संदेह अलंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण आदि। इस को भ्रांतिमान अलंकार भी कहा जाता है। इस लेख में का विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे और अपनी परीक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति करेंगे।
यह लेख सभी प्रकार की परीक्षाओं के लिए कारगर है। अतः आप अपनी परीक्षा के लिए इस लेख का अध्ययन कर सकते हैं।
संदेह अलंकार
जैसा कि हम जानते हैं अलंकार काव्य के सौंदर्य की वृद्धि करते हैं। अतः इसका मुख्य उद्देश्य काव्य में प्रयुक्त होकर उसके सौंदर्य की वृद्धि करना होता है। जिस प्रकार स्त्री-पुरुष अपने सौंदर्य की वृद्धि के लिए आभूषण पहनते हैं। उसी प्रकार अलंकार का प्रयोग काव्य में सौंदर्य वृद्धि के लिए किया जाता है।
संदेह अलंकार की परिभाषा ( sandeh alankar ki paribhasha )
जहां प्रस्तुत में अप्रस्तुत का संशयपूर्ण वर्णन हो वहां संदेह अलंकार होता है। जहां उपमेय और उपमान में रूप,रंग आदि के साभ्य के कारण समानता हो,इस साम्य के कारण संशयपूर्ण वर्णन हो,वहां संदेह अलंकार होता है।
इस अलंकार का संबंध अर्थालंकार से है।
संदेह अलंकार का उदाहरण ( sandeh alankar ke udaharan )
सारी बिच नारी है कि नारी बिच सारी है।
कि सारी ही की नारी है कि नारी ही की सारी है। ।
इस अंलकार में नारी और साड़ी के विषय में संशय है अतः संदेह या भ्रम उत्पन्न हो रहा है।
अन्य उदहारण –
- प्रेम प्रपंचु कि झूठ फुर जानहिं मुनि रघुराउ। (भरत-राम का प्रेम)
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निष्कर्ष
उपरोक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि संदेह अलंकार को भ्रान्ति अलंकार भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत संदेह की उत्पत्ति होती है ,यह लेख अर्थालंकार के अंतर्गत लिखा गया है। संबंधित विषय से प्रश्न पूछने के लिए कमेंट बॉक्स में लिखें।
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