Jaki Rahi Bhavna Jaisi Meaning in Hindi जाकी रही भावना जैसी

गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने आराध्य प्रभु श्री राम की भक्ति में अपना जीवन समर्पित किया उन्होंने रामायण के माध्यम से प्रभु श्रीराम के चरित्र को उजागर किया उनके मर्यादित व्यवहार को समाज के सामने प्रस्तुत कर सभ्य समाज को शिक्षित करने का प्रयास किया। प्रस्तुत लेख में तुलसीदास जी की प्रभु श्री राम के प्रति भक्ति का एक उदाहरण पढ़ेंगे।

जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी चौपाई

जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत तिन देखी तैसी।

शब्दार्थ- जाकी -जिसकी। भावना-भाव, विचार। प्रभु- श्री राम को कहा गया है। मूरत-मूर्ति। तिन-उनकी (श्री राम जी)

भावार्थ -उपरोक्त प्रसंग श्री रामचरितमानस के बालकांड का से संबंधित है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने सीता दरबार का प्रसंग उकेरते हुए लिखा है। जब गुरु विश्वामित्र जी की धनुष भंग करने की आज्ञा श्रीराम को मिली वह अपने आसन से धनुष की ओर बढ़ने लगे। इस समय उनके अद्भुत अनुपम सौंदर्य को लोगों ने अपने भक्ति भावना तथा दृष्टि से निहारा। जो सिद्ध पुरुष थे उन्होंने राम के रूप में श्री हरि विष्णु के दर्शन किए। किसी ने बालक राम को देखा तो, किसी ने तरुण सौंदर्य संयुक्त राम को। किसी ने वात्सल्य रूप में राम को निहारा तो किसी ने दास के भाव से श्री राम की भक्ति की। इसी मनोरम दृश्य को गोस्वामी तुलसीदास जी ने उपरोक्त पंक्ति के माध्यम से वर्णन करने का प्रयास किया। तुलसीदास जीने लिखा दरबार में उपस्थित सभी लोगों ने श्री राम का दर्शन किया जिसकी जैसी भावना रही उसे प्रभु श्री राम ने उसी रूप में दर्शन दिया।

यहां एक और प्रसंग देखने को मिलता है जो सांगोपांग रूपक अलंकार से सराबोर है – उदित उदयगिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग, विकसे संत सरोज सब हरषै लोचन भृंग अर्थात जिस प्रकार सूर्य का उदय होने पर भवरे तथा फूल आदि खिलते हैं। उसी प्रकार प्रभु श्रीराम के दरबार में उठने से संत तथा नर-नारी ऐसे हर्षित होने लगे जैसे एक कमल की खिलने से भरे हर्षित होते हैं। उस कमल का रसपान करते हैं, ठीक इसी प्रकार संत लोगों ने प्रभु श्री राम के दर्शन कर अपने जन्मो जन्म की तृप्ति को शांत किया।

कबित बिबेक एक नहिं मोरें। kabit vivek ek nahi more tulsidas chaupai

jaki rahi bhavna jaisi arth
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कबीर के दोहे व्याख्या सहित – Kabir ke dohe

Deen Dayal Virad Sambhari Arth Sahit Vyakhya

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समापन

रामायण प्रभु श्री राम के जीवन का महाकाव्य है, यह परिवार चलाने का सबसे उत्तम ग्रंथ माना गया है। परिवार के प्रति किस प्रकार समर्पण का भाव होना चाहिए समाज आदि की शिक्षा रामायण महाकाव्य को पढ़ने के उपरांत मिलती है। इसलिए कहा जाता है राज्यव्यवस्था में रुचि रखने वालों के लिए महाभारत तथा परिवार चलाने के लिए रामायण का अध्ययन करना चाहिए। रामायण में समर्पण त्याग का जो उदाहरण प्रस्तुत किया गया है वह अन्यत्र कहीं और देखने को नहीं मिलता। प्रभु श्री राम ने मर्यादा में रहते हुए जिस प्रकार कार्य किए वह किसी भी मनुष्य को पुरुषों में उत्तम बना सकता है। आशा है आप भी रामायण के गुणों को आत्मसात करेंगे और अपने परिवार तथा समाज के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करेंगे जो आगामी पीढ़ी याद कर सके। आपको उपरोक्त लेख कैसा लगा? अपने सुझाव तथा विचार कमेंट बॉक्स में लिखें।

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