इस लेख में आप आधुनिक भारत के नए शरणार्थियों की पहचान कर सकेंगे। जहां कोई वापसी नहीं पाठ का सार तथा महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तरों का समाधान यहां प्राप्त कर सकते हैं।निर्मल वर्मा का साहित्य ग्रामीण तथा सामाजिक परिवेश में व्याप्त समस्याओं के मूल कारण को उजागर करता है। यह लेख ऐसे ही एक समस्या को उजागर करता हुआ जान पड़ता है जिसके कारण गांव के गांव विस्थापित हो जाते हैं और लोग शरणार्थी बनने को मजबूर हो जाते हैं।
जहां कोई वापसी नहीं – निर्मल वर्मा अंतरा भाग 2
लेखक परिचय निर्मल वर्मा
जन्म / स्थान – 3 अप्रेल 1929 शिमला (हिमाचल प्रदेश)
शिक्षा – इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन कॉलेज से इतिहास में एम.ए. किया।
कार्य – चेकोस्लाविया के प्राच्य विद्या संस्थान प्राग के निमंत्रण पर सन 1959 में वहां गए और चेक उपन्यासों तथा कहानियों का हिंदी अनुवाद किया। हिंदुस्तान टाइम्स तथा टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए यूरोप की सांस्कृतिक एवं राजनीतिक समस्याओं पर लेख तथा रिपोर्ताज लिखे जो उनके निबंध संग्रह में संकलित है। इसके पश्चात (1970) भारत में आकर स्वतंत्र लेखन करने लगे।
रचनाएं
कहानीयां –
- परिंदे
- जलती झाड़ी
- तीन एकांत
- पिछली गर्मियों में
- कव्वे और काला पानी
- बीच बहस में
- सूखा तथा अन्य कहानियां आदि।
हिंदी प्रश्न पत्र कक्षा बारहवीं ( Prashna patra with solution )
उपन्यास –
- वे दिन
- लाल टीन की छत
- एक चिथड़ा सुख तथा अंतिम अरण्य’
- रात का रिपोर्टर’ जिस पर सीरियल तैयार किया गया है
- उनका उपन्यास है।
यात्रा संस्मरण –
- हर बारिश में
- चीड़ों की चांदनी
- धुंध से उठती धुन।
निबंध संग्रह –
- शब्द और स्मृति,
- कला का जोखिम,
- ढलान से उतरते हुए।
पुरस्कार –
सन 1985 में कव्वे और काला पानी पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। अन्य कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।
साहित्यिक विशेषताएं –
निर्मल वर्मा नई कहानी आंदोलन के अग्रज माने जाते हैं। इनके लेखों में विचारों की गहनता है। उन्होंने भारत ही नहीं यूरोप की सांस्कृतिक एवं राजनीतिक समस्याओं पर भी अनेक लेख लिखे हैं।
भाषा शैली –
भाषा शैली में अनोखी कसावट है जो विचार सूत्र की जनता को विविध कारणों से रोचक बनाती हुई विषय का विस्तार करती है। शब्द चयन में जटिलता होते हुए भी वाक्य रचना में मिश्र एवं संयुक्त वाक्य की प्रधानता है। स्थान – स्थान पर उर्दू एवं अंग्रेजी के शब्दों के प्रयोग द्वारा भाषा शैली में अनेक नविन प्रयोगों की झलक मिलती है।
मृत्यु – 25 अक्टूबर 2005
जहां कोई वापसी नहीं
पाठ की विधा – यात्रा वृतांत
मूल संवेदना – प्रस्तुत पाठ में लेखक ने पर्यावरण संबंधी सरोकारों के साथ-साथ विकास के नाम पर पर्यावरण से उत्पन्न मनुष्य की विस्थापन संबंधित समस्या को विचित्र किया है। लेखक ने यह बताना चाहा है कि यदि विकास और पर्यावरण संबंधी सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखा जाए तो हमेशा विस्थापन और पर्यावरण संबंधित समस्या सामने आती रहेगी। जिससे केवल मुझसे ही अपनी जमीन और देश व संस्कृति भी हमेशा के लिए नष्ट हो जाती है।
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जहां कोई वापसी नहीं – पाठ का सार
अमझर शब्द का अर्थ – एक गांव जो आम के पेड़ों से घिरा रहता है, जहां आम झड़ते हैं। जबसे सरकारी घोषणा हुई कि अमरोली प्रोजेक्ट के तहत नवागांव के अनेक गांव उजाड़ दिए जाएंगे तब से आम के पेड़ सूखने लगे। उन पर सूनापन छा गया। ठीक ही तो है, आदमी उजड़ेगा तो फिर पेड़ जीवित रह कर क्या करेंगे।
आधुनिक भारत के नए शरणार्थी –
जिन लोगों को औद्योगीकरण की आंधी ने अपने घर जमीन से हमेशा के लिए अलग कर दिया वही लोग आधुनिक भारत के नए शरणार्थी कहलाए।
प्रकृति और औद्योगिकरण के कारण विस्थापन में अंतर –
बाढ़ या भूकंप के कारण जब लोग अपने घर को छोड़कर कुछ समय के लिए सुरक्षित स्थान पर चले जाते हैं और स्थिति सामान्य होने पर वापस अपने घर लौट आते हैं उन्हें प्रकृति के कारण विस्थापित कहा जाता है। जब लोगों को औद्योगिकरण की वह विकास के नाम पर निर्वाचित घर जमीन से अलग कर दिया जाता है और यह लोग फिर कभी घर वापस नहीं आ पाते उन्हें औद्योगिकरण के नाम पर विस्थापित कहा जाता है।
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यूरोप एवं भारत की पर्यावरण संबंधी चिंताएं –
यूरोप एवं भारत की पर्यावरण संबंधी चिंताएं सर्वथा भिन्न है। यूरोप में मनुष्य और भूगोल के बीच संतुलन बनाए रखना पर्यावरण का प्रश्न है जबकि भारत में यही संतुलन और संस्कृति के बीच बनाए रखने का है।
सिंगरौली की उर्वरा भूमि अपने लिए अभिशाप –
सिंगरौली की भूमि इतनी उर्वरा और जंगल इतने समृद्ध थे कि उनके सहारे शताब्दियों से हजारों बनवासी और किसान अपना भरण-पोषण करते हैं। आज सिंगरौली की वही अतुलनीय संपदा उसके लिए अभिशाप बन गई, तभी तो दिल्ली के सत्ताधारी ओ और उद्योगपतियों की आंखों से सिंगरौली की अपार क्षमता नहीं पाई। सिंगरौली जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य के कारण बैकुंठ और अकेलेपन के लिए काला पानी माना जाता था , अब प्रगति के मानचित्र पर राष्ट्रीय गौरव के साथ उपस्थित हुआ है।
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औद्योगिकरण के कारण पर्यावरण संकट –
यह सच है कि औद्योगिक पर्यावरण संकट पैदा किया है औद्योगीकरण के कारण गांव के गांव जाकर लोगों को जमीन से मुक्त कर दिया गया है। ऐसा करके वहां का परिवेश तो खराब हुआ यह साथ मनुष्य और उसका परिवेश भी उजड़ गया है। जिससे प्रकृति मनुष्य व संस्कृति का संतुलन गड़बड़ा गया। औद्योगीकरण के कारण विस्थापित उद्योगों व कचरे से पर्यावरण संकट पैदा कर दिया। मनुष्य प्रकृति व संस्कृति के बीच संतुलन को नष्ट कर दिया है। हमें ऐसी योजनाएं बनानी होगी जो इस संतुलन को बनाए रखकर विकास एवं प्रगति करें.
प्रश्न उत्तर ( जहां कोई वापसी नहीं )
प्रश्न – आधुनिक भारत के शरणार्थी के लिए कहा गया है ?
उत्तर – औद्योगिक विकास के नाम पर जिन लोगों को उसके निवास स्थान से (अपने घर व जमीन) से उखाड़ कर हमेशा के लिए निर्वासित किया जाता है। इन लोगों की जमीन को भी सरकार या औद्योगिक घरानों ने छीन लिया। यह लोग सदा के लिए बेघर हो गए यह लो फिर अपने घर कभी नहीं लौट पाते ऐसे लोगों को आधुनिक भारत के नए शरणार्थी कहा गया है।
प्रश्न – लेखक के अनुसार स्वातंत्र्योत्तर भारत की सबसे बड़ी ट्रेजरी क्या है ?
उत्तर – स्वतंत्रता के पश्चात ट्रेजडी या नहीं कि औद्योगीकरण का मार्ग चुना बल्कि दुख इस बात का है कि पश्चिमी की देखा – देखी और नकल में योजनाएं बनाते हुए हमने प्रकृति मनुष्य और संस्कृति के बीच का संतुलन नष्ट कर दिया। यदि हम पश्चिमी की नकल किए बिना अपनी मर्यादाओं के आधार पर औद्योगिक विकास का ढांचा तैयार करते तो हम इस संतुलन को नष्ट होने से बचा सकते थे। इसका विचार भी हमारे शासकों को नहीं आया।
प्रश्न – अमझर से आप क्या समझते हैं ? अमझर गांव में सूनापन क्यों है ?
उत्तर – अमझर सिंगरौली के एक गांव का नाम है, अमझर से अभिप्राय उस गांव से है जहां आम झरते रहते हैं। अर्थात वह गांव संपन्न है जहां बागान में खुशहाली दौड़ती है। ऐसे खुशहाल गांव की नजर जब सत्ताधारीयो की लगती है तो पूरा गांव वहां की प्राकृतिक संपदा आदि सभी निर्झर हो जाते हैं। सुनेपन का शिकार हो जाता है, ऐसा ही अमझर गांव के साथ हुआ जब वहां औद्योगिकरण की बात लोगों को पता चला तो बाग बगीचे सूख गए क्योंकि बिना लोगों के वहां के बाग बगीचे किसी काम के नहीं।
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निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
किंतु कोई भी प्रदेश ……………………….. हजारों गांव उजाड़ दिए गए थे। ।
प्रसंग –
पाठ का नाम – जहां कोई वापसी नहीं
लेखक – निर्मल वर्मा
संदर्भ – इस पाठ में लेखक ने विकास के नाम पर पर्यावरण विनाश से उत्पन्न विस्थापन पर विचार किया है।
व्याख्या –
लेखक का मानना है कि कोई भी प्रदेश आज के लालची युग में अपने अलगाव से सुरक्षित नहीं रह सकता अर्थात आज का युग लालच का युग है। इसमें कोई भी प्रदेश दूसरों से कटकर सुरक्षित नहीं है, कभी-कभी किसी प्रदेश की अच्छी संपदा ही उसके अभिशाप का कारण बन जाती है। दिल्ली के सत्ताधारी और उद्योगपतियों की आंखों से सिंगरौली की अपार खनिज संपदा भी छिपी नहीं रही।
उनके लालच ने इस प्रदेश की अपार संपदा को ढूंढ निकाला। विस्थापन की एक लहर रिहंद बांध बनाने से आई थी जिसके कारण हजारों गांव उजाड़ दिए गए थे। अर्थात रिहंद बांध की परियोजना हजारों गांव के उजड़ने का कारण बनी।
विशेष –
- खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है
- रिहंद बांध से विस्थापन की समस्या का वर्णन किया गया है
- तत्सम शब्दावली की अधिकता है
समापन
लेखक ने जहां कोई वापसी नहीं कहानी के माध्यम से आधुनिक भारत में जबरन बनाए जा रहे शरणार्थियों को चिन्हित किया है। जिस पर सरकार अपने औद्योगिक विकास के लिए पर्यावरण का दोहन करते हैं। स्थाई रूप से रह रहे लोगों को शरणार्थी के रूप में परिवर्तित करते हैं। लेखक पर्यावरण के प्रति भी सजग है उन्होंने इस पाठ के माध्यम से पर्यावरण की समस्या की ओर भी ध्यान आकर्षित करना चाहा है। जहां हरे भरे आम के पेड़ हुआ करते थे वह सरकार की औद्योगिक नीति ने विरान और बंजर रूप में तब्दील कर दिया। वहां रह रहे लोगों को स्थाई रूप से शरणार्थी के रूप में तब्दील कर दिया।
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