जीवन युद्ध है आराम नहीं पर निबंध लिखिए jeevan yudh hai aram nhi nibandh

निबंध व्याकरण का हिस्सा है, दसवीं कक्षा तक परीक्षा में निबंध लिखने को मिलता है। विद्यार्थी इस विषय के प्रति जानकारी दो रखता है, किंतु उसे लेखन शैली और निबंध लिखने की प्रक्रिया की जानकारी का अभाव होने के कारण वह इस विषय को व्यवस्थित रूप से लिख नहीं पाता जिसके कारण लगभग दस अंक से समझौता करना पड़ता है। इस लेख में आप निबंध लिखने की प्रक्रिया को समझ सकेंगे तथा जीवन युद्ध है, आराम नहीं इस विषय पर निबंध कैसे लिखना है इसको भी समझ सकेंगे।

जीवन युद्ध है आराम नहीं पर निबंध लिखिए

मानव का जीवन संघर्षों से परिपूर्ण है बालक जब तक पेट में रहता है तब तक वह आरामदायक जिंदगी जीता है। वह जैसे ही जन्म लेता है उसका कार्य आरंभ हो जाता है बिना रोए उसकी बातों को कोई समझता नहीं। यहां तक की भूख लगने पर भी रोना पड़ता है। धीरे-धीरे उसे अपने वह सभी काम करने पड़ते हैं जो मानव जीवन के लिए आवश्यक है। एक बेहतर जिंदगी के लिए अपने आप को तैयार करना पड़ता है। शिक्षा, व्यवसाय आदि बेहतर हो सके इसके लिए उसके जीवन में संघर्ष आरंभ हो जाता है। मानव एक ऐसी जीवन प्रक्रिया में बंध जाता है जिसमें उसे समय के साथ-साथ अपने को बदलना पड़ता है।

इसी जीवन में वह बच्चे से तरुण, युवा, वयस्क, प्रौढ़ तथा वृद्ध होता है। इसी जीवन में वह अपनी सांसारिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संघर्ष करता है। विवाह, गृहस्थ जीवन जीता है इस जीवन में वह कभी आराम नहीं कर पाता क्योंकि जहां मानव स्थिर हो जाता है वहां मृत के समान हो जाता है इसलिए मानव जीवन युद्ध है आराम नहीं।

समय का महत्व

व्यक्ति सब कुछ पुनः प्राप्त कर सकता है, किंतु बीता हुआ समय कभी वापस नहीं ला सकता। इसलिए समय के महत्व को समझते हुए उसके अनुरूप कार्य करना चाहिए। जो मनुष्य समय का पालन नहीं करता, उस मनुष्य को निराशा हाथ लगती है। वह कभी अपने कार्य पूर्ण नहीं कर पाता, निराशा और दुख का कारण समय पर कार्य पूर्ण नहीं होने के कारण होती है। जो व्यक्ति समय पर उचित निर्णय लेकर अपने कार्य करता है वह सदैव सुख और सफलता का भागी होता है।

आलस

व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु आलस है आलस के कारण वह अपने कार्य को उचित समय पर नहीं कर पाता, जिसके कारण वह सदैव और असफलता का स्वाद चखता है। जिस व्यक्ति में आलस नहीं होता जो कार्य करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं उन्हें सदैव सफलता प्राप्त होती है। ऐसे व्यक्ति ही इतिहास बनाते हैं, जिनका इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में नाम लिखा जाता है। वीर पुरुष कभी आलस का साथ नहीं करते।

विद्यार्थी जीवन में आलस की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। पुराणों के अनुसार भी विद्यार्थी को आलस से दूर रहना चाहिए और अपने विद्या के कार्य में एकाग्रचित होकर पूरे संयम और निष्ठा पूर्वक विद्या कार्य को पूर्ण करना चाहिए।  वही विद्यार्थी अपने ईक्षा अनुरूप जीवन जी सकता है, सुंदर और सुनहरा अवसर प्राप्त कर सकता है जो आलस का साथ नहीं करता अर्थात आलसी नहीं है

त्याग की भावना

आज का समाज त्याग की भावना को ही त्याग बैठा है, किसी भी व्यक्ति में संयम और त्याग की भावना बची नहीं। आज कोई विरला ही होगा जिसमें त्याग की भावना कूट-कूट कर भरी हो। इस विलासिता भरी जिंदगी में सभी अपनी आवश्यकताओं और अपने इच्छा पूर्ति के लिए संघर्ष करते हैं। लोग अपना हित पहले देखते हैं फिर दूसरों के हित पर ध्यान देते हैं। ऐसे परिस्थिति में त्याग की भावना का लोप होना तो लाजमी है। जिस व्यक्ति में त्याग और समर्पण की भावना होती है, वह परमसुख की अनुभूति करता है। वह किसी भी परिस्थिति में स्वयं को ढाल लेता है। समाज उससे प्रसन्न रहता हैं। त्याग की भावना रखने वाला समाज में आदर का भागी होता है।

विद्यार्थियों में त्याग की भावना होना आवश्यक है क्योंकि इससे वह अपने समाज तथा परिजनों से जुड़ पाता है।

संतोष

जहां संतोष नहीं होता वहां सदैव टकराव और वैमनस्य की स्थिति सदैव बनी रहती है। संतोष के कारण ही व्यक्ति में त्याग तथा विद्या के गुण संभव है। बिना इसके व्यक्ति अधूरा रहता है, जिस व्यक्ति में संतोष उत्पन्न होता है वह कभी अभावग्रस्त जीवन नहीं जीता। वह प्राप्त को ही पर्याप्त समझता है उसी में खुशी-खुशी अपना जीवन निर्वाह करता है। उस व्यक्ति को अधिक धन-संपदा आदि की आवश्यकता नहीं रहती। वह स्वच्छ मन से अपना जीवन जीता है और समाज के लिए अपना समय दे पाता है। ऐसे व्यक्ति अन्य व्यक्तियों से श्रेष्ठ होते हैं, संतोष व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करता है, इसलिए व्यक्ति के भीतर संतोष की भावना अवश्य होनी चाहिए।

उपकार की भावना

भारत की भूमि अनेकों उपकारी महापुरुषों से भरी पड़ी थी। आज भी भारत का नाम दानी और उपकारी व्यक्तियों के नाम से जाना जाता है। आज उपकार की भावना का लोप होना भारत देश में चिंता का विषय है। पहले के पुरुष समाज के लिए अपना जीवन न्योछावर करते थे। आज समय परिवर्तन के साथ व्यक्ति स्वार्थी और लोभी हो गया है। वह सबसे पहले अपना स्वार्थ पूरा करना चाहता है। समाज के लिए तो शायद ही वह कभी सोचता है जिस कारण उसके भीतर कभी उपकार की भावना पनप ही नहीं पाती।

उपकारी पुरुष देव तुल्य हो जाता है वह समाज में पूजनीय होता है, उसका उत्तम चरित्र ही उसे उपकार करने के लिए प्रेरित करता है।

हमें समाज में उत्तम चरित्र का निर्माण करना होगा ताकि व्यक्ति में संतोष त्याग और उपकार की भावना जागृत हो सके। समाज के लिए वह कुछ कार्य कर सके और अपना आदर्श जीवन इस भूमि पर जी सके।

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निष्कर्ष

जीवन संघर्ष का ही दूसरा नाम है, बच्चा जन्म से ही संघर्ष आरंभ कर देता है और यह प्रक्रिया मृत्यु तक चलती है। आजीवन व्यक्ति कभी निश्चिंत नहीं हो पाता, क्योंकि यहां कर्म करना आवश्यक है।  वह कर्म चाहे किसी भी प्रकार का हो , कर्म तो अवश्य करता है। कर्म अच्छा हो या बुरा मगर बिना कर्म किए व्यक्ति रह नहीं सकता।

अपने मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी उसे इस समाज के बीच रहकर संघर्ष करना पड़ता है। अपनी सामाजिक, आर्थिक सुरक्षा के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है।

सामाजिक कार्य हो या पारिवारिक दायित्व इन सभी की पूर्ति के लिए भी वह दिन-रात संघर्ष करता है। जिसके दौरान वह कभी सुख चैन की अनुभूति नहीं कर पाता। वह स्वयं को संघर्षों के बीच महसूस करता है और यह संघर्ष ही मानव जीवन का हिस्सा है। एक कुशल व्यक्ति इन्हीं संघर्षों के बीच सभी कार्य व्यवस्थित रूप से करता है। ईश्वर के द्वारा दिए गए इस जीवन का सुखद आनंद ले पाता है। व्यक्ति को इसी प्रकार का जीवन अपनाना चाहिए जिसमें कार्य करते हुए आनंद के कुछ क्षण स्वयं के लिए निकाल सके।

इसे इनकार नहीं किया जा सकता कि जीवन में संघर्ष नहीं है, संघर्ष है, किंतु उसे आप अपने समय और क्षमता के अनुसार व्यवस्थित कर सकते हैं ताकि ईश्वर प्रदत्त जीवन का सुखद अनुभव लिया जा सके।

आशा है उपरोक्त लेख आपको पसंद आया हो अपने सुझाव तथा विचार कमेंट बॉक्स में लिखें।

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