दृष्टान्त अलंकार की परिभाषा, पहचान और उदाहरण

इस लेख में आप दृष्टान्त अलंकार के विषय में संपूर्ण जानकारी हासिल करेंगे। इसके अंतर्गत दृष्टान्त अलंकारकी परिभाषा,उदाहरण आदि को आप परीक्षा की दृष्टि से अध्ययन कर सकेंगे।

यह लेख सभी प्रकार की परीक्षाओं के लिए कारगर है। अतः आप इसका अध्ययन अपनी परीक्षाओं के लिए कर सकते हैं।

अलंकार को काव्य की सुंदरता में वृद्धि के लिए प्रयोग किया जाता है। यह काव्य का आभूषण माना जाता है,जिस प्रकार स्त्री-पुरुष अपने रूप को निखारने के लिए आभूषणों को धारण करते हैं। उसी प्रकार काव्य में अलंकार का प्रयोग किया जाता है।

दृष्टान्त अलंकार

जब उपमेय और उपमान वाक्य तथा उसके साधारण धर्म का (धर्म-पार्थक्य) होते हुए भी जहां पर बिंब-प्रतिबिंब भाव (भाव-साभ्य) हो वहां दृष्टांत अलंकार होता है।

दृष्टान्त अलंकार के उदाहरण

रहिमन अंसुवा नयन ढरि जिय दुख प्रकट करैई।

जाहि निकारो गेह ते ,कस न भेद कहि देई। ।

 इस उक्ति में प्रथम वाक्य में एक बात कही गई है और दूसरे वाक्य में दूसरी बात। दोनों के धर्म भिन्न है इसमें समता सूचित करने के लिए ‘वाचक’ शब्द अर्थात ‘सम’ , ‘समान’आदि का प्रयोग भी नहीं हुआ है।  किंतु दोनों वाक्यों में बिंब-प्रतिबिंब स्थिति है। दूसरा वाक्य पहले वाक्य को सपोर्ट करने वाले उदाहरण की भांति है,अतः यहां दृष्टांत अलंकार है।

२.

पापी मनुज भी आज मुख से राम राम निकालते।
देख भेड़िये भी आज आंशू निकालते।

३.

सठ सुधरहिं सत संगत पाई ।

पारस परिस कुधातु सुहाई।

४.

एक म्यान में दो तलवारें कभी नही रह सकती है।

किसी और पर प्रेम नारियां,पति का क्या सह सकती है।

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निष्कर्ष

उपरोक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि जिस वाक्य या काव्य में उपमेय और उपमान वाक्य तथा उनके साधारण धर्म का बिंब प्रतिबिंब भाव प्रकट होता हो वहां दृष्टांत अलंकार माना जाता है।

यह उदाहरण अलंकार से भिन्न है इसके अंतर्गत सभी वाक्य स्वतंत्र होते हैं और स्वतंत्र अर्थ को प्रकट करते हैं।

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