अन्योक्ति अलंकार की परिभाषा, भेद, और उदाहरण

इस लेख में अन्योक्ति अलंकार की परिभाषा, भेद, और उदाहरण आदि का विस्तृत रूप से अध्ययन करेंगे और अत्यंत सरलता पूर्वक इसे याद करेंगे। यह लेख किसी भी परीक्षा के लिए कारगर है।

जैसा कि विदित है अलंकार काव्य की शोभा को बढ़ाने का कार्य करते हैं ,साथ ही इसमें रोचकता उत्पन्न करने की क्षमता भी होती है।

साधारण शब्दों में कहें तो अलंकार काव्य का आभूषण है।

जिस प्रकार महिलाएं अपने रूप को निखारने के लिए आभूषणों का प्रयोग करती हैं ,ठीक उसी प्रकार काव्य की शोभा को बढ़ाने के लिए अलंकार का प्रयोग किया जाता है।

अलंकार मुख्य रूप से दो प्रकार के हैं 1 शब्दालंकार 2 अर्थालंकार। अन्योक्ति अलंकार का अर्थालंकार से है।

अन्योक्ति अलंकार

जहां अप्रस्तुत का वर्णन कर जब प्रस्तुत का कथन किया जाता है तो वहां अप्रस्तुत प्रशंसा अर्थात अन्योक्ति अलंकार माना जाता है। (अन्योक्ति अलंकार को अप्रस्तुत प्रशंसा भी कहा जाता है।)

नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास इहिं काल 

अली कला ही सो बिध्यों आगे कौन हवाल। ।

यहां प्रस्तुत अर्थ ‘कली’ और ‘भ्रमर’ के वर्णन से प्रस्तुत अर्थ राजा जयसिंह और उनकी नवविवाहिता रानी की प्रतीति कराई गई है। अतः यहां अप्रस्तुत प्रशंसा/अन्योक्ति अलंकार है।

अन्योक्ति अलंकार के उदाहरण

माली आवत देखकर कलियन करे पुकारि।

फूले फुले चुनी लिये कालि हमारी बारि। ।

उपरोक्त पंक्ति में माली के माध्यम से जीवन-मृत्यु के सत्य को उद्घाटित किया गया है। जिसमें समय पूरा होने पर उसे जीवन रूपी बगिया से हटा दिया जाता है। यहां अन्योक्ति अलंकार है।

एक सरि भवन पिआ बिनु रे मोहि रहलो न जाए। ।

 

सखि अनकर दुःख दारुन रे जग के पतिआए। 

 

आनाकानी आरसी निहारिबो करौगे कौलो ? 

 

माली आवत देखकर कलियन करे पुकार में कौन अलंकार है ?

इस पंक्ति में प्रस्तुत प्रशंसा/अन्योक्ति अलंकार है क्योंकि किसी को माध्यम बनाकर अपनी बात कही जा रही है।

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निष्कर्ष

उपरोक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि अप्रस्तुत प्रशंसा अर्थात जो प्रस्तुत नहीं हो उसकी प्रशंसा करने के लिए किसी प्रस्तुत को माध्यम बनाया जाता है वहां अप्रस्तुत प्रशंसा/अन्योक्ति अलंकार होता है।

इस अलंकार का प्रयोग विशेष रूप से छायावादी कवियों में देखने को मिलता है। उनका साहित्य इस अलंकार से ओतप्रोत है क्योंकि उस समय देश अंग्रेजों के अधीन था।

किसी भी साहित्य में सीधी बात नहीं कही जा सकती थी इसलिए अप्रस्तुत प्रशंसा के माध्यम से अपनी बातों को जनसामान्य तक पहुंचाने का कार्य छायावादी कवियों ने किया।

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