राप्त करने की ललक होती है। वह बिना संघर्ष किए सब कुछ प्राप्त करना चाहता है। जबकि कड़े संघर्ष करके सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए साधना की आवश्यकता होती है जो व्यक्ति के पास नहीं होता है।
इसी पर व्यंग्य करते हुए लेखक ने कहा है यह उखड़ेगा नहीं।
प्रश्न – व्यंग्य विधा में भाषा सबसे धारदार है , परसाई जी की इस रचना को आधार बनाकर इस कथन के पक्ष में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर – व्यंग्य विधा सभी साहित्य में कारगर मानी गई है , क्योंकि व्यंग्य के द्वारा मूल भाव पर चोट किया जाता है। सहादत अली मांटो का मानना है कि व्यंग्यकार लाठी-डंडे , ईट पत्थर से नहीं बल्कि शब्दों के मार मारता है और वह भी सलीके से। परसाई जी मुख्य रूप से व्यंग्यकार थे उनके साहित्य में व्यंग्य की धार बेहद पैनी नजर आती है। चाहे वह भोलाराम का जीव जैसा साहित्य ही क्यों ना हो।
टॉर्च बेचने वाला कहानी के आधार पर निम्नलिखित व्यंग्यात्मक भाव स्पष्ट होता है –
- तुम शायद सन्यास ले लो जिसकी आत्मा में प्रकाश फैल जाता है वह इसी तरह हरामखोरी पर उतर आता है
- हम दोनों ने उस सवाल की एक एक टांग पकड़ी और उसे हटाने की कोशिश करने लगे
- मैं देख रहा हूं मनुष्य की आत्मा भय और पीड़ा से त्रस्त है
- चाहे कोई दार्शनिक बने संत बने साधु बने अगर वह लोगों को अंधेरे का डर दिखाता है तो अपनी अपनी कंपनी का टॉर्च बेचना चाहता है
- धंधा वही करूंगा यानी टोर्च भेजूंगा बस कंपनी बदल रहा हूं इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि परसाई जी ने व्यंग्यात्मक भाषा का संस्था पूर्वक प्रयोग किया है।
प्रश्न – आजकल सब जगह अंधेरा छाया रहता है , रातें बेहद काली होती है , अपना ही हाथ नहीं सूझता।
उत्तर – टॉर्च बेचने वाला व्यक्ति लोगों को अंधेरे का भयानक चित्र दिखाते हुए अपनी टॉर्च बेचना चाहता है। अंधकार में अपराध होते हैं , व्यक्ति को कुछ नहीं सूझता , अंधेरे का डर दिखाकर टॉर्च बेचने वाले रणनीति के तहत कार्य करते हैं।
प्रश्न – प्रकाश बाहर नहीं है उसे अंदर में खोजो , अंदर में बुझी हुई ज्योति को जगाओ।
उत्तर – शरीर बाती है और मन ज्योति , मनुष्य के भीतर आत्मप्रकाश नहीं रहा उसकी ज्योति बुझ गई है। ज्ञान रूपी प्रकाश द्वारा ही अज्ञान रूपी आत्मा के अंधकार को दूर किया जा सकता है। अंधकार को मिटाने का प्रकाश हृदय में ही समाया हुआ है। यहां संत बना व्यक्ति लोगों को धर्म के नाम पर भयभीत कर अपनी शरण में बुलाना चाहता है।
प्रश्न – धंधा वही करूंगा यानी टोर्च बेचूंगा बस कंपनी बदल लूंगा।
उत्तर – टॉर्च बेचने वाला कहता है कि धंधा वही करूंगा अर्थात लोगों को ठग कर पैसा कमा लूंगा।
धर्म का धंधा टॉर्च बेचने के समान ही है , दोनों कंपनी अलग-अलग है।
धर्म के ठेकेदार आस्था को दिखाते हैं इसमें कमाई और सम्मान ज्यादा है।
अभ्यास प्रश्न ( टॉर्च बेचने वाला )
1 प्रश्न – मैंने कहा ………………………….. अंधकार छाया है।
2 प्रश्न – जहां अंहकार है …………………. अपने भीतर जगाओ।
3 प्रश्न – मैं आज …………………………. पीड़ा से ग्रस्त हैं।
4 प्रश्न – लेखक ने ऐसा क्यों कहा कि टॉर्च बेचने वाले को पीड़ा हुई ?
उत्तर – लेखक ने टॉर्च बेचने वाले को हरामखोर कहा। टॉर्च बेचने वाला व्यक्ति लोगों को भय दिखाता है , अंधेरे का दृश्य प्रस्तुत करता है जिसमें सांप या कुछ ऐसी अनहोनी बताता है जिससे खरीदार तुरंत टॉर्च खरीदने के लिए आकर्षित होता है। इस दृश्य को प्रस्तुत करने के लिए वह दार्शनिक बातें करता है , जिस पर लेखक उसे साधु बन जाने के लिए कहता है और बातचीत के दौरान हरामखोर शब्द का प्रयोग करता है।
5 प्रश्न – पाँच साल बाद दोनों मित्रों की मुलाकात किन परिस्थितियों में हुई ?
उत्तर – दोनों मित्र बिछड़ने से पूर्व यह तय करके निकले थे कि पांच साल बाद वह पुनः आकर इसी स्थान पर मिलेंगे। पांच साल बाद टॉर्च बेचने वाला व्यक्ति अपने तय समय और स्थान पर पहुंच गया किंतु दूसरा व्यक्ति वहां नहीं पहुंचा।
उसकी खोज में जब वह निकला वहां बड़े ही नाटकीय ढंग से दूसरे मित्र से मुलाकात हुई।
वहां खुले मैदान में भव्य पांडाल लगा था , भक्तों की भीड़ थी और प्रवचन चल रहा था। जिसमें अंधकार का भय दिखाकर अपना आधिपत्य लोगों के मन पर वक्ता जमा रहा था।
मंच से उतरते हुए उस महात्मा ने अपने मित्र को पहचान लिया और इशारे से गाड़ी में बैठने को कहा।
गाड़ी में बिठा कर वह अपने आलीशान बंगले पर ले जाता है , जहां दोनों दोस्त खूब बातें करते हैं और अपने अपने रोजगार के विषय में चर्चा करते हैं।
6 प्रश्न – “व्यंग्य विधा सबसे धारदार है” परसाई जी की रचना के आधार पर अपने विचार स्पष्ट करो।
उत्तर – माना जाता है व्यंग्य के माध्यम से वह सभी बातें कही जा सकती हैं जो साक्षात कहने पर लड़ाई की संभावना उत्पन्न कर देता है।
व्यंग्य की धार बड़ी पैनी होती है , जो लंबे समय तक असरदार रहती है। यह मार कोई लाठी-डंडे नाईट पत्थर से नहीं बल्कि शब्दों की मार होती है।
जिसमें सामने वाला व्यक्ति लंबे समय तक उलझा रहता है , किंतु इसकी चोट कभी कम नहीं होती।
परसाई जी के संपूर्ण साहित्य में व्यंग्य की धार पहनी है। उन्होंने अपने साहित्य में सामाजिक सरोकार के विषय उठाए हैं
समाज को एक नया लक्ष्य तथा उसे आत्मचिंतन के लिए विवश करता उनका साहित्य दिखता है। भोलाराम का जीव भी इनमें से एक साहित्य है जिसमें सरकारी दफ्तरों और रिश्वतखोरी को बड़े ही व्यंग्यात्मक रूप से व्यक्त किया गया है।
टॉर्च बेचने वाला कहानी के माध्यम से परसाई जी ने उन लोगों पर प्रहार करते हुए समाज को आईना दिखाने का कार्य किया है , जो स्वयं के दुख को दूर करने के लिए दूसरों के पास जाते हैं और अपना धन दौलत लूटा बैठते हैं।
7 प्रश्न – पैसा पैदा करने की लिप्सा में आज मनुष्य ने अध्यात्म को एक व्यापार बना दिया है स्पष्ट करो।
8 प्रश्न – टॉर्च बेचने वाले के रचना प्रयोजन और व्यंग्य को अपने शब्दों में लिखो।
यह भी पढ़ें
गूंगे ( रांगेय राघव ) कक्षा 11
पद्माकर ( जीवन परिचय ) कविता की व्याख्या
Abhivyakti aur madhyam ( class 11 and 12 )
पत्रकारिता लेखन के विभिन्न प्रकार
मेरी राय –
उपरोक्त कहानी को पढ़कर स्पष्ट होता है कि व्यक्ति समस्याओं से घिर जाने के उपरांत अविश्वास और डर के भय से साधु महात्मा के भेष में बैठे हुए पाखंडी ओ के चंगुल में आ जाता है और अपना आर्थिक हानि करवाता है। यह पाखंडी पहले धर्म का लालच देते हैं उसके उपरांत अपना व्यापार आरंभ करते हैं। अन्य धंधा करने में ऐसे पाखंडी और समर्थ होते हैं क्योंकि वहां योग्यता का होना अनिवार्य होता है , जिसमें यह अपरिपक्व होते हैं।
हरिशंकर परसाई ने इस समस्या को नजदीकी से देखा और अपने व्यंग्य के माध्यम से अपनी कहानी में उठाया। आज के समाज में भी इस प्रकार की घटना को देखा जा सकता है। किस प्रकार बड़े-बड़े धार्मिक सम्मेलन का आयोजन किया जाता है चाहे वह किसी भी धर्म के हो। उसमें लोगों को ईश्वर का भय दिखाया जाता है और फिर अपने स्वार्थ की सिद्धि की बात कही जाती है। कुल मिलाकर कहे तो यह धार्मिक सम्मेलन का आयोजन आर्थिक लाभ के उद्देश्य से अधिक किया जाता है।
व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में अपने विवेक और स्वयं पर भरोसा करना चाहिए अन्यथा वह ठगी का शिकार हो सकते हैं। जैसे उपरोक्त कहानी में बताया गया है वह अपना भांति भांति से नुकसान करवाते हैं।