आज हम कहानी के तत्व का विस्तृत जानकारी लिखने जा रहे हैं। यह लेख विद्यालय तथा विश्वविद्यालय स्तर के छात्र के अनुकूल लेख होगा। विद्यालय स्तर के छात्र कहानी के तत्व को ठीक प्रकार से नहीं जान पाते।
वह भ्रमित हो जाते हैं कहानी के तत्व किसे कहते हैं ?
इस उधेड़बुन में वह इस प्रकार के पूछे गए प्रश्नों से दूरी बना लेते हैं, जबकि बेहद साधारण और अपनी समझ के अनुसार लिख सकते हैं।
इस लेख को हमने विशेष रुप से विद्यालय स्तर के छात्रों को ध्यान में रखकर तैयार किया है, आशा करते हैं यह लेख आपको पसंद आए। यह लेख आपके बुनियादी शिक्षा में सहयोग दे सके इस उद्देश्य के साथ हम लिख रहे हैं आशा है आप पसंद करेंगे –
कहानी के तत्व – Kahani ke tatva
कहानी के तत्व
भारत में मुद्रण कला के विकास के उपरांत हिंदी साहित्य का विस्तार हुआ। कहानी, नाटक , उपन्यास आदि का जन्म हुआ। हिंदी साहित्य में कहानी का विशेष महत्व है। कहानी जनसाधारण की भाषा के अनुरूप थी, अतः लोगों ने कहानी तथा नाटक में अपना रुचि व्यक्त किया। साहित्य ने नया रूप धारण किया पुराने जीर्ण शीर्ण भाषाओं को छोड़कर साहित्य ने हिंदी में अपनी रुचि दिखाई और नित्य निरंतर अपने पथ पर अग्रसर होती रही।
- स्वाधीनता संग्राम मे कहानी की भूमिका और बढ़ जाती है।
- स्वाधीनता संग्राम में कहानी तथा नाटकों के माध्यम से जन चेतना तथा राष्ट्र चेतना का कार्य संभव हो सका।
- राष्ट्रीय जागरण में कहानी ने अपना अहम योगदान निभाया।
- कहानी ने जन-जन तक अपने विचारों और स्वाधीनता के भावों को पहुंचाया जिसके माध्यम से बेहद ही कम समय में स्वाधीनता हासिल हो सकी।
कहानी के तत्व मुख्य रूप से छह प्रकार के माने गए हैं –
- कथावस्तु
- पात्र का चरित्र चित्रण
- वातावरण
- संवाद
- भाषा शैली
- उद्देश्य
1. कथावस्तु
कहानी का सबसे प्रमुख और आरंभ बिंदु कथावस्तु है। कहानी के निर्माण अथवा उसके रचना से पूर्व लेखक यह तय करता है कि उसे किस क्षेत्र अथवा किस उद्देश्य के लिए कहानी की रचना करनी है। अतः उसके परिकल्पना के बाद ही वह कहानी की रचना आरंभ करता है।
कथावस्तु की पांच सीढ़ियां मानी गई है –
- आरंभ
कहानी का आरंभ किसी ऐसी घटना या चित्र के साथ होता है जहां नायक की आरंभिक स्थिति होती है, इसे ही केंद्र बिंदु मानकर कहानी का पूरा सांचा तैयार किया जाता है। अधिकतर कहानी में नायक किसी ऐसी स्थिति में होता है जहां से निकलने के लिए वह संघर्ष करता है, जिसमें उसे अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यहीं से कहानी का विकास होता है, जिसमें नायक अपने पुरुषार्थ और संघर्ष के बदौलत अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है।
कहानीकार विशेष रूप से यह ध्यान देते हैं कि कहानी का अंत सुखान्तक हो अर्थात नायक को उसका लक्ष्य प्राप्त हो जाए जिसे वह पाना चाहता है।
- विकास
कहानी का विकास लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है, यहां नायक अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करता है जहां अनेकों दुख कष्ट और परेशानियों का सामना करना पड़ता है। संघर्ष जितना बड़ा होता है कहानी उतना ही रोचक और सफल होता जाता है। धीरे धीरे कथानक का विकास होता यही स्थिति आदर्श मानी गई है जब दर्शक या पाठक नायक के दुख में शामिल होता है। पाठक नायक के संघर्ष के साथ जुड़कर उसे उन कठिनाइयों से निकलकर लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रेरित होता है, जहां दुख और पीड़ा की अधिकता होती है।
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कोतुहल
कहानी में संघर्ष और दुख पीड़ा को देखकर पाठक दुखी हो जाता है और कहानी में धीरे-धीरे अरुचि उत्पन्न होने लगती है। यहां कहानी में उपस्थित गौण पात्र पाठकों का मनोरंजन करने के लिए उपस्थित होते हैं। यह पात्र समय समय पर आकर कथानक को गति प्रदान करते हैं, इनका कार्य कहानी मैं आ रही रुकावट तथा ऊब को दूर करना होता है तथा पाठक को कहानी के साथ जुड़े रहने का कार्य करना होता है।
- चरमसीमा
कहानी में चरम सीमा उस स्थिति को माना गया है जहां नायक अपने पूरे सामर्थ्य और पुरुषार्थ के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शक्ति का प्रयोग करता है। जहां सफलता और विफलता आमने सामने होती है। यहां पाठक की रोचकता, जिज्ञासा और लगाव कहानी में अधिक होता है, इस स्थिति को चरम स्थिति कहा गया है जहां सफलता और विफलता का निर्णय होता है।
- अंत
कहानी का अंत कथावस्तु तथा कहानी की सफलता निश्चित करती है। अतः कहानी कार्य को कहानी का अंत करते समय सावधानी बरतनी चाहिए। नायक के संघर्ष और प्रयत्न से अगर उसे सफलता प्राप्त होती है तो, कहानी को सफलता की श्रेणी में रखा जाता है। पाठक कहानी के साथ खुश होकर अपने जीवन में कुछ निर्णय लेने के लिए समर्थ होता है। कहानी का अंत सुखमय होना चाहिए यही कहानी की सफलता को निश्चित करता है।
इन्हीं पांच सीढ़ियों से होकर कहानी का पूरा सार/कथानक गुजरता है।
2. पात्र का चरित्र चित्रण
कहानी अथवा किसी भी लेख में पात्र का चरित्र चित्रण बेहद ही आवश्यक होता है।
श्रोता अथवा पाठक के साथ तारतम्यता स्थापित करने के लिए यह बेहद ही आवश्यक है कि पात्रों का चरित्र – चित्रण बेहद ही सटीक और यथार्थ के निकट हो।
अगर कहानी किसी ग्रामीण परिवेश पर लिखी जा रही है तो उसके पात्र शहरी ना दिखाकर ग्रामीण ही दिखाना चाहिए।
उसके वस्त्र परिधान भी ग्रामीण हो, ऐसा प्रबंध किया जाना चाहिए, अन्यथा श्रोता अथवा पाठक उस कहानी में रुचि नहीं रखेगा।
3. वातावरण
कहानी के अनुरूप वातावरण का निर्माण होना बेहद आवश्यक है। अगर किसान जीवन की बात कहानी में कहीं जा रही है तो किसान जीवन का वातावरण अथवा दृश्य दिखाना आवश्यक है। अगर ठीक प्रकार से वातावरण का निर्माण नहीं किया जाता तो कहानी नीरस प्रतीत होगी।
कहानी में अगर संध्या के समय की बात कही जा रही है तो उस प्रकार का वातावरण भी निर्माण करना होगा।
अगर सुबह के सूर्य की बात कहानी में कही जा रही है तो उसी प्रकार का वातावरण निर्माण किया जाना चाहिए अन्यथा कहानी की सार्थकता सिद्ध नहीं हो सकेगी।
4. संवाद
कहानी में संवाद का विशेष महत्व होता है कहानी के पात्र आपस में उसी भाषा का प्रयोग करें जो कहानी के कथावस्तु के अंतर्गत हो। अगर ग्रामीण जीवन की कथा कहीं जा रही है तो उसके पात्र भी ग्रामीण जीवन के अनुकूल ही बातचीत करेंगे। अगर ग्रामीण जीवन की बात कथा में कही जा रही है और उसके पात्र संस्कृत के शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं तो कहानी नीरस प्रतीत होगी।
अतः संवाद और भाषा का बेहद सटीक प्रयोग किया जाना आवश्यक है।
5. भाषा शैली
कहानी की सफलता उसकी भाषा शैली पर निर्भर करती है। कहानी को प्रभावशाली बनाने के लिए उसकी भाषा शैली पर विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है। उसके पात्र कलाकार भाषा शैली में निपुण हो जो पाठक अथवा श्रोता के साथ तारतम्यता स्थापित कर सकें।
भाषा शैली ही श्रोता अथवा पाठक को अपने साथ जोड़े रखती है। बीच-बीच में हंसी मजाक तो आवश्यक है किंतु अपने लक्ष्य की ओर चरम स्तर पहुंचने के लिए अपनी मुख्य कथा को भी गति देनी चाहिए।
जिसके लिए उन्हें भाषा शैली का ऐसा प्रयोग करना चाहिए जो पाठक अथवा श्रोता के अनुरूप हो।
इतने अधिक सांस्कृतिक भाषा ना हो जो पाठकों अथवा श्रोताओं के समझ से परे हो। अतः भाषा शैली पर विशेष ध्यान देकर पाठकों अथवा श्रोताओं के अनुरूप अपनी कहानी की रचना करनी चाहिए।
6. उद्देश्य
किसी भी लेख का उद्देश्य होता है उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पूरी रचना की जाती है। अंत में यही देखा जाता है कि यह रचना जिस उद्देश्य के लिए रचा गया था क्या वह उद्देश्य को प्राप्त हुआ या नहीं। अगर उस उद्देश्य की प्राप्ति होती है तो इस रचना की सफलता होगी अन्यथा वह सब विफल हो जाएगा। इसीलिए सभी अंगों को अपने मुख्य कथानक के साथ जुड़कर उसे गति देनी चाहिए। प्राचीन समय में कहानी मनोरंजन का प्रमुख साधन हुआ करती थी। किंतु आज इसका विस्तृत रूप देखने को मिलता है कहानी आज समाज का आईना माना जाता है। कहानी के माध्यम से उस पूरे समाज को आप देख सकते हैं और यह समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
अथवा इसके गरिमा को बरकरार रखते हुए अपने उद्देश्य में निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।
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निष्कर्ष
कहानी आधुनिक युग की देन है इसका विकास मुद्रण कला के बाद आरंभ हुआ आज इसके पाठक का दायरा विस्तृत है। इसको पढ़ने वाले विशेषकर मध्यमवर्गीय पाठक हैं। यह विधा एक बैठक में समाप्त होने वाली है यह इसका विशेष गुण भी है।
आज के बाद से दौड़ती व्यस्त जिंदगी में पाठक के पास इतना समय नहीं होता कि वह लंबे समय तक किसी लेख का अध्ययन करें वह संक्षिप्त समय में ही सभी सार प्राप्त करना चाहता है, उनके लिए कहानी एक सुलभ माध्यम है।
कहानी के माध्यम से वह तत्काल अपने उद्देश्यों की पूर्ति कर पाते हैं।
कहानीकार को कहानी लिखने से पूर्व कहानी के प्रमुख घटक तथा तत्व की विस्तृत रूप से जानकारी होनी आवश्यक है। इसके अभाव में वह कहानी को ठीक प्रकार से नहीं लिख सकेगा। जिसके कारण कहानी लेखन अपने उद्देश्यों की पूर्ति करने में असमर्थ रहेगी।
उपरोक्त दिए गए प्रमुख 6 तत्वों के आधार पर ही कहानी का लेखन किया जाता है।
आशा है आपको यह लेख पसंद आया हो आपके ज्ञान की वृद्धि हो सकी हो अपने प्रश्न पूछने के लिए कमेंट बॉक्स में लिखें हमें आपके प्रश्नों की प्रतीक्षा रहती है।